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Friday, July 20, 2012

सूदि‍ भरना :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



बालपनमे लागल चोट जहि‍ना अधवेशू वा बुढ़ाड़ीमे उपकि‍ जाइत तहि‍ना डोमीकाकाकेँ बेटी बि‍आहक चोट मास दि‍नक पछाति‍ उपकलनि‍। रोगाएल अवस्‍थामे जख्‍न कि‍यो जि‍नगी-मृत्‍युक मचकीपर झुलए लगैत तखन तहि‍ना धर्मराजक दरवार लगैत तहि‍ना हुअए लगलै। नि‍ष्‍पक्ष समीक्षक जहि‍ना साहि‍त्‍यक कोण-कोणक समीक्षा करैत तहि‍ना डोमीकाका सेहो करए लगलाह। अन्‍तो-अन्‍त अही ि‍नर्णएपर पहुँचलाह जे गाममे रहने जीवन-यापन नै कऽ पाएब तँए बि‍नु परदेश गेने जीब असंभव अछि‍। केना नै असंभव होएत? पाँच बीघा जमीनबला डोमीकाकाकेँ दू बीघा घर-घराड़ीसँ लऽ कऽ गाछी-बि‍रछी, खरहोरि‍मे बरदाएल बाकी तीन बीघा जोतसीम। समाजोक देखा-देखी आ कुटुमो-परि‍वारक स्‍तरक अनुकूल तँ करए पड़तनि‍। जहि‍ना धरमोक स्‍वरूप समयानुसार बदलि‍ जाइ छै तहि‍ना ने समाजोमे जे बेसी लाम-झामसँ बेटीक बि‍आह आ माए-बापक सराध करैत ओ समाजमे ओते ऊपर होइत। ततबे नै जइ समाजमे दोससँ बेसी दुश्‍मन रहैत तइ समाजमे ईहो पुरौनाइ तँ जरूरि‍ये होइत जे अनकासँ कि‍ मोर छी।

दलानक ओसारक दछि‍नबरि‍या चौकीपर चि‍त्त भेल पड़ल, दहि‍ना हाथ मोरि‍ दुनू आँखि‍पर लेने डोमीकाका परि‍वारक बदलैत स्‍वरूपपर आँखि‍ गड़ा सोचि‍ रहला अछि। मनमे उठलनि‍ गलती अपनो भेल। ई तँ नजरि‍पर आएल जे समाज आ कुटुम-परि‍वारक देखौंस करब जरूरी अछि‍ मुदा ई नै आबि‍ सकल जे ओहूमे पति‍आनी लगल अछि‍। एकठाम सभ समटल कहाँ छथि‍। भैयारि‍योमे तँ होइते अछि‍ जे संगे-संग जि‍नगी बनौनि‍हारि‍ पति‍औत बहि‍नक बीच एककेँ इंजीनि‍यर, डाॅक्‍टर संगी भेटैत तँ दोसरकेँ ऑफि‍सक कि‍रानी वा स्‍कूलक शि‍क्षक भेटैत अछि‍। भूल भेल, आगू दि‍स तकलौं मुदा पजरबािह आ पाछू दि‍स नै तकलौं। एकरा के उचि‍त नै कहत जे एक-ओद्रक बेटा-बेटीक बीच इमान-बेइमान बनि‍ जाउ। पाँच बीघा जमीन अछि‍ चारू भाए-बहि‍न हि‍स्‍साक संग पाँचम अपनो दुनू परानीक हेबे करत। जँ से नै हएत तँ अपन जि‍नगी अनाका हाथमे जेबे करत। मुदा गलती भेल, धड़फड़ी केने। तहूमे पत्नी आरो मन घोर कऽ देलनि‍। ई कहू जे अर्द्धांगि‍नी भऽ केहेन वि‍चार देलनि‍ जे ऐ गाममे कर्ज नै भेटत तँ हम नैहरसँ आनि‍ देब। एकटा मुर्गी जँ दसठाम हलाल हुअए तँ ओकरा की कहबै?
एक तँ ओहि‍ना परि‍वार महजालमे ओझराएल अछि‍ तइपर हमरा कि‍रतबे समाजक ऊपर आन समाजक कर्ज आबि‍ जाए, एहेन काज जीता-जि‍नगी नै करब। मुदा तइमे कनी औगताइ भेल। औगताइ ई भेल जे पच्‍चीस-तीस हजार रूपैये कट्ठाक चीज पाँचे हजार रूपैये भरना लगा देलि‍ऐ। मुदा बीतलकेँ बि‍सरबे नीक। जँ से नै करब तँ भूतलग्‍गू जकाँ अपन देह-हाथ अपने नोचए पड़त। फेर मन भरना जमीनपर घुमलनि‍। केना लोक पावनि‍-ति‍हारमे सेर-पसेरी लऽ खेतो भरना लगबैए आ बेचबो करैए। मनमे खैंझ उठलनि‍, कानूने बनने कि‍ सुथनी हएत जे आठ बर्खक पछाति‍ भरना जमीन घूमि‍ जाएत, मुदा होइ कि‍ अछि‍। ततबे कि‍अए, जहि‍ना महाजनीक सूदि‍केँ समीमे बान्‍हि‍ देल गेल जे दोबरसँ बेसी कहि‍यो ने हएत, तहि‍ना बैंकक कर्जकेँ कि‍अए ने बान्‍हल जाइए, जे ग्रामीण-दशा (गामक लोकक जि‍नगी) आगू मुँहे नै ससरि‍ पाछुए मुँहे ससरि‍ रहल अछि‍। जइठाम पढ़ाइ भऽ गेल अछि‍, लाखक इलाज (शरीरक) भऽ गेल अछि‍, लाखक घर बनि‍ रहल अछि‍ तइठाम, कि‍ उपाए अछि‍। हँ एते जरूर हेबाक चाही जे जखन सभ अपने छी तखन बीचमे इमान-बेइमान नै बनए। जहि‍ना बरसातक मासमे एक दि‍सुका पानि‍केँ दोसर दि‍सुका रोकि‍ तेसर दि‍सक रास्‍ता पकड़ैत तहि‍ना घीचा-तीरीमे डोमीकाकाक मन असथि‍र भेलनि‍। पड़ले-पड़ल पत्नीकेँ सोर पाड़लखि‍न।
आंगनक ओसारक शीतल पाटीपर बैसि‍ दायरानी बि‍आहक उनटा गि‍नगी करैत रहथि‍। फल्लांक करोध हरा गेलइ, ओकरा तँ कहब जरूरी अछि‍। जँ से नै कहबै तँ अनेरे ओ दस ठाम बाजत जे फल्‍लाँ करौछ राखि‍ लेलक। कोन चीज छी जखन एते खर्च भेबे कएल तखन एकटा करौछे कि‍ छी। जहि‍ना जि‍नगी बनबैमे जेहेन कठि‍न मेहनति‍ भेल रहैए तहि‍ना ने जि‍नगीयो ठाढ़ होइए। जँ से नै तँ लाखक जि‍नगी केना पाँच-दसमे हारि‍ मानत। फेर दायरानीक मनमे खुशी एलनि‍, अपना जँ बौको लागल तैयो बैहरी दादीकेँ नफे भेलनि‍।
टुटल चंगेरा लेलि‍यनि‍, नवका कीनि‍ कऽ देलि‍यनि‍। केना नै दि‍ति‍यनि‍ ओ थोड़े बुझलखि‍न जे हमरा चंगेरामे केरा-आम छोड़ि‍ दोसर चीज जाइबला नै अछि‍। ओना हमरो तँ काज चलि‍ऐ गेल भने पुरान गेल नव आएल से नीके भेल। पति‍क अवाज सुनि‍ ओसारेपर सँ एते जोरसँ बजलीह जे डोमीकाकाकेँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे लगमे नै कनी हटल छथि‍।
डोमीकाका लग तँ दायरानी काकी पहुँचि‍ गेली मुदा मनमे अपने घि‍रनी नचैत रहनि‍। एक चालि‍ चलि‍ जहि‍ना घि‍रनी वि‍श्रास लैत तहि‍ना काकीकेँ सेहो भेलनि‍। आँखि‍ उठा तकलनि‍ तँ देखलखि‍न जे ग्रीष्‍मकालीन घास-पात जकाँ कुम्‍हलाएल मुँह, जेठुआ गरेक मेघ जकाँ चि‍न्‍तासँ लादल आँखि‍, नि‍रजन वनमे हेराएल बटोही जकाँ देखि‍ मन सहमि‍ गेलनि‍। अपन कर्तव्‍यक एहसास भेलनि‍। पि‍यासल लेल जहि‍ना पानि, तबधल लेल पंखाक हवाक जरूरति‍ होइत तहि‍ना चि‍न्‍ताएल मनक लेल सेहो मीठ बोलक जरूरत होइत अछि‍। आँचरसँ ढबढबाएल पति‍क दुनू आँखि‍ पोछैत बजलीह-
एहेन सकल-सूरत कि‍अए बनौने छी?”
सि‍कीक वाण सदृश पत्नीक बोल डोमीकाकाक हृदैमे बोधि‍ देलकनि‍। छटपटाइत बजलाह-
उपाये कि‍ अछि‍ जे.....?”
दायरानी- तखन?”
डोमीकाका- परदेश जाएब। दुनू बेटोकेँ नेने जाएब, नहि‍यो कमा कऽ देत पेट तँ पालत ने। जँ दसो हजार महीना कमाएब ते, एक बरखे नै दू बरखे, पाँचो बरखे ते खेत छोड़ाइये लेब।
दायरानी- तइ बीच?”
डोमीकाका- अहाँकेँ जाबे धरि‍‍ बरदास हएत ताबे धरि‍ रहब नै तँ भाएकेँ नैहर समाद पठा देबनि‍।
नैहरक नाओं सुनि‍ते दायरानी बजलीह-
अहाँ सभ जखन चलि‍ऐ जाएब तखन घरमे कोठि‍ये-भरली लऽ कऽ की करब। मसोमातक चुड़ी जकाँ कि‍अए ने ओकरो सभ फोड़ि‍-फोड़ि‍ कऽ फेकि‍ये देबइ।
पत्नीक बातकेँ डोमीकाका ताड़ि‍ गेलाह। कहलखि‍न-
हँसी-ठठा छोड़ू एहेन गरूगर समए केना टपब, से वि‍चार दि‍अ। आखि‍र अहूँ तँ अर्द्धांगि‍नि‍ये छी कि‍ने?”
पति‍क वि‍चार सुनि‍ वि‍चारवान पत्नी जकाँ दायरानी कहलखि‍न-
पच्‍चीस-तीस हजार रूपैयेक जमीन अछि‍। दस-बारह कट्ठा बेचि‍ लेब, भरना छूटि‍ जाएत। बुझबै जे तीन बीघा जोतसीम नै अढ़ाइये बीघा अछि‍।

अखाढ़क पहि‍ल बरखाक पहि‍ल बुन पड़लासँ जे जमीनक सुगंध नि‍कलैत ओहने सुगंध डोमीकाकाकेँ पत्नीक वि‍चारमे लगलनि‍। मुस्‍की दैत आँखि‍-पर-आँखि‍ गड़ा धन्‍यवाद देलखि‍न।
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Sunday, July 1, 2012

पनि‍याहा दूध :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


पनि‍याहा दूध

आंगन बहारि‍, बाढ़नि‍ धोय पछबरि‍या दावा लगा राखि‍, सुनयना दरबज्‍जा दि‍स तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे मास्‍टर सहाएब (पति‍) भरि‍सक सुतले छथि‍ उठा देब उचि‍त हएत मुदा मन ठमकि‍ गेलनि‍। आठमे दि‍न गाम आएल रहथि‍ तँ चारि‍ बजे भोरेसँ हरवि‍र्ड़ो केने रहै छलाह‍ जे घरमे कोढ़ि‍याक बाढ़ि‍ आबि‍ गेल अछि‍, जे काजक बेरमे सूतल रहत ओकरा कहि‍यो भाभन्‍स हेतइ? मुदा आठे िदनक दूरीमे एना कि‍अए देखै छी। फेर मन घूमि‍ कहलकनि‍ उमेरोक दोख होइ छै, ओना सठि‍या तँ गेले हेताह। तत्-मत् करैत सुनयना दरबज्‍जा–आंगनक बीच ठकुआ कऽ ठाढ़ भऽ गेली, ने आगू डेग उठनि‍ आ ने पाछू।
ओना जीवानन्‍दक नीन समैयेपर टूटि‍ गेल रहनि‍, एक तँ ओहुना उमेर बढ़ने खूनो पनि‍या लगै छै आ नीनो पतरा जाइ छै। नीन टुटि‍ते जीवानन्‍दक मनमे उठलनि‍ जे उठि‍ये कऽ की करब? काजे कोन अछि‍ जइ पाछू लागब। आँखि‍ बन्न केने सोचैत रहथि‍। जहि‍ना चि‍न्‍तक चि‍न्‍तन अवस्‍थामे नि‍स्‍तेज भऽ जाइत तहि‍ना रहनि‍। ओना आँखि‍यो खुजैक आ बन्न होइक ढेरो कारण अछि‍ मुदा हुनका से नै रहनि‍। मनमे कतेको रंगक वि‍चार टकराइत रहनि‍, तँए अगि‍ला रास्‍ता देखैमे एकदि‍शाह भऽ गेल रहनि‍। आलमारीक कि‍ताब जकाँ रंग-रंगक वि‍षयक एकेठाम सैंतल रहनि‍, असल वि‍चार परि‍वारमे गड़ल रहनि‍। मुदा परि‍वारसँ पहि‍ने जे अपनापर नजरि‍ पड़लनि‍ ततए गड़ि‍ गेलाह। सेवा-नि‍वृत्त भऽ गेलौं, जीवैक उपाय भलहि‍ं जे हुअए मुदा काज तँ हरा गेल। काजे की अछि‍ जइ अनमेनामे समए गुदस करब। जखन काजे हरा गेल तखन जि‍नगी केना चलत। जँ जि‍नगी चलत नै तँ जीवि‍त-मृत्‍युमे अन्‍तरे की भेल? मनमे लधले रहनि‍ आकि‍ दोसर उठि‍ गेलनि जे करबो केकरा ले करब? पैछला (पूर्वज) कि‍यो छथि‍ये नै अगि‍लो उड़ि‍ये गेल। बीचमे अपनाकेँ पाबि‍ मन दहलि‍ गेलनि‍। सेवा-नवृत्ति‍क तँ एक अर्थ ईहो होएत ने जे काज करै जोगर नै रहलौं। फेर मन ओझरा गेलनि‍। अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजाक पइर भऽ गेल। काजो तँ दू रंगक होइत अछि‍, एक शरीरक शक्‍ति‍सँ कएल जाइत अछि‍ दोसर बौद्धि‍क शक्‍ति‍सँ। हम तँ शरीरक शक्‍ति‍सँ नै बौद्धि‍क शक्‍ति‍सँ करैत छलौं तखन कि‍अए नै करैबला रहलौं। आमक आॅठी जहि‍ना कोइलीसँ धीरे-धीरे सक्कत बनि‍ सृजन शक्‍ति‍ प्राप्‍त करैत, से कहाँ भेल? जँ बौद्धि‍क शक्‍ति‍केँ शरीरक शक्‍ति‍क सीमांकन कएल जाएत तँ केहेन हएत? खैर जे होउ, ठनका ठनकै छै तँ कि‍यो अपना माथपर हाथ दइए। मुदा सेहो तँ नै भऽ रहल अछि‍। जे ठनका शरीरक के कहए जे घरो-दुआर आ गाछो-वि‍रीछकेँ तोड़ि‍-फाड़ि‍ दइए ओही ठनकाकेँ हाथ कते काल बचा सकैए।‍
फेर मन ठमकलनि‍। मुइल धार जकाँ परि‍वारो भऽ गेल अछि‍, कि‍ हमरा बचौने बचत। बचबो केना करत? ने पछि‍ला घूमि‍ औताह आ ने अगि‍ला आबए चाहत। लऽ दऽ कऽ दू प्राणी भेलौं, तहूमे तेहेन पाकल आम जकाँ भऽ गेल छी जे कखन तूबि खसब तेकर कोन ठेकान अछि‍। खैर जे होउ, जाबे आँखि‍ तकै छी ताबे तँ जीबए पड़त आ जाबे जीब ताबे जीबैक उपाए करै पड़त। अपने जीने जि‍नगी आ अपने मुइने मृत्‍यु।
गुन-धुनमे पड़ल जीवानन्‍दक मन समाज दि‍स बढ़लनि‍। समाजे ले की केलि‍ऐ जे हमरा ले करत। जहि‍ना देवस्‍थान दस गोटेक सहयोगसँ ठाढ़ो होइत आ चलबो करैत तहि‍ना तँ समाजो अछि‍। मुदा से तँ कि‍छु ने केलि‍ऐ। थकथकाएल मन कहलकनि‍-
कि‍ ओछाइने धेने रहब आकि‍ उठबो करब?” मुदा लगले दोसर मन कहलकनि‍-
उठि‍ये कऽ की करब?”

मन आगू बढ़ि‍ शि‍क्षक समाज दि‍स बढ़लनि‍। सभ सेवा-नि‍वृत्ति‍ होइ छथि‍। मुदा कि‍ हमरे जकाँ सभकेँ हेतनि‍। भलहि‍ं सभकेँ होन्‍हि‍ वा नै कि‍छु गोटेकेँ तँ हेबे करतनि‍। जखन सबहक जि‍नगी एक वृत्तमे बीतल तखन कि‍अए सभकेँ सभ रंग हेतनि‍। परि‍वारो आ समाजो तँ सबहक सभ रंग छन्‍हि‍। से तँ छन्‍हि‍ये। दीनानाथ बाबूकेँ देखै छि‍यनि‍ जे सेवा-नि‍वृत्ति‍क उपरान्‍तो वि‍द्यालय छोड़ि‍ नै रहलनि‍हेँ। जखन कि‍ सुखदेव बाबू सेवा-नि‍वृत्ति‍ होइसँ पूर्वहि‍ जे तीन बर्ख ओछाइन धेलनि‍ से अखनो धेनहि‍ छथि‍। परि‍वारमे जँ केकरो कि‍छु अढ़बै छथि‍न तँ मुँह दूसि‍ कहै छन्‍हि‍ जे भरि‍ दि‍न कौआ जकाँ काँइ-काँइ करैत रहै छथि‍। मनुक्‍खकेँ जँ कौआ मानि‍ लेल जाए तँ बोलकेँ की कहबै? जीवानन्‍दक मन आरो घुरि‍या गेलनि‍। फेर मनमे उठलनि‍ जे अनेरे औनाइ छी। जतबे रहए ततबे टाँग पसारी नै तँ पओल जाएब। सुतले-सूतल पत्नीकेँ सोर पाड़लखि‍न-
कनी एमहर आउ?”

आंगन-दरबज्‍जाक बीच जे सुनयना ठाढ़ छलीह से आगू डेग बढौलनि‍। केबाड़ लग ठाढ़ भऽ हि‍या-हि‍या देखए लगलीह। पहि‍लुका (सेवा-नि‍वृत्ति‍सँ पूर्वक) अपेक्षा बदलल-बदलल रूप बूझि‍ पड़लनि‍। एना केना भेलनि‍, अखन धरि‍ तँ कि‍छु कहबो ने केलनि‍हेँ। तखन कि‍अए पानि‍ उतरल बूझि‍ पड़ै छन्‍हि‍। केबाड़क एकटा पट्टा खोलि‍ देने रहथि‍न आ दोसर ओहि‍ना लगल रहै। तही बीच जीवानन्‍दक मनमे उठलनि‍ जे जाबे नोकरी करै छलौं ताबे बाहरसँ कमा कऽ आनि‍ पत्नीक हाथमे दैत छलि‍यनि‍, आ अपने अपनाकेँ गारजन बुझैत छलौं। से तँ आब नै हएत। जँ से नै हएत तँ परि‍वार आगू मुँहे केना ससरत? पाहुन जकाँ आठ दि‍नपर अबै छलौं आ कमासुत बनि‍ जाइ छलौं।

पति‍क बदलल रूप देखि‍ सुनयनाक मनमे उठलनि‍ जे अखन धरि‍ कि‍छु करबो ने केलनि‍हेँ आ तरे-तर फटि‍ रहल छथि‍। नवकवि‍रयाक चुटकीक अवाज जकाँ सुनयनाक आगमन बुझि‍तो जीवानन्‍दकेँ उठैक हूबा देहमे नै रहलनि‍। मनोक बोझ तँ माथकेँ ओहि‍ना भरि‍या दैत जहि‍ना कोनो वस्‍तुक बोझ भरि‍अबैत। मनकेँ जि‍नगीक बाेझ ऐ रूपे दबने जेना सवारी कसल घोड़ा वा खलीफा होइत। जाबे धरि‍ बाहरसँ कमा घर अनैत छलौं, जइ बले परि‍वार ससरैत छल ओ तँ टूटि‍ गेल। ओहीपर ने अपनो छहर-महर आ घरो-परि‍वारक छल। मुदा से नै भेने तँ ओहि‍ना भऽ जाइ छै जहि‍ना माटि‍क बनल रास्‍ताकेँ पानि‍क धार काटि‍ अवरूद्ध कऽ दैत अछि‍। की कमाइयेपर गारजनी छल? पत्नि‍येकेँ की सुख हमरासँ भेलनि‍? घर-गि‍रहस्‍ती सम्‍हारैमे दि‍न-राति‍ एकबट्ट केने रहै छथि‍। एक तँ मि‍थि‍लांचलक कि‍सान परि‍वारक अजीव गढ़नि‍ अछि‍, जइठाम एलापर देवि‍यो-देवता भोथि‍या गेलाह। सौंसे जनकपुरमे जनकेक दरवार जकाँ बूझि‍ पड़लनि‍। नान्‍हि‍टा बात थोड़े छी। गाम-गाम व्‍यास भागवत बचै छथि‍, गाम-गाम कीर्तन-भजन, भोज-भनडारा होइत रहैत अछि‍, तइठाम समाज वि‍परीत दि‍शामे बहि‍ गेल, मुदा देखलनि‍ कोइ ने। दरबाजाक सौभाग्‍य छल नीक-नीक बात-वि‍चार करब। तइठाम दरबज्‍जा टूटि‍ आंगन घरक कोठरी बनि गेल अछि‍, जइठाम कम-सँ-कम लोकक पैठ रहैए, जइठाम आनक सुख-दुख सुनैक आ सुख-दुखक दबाइ बुझैक अवसर नै भेटैत तइठाम पति‍-पत्नीक संबंधक आधार कि‍ बनि‍ सकैए। देखा-देखीक दुनि‍याँमे चि‍न्‍ता–चि‍न्‍तन कि‍अए रहत। जँ से नै रहत तँ मनक सुखक दि‍शाक धारा कि‍अए ने बदलत। जीवि‍त-मृत्‍युक ि‍नर्णए के करत? केना हएत? कोनो मुसरा गाछ होइ आकि‍ लति‍आएल लत्तीक होइ, ओकर बाढ़ि‍ ताधरि‍ समीचीन होइत जाधरि‍ ओकरा अनुकूल वातावरण भेटैत रहैत। ओना लाखो कीड़ी-मकौड़ी कोमल कि‍सलयकेँ नष्‍ट करैबला अछि‍ मुदा प्रकृतोक तँ गजब गढ़नि‍ अछि‍, एक-दोसराक नष्‍ट करैबला सेहो मौजूद अछि‍। बि‍नु मुँहक गाछ वा लत्तीक दशा तँ ओहने होइ छै जेहेन साँपक मुँह थकुचेलाक पछाति‍ होइ छै।

जीवानन्‍दकेँ एहसास भेलनि‍ जे हमरापर नै पत्नीपर घर-ठाढ़ अछि‍। जँए घर ठाढ़ अछि‍ तँए समाजक परि‍वार कहबैक लाली अछि‍। मुदा समाज तँ ओहि‍ना नै केकरो महत दैत? सेवाक अनुकूल केकरो महत दैत अछि‍। से हमरा से की भेलै? जखन कि‍छु ने भेलै तखन कते महत हेबाक चाही? मुदा जकरा घर-परि‍वार गाम बुझै छी, तेकरा छोड़ि‍ये केना देब। मुदा ई प्रश्न तँ गामक छि‍ऐ, अपन नै। परि‍वारमे जे छहर-महर भेल ओइमे हमरा कमाइसँ की भेल? यएह ने भेल जे बेटीक बि‍आह केलौं, बेटाकेँ पढ़ेलौं-लि‍खेलौं। अंति‍म अवस्‍थामे अपन घर बनेलौं। मुदा बेटीक बि‍आह, पढ़ाइ-लि‍खाइ एते भारी कि‍अए अछि‍ जे जि‍नगी भरि‍क कमाइसँ लोककेँ पारो ने लगै छै। जँ एतबेमे सभ ओझरा जाए तँ समाजक गति‍ केहेन हएत? जँ समाज दुरगति‍क चालि‍ पकड़ि‍ चलत तँ मनुष्‍यक पैदाइस केहेन हएत। जइठामक जेहेन मनुष्‍य तइठाम तेहने दुनि‍याँ।
करोट फेरते जीवानन्‍दक मनमे उठलनि‍ जे हारि‍ मानी झगड़ा पड़ि‍आए। पत्नीसँ क्षमा माँगि‍ लेब। जँ से नै माँगब तँ हुनकर वि‍चार छि‍यनि‍ जे घरमे रहए दथि‍ वा नै। समाजक संग तँ वएह रहलीह। पत्नीक प्रति‍ जे प्रेम हेबाक चाही से कहाँ कहि‍यो भेल। क्षण-पलक संबंध रहल जीवन-लीलाक संबंध कहाँ रहल। हुनकर दुनि‍याँ हमरासँ भि‍न्न रहलनि‍। मुदा आइ तँ ओही दुनि‍याँक जरूरति‍ हमरो भऽ गेल अछि‍। खंड वि‍कसि‍त देशमे जहि‍ना जनता-सरकारक बीच संबंध रहैत, तहि‍ना ने भऽ गेल अछि‍। जेना पति‍ रूपमे ओ सेवा केलनि‍ तेना कहाँ केलि‍यनि‍। जँ से करि‍ति‍यनि‍ तँ ओ ओहि‍ना ओतै अँटकल रहि‍तथि‍, जतए नाओं-गाँवो नै सीखि‍ पेलीह। जतबो समए गाममे बि‍तेलौं, हुनकर कमाइ खेलि‍यनि‍ ततबो तँ हुनका नै कऽ सकलि‍यनि‍।
ततबे नै, दरबज्‍जापर जे माल अछि‍, हुनका (पत्नी) देखि‍ भूख-पि‍यास कहए लगै छन्‍हि‍ मुदा हमरा देखि‍ घि‍रनी जकाँ नाचि‍ भगबए चाहैए। अठबारेयो जँ अबैत रहलौं तैयो तँ अपन बूझि‍ खाइ-पीबै ले कि‍छु ने केलि‍ऐ। कोनो कि‍ मनुख छी जे घड़ी-मोबाइल देखि‍ मि‍नट-सेकेण्‍ड बूझत, ओकरा लेल तँ अठबारैओ सटले-दि‍न भेल। तहि‍ना तँ गाछि‍यो-बि‍रछीक अछि‍। जूरशीतल दि‍नसँ ओकरा जलढार हेबाक चाही, से अनका तँ कहलि‍ऐ, मुदा...?
.....कि‍अए ओ अपन बूझत?

जहि‍ना सासुरमे जमाए सासु-ससुरक आगू लाड़-झाड़ करैत जे ई नै अछि‍ ओ नै अछि‍। तहि‍ना जीवानन्‍द ओछाइनसँ उठि‍, बैसैत पत्नी दि‍स देखि‍ बजलाह-
एते दि‍नक जि‍नगीमे कहयो नि‍ठूर दूध नै खेलौं? आब अहाँक दरबारमे छी, जेना राखी।
पति‍क बात सुनि‍ सुनयना वि‍ह्वल भऽ गेलीह। अपन कर्तव्‍यक बोध भेलनि‍। पति‍क सेवा पत्नीक पहि‍ल दायि‍त्‍व। लटारम्‍ह करैत बजलीह-
एना संस्‍कृतमे नै कहू, भखि‍औटीमे कहू जे कि‍ कहै छी?”
पत्नीक बात सुनि‍ जीवानन्‍दक मन हरा गेलनि‍। जइठाम सुग्‍गा-मेना संस्‍कृत पाठ करैत छल तइठाम मनुष्‍यक दूरी एते कि‍अए भेल? प्रश्नमे ओझराइते बुकौर लगि‍ गेलनि‍। बोली नै फुटलनि‍।

आजुक शि‍क्षक जकाँ जीवानन्‍दक जि‍नगी नै रहलनि‍। शि‍क्षक समाजक प्रति‍ समर्पित छलाह। ओइ समाजक बीच पढ़ाइ-लि‍खाइ प्रति‍ष्‍ठाक मूल बि‍न्‍दु छल। ओ सभ मानैत छथि‍ जे जइ वि‍षयक जरूरति‍ वि‍द्यार्थीकेँ टयूशन पढ़बाक होइ छै ओइ वि‍षयक पढ़ाइमे कमी छै। वि‍द्यार्थीक लेल कि‍छु सहज वि‍षय होइत अछि‍ कि‍छु कठि‍न। मुदा जइ वि‍षयक जे शि‍क्षक होइ छथि‍ हुनका लेल तँ ई समस्‍या नै भेल। जँ हुनकामे शि‍क्षण-कलाक पूर्णता हेतनि‍ तँ वि‍द्यार्थीकेँ कि‍अए समस्‍या ग्रस्‍त रहए देथि‍न। की वजह छैक जे अपना ऐठाम अदौसँ लऽ कऽ अखन धरि‍ शि‍क्षण-संस्‍थानमे छड़ीक चलनि‍ नै रहल मुदा तँए कि‍ कि‍यो पढ़ि‍-लि‍खि‍ विद्वान नै भेलाह। भेलाह।

जइ हाइ स्‍कूलमे जीवानन्‍द शि‍क्षण कार्य करैत छलाह ओइ वि‍द्यालयकेँ अपन छात्रावास सेहो छैक। जइमे पचाससँ ऊपर छात्रो आ आधासँ बेसी शि‍क्षको रहैत छथि‍। मेसमे भोजन बनै छैक आ जएह वि‍द्यार्थीक लेल सहए शि‍क्षको लेल होइत छैक। ओना शि‍क्षक सभ अलगसँ दूध कीनि‍ राति‍मे सुतै बेर पीबै छथि‍। जीवानन्‍दो पीबै छथि‍।

जहि‍ना बाटमे हराएल बटोही दोसरकेँ पुछैत, मुदा उत्तर देनि‍हारो बटोही तँ रंग-बि‍रंगक होइत अछि‍। कि‍यो एहनो होइत जे अपने हरेबाक चर्च करैत तँ कि‍यो हराएब छि‍पबैत आरो दोसरकेँ हराएल बाट देखा दैत आ कि‍यो एहनो होइत जे कहैत जे संगे चलू। ऐ आशाक संग चलैक बात कहैत जे जँ कि‍छु नै कहबै तँ गोंग कहत, मुदा बि‍नु बूझलमे कि‍ जबाबो देल जा सकैए। ओ संग केने ताधरि‍ चलैत रहैए जाधरि‍ आँखि‍गर नै भेट जाइत अछि‍। अर्द्धांगि‍नीक रूपमे सुनयना पुछलखि‍न-
कि‍ सुच्‍चा दूध कहलि‍ऐ?”
जीवानन्‍द- पैंतीस सालक नोकरीमे कहि‍यो सुच्‍चा दूध नै पीब सकलौं। पीलौं जरूर मुदा एकरा आधासँ बेसी खाएब थोड़े कहल जेतैक।
जहि‍ना मृत्तासनपर चढ़ल राहीकेँ सर-समाज आ कुटुम-परि‍वारक लोक आबि‍-आबि‍ जि‍ज्ञासा करैत जे भैया, कि‍ काका, आकि‍ बाबा की खेबा-पीबाक मन होइए तहि‍ना सुनयना पुछलखि‍न-
एते दि‍न जतए अहाँ छेलौं छेलौं, हम छेलौं छलौं। मुदा आब तँ ओतए अहुँ रहब जतए हम छी।
पत्नीक वि‍चारक गांमीर्यसँ जीवानन्‍द आँखि‍ पड़ल अजगर साँपक सोझसँ पड़ा नै पाबि‍, बजलाह-
कहलौं तँ बेस बात मुदा मनुष्‍य तँ मनुष्‍यक बीच कि‍छु बंधन ि‍नर्धारि‍त कऽ रहैत अछि‍। डोरी-पगहाक जरूरति‍ तँ पशुक लेल होइत। मुदा बान्‍ह तँ एकमुड़ि‍या नै भऽ सकैए। ओकरा लेल तँ जाधरि‍ दू-मुड़ि‍या नै लटपटौल जाएत, ताधरि‍ गीरह केना पड़तै। जाधरि‍ कुशि‍यारक गाछ जकाँ गीरह नै बनत ताधरि‍ रस-जल केना समटाएल रहत।

पत्नीक प्रश्न सुनि‍ जीवानन्‍द जि‍नगीक ओझरी देखए लगलाह जे ई बन्‍धन छूटल कहि‍या। तड़सैत मन पत्नीक करेजमे पहुँचलनि‍। जहि‍ना नि‍शाएल लोक अपने अड़-दड़ बजैत तहि‍ना जीवानन्‍द बाजए लगलाह-
कामि‍नी, सेवि‍काक रूप छोड़ि‍ संगी कहि‍या बुझलयनि‍। ई दोख केकर। मुदा दोख तँ दुनू दि‍स देखए पड़त। पत्नी कोन रूप देखलनि‍। सभ दि‍न ओ पति‍ बूझि‍ सेवा करैत एली। कहि‍यो कि‍छु नै मंगलनि‍। अपन परि‍वारक स्‍तर बूझि‍ अपनाकेँ सम्‍हारि‍ रखलीह।
बड़बड़ाइत पति‍केँ देखि‍ सुनयना बजलीह-
हारि‍ मानी झगड़ा फड़ि‍आए। एके बेर बाजि‍ जाउ जे जे हूसल से हराएल। जे जीबए से खेलए फागु।
मरैत रोगी जकाँ जीवानन्‍द बजलाह-
सुच्‍चा दूध आबो नै पीब सकै छी?”
पीब सकै छी। जखन गाए पोसैक लूरि‍ अछि‍ तखन कि‍अए ने पीब सकै छी। मुदा जइठाम दि‍न-राति‍ लुटनि‍हार लूटि‍ रहल अछि‍ तइठाम थनक दूधक कंठ लग पहुँचत कि‍ नै, तेकर कोन बि‍सवास अछि‍।

पत्नीक प्रश्न सुनि‍ जीवानन्‍द जी-जी कऽ उठलाह। बि‍सरल बात मन पड़लापर जहि‍ना ओकर रूपो-रेखा सोझमे अाबए लगैत तहि‍ना भेलनि‍। बजलाह-
शुद्ध-अशुद्ध दूध ने एक परि‍वारक समस्‍या छी आ ने एक गामक। दूधमे पानि‍ देब चलनि‍ भऽ गेल अछि‍। ओना जे अपने गाए-महींस पोसि‍ दूध खाइ छथि‍ ति‍नकर संख्‍या कम छन्‍हि‍‍। जे बेचि‍नि‍हार छथि‍ ओ दूध बेचि‍ चाउर-दालि‍, तरकारी इत्‍यादि‍ कीनै छथि‍, खाली दूधेटामे पानि‍ नै देखै छथि‍न। आनो-आनो तहि‍ना, तखन कएल कि‍ जाए। कुल-मि‍ला कऽ देखलापर यएह ने देखि‍ पड़ैत जे ताड़ी पीयाक गांजा पीयाककेँ गारि‍ पढ़ि‍ कहैत जे फोकटि‍या अछि‍। एहि‍ना एक-दोसरमे सटल संबंध अछि‍। सभकेँ सभ गारि‍ पढ़ैत आ सबहक सभ सुनैत अछि‍। तहूसँ टपि‍ अपने मुँहे गरि‍या अपने सेहो सुनैत अछि‍।

वि‍ह्वल भऽ सुनयना पुछलखि‍न-
तखन उपाय?”
उपाय एतबे जे जते परि‍वारमे खर्च हएत कम-सँ-कम तते उपारजन कऽ लेब तखन परि‍वारक पाड़़ लगि‍ जाएत। गाममे जते खर्च अछि ओते गौआँ मि‍लि‍ उपारजन कऽ लेताह तँ गामक पाड़ लगि‍ जाएत। समाजेक कल्‍याण ने देशक कल्‍याण छी।‍
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कर्ज :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल

कर्ज

जमीन नि‍लामीक नोटि‍श पाबि‍ बरीसलालक सभ आशा ओहि‍ना झड़ए लगल जहि‍ना वसन्‍तसँ पूर्व गाछक पतझर होइत वा फलसँ पहि‍ने फूल झड़ए लगैत अछि‍। हलसैत जि‍नगीक आशा देखि‍ बरीसलाल खेती लेल, बैंकसँ कर्ज लऽ बोरि‍ंग-दमकल करौलक। मुदा समैपर कर्ज अदा नै कए पाबि‍, जइले कर्ज लेलक सएह हाथसँ नि‍कलैत देखि‍ सोगसँ सोगाएल अखड़े चौकीपर पेटकान दऽ मने-मन सोचैत जे की करैत की भेल। साओनक मेघ जकाँ दुनू आँखि‍ नोरसँ ढबढबाएल।

बीसम शताब्‍दीक आठम दशकमे हरि‍त-क्रान्‍ति‍क हवा घुसकैत-घुसकैत गाम धरि‍ पहुँचल। नव हवाक सुगंध नाके-नाक खेत-खरि‍हानमे पहुँचल। गामक कि‍सानक सीमांकन शुरू भेल। ओना सीमांक नाम-मात्रेक भेल मुदा भेल तँ। नाम-मात्र एे लेल जे सैद्धान्‍ति‍क रूपमे तँ सीमांकनक रूप रेखाा तैयार भेल मुदा जमीनक ओझरी कँटहा बाँस जकाँ ओझराएल। कड़चीसँ बेसी काँट। एक-एक कड़चीमे सइयो काँट। सोरगर-मोटगर पाकल देखि‍ भलहि‍ं आरीसँ जड़ि‍ काटि‍ दि‍यौ मुदा झोझसँ नि‍कालब तँ असान नै। जइसँ बेवहारि‍क पक्ष कमजोर पड़ल।

चारि श्रेणीक अन्‍तर्गत कि‍सानकेँ राखल गेलनि‍। ढाइ एकड़सँ नि‍च्‍चा एक श्रेणी, चारि‍ एकड़सँ नि‍च्‍चा दोसर श्रेणी, दससँ नि‍च्‍चा तेसर आ तइसँ ऊपर चारि‍म। नि‍चला कि‍सानक लेल सरकारी खजाना खुजल। रंग-रंगक प्रोत्‍साहनक घोषणा भेल। सरकारी घोषणा तँए सभले भेल। मुदा बैंकक माध्‍यमसँ भेटत। जइ माध्‍यमसँ भेटत सएह नगण्‍य। एक दि‍स फौज जकाँ कि‍सान दोसर दि‍स जइठामसँ भेटत, सएह नै। मुदा तैयो गोटि‍ पंगरा तँ छलैहे। सरकारी सुवि‍धा सब्‍सि‍डीक रूपमे भेटत। तेकर कार्यालय भि‍न्न बनल। कि‍सानक बीच प्रोत्‍साहनक घोषणासँ नव जागरणक संचार भेल। गाम-गाममे भी.एल. डब्‍लूक माध्‍यमसँ काजक सूत्र तैयार भेल। आने कि‍सान जकाँ पाँचम कि‍सान बरि‍सालोक डेग बढ़ल। एक-ति‍हाइ सब्‍सि‍डी सुनि‍ केना ने बढ़ैत। जखने कि‍सानक हाथ पानि‍ आैत तखने चौमसि‍या खेती बारहमसि‍या बनि‍ जाएत। जखने बारहमसि‍या बनत तखने ने कि‍सान डारि‍-डारि‍ झूला लगा बारहमासा गाओत। नै तँ छह मासे, चौमासे ने गाओत। जे चौमास कि‍सानक बखारी छी, तेहीमे ने भाँग-धुथुर उपजैए।
वस्‍तुगत काज तँ नै मुदा चौरीसँ चौमास धरि‍क, चारि‍ गुणा उपजाक नक्‍शा तँ कि‍सानक मनमे बनबे कएल। बीघा-एकड़क हि‍साब भलहि‍ं अखनो धरि‍ नै फड़ि‍आएल मुदा-एकड़-हेक्‍टेयर तँ आबि‍ये गेल। कि‍छु एनए कि‍छु ओनए कऽ कि‍सान हि‍साब तँ बैसाइये लेलक।

अखन धरि‍क जे छोट आ मध्‍यम कि‍सान महाजनीक कर्जमे डूबल छल ओइमे पूँजीपति‍क प्रवेशक दुआर खुजल। कम सूदि‍क बात तँ आएल मुदा छअ मास पछाति‍ सूद मूड़ बनि‍ जाइत से एबे ने कएल। अखन धरि‍ सूदि‍क-सूदि‍ प्रथा नै छल से आएल। भलहि‍ं कतौ महाजन सप्पत खा केकरो घराड़ी लऽ लेने होइ आकि‍ कतौ सप्‍पत खा कर्जा डूमल होइ, ई अलग बात। आजुक दहेज ओते भारी नै छल जते माए-बापक सराध। ओना दहेजोक जड़ि‍ मजगूत बनि‍ रहल छल, कि‍एक तँ शहरक आमदनी गाम दि‍स आबए लगल छल।

गाममे छोट -सीमान्‍त-माध्‍यम- पैघ लगा कि‍सानोक संख्‍या बेसी मुदा बोनि‍हारक संख्‍यासँ कम अछि‍। ओना सभ गामक रूपो-रेखा एक रंग नहि‍ये अछि‍। कोनो गाम एहेन जइमे पाँच प्रति‍शतसँ कम जनसंख्‍या नवे-पनचानबे प्रति‍शत जमीन पकड़ने, तँ कोनो गाम एहेन जइमे दस पनरह-प्रति‍शतक अंतर। एहनो कि‍सान जि‍नका अपन जमीनक अता-पता नै बूझल तँ एहनो कि‍सान जे अपने सबतूर मि‍लि‍ खेती करैत। तइ संग एहनो जे खेतक आड़ि‍पर पहुँचि‍ जूति‍-भाँति‍ तँ लगबैत मुदा अपने हाथे कि‍छु नै करैत। गाछी-खरहोरि‍, बँसबाड़ि‍, घराड़ी लगा बरीसलालकेँ पाँच बीघा जमीन। दू बीघा बेख-बुनि‍यादि‍मे फँसल बाकी तीन बीघा जोतसीम। एकटा बड़द रखने। सफटैती कऽ खेती करैत। ओहू तीन बीघा जोतसीम जमीनमे तीन मेल। पनरह कट्ठा चौरीमे मलगुजारीक संग लगतो साले-साल डुमैत। मुदा छोड़ि‍यो केना देत, आखि‍र खेत तँ खेत छी। रौदी भेने ओहीमे ने उपजा होइ छै। बाकी सवा दू बीघा मध्‍यमसँ भीठ धरि‍। दसो कट्ठा भीठमे मरूआ, भदै-गदैरक संग कुरथी-तेबखा होइत। गहुमक खेती तँ आबि‍ गेल मुदा खेतीक लेल पानि‍ चाही। पटबैक साधन पोखरि‍, जइसँ करीनसँ कि‍छु अगल-बगलक खेती होइत। लोकक बीच ने पढ़बै-लि‍खबैक जि‍ज्ञासा रहै आ ने सुवि‍धा। गनल-गूथल वि‍द्यालय-महावि‍द्यालय। बरीसलालो दुनू बेटाकेँ गामक स्‍कूल धरि‍ पढ़ा‍ खेति‍एक काजमे लगौने। मि‍थि‍लाक कि‍सान खेतक ओहन प्रेमी बनल रहला जेहन पति‍व्रता नारी जे बाल वि‍धव होइतो प्रति‍ष्‍ठाकेँ कमलक माला बना गरदनि‍मे लटका हँसि‍ रहली अछि‍ तहि‍ना कि‍सानो। जँ से नै रहल छथि‍ तँ भागि‍-पड़ा अर्थशास्‍त्री बनि‍ कि‍अए अपन खेत-पथारकेँ सम्‍पति‍ नै बूझि‍ प्रति‍ष्‍ठाक वस्‍तु बूझि‍ रहल छथि‍। की ओहि‍ना खेतीकेँ उत्तम आ नोकरीकेँ मध्‍यमक वि‍चार देलनि‍। जँ एकरा मुहावरा-कहावत बना देखब तँ मिथि‍लाक चि‍न्‍तनधारा धरि‍ नै पहुँचि‍ पाएब। जइठाम खेतकेँ अपन अधि‍कारक वस्‍तु बूझि‍ अपना हाथक हथि‍हार बना अपन स्‍वतंत्रताकेँ अक्षुण्‍य रखैक वि‍चार सेहो देलनि‍। ई तँ अपन-अपन वि‍चार होइ छै जे कि‍यो हथि‍यारकेँ बम-बारूद बुझैत तँ कि‍यो हाथक यार माने प्रेमी बूझि‍ वि‍चारक बाट बनबैक वि‍चार व्‍यक्‍त करैत अछि‍। तहि‍ना अस्‍त्र–शस्‍त्र सेहो अछि‍।

मध्‍यम कि‍सान वा लघु कि‍सानक जीबैक जि‍नगी ब्‍लौटि‍ंग पेपर सदृश बनि‍ गेल छन्‍हि‍ जेकरामे लालो रोशनाइ सोंखैक शक्‍ति‍ छै आ करि‍यो रोशनाइक। बाढ़ि‍-रौदी एकैसम शताब्‍दीक ऊपज नै अदौसँ रहल अछि‍। भलहि‍ं कहि‍ सकै छी जे धार-धूड़क बान्‍ह-छान्‍ह दुआरे हुअए लगल अछि‍, भऽ सकै छै कतौ-होइत  हेतै, मुदा प्रश्न धारेक पानि‍क नै अछि‍। तहि‍ना रौदि‍यो रहल अछि‍। धारोक कटनी-खोंटनी कम नै अछि‍। मि‍थि‍लांचलकेँ कोसी-कमला तेखार कऽ दुब्‍बरसँ धोधि‍गर धरि‍ अछि‍। पानि‍क एक साधन भेल, दोसर बरखा भेल। ओहन-ओहन बरखा होइत रहल अछि‍ जे पनरह दि‍न हथि‍याक बरखाक ओरि‍यान कऽ कऽ पूर्वज रखैत छलाह। हथि‍या मात्र एक नै जेकरा बरखा ऋृतुक अंति‍म नक्षत्र कहि‍ टारि‍ देब। ओना पानि‍क कोनो ठेकान नै, माघोमे पाथर खसि‍ उपजल उपजाकेँ नाश करैत रहल अछि‍। अंति‍मक जन्‍म ताधरि‍ नै होइत जाधरि‍ आदि‍ नै होइत बरखा ऋृतुक आदि‍ आद्रा छी। तँए आदि‍ आद्रा अंत हस्‍त ई भेल बरखाक आँट-पेट। पूर्वज सभ स्‍पष्‍ट वि‍चार देने छथि‍ जे बरखाक कोनो बि‍सवास नै, कते हएत। १९७१ ई.मे बंगला देशक लड़ाइक लगभग सालो भरि‍ बरखा होइते रहल, ओहन-ओहन बरखा होइत रहल अछि‍ जइमे सएक-सए घर खसैत रहल अछि‍। घरमे दबल-बाल-वृद्ध, धन-सम्‍पति‍ नष्‍ट होइत रहल अछि‍ मुदा तैयो ब्‍लौटि‍ंग पेपर जकाँ सोखि‍ कि‍अए जीबैक बाट धेने आबि‍ रहल अछि‍। दुनि‍याँमे ने सााधकक कमी आ ने साधना भूमि‍क, मुदा मि‍थि‍लांचल श्रेष्‍ट कि‍अए? कतौक जाड़क साधना तँ कतौक तापक तप, जइमे तपि‍ तपस्‍या करैत, तँ कतौ पानि‍क सौभरी ऋृषि‍ बनि‍ करैत। मुदा मि‍थि‍लांचल साधनााक फुलवाड़ी लगा रखने अछि‍। ओइ फुलवारीक फूल सजबै छलीह सीता।
ने मि‍थि‍लाक भूमि‍ बदलल, आ ने बदलल ऋृतु ऋृतुराज, बदलि‍ रहल अछि‍ खाली बोतलक रस। घरक समस्‍या कहाँ? समस्‍या तँ तखन उठैत जखन रहैक घरसँ घर भाड़ा असुलैक ि‍वचार जगैत। गाछक नि‍च्‍चा सात-हाथ नौ हाथक घरमे जीवन-यापन कऽ वेद-पुराण सि‍रजलनि‍। की दुनि‍याँ देखि‍नि‍हार मि‍ि‍थलांचल छोड़ि‍ देखि‍ रहला अछि‍, जँ से नै तँ समस्‍याकेँ कोन रूपे देखलनि‍। यएह ने सरकारी योजना जहि‍ना कागजपर औषधालय बना साले-साल मरम्‍मतक नामपर योजना लुटाइत रहैत आ पान सालक बाद माटि‍पर खसा मलबा हटबैक खर्च होइत। खेतसँ उपजल खढ़, बाँस साबेक घर बना समस्‍याक समाधान करैत छलाह। ओ सभ अपन वि‍चारकेँ स्‍वतंत्र रखि‍ स्‍वतंत्र जीवन व्‍यतीत करैत छलाह। पढ़ै-लि‍खैक ओते समस्‍या नै, जेहन जि‍नगी रहत ततबे बुधि‍क ने जरूरत। बेसी भेलासँ तँ लोक छड़पि‍-छड़पि‍ अनको गाछक आम तोड़ए लगैत अछि‍। भलहि‍ं अपन पूर्वजक घराड़ीपर नढ़ि‍या कि‍अए ने भुकए, मुदा दुनि‍याँकेँ मातृभूमि‍ कहि‍ सेवारत् रहैत छी। ओही रूपक फूसघर बना जि‍नगीक गारंटी केने छलाह। अखुनका जकाँ नै जे एक दि‍स लग्‍गी  लगा भाँटा तोड़ैक बाट धेने छी आ दोसर दि‍स हजार-दस हजार जीबैबला ऋृषि‍-मुनि‍क दुहाइ दैत छी। एकैसम सदीमे कि‍यो अपनाकेँ अगि‍ला पीढि‍क नजरि‍क पुतली बना रहल छी। जहि‍ना बरखा, तहि‍ना जाड़ तहि‍ना रौद-ताप, बाल जीवनसँ लऽ कऽ वृद्ध तकक अनुभव कऽ अपन जि‍नगीकेँ असथि‍र बना नीक-नीक उमेर पबैत रहला अछि‍।
पश्न उठैत जे की एहेन वि‍चार मरि‍ गेल आकि‍ जीवि‍त अछि‍? ने मरल आ ने स्‍वस्‍थ भऽ जीवि‍त अछि‍। गाम-समाजमे लटपटाइत जीवि‍त जरूर अछि‍ मुदा.....। जीवि‍त ऐ रूपे अछि‍ जे अखनो खेतीकेँ उत्तम मानल जाइत अछि‍। कृषि‍ जि‍नगीकेँ थाहि‍ चलबैत अछि‍। तहूमे सामाजि‍क स्‍तरपर तँ आरो थाहल अछि‍। जँ जि‍नगीमे दोसराक जरूरत नै हुअए तँ ऐ सँ नीक जीवन ककरा कहबै। आजुक हवा भलहि‍ं जते जोर मारए मुदा हवा असथि‍र वस्‍तुकेँ कहाँ कि‍छु बि‍गाड़ि‍ पबैत अछि‍। अनभुआर धारमे ने नमहर-नमहर जलचरक भय रहै छै कि‍एक तँ धुमैत धारमे जे गहींर-गहींर मोइन खुना जाइ छै तइमे ने डुमैक डर, जँ से नै तँ डुमैक डर कतए। तहि‍ना ने धरति‍योक बीच अछि‍। जहि‍ना पानि‍मे गोहि‍, नकार आदि‍ रहैए तहि‍ना ने धरति‍योपर बाघ सि‍ंह, नाग बास करैए। थाहल जि‍नगीक अर्थ ई जे जँ तीन बीघा वा दू बीघा जमीनकेँ जँ समुचि‍त बेवस्‍था कऽ खेती कएल जाए तँ युगानुकूल मनुष्‍य बनब बड़ भारी नै। जि‍नगी तखन भारी बनैत अछि‍ जखन गरथाहमे जि‍नगी पड़ि‍ जाइत अछि‍। कि‍सानक जि‍नगीकेँ पंगु बना देल गेल अछि‍। जँ से नै तँ सरकारी बेवस्‍था कोन -कि‍सान हि‍तैषी- जि‍नगीक कोन जरूरति‍केँ पूरा नै कऽ पाबि‍ सकैए, मुदा नीको-नीको -दस बीघासँ ऊपरबला कि‍सान- परि‍वार ने अपना बेटाकेँ नीक शि‍क्षा दऽ पाबि‍ रहल अछि‍ आ ने जनमारा बेमारि‍क इलाज कऽ पाबि‍ रहल अछि‍। जहि‍ना सुति‍ उठि‍ सीता-राम, राधा-कृष्‍ण वा सतनामक नाम लेल जाइत तहि‍ना ने आब टाटा-पापा लैत उठै छी। मुदा कि‍ हम सभ नढ़रा मकैक सदृश जि‍नगी नै जीबै छी जे भोगार गाछ रहि‍तो अन्नक कतौ पता नै। कृषि‍ तँ आमक बगीचा वा खीराक लत्ती सदृश अछि‍। जहि‍ना गाछक पल्‍लवक मुँहसँ गि‍रहे-गि‍रहे पल्‍लव नि‍कालि‍ डारि‍ बनैत रहैए, खीरा लत्तीक मुँहसँ लत्ती बनि‍ फुलाइत-फड़ैत रहैए तहि‍ना ने जि‍नगि‍यो छी जे धरतीसँ जनमि‍ फुलाइत-फड़ैत वि‍सरजन करत। खेत तँ ओहन सम्‍पत्ति‍ छी जे जि‍नगीकेँ आगू-बढ़बैक शक्‍ति‍ रखैए। कतबो शक्‍ति‍शाली कि‍अए ने आगि‍ हुअए मुदा जँ ओइमे नव ज्‍वलनशील वस्‍तुक समागम नै हेतै, तँ कते काल ओ जीवि‍त रहि‍ सकैए। जाधरि‍ धार टपनि‍हार वा सरोवरमे स्‍नान केनि‍हारकेँ पानि‍क थाह नै लगि‍ जाएत ताधरि‍ धार टपब वा स्‍नान करब तँ अथाहे अछि‍। जाधरि‍ अथाह रहत ताधरि‍ शंका रहबे करत। जाधरि‍ आशंका रहत ताधरि‍ वि‍चार प्रभावित हेबे करत। मुदा एतेकक बावजूद हम कि‍अए.....? की हम नै जनै छी जे जाधरि‍ कृषि‍केँ सर्वांगि‍न वि‍कासक प्रक्रि‍या नै अपनौल जाएत ताधरि‍ नचारी-सोहर कते काल सोहनगर हएत। हर आदमी हर परि‍वारकेँ ठाढ़ भऽ चलैक प्रश्न अछि‍, नै कि‍ एक दोसराकेँ छि‍टकी मारि खसबैक।
पाँचटा कि‍सानक संग बरीसलाल सेहो बोरि‍ंग-दमकलक वि‍चारकेँ आगू बढ़ौलक। प्रखण्‍ड कार्यालयसँ फार्म लऽ बैंकमे आवेदन केलक। संगीक जरूरति‍ तँ पड़बे केलै कि‍एक तँ जि‍नगीमे पहि‍ल खेप प्रखण्‍ड कार्यालय आ बैंक पहुँचैक अवसर भेटलै। नव योजनाक काज बैंकमे आएल। ओना गामक आ गामक कि‍सानक हि‍साबे बैंकक संख्‍या दूधक डाढ़ि‍ये छल, मुदा छल तँ। बरीसलालक आवेदन स्‍वीकृति‍ करैत जमीनक बाैण्‍ड बना माइनर एरीगेशनकेँ काज करैक भार देलक। बैंक-कर्जक सूद शुरू भेल।
माइनर एरीगेशनक आँट-पेट छोट। एकाएक काजमे बढ़ोत्तरी भेल। ने काज करैक औजार अधि‍क आ ने करैबला। तँए ठीकेदारीक चलनि‍। तहूमे एक अनुमंडलक बीच एकटा कार्यालय। लेनि‍हार हजार हाथ देनि‍हार एक। मुदा तैयो बरीसलालक आदेश पत्रकेँ फाइलमे लगा देल गेल। एक-ति‍हाइ सब्‍सि‍‍डीक लेल सब्‍सि‍डी कार्यालयक जरूरत। सब्‍सि‍डी कार्यालय जि‍लाक अन्‍तर्गत। दौड़-बरहा करैत बरीसलालकेँ खर्चक संग-संग साल बीत गेल। बरसातमे एक तँ धसना धसैक डर दोसर लोक खेती कहि‍या करत। बोरि‍ंगक काज छोड़ि‍ बरीसलाल खेतीमे लगि‍ गेल। साल बीतल दोसर साल शुरू भेल। ताधरि‍ बैंकक कर्जक चक्रवृद्धि‍ ब्‍याजक दरसँ एते मोटा गेल जे सब्‍सि‍डी उधि‍या गेल।
दोसर साल शुरूहेसँ बरीसलाल काजक -वोरि‍ंग-दमकलक- पाछू पड़ि‍ गेल। आइ-काल्हि‍ करैत माइनरो-गरीगेशनक काज आ सब्‍सि‍डीयो ऑफि‍सक काज लटकले रहलै। चढ़ैत बैसाख -दोसर साल- बरीसलाल रघुनन्‍दनकेँ कहलक-
बौआ, छोड़ि‍ दहक। बोरि‍ंग नइ भेल तँ करजो तँ नहि‍ये भेल। बुझबै जे एते दि‍न घुमबे-फि‍रबे केलौं।

बैंकक प्रक्रि‍या रघुनन्‍दनकेँ बूझल। बरीसलालक बात सुनि‍ अवाक् भऽ गेल। मन कलपि‍ उठलै बाप रे, सूदि‍-मूड़ लदा गेलै, कोट-कचहरीक मुद्दा बनि‍ गेलै। दोख केकरा लगतै। कोन मुँह लऽ कऽ समाजमे रहब। ग्‍लानि‍सँ मन बि‍साइन भऽ गेलै। साहस बटोरि‍ रघुनन्‍दन बाजल-
काका, जँए एते दि‍न तँए दू मास आरो। बैसाख-जेठ बचल अछि‍। काल्हि‍ चलू या तँ अपन काज वापस लेब वा हाथ पकड़ि‍ काज कराएब। तइले जे हेतै से देखल जेतै।

रघुनन्‍दनक बात सुनि‍ बरि‍सलाल ठमकि‍ गेल। बाजल-
बौआ, हम तँ तोरेपर छी, आगि‍मे जाइले कहह आकि‍ पानि‍मे तोरासँ बाहर थोड़े हएब।

बरीसलालक वि‍चार सुनि‍ रघुनन्‍दनक मनमे उत्‍साह जगल। दोसर दि‍न दुनू गोटे -बरीसलाल, रघुनन्‍दन- माइनर एगरीगेशनक कार्यालयसँ बोरिंग गाड़ैक सामान नेने आएल। गाड़ैक दि‍न तकबए गेल तँ आगूमे भदबा पड़ैत रहए। जोड़-घटाओ करैत आठ दि‍न पछाति‍ बोर करब शुरू भेल। ि‍सर्फ ठीकेदारे टा आएल बाकी सभ काज गामेक मजदूर करत। ओना बोरि‍ंगक काजमे गामक मजदूर अनाड़ि‍ये छल मुदा अनाड़ि‍यो तँ कते रंगक होइ छै। जते काज तते जीवनी तते अनाड़ी। जखने काजक लूरि‍ भऽ गेल तखने जीवनी, जाधरि‍ नै भेल ताधरि‍ अनाड़ी। ततबे नै एक काजक जीवनी दोसर काजक अनाड़ी सेहो होइत। तँए जीवनी-अनाड़ीक भेद करब कठि‍न अछि‍। ओना काजक भीतरो जीवनी-अनाड़ी होइत। जहि‍ना एकपर सए खड़ा अछि‍। कहैले तँ एक पहि‍ल सीमा भेल आ सए दोसर सीमा मुदा दुनूक बीच अंतर ओते अछि‍ जते एक प्रति‍शत आ सए प्रति‍शत। तहि‍ना काजोक अछि‍। एके काजक भीतर सइयो रंगक काजक अंश होएत। कि‍छु अंशक बादे जीवनी मानल जाए लगैत मुदा जीवनी -लूरि‍गर- होइतो पूर्ण लूरि‍गर नै मानल जाएत। पूर्ण लूरि‍गर तखन मानल जाएत जखन काज समए सीमाक भीतर होइत। ओना काजोक सीमाक ि‍नर्धाणरण व्‍यास पद्धति‍क अनुकूल होएत। जँ से नै होएत तँ कि‍छु एहनो काज केनि‍हार होइत जे समयो-सीमासँ पहि‍नहि‍ कऽ लैत आ कि‍छु एहनो होइत जे काज तँ कऽ लैत मुदा समए सीमा टपि‍ कऽ करैत। तँए कि‍ ओकरा अनाड़ी कहल जेतैक।

मुलाइम माटि‍ रहने सबा साए फीट बोर आठे दि‍नमे भऽ गेल। लेयरो बढ़ि‍याँ। चालीस फीट लेयर। ओना जँ नीक लेयर होइत तँ पनरहो फीटमे पाँच हार्स पावरक इंजन पूर्ण पानि‍ दैत, मुदा लेयरोक तँ ठेकान नै। नीक-अधला संगे होइत। कोनो बालु -सौतबी- एहेन होइत जइमे पानि‍क मात्रा पनरह प्रति‍शतक आस-पास होइत आ कोनो एहेन होइत जइमे अस्‍सी प्रति‍शत धरि‍ पानि‍ रहैत। मुदा बरीसलालक बोरक लेयरक स्‍थि‍ति‍ कि‍छु भि‍न्न छल। नि‍च्‍चाक तीस फीट लेयरमे अस्‍सी प्रति‍शत पानि‍ छल आ ऊपरकामे कम। तँए ठीकेदार बाजल-
बरीसलालबाबू, अहाँक तकदीर नीक अछि‍। कहि‍यो बोरि‍ंग भथन नै हएत। कि‍एक तँ तेहेन नि‍चला बालु अछि‍ जे सभ दि‍न पानि‍ दनदनाइते रहत। तँए नीक हएत जे जहि‍ना भीत घरमे ठेमा-ठेमा रद्दा पड़ैए तहि‍ना कि‍छु दि‍न जे बोर ठेमा जाएत तँ धँसना धसैक संभावना समाप्‍त भऽ जाएत। ओना केसि‍ंग-पाइपसँ बोर कएल अछि‍, पाइप लोड करैमे कोनो दि‍क्कत हेबे ने करत, मुदा अहीं हि‍तमे कहै छी।

ठीकेदारक मुँहसँ तकदीर सुनि‍ बरीसलालक मन उधि‍या गेल। ठीकेदारक अगि‍ला बात नीक नहाँति‍ सुनबो ने केलक। अंति‍म हि‍तक चर्च सुनि‍ बरीसलाल बाजल-
ठीकेदार सहाएब, अहाँ कि‍ कि‍यो बीरान थोड़े छी जे अधला करब। अहाँ तँ सद्य: इन्‍द्र भगवान छी, जेमहर ताकि‍ देबइ तेमहर ताड़ि‍ देबै। जेना-जेना अहाँ कहब तेना-तेना करैले तैयार छी।
ठीकेदार- हमरो गाम गेना बहुत दि‍न भऽ गेल। अखन ऑफि‍सक छुट्टीक काजो ने अछि‍। कि‍एक तँ बोर करैक सीमा जते अछि‍ तइ पूरैमे एकबेर गामसँ घूमि‍ आएब। अहूँक काज नीक हएत आ अपनो काज भऽ जाएत। कहि‍ ठीकेदार गाम चलि‍ गेल।
पनरह दि‍न बीत गेल। जेठ चलए लगल। रोहणि‍ नक्षत्रक आगमन भऽ गेल। संयोगो नीक रहल जे अगते वि‍हरि‍या हाल सेहो भऽ गेल। जहि‍ना भक्‍त भगवानक मि‍लन होइत तहि‍ना बरीसलालक मनमे भेल। अपनो हाथ पानि‍ आबि‍ गेल, ऊपरसँ भगवानो देताह। पानि‍क धनि‍क बनि‍ जाएब। जहि‍ना टि‍कुली अपन पाँखि‍क होश केने बि‍ना हवामे उधि‍आइत ओतए पहुँचए लगल जतए ओकर पाँखि‍ बेकाबू भऽ टुटि‍ जाइत। माि‍टक चुट्टी वा गाछक घोड़नकेँ पाँखि‍ होइते मरैक दि‍न लगि‍चा जाइत, मुदा बूझि‍ नै पबैत तहि‍ना बरीसलालोकेँ हुअए लगल।
रोहणि‍या हाल जहि‍ना धरतीक शक्‍ति‍मे नव उर्जा दैत तहि‍ना बरीसलालोक मनमे आएल। पत्नि‍यो आ दुनू बेटोकेँ शोर पाड़लक। तेल वि‍हीन बच्‍चाक मुँह लाली धरैत अनरनेबा जकाँ हरि‍अरसँ लाल होइत जाइत देखलक। तहि‍ना पत्नि‍योक ओ दि‍न मन पड़लै जइ दि‍न हाथ पकड़ि‍ जि‍नगीक भार उठौने रहए। मुदा, कि‍अए ने लोक भार उठाओत? एकटा नव शब्‍द -word- ताधरि‍ संग पूरैत जा धरि‍ ओकर मथन होइत। नै तँ कअए रहत। बड़ीटा दुनि‍याँ छै कतौ बौरु जाएत। पत्नीक नव रूप देखि‍ बेटाकेँ सम्‍बोधि‍त करैत बरीसलाल बाजल-
बौआ, तोरा सभकेँ जहि‍ना कोरा-काँखमे खेलेलि‍यह तहि‍ना हँसी-खुशीसँ जीबैक ओरि‍यान सेहो कऽ देलि‍यह।
पति‍क बात सुनि‍ पत्नी सुशीलालक मन पहाड़क झरनासँ झड़ैत पनि‍क चमकैत रेत जकाँ चमकए लगलनि‍। बजलीह-
सोझे दीक्षा देने नै हाएत। एक-एक दि‍न, एक-एक क्षणक काजक बात बुझा दि‍औ तखन हएत?”

अखन धरि‍ बरीसलाल कोट-कचहरी करैत बहुत कि‍छु सीख नेने छल। गाम-गामक खेती-पथारी, गाम-गामक माल-जाल पोसब, गाम-गाम फल-फलहरी, तीमन-तरकारीक खेती, माछ पोसब इत्‍यादि‍ सुनि‍ चुकल छल। जहि‍ना मि‍ड्ल स्‍कूलक बच्‍चा हाइ स्‍कूलमे प्रवेश करैत नव-नव पोथी देखि‍ ललाए लगैत तहि‍ना बरीसलालक दुनू बेटाक जि‍ज्ञासा जगल। जि‍ज्ञासा देखि‍ बरीसलाल बाजल-
बौआ, माटि‍मे धन छि‍ड़ि‍आएल छै, बीछि‍नि‍हार चाही।

अखन धरि‍ दुनू भाँइ आमक टि‍कुलासँ लऽ कऽ पाकल आम धरि‍ बीछि‍ चुकल छल तँए बीछैक बात सुनि‍ जेठका बेटा महावीर पुछलक-
केना बि‍छबै बाबू?”
बरीसलाल बेटाक प्रश्न सुनि‍ खुशि‍या गेल। आजुक बेटा जकाँ नै जे नोकरि‍यो करैत आ नोकरो रखैत। जखन अपने काज अछि‍ तखन अपनासँ जे समए बचत सहए ने दोसरकेँ देब। बाजल-
बौआ, अखन तँू सभ भारी काज करै जेकर नै भेलहहेँ। ओना कनी-कनी कऽ हेन्‍डि‍ल मारब सीख लेबह तँ दमकलो चलाएल भइये जेतह। मुदा जँ दस कट्ठामे सालो भरि‍ तरकारीक खेती करबह तँ ओते कोन परदेशि‍या कमाएत। हँ समए बदलने लोक रंग-बि‍रंगक वृति‍यो बदलि‍ लेलकहेँ। जइसँ कि‍छु अनाप-सनाप सेहो भऽ रहल छै। मुदा बुधि‍क संग पूँजी आ पूँजीक संग बुधि‍ नै चलत तँ अनेरे दब-उनाड़ होइत रहत।

जेठक पूर्णिमा दि‍न बोरि‍ंग लोड भेल। लोड होइसँ तीन दि‍न पहि‍ने अपन ऊषा मशीन आबि‍ गेल रहै। बो‍रि‍ंग लोड कऽ ठीकेदार-मजदूर मि‍लि‍ माछक भोज खा, सोलह घंटा पानि‍ चला काज सम्पन्न केलक।

अखाढ़ चढ़ि‍ते मानसून उतड़ि‍ गेल। पहि‍लुके दि‍न एहेन बरखा भेल जे खेत-पथारमे पानि‍ लगि‍ गेल। नीचला खेती बुड़ैक लक्षण धऽ लेलक। तेसरे दि‍न बाढ़ि‍ चल आएल। पोखरि‍-झाखड़ि, चर-चांचर भरि‍ गेल। पानि‍पर पानि‍ आ बाढ़ि‍पर बाढ़ि‍ कते बेर आबि‍ गेल। दहार भऽ गेल। एहेन दहार भेल जे नवान पावनि‍यो लोक बि‍सरि‍ गेल। मुदा काति‍क अबैत-अबैत रब्‍बी-राय छीटब शुरू भेल। गहुमक खोती नै भऽ सकल। अन्नमे गहुमक खेती सभसँ महग खेती होइत। मुदा धान नै भेने कि‍सानक स्‍थि‍ति‍ बि‍गड़ि‍ गेल। एक तँ आेहि‍ना बरीसलालक स्‍थि‍ति‍ दू सालक दौड़-बरहामे वि‍गड़ि‍ गेल तइपर दाही आरो बि‍गाड़ि‍ देलक। सालो भरि‍ बोरि‍ंग-दमकल बैसल रहि‍ गेल।
तरकारी खेतीक ओहन दशा बनि‍ गेल जे बजार नै। कच्‍चा सौदा, नष्‍ट होएत।

देखैत-देखैत सतासीक बाढ़ि‍ आ अट्ठासीक भूमकम आबि‍ गेल। जर-जर बसीसलाल फड़-फड़ करैत फड़फड़ा गेल। तही बीच बैंकक पक्षसँ जमीनक नि‍लामीक नोटि‍श भेटलै।
~

परदेशी बेटी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



उबानि‍ होइते घटक काका दाँत पीसैत काकीपर बि‍गड़ैत घर छोड़ि‍ वि‍दा भेला। मनमे उठलनि‍ जे एहेन पड़ाइन पड़ा जाइ जे दोहरा कऽ ने घरक मुँह देखी आ ने घरेवालीक। मुदा ओहन क्रोधे आकि‍ हँसऽबे कि‍ जे दोसरपर नै बि‍साए। घरक बात (पति‍-पत्नीक बीचक) तँए अनका कहबो उचि‍त नै। दुनि‍याँमे केकरो कोइ ने कहै छै। भलहिं बि‍नु कहनौ दुनि‍याँ कि‍अए ने बुझैत होउ। मने मन घटक काकाक पकि‍या ि‍नर्णए भऽ गेलनि‍। लोकोकेँ कोन मतलब जे बताह जकाँ अनेरो अनका देखि‍ हँसि‍ देब अाकि‍ बि‍नु मतलबोक घंटा भरि‍ सोखर पसारि‍ देब। आन जकाँ नै जे आंगनसँ नि‍कलि‍ डेढ़ि‍योपर सँ पाछू घूमि‍-घूमि‍ देखैत, देखबो केना करि‍तथि‍? कोनो कि‍ अदी-गुदी वि‍चारक चोट लागल छन्‍हि‍‍, पुरुखे छि‍याह जे अखनो धरि‍ बरदास केने छथि‍ नै तँ मूसक दबाइ पीब नेने रहि‍तथि‍।
एक तँ ओहुना अखन घटक काकाकेँ टोकैक लग्‍न नै, कारण लगनक समए नै छी, लगनक समैमे ने पति‍आनी लागल काज रहै छन्‍हि‍ कुसमैमे तँ दुनि‍याँक नि‍अमे छै जे अपनो लोक पूछैले तैयार नै होइत अछि‍, घटक काका तँ सहजहि‍ वि‍दाइ लेनि‍हार छथि‍। बि‍नु रेटक आमदनी। जेहेन मुँह तेहने आमद। नै टोकैक इहो कारण रहनि‍ जे मध-असरेसक गि‍रहस्‍ती चि‍रहस्‍ती   बि‍गड़ैत घर छोड़ि‍ लैत, जते समए लोक केकरोसँ गप करत तते काल जँ देहे कुरि‍या लेत तँ ओइसँ बेसी नीक। भगवान केकरो अधला बना पठबै छथि‍न, भलहि‍ं रोगे-व्‍याधि‍ कि‍अए ने होउ। जँ सभ अधले रहैत तँ कि‍अए कि‍यो देह कुरि‍अबैले सोनाक सि‍क्का बना-बना आगूमे रखैत। ओहि‍ना पैघ शैरीकार कहै छथि‍-
हौहटि‍मे मजा है कि‍ कलकलि‍ में है,
खुदा ने दि‍या खुजली, कुरि‍याने में मजा है।
खैर जे होउ। ओना कि‍सकारक समए रहने देवि‍यो देवता अखन छुट्टी लऽ लेने छथि‍, चौरचनक पछाति‍ ज्‍वाइन करताह। जहि‍ना फुलही थारीमे जते काल दही रहैत ओते बेसी कसाइन होइत, तहि‍ना घटक काकाक मन कसाइन होइत जाइत रहनि‍। जहि‍ना भरल पेटक प्रेम गीतक स्‍वर आ जरल पेटक प्रेम गीतक स्‍वरमे मात्राक भेद होइत तहि‍ना घटक काकाक मनमे उठैत रहनि‍, जे आइ धरि‍ कहि‍यो नै उठल रहनि‍। केना नै उठि‍तनि‍? सभ दि‍न दस गोटेक बीच हँसि‍-बाजि‍ समए खटि‍यबैत रहला आब जखन शि‍व लि‍ंग फुल जकाँ वा नारि‍यल-ताड़ जकाँ फड़एबला भेला तँ आनक कोन गप जे जाँघ तर बसैवाली पत्नि‍यो दुतकारि‍ देलकनि‍। ई तँ हुनके चाबस्‍सी होन्हि‍ जे जहर-माहुरक कोन गप जे केकरो लग बजौ नै चाहैत छथि‍। कसाइन बीच बि‍साइन घटक काकाक मन उठलनि‍। जि‍नगी भरि‍ घरे बसबैक काज करैत एलौं मुदा......?
बेटा प्रेमसँ चाहे बि‍गड़ि‍ कऽ आकि‍ पड़ा कऽ परदेश चलि‍ गेल तँ चलि‍ गेल। सबहक बेटी सासुर बास करैए, ओहो करह। मुदा पत्नी तँ पत्नी छी। जँ घरे नै तँ घरवाली की, आ घरेवाली नै तँ घर केहेन। भाड़ा घर जँ अपना घर सन होइतै तँ मुसे कि‍अए घरमे घर बनबैत। ओकरो तँ पानि‍ये पाथरसँ ने जान बँचबैक छै। मुदा कि‍अए? अपन घर कि‍यो अपन वि‍चार अपन आँट-पेट आ लम्‍बाइ-चौड़ाइ नापि‍ बनबैत तँए बेसी सुरक्षि‍त होएत। मुदा गणेशजी अपन वाहनकेँ ई बात ने कि‍अए बुझा देलखि‍न जे लोकक घरमे जे घर बनबै छेँ, से अपने जोकर बनबि‍हेँ। जइ भीतपर घर ठाढ़ अछि‍ ओकरे कि‍अए जंजल बना देइए। जखन भीते-जंजल भऽ जाएत तखन हथि‍याक झाँट केना बरदास करत। मुदा घर खसत घर बन्‍हनि‍हारकेँ ओ तँ बीलमे अन्नक ढेरीपर अरामसँ पड़ल रहत। अकाससँ धरतीपर घर खसत, मुदा ओ तँ पताल दि‍स बनौने अछि‍। कि‍अए ने ओकर जान बँचले रहतै। तइ बीच घटक काकाक मनमे एकटा घटकैती आबि‍ गेलनि‍। मन पड़ि‍ते मुस्‍की आबि‍ गेलनि‍। ठोर वरदास नै कऽ सकलनि‍। खापड़ि‍क तीसी जकाँ चनचना उठलनि‍। कहू जे बेंगबा सन छौड़ाकेँ इन्‍द्रक परी सन कन्‍या केकरा कि‍रतबे भेलै। मुदा कलयुगक उपकार हत्‍या बराबरि‍। जौं से नै तँ जँ ओकरा अपन उपकार मन पाड़ि‍ देबै तँ कि‍ ओ नै कहत जे पाँचो टूक कपड़ा आ दैछना कथीक लेने रहि‍ऐ। ओ खुशनामा देने रहए आकि‍ काज करैक बोइन। मन घूमि‍ पत्नीक ओइ बातपर आबि‍ अँटकि‍ गेलनि‍ जे कहू ई केहेन भेल जे मुँह फोड़ि दुसैत कहलनि‍ जे आगू-पाछू कि‍छु सोचै नै छी आ जहाँ कोसीकातक बकेनमा दूधक दही आ ति‍लकोरक तरूआ आगू पड़ैए आकि‍ बुद्धि‍ये बि‍गड़ि‍ जाइए। जइ परि‍वार लेल जि‍नगी भरि‍ झूठ-फूसि‍ बाजि‍, नीक-अधला काजक वि‍चार नै केलौं तइ परि‍वारमे एहेन गंजन हुअए तँ मनुक्‍ख केना रहत? खौंझ आरो तेज भेलनि‍। ओ (पत्नी) रस्‍तामे रोड़ा अँटकौनि‍हार के? दस गाम घूमै छी, दस लोकमे रहै छी हम आ उपदेश देती ओ? जे सभ दि‍न जाँघक नि‍च्‍चा रहल ओ छड़पि‍ कऽ छातीपर चढ़ि‍ मुक्का देखाओत; एहेन पुरुष हम नै छी। जहि‍या जे हेतै से हेतै अखन घरसँ नै पड़ाएब। भक्क खुजलनि‍ तँ देखलनि‍ जे कि‍लोमीटर हटि‍ दोसर टोल लग पहुँचि‍ गेल छी। घूमि‍ कऽ अांगन केना जाएब? केतबो कि‍छु भेल तँ भेल पुरुष अपन पुरुखपाना केना छोड़ि‍ देत? नेराओल थूक केना चाटत? मुदा अपने फुरने घुमऽबो केहेन हएत? मरदक बात वाण समान होइत जे धनुषसँ नि‍कलि‍ गेल नि‍कलि‍ गेल। कहि‍ दुनू हाथक तरहत्थी माथपर लऽ बैसि‍ रहलाह।
जहि‍ना कि‍सान, बि‍नु खुरपि‍योक गाछक जड़ि‍ लग बैसि‍ चुटकि‍येसँ खढ़ उपाड़ि‍ कमठौन करए लगैत, तहि‍ना घटक काका घुमैक ओरि‍यान सोचए लगलाह। मुदा लगले मन तुरुछए लगलनि‍। ई तँ धोबि‍यो कुकुड़सँ टपब हएत जे, घरक आ ने घाटक। जँ बलजोरी घरमे रहौ चाहब तँ ओ (पत्नी) कत्ते मोजर देतीह। मन घुमलनि‍। हमरो एते नै अगुतेबाक चाहै छल। गल्‍ती अपनो भेल। एना जे लोक छोट-छोट बातपर घरसँ पड़ाएत तँ कहि‍यो कुकुड़-बि‍लाइ जकाँ अपन घर हेतै। साँझू पहर कऽ जखन लोक बाध-बोनसँ अबैए तखन केकरा घरमे ने हर-हर, खट-खट होइ छै, मुदा कहाँ कि‍यो हमरे जकाँ फूलि‍ कऽ पड़ा जाइए। जँ एक रत्ती दब-उनार बात पत्नी कहबे केलनि‍ तँ कि‍ होइतै। कोनो कि‍ जड़ि‍ भीरा कऽ टि‍क काटि‍‍ लेलनि‍। अर्द्धांगि‍नी छथि‍, बाल-बच्‍चा आ परि‍वारपर जते अधि‍कार पति‍क होइत तइसँ कम कि‍ पत्नि‍योक होइत अछि‍। बेटा-बेटी तँ दुनूक छी। ई तँ समैक दोख छी जे कखनो गरमी चढ़ा (रौदमे) गरमा दैत अछि‍ तँ कखनो ठंढा दैत अछि‍। सझुका झगड़ा राति‍ खसैत-खसैत मेटाइये जाइए कि‍ने। आकि‍ हमरे जकाँ दि‍न-राति‍ धेने रहब। भोर होइते दुनू परानी घर-अंगनाक काजमे लगि‍ जाइए। कहाँ एको मि‍सि‍या मान-दोख मनमे रखैए। जहि‍ना डि‍क्‍शनरीक नवका शब्‍द अबि‍तो अछि‍ आ जाइतो अछि‍ तहि‍ना ने घरोमे कि‍छु-ने-कि‍छु अबैत रहैए आ कि‍छु-ने-कि‍छु जाइत रहैए। मन आगू घुसुकलनि‍। मन पड़लनि‍ बि‍आहक दि‍न? समाजक बीच सरि‍आती-बरि‍आती, तँ हमहीं ने हाथ पकड़ि‍ जि‍नगी भरि‍ संगे रहैक वादा केने रही, से कि‍ भेल? जहि‍ना कटही गाड़ी कुमड़क रस्‍तामे कनी दब-उनार भऽ उनटि‍ये जाइए तँए कि‍ गाड़ीवान गाड़ी रखनाइये छोड़ि‍ देत। जँ छोड़ि‍ देत तँ आगू केना घुसकत? औगुताइमे एहेन भारी गल्‍ती नै करक चाही। कोन दुरमति‍या चढ़ि‍ गेल जे एना केलौं। एको रत्ती उम्रोक लेहाज-वि‍चार केलौं। जुआन लोक जकाँ ि‍नर्णए केलौं। कहू जे आब हमर उमेर अछि‍ जे संगी छोड़ि‍ असकरे रहब। कोनो कि‍ संयासी छी जे दोसर नै सोहाएत। अपने दि‍न-राति‍ घीमे डूमल रहब मुदा दोसरकेँ कुत्ता जकाँ पचै नै देब। भरि‍ दि‍न शनि‍याही गुड़-चाउर चि‍बबैत रहब आ अनका देखबे ने करब। मुदा कतौ जाएब तँ पेट संगे जाएत। पेटक आगि‍ जेहने परि‍वारमे तेहने तीर्थ-स्‍थानमे जगैत अछि‍। ओकरा तृप्‍ति‍ करब आवश्‍यक होइत। जँ से नै तँ भूखे भजन कि‍अए ने होइत। खाइले के देत? जँ देबो करत तँ एक मुट्ठी देत? एक दि‍न खेलासँ जि‍नगीक भूख मेटाएत। जँ से होइत तँ डि‍बि‍यो लऽ कऽ तकलापर एकोटा भि‍खमंगा नै भेटैत। मन घुमलनि‍। हारि‍ मानी झगड़ा फड़ि‍आए।

जहि‍ना बाढ़ि‍क तेसरा दि‍न पानि‍ ठाढ़ भऽ उनटा-पुनटा दि‍शा पकड़ए लगैत तहि‍ना घटक काकाक मनमे सेहो भेलनि‍। अपन वि‍चारक अनुकूल बात केकरा अधला लगै छै। संयोगो नीक रहलनि‍। मुदा मनमे खरोच लगलनि‍। समाजो तेहेन भऽ गेल अछि‍ जे केकरा के पूछत? जहि‍ना भोजक जएह बारीक मि‍ठाइ पड़सैत अछि‍ सएह माछो-मासु। कहू ई केहेन भेल। सभ तरहक पनचैती बड़के काका करताह। जमीनोक पनचैती आ दुनू परानि‍योक झगड़ा हुनके चाही। जँ जमीनक पनचैती अमीन नै करत, एहि‍ना सभ गुणक आधार से आदमी नै करत तँ खीर-खि‍चड़ीमे कोनो भेद नै रहत। एते मनमे रहबे करनि‍ कि‍ देखि‍ते सुनरलाल कहलकनि‍-
भाय सहाएब, अहीं ऐठाम जाइ छी?”
अहीं ऐठाम जाइ छी सुनि‍ घटक काका औना गेलाह। अपन ठौर कतए अछि‍ जे जाएत। कि‍ कहबै, भरमे-सरम आँखि‍ मूिन लइ छी जे बूझत हवामे अलि‍सा गेल छथि‍। उत्तर नै पाबि‍ सुनरलाल दोहरा देलकनि‍-
भाय सहाएब झखाएल छी, भक्क खोलू।
अकचकाइत घटक काका बजलाह-
नै, नै! कनी आँखि‍ लागि‍ गेल। की‍ कहलह?”
सुनरलाल- घरपर चलू। नि‍चेनसँ बुझा देब। रस्‍ता-पेराक गप नै छी।
एक तँ राकश दोसर नौतल। घटक काका हरे-हरे कऽ घर दि‍स बि‍दा भेलाह। मनमे उठलनि‍ जे कोनो वि‍चार दोहराइयो कऽ होइत अछि‍, कि‍अए ने दुनू परानी मि‍लि‍ फेरसँ वि‍चारि‍ लेब। घर दि‍स वि‍दा होइते घटक काका पुछलखि‍न-
गपो शुरू करह। जते भेल रहत ओते तँ काजे ने भेल रहत?”
छुब्‍द होइत सुनरलाल बाजल-
देखि‍औ भाय, बि‍अाह भेल केकरो आ जहलमे अछि‍ हमर बेटा।
अकचकाइत घटक भाय बजलाह-
से कि‍, से केना?”
मने-मन महावीरजी केँ गोड़ लगलनि‍। नि‍साँस छोड़ैत, सोचए लगलाह जे बाप रे एकटा काजमे जँ एना भेल, हम तँ जि‍नगी भरि‍ इएह केलौं। खुनी केसमे बेसी दि‍नक सजा होइ छै। मुदा खुदरो-खुदरी केश मि‍ला तँ ओहूसँ बेसि‍आइये जाइ छै। हे भगवान रच्‍छ रखलह। आबो छोड़ि‍ देबाक चाही। मुदा जइ इंजीनि‍यरकेँ जइ मशीनक बोध भऽ गेल अछि‍, जँ मशीनक तकनीक बदलि‍ जाएत तखन की हएत? दोसर काजक लूरि‍ कहि‍या भेल जे करब। हे भगवान जनि‍हह तूँ।
सुनरलाल कहए लगलनि‍-
भैया देखि‍यौ, हमरे बेटा फुलबाक बि‍आह बंगलोरमे करा देलकै। ओहन-ओहनकेँ गाममे के पूछै छै। मुदा ट्रन्‍सपोर्टमे नोकरी भेने दि‍न-दुनि‍याँ बदलि‍ गेलै। भषो सीखि‍ लेलक। अलगरजा कमाइ हुअए लगलै। बी.ए. पास लड़ीक संग बि‍आह करा देलकै।
घटक काका- बी.ए. पास लड़की गछलकै केना?”
सुनरलाल- केहेन गप करै छी। जखने लोक कमाए-खटाए लगैए तखने ने सर्टिफि‍केटक ओरि‍यान करए लगैए। एम.ए. पासक सर्टिफि‍केट कीन लेने अछि‍।
घटक काका- लड़कीबला कतक छि‍ऐ?”
सुनरलाल- नवटोलीक छि‍ऐ। तीस-पेइतीस बर्ख पहि‍ने गामसँ पड़ा कऽ गेल। नोकरी करए लगल। ओतै परि‍वारो रखैए, घरो-दुआर बना लेलक। अपन इलाकाक जाति‍ बूझि‍ कुटुमैती कऽ लेलक।
घटक काका- आब की भेल?”
सुनरलाल- बि‍आहक बाद लड़की जोर केलक जे गाम जाएब। एबो कएल। मुदा जहि‍ना पढ़ल सुग्‍गा बौक होइत तहि‍ना वेचारीकेँ भऽ गेलै। पनरहे दि‍नमे नाकोदम भऽ गेलै। जहि‍ना सासु अल्हरि‍ कहए लगलै तहि‍ना ससुरो माथा ठोकैत। सर-समाजक तँ चर्चे कोन? ने भाषाक ताल-मेल बैसैत आ ने खाइ-पीबैक वस्‍तुक।
घटक काका- जा, ई तँ भारी जुलुम भेल! तखन की भेलै?”
सुनरलाल- लड़की पड़ा कऽ दरभंगामे गाड़ी पकड़ि‍ बंगलोर चलि‍ गेल। हमरा बेटापर केश कऽ देलक। जेलमे पड़ल अछि‍।
डेढ़ि‍यापर अबि‍ते घटक काका बजलाह-
एहेन खच्‍चरपन्नी गाममे चलतै। अच्‍छा कनी ओहू पार्टीक बात बूझि‍ लेब तखन कहबह। अखैन जाह, कनी हमहूँ औगुताएले छी।

दरबज्‍जापर गल-गूल सुनि‍ रेखा आंगनसँ आबि‍, खरि‍हानक मेह जकाँ बीचमे आबि‍ ठाढ़ भऽ सोचए लगली जे केहेन पुरुख छथि‍ जे थूक फेकि‍ पड़ाएल रहथि‍ जे घूमि‍ कऽ ऐ घरक मुँह नै देखब, से सालक कोन गप जे दि‍नो भरि‍ नै नि‍माहि‍ सकलाह। मुदा मन ठमकलनि‍। सप्‍पत-कि‍रि‍या लोककेँ थोड़े टि‍क पकड़ि‍ उखाड़ै छै, जँ से उखाड़ि‍तै तँ भरि‍ दि‍न लोक कि‍अए सभ बातमे जय गंगाजी आकि‍ माटि‍ उठा-उठा बजैत अछि‍। जहि‍ना लोक भात-रोटी खाइए तहि‍ना ने सप्‍पतो-कि‍रि‍या खाइक वस्‍तु भेल। खेलक पचलै फेर खेलक फेर पचलै। रसे-रसे एहेन पचान पचि‍ जाइ छै जेहन झूठ-सच्‍चमे पचल अछि‍ सच्‍च–झूठमे। जँ तुकबन्‍दी करैक लूरि‍ भऽ जाए तँ कवि‍, शायर बनबे करब आ जँ झूठ-सच्‍च पचबैक लूरि‍ भऽ गेल तँ वक्‍ताक के कहए सेसर अनुभवी वक्‍ता बनबे करब। तहि‍ना तँ हि‍नको (पति‍क) जि‍नगी तेहने रहल छन्‍हि‍। तहूमे समाज तेहन लाइसेंस दऽ देने छन्‍हि‍ जे साले-साल थोड़े रि‍नुअल करबए पड़तनि‍, ताजि‍नगीक लेल बनि‍ गेल छन्‍हि‍। आँखि‍ उठा घटक काकापर देलनि‍ तँ देखलनि‍ जे मुँह धुआँ केने लटकौने छथि‍ आ जहि‍ना कोयलाक धुआँमे चमकैत बि‍जली बनैत तहि‍ना उपदेश झाड़ि‍ रहल अछि‍। मन रोषा गेलनि‍। घरे परि‍वारक लोक ि‍कअए ने होथि‍ मुदा गलत गलत छी तहि‍ना सहि‍यो तँ सही छिहे। गल्‍तीक कोनो पारावार छै रावण जकाँ लाख-सबा लाख धि‍या-पुता  जहि‍ना त्रेतामे छलै, जे घटि‍ कऽ द्वापरमे सय-सैकड़ापर चलि‍ एलै, तहि‍ना ने अखनो अछि‍। तहूमे कलयुग छी। पापेक युग। देवतो सभ पड़ा कऽ उनीकुटी चलि‍ गेल छथि‍। जाए तँ चाहलनि‍ समुद्र दि‍स मुदा भोर होइते लाजे सभ रस्‍तेमे रहि‍ गेला। रोषाएल रेखा झपटि‍ कऽ बजलीह-
बौआ, अहीं सभ ने सर-समाज छी। जेहने समाज रहैए तेहने लोक काजो-उदेम करैए।
रेखाक बात सुनि‍ सुनरलालक मनमे पंचक एहसास भेलै। पंचक एहसास होइते अपन बात बि‍सरि‍ गेल। बि‍सरि‍ गेल बेटाक जहलक उपाए। दमकलक चक्का जकाँ पहि‍याक रूप बदलि‍ एक सूरे मुड़ी डोलबैत बाजल-
हँ, से तँ छि‍हे। केकरो कटने समाज कटै छै। तेहेन लस्‍सा बनल छै जे कतबो कटतै तैयो सटि‍ते रहतै।
नइ बुझलौं अहाँक बात?” रेखाक मुँहसँ नि‍कलल।
जहि‍ना नमहर नागड़ि नमहर जानवरक पहि‍चान छी तहि‍ना ने काजक नागड़ि‍ मनुक्‍खोक होइ छै। जँ से नै तँ रावणसँ पैघ आसन हनुमान कथीक बनौलनि‍। ओही नागड़ि‍क बले ने सौंसे लंका जरा देलनि‍ आ अपना कि‍छु ने भेलनि‍। बूझल-बि‍नु बूझल दुनि‍याँमे केहेन हएत जे नै हएत। कोनो प्रश्नक उत्तर दुनूक एक भऽ सकैए। मुदा होइ छै। बुझि‍नि‍हार संग बुझि‍नि‍हार रहैत तँ बि‍नु बुझि‍नि‍हारोक संग तँ बि‍नु बुझि‍नि‍हार हेबे करतै। जइ काजमे सुनरलाल अपने ओझराएल तही काजक ओझरी छोड़बैक भार लैत बाजल-
भौजी, अहाँ-हमरामे कोन भेद अछि‍। नीक-अधला सभ गप तँ ि‍दओर-भौजीमे होइते अछि‍। से कि‍ कोनो आइये अछि‍ आकि‍ अदौसँ आबि‍ रहल अछि‍। देखि‍यौ, जहि‍ना करौटन फूलक पत्ता-पत्तामे गाछ पैदा करैक शक्‍ति‍ अछि‍, तहि‍ना ने समाजोक बनबै-मेटबैक दुनू शक्‍ति‍ छै।

सुनरलालक वि‍चारमे सूर-मे सूर मि‍लबैत रेखा बजलीह-
बौआ, पहि‍ने कनी भैयाकेँ बुझा दि‍अनु जे रूसि‍ कऽ जे भगलाह से कोन अनचि‍त बात कहलि‍यनि‍।
नमहर झगड़ा देखि‍ सुनरलालकेँ नमहर पंचक एहसास भेल। जहि‍ना नमहर लबि‍ जाइत, तहि‍ना सुनरलाल लबैत बाजल-
भौजी, केना कहबनि‍ हम। सँए-बहुक झगड़ामे लबड़े टा पड़ैए। अहाँकेँ कहलौं से तँ भाइयो-सहाएब सुनबे केलनि‍।

जहि‍ना एक चुरुक जलसँ सौंसे घरक वस्‍तु पवि‍त्र बनि‍ जाइत तहि‍ना घटक काका अपन गनजन सम्‍हारैत बजलाह-
हौ सुनरलाल, जहि‍ना तूँ छोट भाए भेलह तहि‍ना ओहो घरेवाली भेलीह। तँए बजैमे थोड़े कोनो धड़ी-धोखा हएत। जुआनमे मौगी घरसँ पड़ाइत अछि‍ आ उमेर बढ़ने पुरुख। तँ तोहीं कहह जे कोन गल्‍ती केलौं।
मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
से के कहैए जे अहाँ अधला केलौं।
पाशा बदलैत देखि‍ रेखा बजली-
बौआ, नौंए-कौंए कऽ भगवान एकटा बेटा देलनि‍। अपने दुनू परानी ने सोचब जे केहेन पुतोहु एने घरक गाड़ी ससरत। सि‍नेमा-नाटक जकाँ थोड़े मनुक्‍खक जि‍नगी क्षणे-झण बदलि‍ सकैए आकि‍ क्षणे-झण आगू-पाछू भऽ सकैए।
रेखाक बात सुनि‍, मुड़ी डोलबैत सुनरलाल बाजल-
हँ, से तँ होइते छै। अहीं कहू भौजी, केकरा चलैत हमहीं एते तबाह छी। उएह छोड़ा माने हमरे बेटा एहेन कि‍रदानी कि‍अए केलक। जहि‍ना बि‍आह भेने अनेरे लोक घटक बनि‍ जाइए तहि‍ना कि‍अए बनल। नइ बनल तँ जहलमे कि‍अए अछि‍।
रेखा- अहाँ अपनापर नै लि‍औ। बेटा केलहा काजक दोखी बाप नै होइए मुदा माए-बाप.....। काल्हि‍ भऽ कऽ जे कोनो दोख लगा बेटाकेँ कहबै तँ ओ नै मुँह दुसैत कहत जे केकर केलहा छि‍ऐ। जहि‍ना अपन बेटीकेँ पोसि‍-पािल बि‍आह करै छि‍ऐ तहि‍ना ने सभ करैए। मुदा घरक मि‍लानी जँ नै करबै तखन पढ़ल सुग्‍गा बौक नै हेतै।
पत्नीक बात सुनि‍ घटक काका सहमलाह। पाछू घूमि‍ तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे कते घूर-बहूर काज भेल अछि‍। र्इहो हएत। यएह ने दस गोटेमे बजलौं। कोनो कि‍ इएह टा बात बजलौं। सदि‍खन तँ एहेन-एहेन बात चलि‍ते रहैए। बड़ हएत तँ बाजब जे पत्नीक वि‍चार नै भेलनि‍। तहूमे के एहेन छथि‍ जे पत्नीक बात काटि‍ सकै छथि‍।
मन झि‍लहोरि‍ खेलाए लगलनि‍। जहि‍ना पघि‍लल कटहर गाछसँ खसि‍ते छहोछि‍त भऽ उड़ि‍ जाइत तहि‍ना घटक काकाक मन छहोछि‍त भऽ गेलनि‍।
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