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Sunday, July 1, 2012

परदेशी बेटी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



उबानि‍ होइते घटक काका दाँत पीसैत काकीपर बि‍गड़ैत घर छोड़ि‍ वि‍दा भेला। मनमे उठलनि‍ जे एहेन पड़ाइन पड़ा जाइ जे दोहरा कऽ ने घरक मुँह देखी आ ने घरेवालीक। मुदा ओहन क्रोधे आकि‍ हँसऽबे कि‍ जे दोसरपर नै बि‍साए। घरक बात (पति‍-पत्नीक बीचक) तँए अनका कहबो उचि‍त नै। दुनि‍याँमे केकरो कोइ ने कहै छै। भलहिं बि‍नु कहनौ दुनि‍याँ कि‍अए ने बुझैत होउ। मने मन घटक काकाक पकि‍या ि‍नर्णए भऽ गेलनि‍। लोकोकेँ कोन मतलब जे बताह जकाँ अनेरो अनका देखि‍ हँसि‍ देब अाकि‍ बि‍नु मतलबोक घंटा भरि‍ सोखर पसारि‍ देब। आन जकाँ नै जे आंगनसँ नि‍कलि‍ डेढ़ि‍योपर सँ पाछू घूमि‍-घूमि‍ देखैत, देखबो केना करि‍तथि‍? कोनो कि‍ अदी-गुदी वि‍चारक चोट लागल छन्‍हि‍‍, पुरुखे छि‍याह जे अखनो धरि‍ बरदास केने छथि‍ नै तँ मूसक दबाइ पीब नेने रहि‍तथि‍।
एक तँ ओहुना अखन घटक काकाकेँ टोकैक लग्‍न नै, कारण लगनक समए नै छी, लगनक समैमे ने पति‍आनी लागल काज रहै छन्‍हि‍ कुसमैमे तँ दुनि‍याँक नि‍अमे छै जे अपनो लोक पूछैले तैयार नै होइत अछि‍, घटक काका तँ सहजहि‍ वि‍दाइ लेनि‍हार छथि‍। बि‍नु रेटक आमदनी। जेहेन मुँह तेहने आमद। नै टोकैक इहो कारण रहनि‍ जे मध-असरेसक गि‍रहस्‍ती चि‍रहस्‍ती   बि‍गड़ैत घर छोड़ि‍ लैत, जते समए लोक केकरोसँ गप करत तते काल जँ देहे कुरि‍या लेत तँ ओइसँ बेसी नीक। भगवान केकरो अधला बना पठबै छथि‍न, भलहि‍ं रोगे-व्‍याधि‍ कि‍अए ने होउ। जँ सभ अधले रहैत तँ कि‍अए कि‍यो देह कुरि‍अबैले सोनाक सि‍क्का बना-बना आगूमे रखैत। ओहि‍ना पैघ शैरीकार कहै छथि‍-
हौहटि‍मे मजा है कि‍ कलकलि‍ में है,
खुदा ने दि‍या खुजली, कुरि‍याने में मजा है।
खैर जे होउ। ओना कि‍सकारक समए रहने देवि‍यो देवता अखन छुट्टी लऽ लेने छथि‍, चौरचनक पछाति‍ ज्‍वाइन करताह। जहि‍ना फुलही थारीमे जते काल दही रहैत ओते बेसी कसाइन होइत, तहि‍ना घटक काकाक मन कसाइन होइत जाइत रहनि‍। जहि‍ना भरल पेटक प्रेम गीतक स्‍वर आ जरल पेटक प्रेम गीतक स्‍वरमे मात्राक भेद होइत तहि‍ना घटक काकाक मनमे उठैत रहनि‍, जे आइ धरि‍ कहि‍यो नै उठल रहनि‍। केना नै उठि‍तनि‍? सभ दि‍न दस गोटेक बीच हँसि‍-बाजि‍ समए खटि‍यबैत रहला आब जखन शि‍व लि‍ंग फुल जकाँ वा नारि‍यल-ताड़ जकाँ फड़एबला भेला तँ आनक कोन गप जे जाँघ तर बसैवाली पत्नि‍यो दुतकारि‍ देलकनि‍। ई तँ हुनके चाबस्‍सी होन्हि‍ जे जहर-माहुरक कोन गप जे केकरो लग बजौ नै चाहैत छथि‍। कसाइन बीच बि‍साइन घटक काकाक मन उठलनि‍। जि‍नगी भरि‍ घरे बसबैक काज करैत एलौं मुदा......?
बेटा प्रेमसँ चाहे बि‍गड़ि‍ कऽ आकि‍ पड़ा कऽ परदेश चलि‍ गेल तँ चलि‍ गेल। सबहक बेटी सासुर बास करैए, ओहो करह। मुदा पत्नी तँ पत्नी छी। जँ घरे नै तँ घरवाली की, आ घरेवाली नै तँ घर केहेन। भाड़ा घर जँ अपना घर सन होइतै तँ मुसे कि‍अए घरमे घर बनबैत। ओकरो तँ पानि‍ये पाथरसँ ने जान बँचबैक छै। मुदा कि‍अए? अपन घर कि‍यो अपन वि‍चार अपन आँट-पेट आ लम्‍बाइ-चौड़ाइ नापि‍ बनबैत तँए बेसी सुरक्षि‍त होएत। मुदा गणेशजी अपन वाहनकेँ ई बात ने कि‍अए बुझा देलखि‍न जे लोकक घरमे जे घर बनबै छेँ, से अपने जोकर बनबि‍हेँ। जइ भीतपर घर ठाढ़ अछि‍ ओकरे कि‍अए जंजल बना देइए। जखन भीते-जंजल भऽ जाएत तखन हथि‍याक झाँट केना बरदास करत। मुदा घर खसत घर बन्‍हनि‍हारकेँ ओ तँ बीलमे अन्नक ढेरीपर अरामसँ पड़ल रहत। अकाससँ धरतीपर घर खसत, मुदा ओ तँ पताल दि‍स बनौने अछि‍। कि‍अए ने ओकर जान बँचले रहतै। तइ बीच घटक काकाक मनमे एकटा घटकैती आबि‍ गेलनि‍। मन पड़ि‍ते मुस्‍की आबि‍ गेलनि‍। ठोर वरदास नै कऽ सकलनि‍। खापड़ि‍क तीसी जकाँ चनचना उठलनि‍। कहू जे बेंगबा सन छौड़ाकेँ इन्‍द्रक परी सन कन्‍या केकरा कि‍रतबे भेलै। मुदा कलयुगक उपकार हत्‍या बराबरि‍। जौं से नै तँ जँ ओकरा अपन उपकार मन पाड़ि‍ देबै तँ कि‍ ओ नै कहत जे पाँचो टूक कपड़ा आ दैछना कथीक लेने रहि‍ऐ। ओ खुशनामा देने रहए आकि‍ काज करैक बोइन। मन घूमि‍ पत्नीक ओइ बातपर आबि‍ अँटकि‍ गेलनि‍ जे कहू ई केहेन भेल जे मुँह फोड़ि दुसैत कहलनि‍ जे आगू-पाछू कि‍छु सोचै नै छी आ जहाँ कोसीकातक बकेनमा दूधक दही आ ति‍लकोरक तरूआ आगू पड़ैए आकि‍ बुद्धि‍ये बि‍गड़ि‍ जाइए। जइ परि‍वार लेल जि‍नगी भरि‍ झूठ-फूसि‍ बाजि‍, नीक-अधला काजक वि‍चार नै केलौं तइ परि‍वारमे एहेन गंजन हुअए तँ मनुक्‍ख केना रहत? खौंझ आरो तेज भेलनि‍। ओ (पत्नी) रस्‍तामे रोड़ा अँटकौनि‍हार के? दस गाम घूमै छी, दस लोकमे रहै छी हम आ उपदेश देती ओ? जे सभ दि‍न जाँघक नि‍च्‍चा रहल ओ छड़पि‍ कऽ छातीपर चढ़ि‍ मुक्का देखाओत; एहेन पुरुष हम नै छी। जहि‍या जे हेतै से हेतै अखन घरसँ नै पड़ाएब। भक्क खुजलनि‍ तँ देखलनि‍ जे कि‍लोमीटर हटि‍ दोसर टोल लग पहुँचि‍ गेल छी। घूमि‍ कऽ अांगन केना जाएब? केतबो कि‍छु भेल तँ भेल पुरुष अपन पुरुखपाना केना छोड़ि‍ देत? नेराओल थूक केना चाटत? मुदा अपने फुरने घुमऽबो केहेन हएत? मरदक बात वाण समान होइत जे धनुषसँ नि‍कलि‍ गेल नि‍कलि‍ गेल। कहि‍ दुनू हाथक तरहत्थी माथपर लऽ बैसि‍ रहलाह।
जहि‍ना कि‍सान, बि‍नु खुरपि‍योक गाछक जड़ि‍ लग बैसि‍ चुटकि‍येसँ खढ़ उपाड़ि‍ कमठौन करए लगैत, तहि‍ना घटक काका घुमैक ओरि‍यान सोचए लगलाह। मुदा लगले मन तुरुछए लगलनि‍। ई तँ धोबि‍यो कुकुड़सँ टपब हएत जे, घरक आ ने घाटक। जँ बलजोरी घरमे रहौ चाहब तँ ओ (पत्नी) कत्ते मोजर देतीह। मन घुमलनि‍। हमरो एते नै अगुतेबाक चाहै छल। गल्‍ती अपनो भेल। एना जे लोक छोट-छोट बातपर घरसँ पड़ाएत तँ कहि‍यो कुकुड़-बि‍लाइ जकाँ अपन घर हेतै। साँझू पहर कऽ जखन लोक बाध-बोनसँ अबैए तखन केकरा घरमे ने हर-हर, खट-खट होइ छै, मुदा कहाँ कि‍यो हमरे जकाँ फूलि‍ कऽ पड़ा जाइए। जँ एक रत्ती दब-उनार बात पत्नी कहबे केलनि‍ तँ कि‍ होइतै। कोनो कि‍ जड़ि‍ भीरा कऽ टि‍क काटि‍‍ लेलनि‍। अर्द्धांगि‍नी छथि‍, बाल-बच्‍चा आ परि‍वारपर जते अधि‍कार पति‍क होइत तइसँ कम कि‍ पत्नि‍योक होइत अछि‍। बेटा-बेटी तँ दुनूक छी। ई तँ समैक दोख छी जे कखनो गरमी चढ़ा (रौदमे) गरमा दैत अछि‍ तँ कखनो ठंढा दैत अछि‍। सझुका झगड़ा राति‍ खसैत-खसैत मेटाइये जाइए कि‍ने। आकि‍ हमरे जकाँ दि‍न-राति‍ धेने रहब। भोर होइते दुनू परानी घर-अंगनाक काजमे लगि‍ जाइए। कहाँ एको मि‍सि‍या मान-दोख मनमे रखैए। जहि‍ना डि‍क्‍शनरीक नवका शब्‍द अबि‍तो अछि‍ आ जाइतो अछि‍ तहि‍ना ने घरोमे कि‍छु-ने-कि‍छु अबैत रहैए आ कि‍छु-ने-कि‍छु जाइत रहैए। मन आगू घुसुकलनि‍। मन पड़लनि‍ बि‍आहक दि‍न? समाजक बीच सरि‍आती-बरि‍आती, तँ हमहीं ने हाथ पकड़ि‍ जि‍नगी भरि‍ संगे रहैक वादा केने रही, से कि‍ भेल? जहि‍ना कटही गाड़ी कुमड़क रस्‍तामे कनी दब-उनार भऽ उनटि‍ये जाइए तँए कि‍ गाड़ीवान गाड़ी रखनाइये छोड़ि‍ देत। जँ छोड़ि‍ देत तँ आगू केना घुसकत? औगुताइमे एहेन भारी गल्‍ती नै करक चाही। कोन दुरमति‍या चढ़ि‍ गेल जे एना केलौं। एको रत्ती उम्रोक लेहाज-वि‍चार केलौं। जुआन लोक जकाँ ि‍नर्णए केलौं। कहू जे आब हमर उमेर अछि‍ जे संगी छोड़ि‍ असकरे रहब। कोनो कि‍ संयासी छी जे दोसर नै सोहाएत। अपने दि‍न-राति‍ घीमे डूमल रहब मुदा दोसरकेँ कुत्ता जकाँ पचै नै देब। भरि‍ दि‍न शनि‍याही गुड़-चाउर चि‍बबैत रहब आ अनका देखबे ने करब। मुदा कतौ जाएब तँ पेट संगे जाएत। पेटक आगि‍ जेहने परि‍वारमे तेहने तीर्थ-स्‍थानमे जगैत अछि‍। ओकरा तृप्‍ति‍ करब आवश्‍यक होइत। जँ से नै तँ भूखे भजन कि‍अए ने होइत। खाइले के देत? जँ देबो करत तँ एक मुट्ठी देत? एक दि‍न खेलासँ जि‍नगीक भूख मेटाएत। जँ से होइत तँ डि‍बि‍यो लऽ कऽ तकलापर एकोटा भि‍खमंगा नै भेटैत। मन घुमलनि‍। हारि‍ मानी झगड़ा फड़ि‍आए।

जहि‍ना बाढ़ि‍क तेसरा दि‍न पानि‍ ठाढ़ भऽ उनटा-पुनटा दि‍शा पकड़ए लगैत तहि‍ना घटक काकाक मनमे सेहो भेलनि‍। अपन वि‍चारक अनुकूल बात केकरा अधला लगै छै। संयोगो नीक रहलनि‍। मुदा मनमे खरोच लगलनि‍। समाजो तेहेन भऽ गेल अछि‍ जे केकरा के पूछत? जहि‍ना भोजक जएह बारीक मि‍ठाइ पड़सैत अछि‍ सएह माछो-मासु। कहू ई केहेन भेल। सभ तरहक पनचैती बड़के काका करताह। जमीनोक पनचैती आ दुनू परानि‍योक झगड़ा हुनके चाही। जँ जमीनक पनचैती अमीन नै करत, एहि‍ना सभ गुणक आधार से आदमी नै करत तँ खीर-खि‍चड़ीमे कोनो भेद नै रहत। एते मनमे रहबे करनि‍ कि‍ देखि‍ते सुनरलाल कहलकनि‍-
भाय सहाएब, अहीं ऐठाम जाइ छी?”
अहीं ऐठाम जाइ छी सुनि‍ घटक काका औना गेलाह। अपन ठौर कतए अछि‍ जे जाएत। कि‍ कहबै, भरमे-सरम आँखि‍ मूिन लइ छी जे बूझत हवामे अलि‍सा गेल छथि‍। उत्तर नै पाबि‍ सुनरलाल दोहरा देलकनि‍-
भाय सहाएब झखाएल छी, भक्क खोलू।
अकचकाइत घटक काका बजलाह-
नै, नै! कनी आँखि‍ लागि‍ गेल। की‍ कहलह?”
सुनरलाल- घरपर चलू। नि‍चेनसँ बुझा देब। रस्‍ता-पेराक गप नै छी।
एक तँ राकश दोसर नौतल। घटक काका हरे-हरे कऽ घर दि‍स बि‍दा भेलाह। मनमे उठलनि‍ जे कोनो वि‍चार दोहराइयो कऽ होइत अछि‍, कि‍अए ने दुनू परानी मि‍लि‍ फेरसँ वि‍चारि‍ लेब। घर दि‍स वि‍दा होइते घटक काका पुछलखि‍न-
गपो शुरू करह। जते भेल रहत ओते तँ काजे ने भेल रहत?”
छुब्‍द होइत सुनरलाल बाजल-
देखि‍औ भाय, बि‍अाह भेल केकरो आ जहलमे अछि‍ हमर बेटा।
अकचकाइत घटक भाय बजलाह-
से कि‍, से केना?”
मने-मन महावीरजी केँ गोड़ लगलनि‍। नि‍साँस छोड़ैत, सोचए लगलाह जे बाप रे एकटा काजमे जँ एना भेल, हम तँ जि‍नगी भरि‍ इएह केलौं। खुनी केसमे बेसी दि‍नक सजा होइ छै। मुदा खुदरो-खुदरी केश मि‍ला तँ ओहूसँ बेसि‍आइये जाइ छै। हे भगवान रच्‍छ रखलह। आबो छोड़ि‍ देबाक चाही। मुदा जइ इंजीनि‍यरकेँ जइ मशीनक बोध भऽ गेल अछि‍, जँ मशीनक तकनीक बदलि‍ जाएत तखन की हएत? दोसर काजक लूरि‍ कहि‍या भेल जे करब। हे भगवान जनि‍हह तूँ।
सुनरलाल कहए लगलनि‍-
भैया देखि‍यौ, हमरे बेटा फुलबाक बि‍आह बंगलोरमे करा देलकै। ओहन-ओहनकेँ गाममे के पूछै छै। मुदा ट्रन्‍सपोर्टमे नोकरी भेने दि‍न-दुनि‍याँ बदलि‍ गेलै। भषो सीखि‍ लेलक। अलगरजा कमाइ हुअए लगलै। बी.ए. पास लड़ीक संग बि‍आह करा देलकै।
घटक काका- बी.ए. पास लड़की गछलकै केना?”
सुनरलाल- केहेन गप करै छी। जखने लोक कमाए-खटाए लगैए तखने ने सर्टिफि‍केटक ओरि‍यान करए लगैए। एम.ए. पासक सर्टिफि‍केट कीन लेने अछि‍।
घटक काका- लड़कीबला कतक छि‍ऐ?”
सुनरलाल- नवटोलीक छि‍ऐ। तीस-पेइतीस बर्ख पहि‍ने गामसँ पड़ा कऽ गेल। नोकरी करए लगल। ओतै परि‍वारो रखैए, घरो-दुआर बना लेलक। अपन इलाकाक जाति‍ बूझि‍ कुटुमैती कऽ लेलक।
घटक काका- आब की भेल?”
सुनरलाल- बि‍आहक बाद लड़की जोर केलक जे गाम जाएब। एबो कएल। मुदा जहि‍ना पढ़ल सुग्‍गा बौक होइत तहि‍ना वेचारीकेँ भऽ गेलै। पनरहे दि‍नमे नाकोदम भऽ गेलै। जहि‍ना सासु अल्हरि‍ कहए लगलै तहि‍ना ससुरो माथा ठोकैत। सर-समाजक तँ चर्चे कोन? ने भाषाक ताल-मेल बैसैत आ ने खाइ-पीबैक वस्‍तुक।
घटक काका- जा, ई तँ भारी जुलुम भेल! तखन की भेलै?”
सुनरलाल- लड़की पड़ा कऽ दरभंगामे गाड़ी पकड़ि‍ बंगलोर चलि‍ गेल। हमरा बेटापर केश कऽ देलक। जेलमे पड़ल अछि‍।
डेढ़ि‍यापर अबि‍ते घटक काका बजलाह-
एहेन खच्‍चरपन्नी गाममे चलतै। अच्‍छा कनी ओहू पार्टीक बात बूझि‍ लेब तखन कहबह। अखैन जाह, कनी हमहूँ औगुताएले छी।

दरबज्‍जापर गल-गूल सुनि‍ रेखा आंगनसँ आबि‍, खरि‍हानक मेह जकाँ बीचमे आबि‍ ठाढ़ भऽ सोचए लगली जे केहेन पुरुख छथि‍ जे थूक फेकि‍ पड़ाएल रहथि‍ जे घूमि‍ कऽ ऐ घरक मुँह नै देखब, से सालक कोन गप जे दि‍नो भरि‍ नै नि‍माहि‍ सकलाह। मुदा मन ठमकलनि‍। सप्‍पत-कि‍रि‍या लोककेँ थोड़े टि‍क पकड़ि‍ उखाड़ै छै, जँ से उखाड़ि‍तै तँ भरि‍ दि‍न लोक कि‍अए सभ बातमे जय गंगाजी आकि‍ माटि‍ उठा-उठा बजैत अछि‍। जहि‍ना लोक भात-रोटी खाइए तहि‍ना ने सप्‍पतो-कि‍रि‍या खाइक वस्‍तु भेल। खेलक पचलै फेर खेलक फेर पचलै। रसे-रसे एहेन पचान पचि‍ जाइ छै जेहन झूठ-सच्‍चमे पचल अछि‍ सच्‍च–झूठमे। जँ तुकबन्‍दी करैक लूरि‍ भऽ जाए तँ कवि‍, शायर बनबे करब आ जँ झूठ-सच्‍च पचबैक लूरि‍ भऽ गेल तँ वक्‍ताक के कहए सेसर अनुभवी वक्‍ता बनबे करब। तहि‍ना तँ हि‍नको (पति‍क) जि‍नगी तेहने रहल छन्‍हि‍। तहूमे समाज तेहन लाइसेंस दऽ देने छन्‍हि‍ जे साले-साल थोड़े रि‍नुअल करबए पड़तनि‍, ताजि‍नगीक लेल बनि‍ गेल छन्‍हि‍। आँखि‍ उठा घटक काकापर देलनि‍ तँ देखलनि‍ जे मुँह धुआँ केने लटकौने छथि‍ आ जहि‍ना कोयलाक धुआँमे चमकैत बि‍जली बनैत तहि‍ना उपदेश झाड़ि‍ रहल अछि‍। मन रोषा गेलनि‍। घरे परि‍वारक लोक ि‍कअए ने होथि‍ मुदा गलत गलत छी तहि‍ना सहि‍यो तँ सही छिहे। गल्‍तीक कोनो पारावार छै रावण जकाँ लाख-सबा लाख धि‍या-पुता  जहि‍ना त्रेतामे छलै, जे घटि‍ कऽ द्वापरमे सय-सैकड़ापर चलि‍ एलै, तहि‍ना ने अखनो अछि‍। तहूमे कलयुग छी। पापेक युग। देवतो सभ पड़ा कऽ उनीकुटी चलि‍ गेल छथि‍। जाए तँ चाहलनि‍ समुद्र दि‍स मुदा भोर होइते लाजे सभ रस्‍तेमे रहि‍ गेला। रोषाएल रेखा झपटि‍ कऽ बजलीह-
बौआ, अहीं सभ ने सर-समाज छी। जेहने समाज रहैए तेहने लोक काजो-उदेम करैए।
रेखाक बात सुनि‍ सुनरलालक मनमे पंचक एहसास भेलै। पंचक एहसास होइते अपन बात बि‍सरि‍ गेल। बि‍सरि‍ गेल बेटाक जहलक उपाए। दमकलक चक्का जकाँ पहि‍याक रूप बदलि‍ एक सूरे मुड़ी डोलबैत बाजल-
हँ, से तँ छि‍हे। केकरो कटने समाज कटै छै। तेहेन लस्‍सा बनल छै जे कतबो कटतै तैयो सटि‍ते रहतै।
नइ बुझलौं अहाँक बात?” रेखाक मुँहसँ नि‍कलल।
जहि‍ना नमहर नागड़ि नमहर जानवरक पहि‍चान छी तहि‍ना ने काजक नागड़ि‍ मनुक्‍खोक होइ छै। जँ से नै तँ रावणसँ पैघ आसन हनुमान कथीक बनौलनि‍। ओही नागड़ि‍क बले ने सौंसे लंका जरा देलनि‍ आ अपना कि‍छु ने भेलनि‍। बूझल-बि‍नु बूझल दुनि‍याँमे केहेन हएत जे नै हएत। कोनो प्रश्नक उत्तर दुनूक एक भऽ सकैए। मुदा होइ छै। बुझि‍नि‍हार संग बुझि‍नि‍हार रहैत तँ बि‍नु बुझि‍नि‍हारोक संग तँ बि‍नु बुझि‍नि‍हार हेबे करतै। जइ काजमे सुनरलाल अपने ओझराएल तही काजक ओझरी छोड़बैक भार लैत बाजल-
भौजी, अहाँ-हमरामे कोन भेद अछि‍। नीक-अधला सभ गप तँ ि‍दओर-भौजीमे होइते अछि‍। से कि‍ कोनो आइये अछि‍ आकि‍ अदौसँ आबि‍ रहल अछि‍। देखि‍यौ, जहि‍ना करौटन फूलक पत्ता-पत्तामे गाछ पैदा करैक शक्‍ति‍ अछि‍, तहि‍ना ने समाजोक बनबै-मेटबैक दुनू शक्‍ति‍ छै।

सुनरलालक वि‍चारमे सूर-मे सूर मि‍लबैत रेखा बजलीह-
बौआ, पहि‍ने कनी भैयाकेँ बुझा दि‍अनु जे रूसि‍ कऽ जे भगलाह से कोन अनचि‍त बात कहलि‍यनि‍।
नमहर झगड़ा देखि‍ सुनरलालकेँ नमहर पंचक एहसास भेल। जहि‍ना नमहर लबि‍ जाइत, तहि‍ना सुनरलाल लबैत बाजल-
भौजी, केना कहबनि‍ हम। सँए-बहुक झगड़ामे लबड़े टा पड़ैए। अहाँकेँ कहलौं से तँ भाइयो-सहाएब सुनबे केलनि‍।

जहि‍ना एक चुरुक जलसँ सौंसे घरक वस्‍तु पवि‍त्र बनि‍ जाइत तहि‍ना घटक काका अपन गनजन सम्‍हारैत बजलाह-
हौ सुनरलाल, जहि‍ना तूँ छोट भाए भेलह तहि‍ना ओहो घरेवाली भेलीह। तँए बजैमे थोड़े कोनो धड़ी-धोखा हएत। जुआनमे मौगी घरसँ पड़ाइत अछि‍ आ उमेर बढ़ने पुरुख। तँ तोहीं कहह जे कोन गल्‍ती केलौं।
मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
से के कहैए जे अहाँ अधला केलौं।
पाशा बदलैत देखि‍ रेखा बजली-
बौआ, नौंए-कौंए कऽ भगवान एकटा बेटा देलनि‍। अपने दुनू परानी ने सोचब जे केहेन पुतोहु एने घरक गाड़ी ससरत। सि‍नेमा-नाटक जकाँ थोड़े मनुक्‍खक जि‍नगी क्षणे-झण बदलि‍ सकैए आकि‍ क्षणे-झण आगू-पाछू भऽ सकैए।
रेखाक बात सुनि‍, मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
हँ, से तँ होइते छै। अहीं कहू भौजी, केकरा चलैत हमहीं एते तबाह छी। उएह छोड़ा माने हमरे बेटा एहेन कि‍रदानी कि‍अए केलक। जहि‍ना बि‍आह भेने अनेरे लोक घटक बनि‍ जाइए तहि‍ना कि‍अए बनल। नइ बनल तँ जहलमे कि‍अए अछि‍।
रेखा- अहाँ अपनापर नै लि‍औ। बेटा केलहा काजक दोखी बाप नै होइए मुदा माए-बाप.....। काल्हि‍ भऽ कऽ जे कोनो दोख लगा बेटाकेँ कहबै तँ ओ नै मुँह दुसैत कहत जे केकर केलहा छि‍ऐ। जहि‍ना अपन बेटीकेँ पोसि‍-पािल बि‍आह करै छि‍ऐ तहि‍ना ने सभ करैए। मुदा घरक मि‍लानी जँ नै करबै तखन पढ़ल सुग्‍गा बौक नै हेतै।
पत्नीक बात सुनि‍ घटक काका सहमलाह। पाछू घूमि‍ तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे कते घूर-बहूर काज भेल अछि‍। र्इहो हएत। यएह ने दस गोटेमे बजलौं। कोनो कि‍ इएह टा बात बजलौं। सदि‍खन तँ एहेन-एहेन बात चलि‍ते रहैए। बड़ हएत तँ बाजब जे पत्नीक वि‍चार नै भेलनि‍। तहूमे के एहेन छथि‍ जे पत्नीक बात काटि‍ सकै छथि‍।
मन झि‍लहोरि‍ खेलाए लगलनि‍। जहि‍ना पघि‍लल कटहर गाछसँ खसि‍ते छहोछि‍त भऽ उड़ि‍ जाइत तहि‍ना घटक काकाक मन छहोछि‍त भऽ गेलनि‍।
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