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Thursday, June 7, 2012

साझी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


गामक पहि‍ल घटना तँए गाममे वि‍चि‍त्र हलचल भोरेसँ उठि‍ गेल। उठबो केना ने करैत, अखन धरि‍ तँ इति‍हासो यएह कहलक आ समाजो सएह। मुदा घटना बदलने इति‍हासक रस्‍तो बदलि‍ जाइ छै आ वहि‍ला समाज सेहो वाह पकड़ै छै। वि‍चि‍त्र हलचलक कारण भेल वि‍चि‍त्र घटना। वि‍चि‍त्रक कारण भेल चि‍त्र-वि‍चि‍त्र बनि‍ गेल। तँए गामक सबहक मनकेँ  कुचि‍त्र-सुचि‍त्र बनबए लगल। जते जेकर रंग-गाढ तेहेन तेकर चि‍त्र गढ़गर। तँए एक रंगाह नै भेने आरो बेसी हलचल। मनक प्रेम तँ तखन ने बढ़ै छै जखन अनुकूल प्रेमी भेटै छै। प्रेमि‍यो कि‍ कोनो एक्के रंगक होइए जे ओहीपर नजरि‍ पड़तै आ नजरि‍ पड़ि‍ते धारक पानि‍ जकाँ मोटाए लगतै। जँ से नै हेतै तँ जेहो छै तइमे सँ कि‍छु रौदमे उड़तै, कि‍छु धरती पीतै आ कि‍छु लोको घटौतै। जहि‍ना बि‍लंबसँ चलैवाली गाड़ी टीशने-टीशन वि‍लमैते चलै छै, भलहिं कुमेल भेने रस्‍ता-बाटमे छोड़ि‍ आन-आन दौड़ैत चलैए। ओना गामक वि‍चि‍त्र घटना देखि‍ सबहक मन उड़ैत मुदा जि‍नगीक काज पकड़ि‍-पकड़ि‍ हटबैत गेल। कतबो हटल तैयो तँ बाकि‍ये रहि‍ गेल। सोलहन्नी नहि‍ये हटल। नहि‍ये हटल तँ कि‍ हेतै? आधासँ बेसी तँ रहि‍ये गेल, तँए बहुमते सँ ने समाज देश सभ चलै छै। तखन गामेमे कोन उनटन भऽ गेलै जे गाम-समाज नै चलतै। लेकि‍न गामो तँ सोलहन्नी नहि‍ये मरि‍ गेल जे कि‍यो नामो लइबला नै रहतै। से तँ अछि‍ये। सेहो तेहेन अछि‍ जे हजार कानकेँ एक्के बेर भरि‍ देत। जहि‍ना पूजा करब काज छी तइसँ कि‍ हल्‍लुक काज फूल तोड़ब छी। जखन नै छी तखन कि‍अए दुनू दू रंग हेतइ।
चौबट्टी परक इनारक चलती सभसँ बेसी भऽ गेल। नवकी पनि‍भरनी सभ थैर-गोबर छोड़ि‍-छोड़ि‍ पहि‍ने पानि‍ये भरए इनारपर पहुँचि‍ गेल। मुदा तँए कि‍ पुनि‍यो दादी आ घुरनि‍यो दीदी ओहने अगुताएल जे पहि‍ने पानि‍ये भरए पहुँचती। एक तँ बेटा-पुतोहुकेँ डाकनि‍ देतीह जे ऐसँ नि‍पुत्रे नीक। ने तँ ऐ चौथापनमे अपने घैल उठाबी। तहूमे नवका आगि‍ गाममे पजड़ल। माघमे अनको धधगड़ घूर भेटए तँ ओकरा छोड़ि‍ देब बेवकुफि‍ये छी, भलहिं अपनो धि‍या-पुता कि‍अए ने घरमे कठुआए। ओना दुनू गोटेक घर इनारसँ बहुत हटल नै मुदा लग-दूर कोन बात भेल? लगोक बाटमे दसटा गप करैबला भेटल तँ बेसि‍ये समए लागत आ नहि‍ये भेटने दूरो लग भऽ जाइ छै। सएह दुनू गोरे, पुनि‍यो दादी आ घुरनि‍यो दीदीकेँ भेलनि‍। जबाबदेहि‍यो तँ कम नहि‍ये छन्‍हि‍ अनकर बातसँ ऊपर उठा अपन बात नै रखती तँ पुनि‍या दादी आ घुरनी दीदी कथीक। तइसँ नीक तँ नवकी जे कमसँ कम अपनो हि‍त-अपेछि‍त रसगर बात बजै छथि‍।
संजोग तँ संजोगे छी। चाहै काज करैक संजोग हुअए आकि‍ भोज खाइक, नीके होइ छै। भलहिं ओ चालि‍ बदलि‍ कुसंजोगे कि‍अए ने भऽ जाए। पूबसँ पुनि‍या दादी आ दछि‍नसँ घुरनी दीदी पहुँचली। पुनि‍या दादी घुरनी दीदीसँ जेठ। तँ जेठक आदर करैत घुरनी दीदी इनारपर चढ़ैसँ पहि‍ने स्‍वागत करैत पुनि‍या दादीकेँ टूसि‍ देलखि‍न-
जहि‍ना पावनि‍ दि‍न परि‍वार हड़बड़ा जाइत तहि‍ना दादीकेँ देखै छि‍अनि‍?”
अपन स्‍वागत देखि‍ पुनि‍या दादीक मन खुशीसँ खुशि‍या गेलनि‍। टुटल दाँतक मुँहसँ मुस्‍की दिअए लगलखि‍न। अखन धरि‍ पुनि‍या दादीकेँ धेनहि‍ जे गामक बात हमरा छोड़ि‍ दोसर बुझबे ने करैए। भलहिं सात पुतोहु हाथे मारि‍-गारि‍ कि‍अए ने खाथि‍ होथि‍। पहि‍ने तँ आँखि‍ उठा इनार दि‍सि‍ तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे जि‍ज्ञासु बेसी अछि‍। घुरनी दीदी दि‍स देखैत बजली-
गै घुरनी, कहुना भेलेँ ते बेटि‍ये भेलेँ, आइ-काल्हि‍क नव-नौतुक हमर-तोहर बात सुनतौ। देह देखि‍ सभ अपने-मोटाएल अछि‍। मुदा तोरा नै कहबो से केहेन हएत?”
जि‍ज्ञासा भरैत घुरनी दीदी मलसारि‍ दैत बाजलि‍-
कोनो तेहेन गप छन्‍हि‍ दादी।
पुनि‍याकेँ सभ दादी कहैत आ घुरनीकेँ दीदी। ओना उमेरो हि‍साबसँ उचि‍ते छलैक। मुदा दुनू गामक पुतोहुए बनि‍ गाम आएल रहथि‍। दीदीक आदरसँ दादी आरो अह्लादि‍त होइत। जहि‍ना संज्ञाक संग सर्वनाम, वि‍शेषण आदि‍ सभ अगुआ-पछुआ बनि‍ रथकेँ खि‍ंचैत तहि‍ना दादीक मनमे सेहो उठलनि‍। सोझे बजैसँ नीक बूझि‍ पड़लनि‍ जे अलंकार-छन्‍द बनबे कि‍अए कएल जखन ओकर बेवहारे नै हेतै। अलंकार शैलीमे गामक चौहद्दी बान्‍हि‍ बाजए लगलीह-
एहेन अतहतह ते एक गामक के कहए जे परोपट्टामे कतौ ने देखै छी, जे.......।
दादीकेँ ि‍वह्वल होइत दीदीक जि‍ज्ञासा तेज भेलनि‍। लपकि‍ कऽ पुछलखि‍न-
से की, से की दादी?”
जहि‍ना, आमक गाछक डारि‍-गाछ पाकल आम देखि‍ झमाड़ि‍-झमाड़ि‍ डोला पाकल आम खसबए चाहैत, मुदा डोलौनि‍हार ई नै बूझि‍ पबैत जे पाकले खसत आ काँच नै खसत। हँ एहनो होइ छै जे बेसी पाकलक डंटीक रस सूखने असानीसँ खसैत मुदा जे डमहा पाकल छै ओ तँ ओहि‍ना छै जहि‍ना डमहा काँच होइ छै। तहि‍ना दादीक मन छगुन्‍तासँ छनकैत जे एहेन तँ कतौ ने भेल से गाममे केना हएत? मुदा भऽ तँ गेल।
भेल ई जे ज्ञानचन काकाकेँ तीन बेटा आ दू बेटी छन्‍हि‍। तीनू बेटा पढ़ि‍-लि‍खि‍ कऽ आने जकाँ नोकरी करए गाम छोड़ि‍ देलनि‍। भीन भऽ गेलखि‍न कि‍ साझि‍येमे से नै कहि‍। मुदा ज्ञानचन काकाकेँ एको पाइ मदति‍ नै केलखि‍न। ओना तीनू भाँइ उपरा-उपरी पढ़लो-लि‍खल आ नीक नोकरि‍योमे। पहि‍ल बेटी डाॅक्‍टर पति‍क संग सेहो बाहरे रहै छथि‍न। छोट बेटी वैधव्‍य भऽ गेलखि‍न। असमए बेटीकेँ वि‍धवा भेने ज्ञानचन काकाकेँ जबरदस धक्का मनमे लगलनि‍। अपनोसँ बेसी काकीकेँ लगलनि‍। एहेन कोन माइक छाती हएत जे अपने सुहागि‍न आ बेटीकेँ वैधव्‍य देखए चाहत। मुदा उपाइये की? दुखक तँ सभसँ पैघ दवाइ नोर छी। जते नोर झड़त तते भारी दुख मेटाएत।
जहि‍ना रहीक संग मक्‍खन, छाहली मोहि‍ आगि‍पर लोहि‍यामे चढ़ा घी बड़कौल जाइत से दादीकेँ बड़कौले ने होन्‍हि‍ तँए क्षुब्‍ध रहथि‍। बजलीह-
आब तँ अपनो उमेर ढेरी भेल तइपर नाना जनम एहेन काज नै देखने छलौं से गाममे देखै छी।

दादीक बात सुनि‍नि‍हारकेँ आरो जिज्ञासा बढ़ा देलकनि‍। एक्के-दुइये सभ पनि‍भरनी एक्के बरे दादीपर जोर देलकनि‍। थकथकाइत दादी बजए लगलीह-
ज्ञानचनक तीनू बेटा रूपचन, गुनचन वि‍चारचनकेँ जखन नोकरी छुटलनि‍ तखन गाम आबि‍ साझी भऽ गेलखि‍न।
दादीक उत्तरसँ संतुष्‍ट नै भऽ दादीक जबाबसँ दीदीकेँ संतोष नै भेलनि‍। पूरब प्रश्न केलखि‍न-
तइसँ पहि‍ने भीन भेल छेलखि‍न?”
दीदीक प्रश्नसँ दादीकेँ क्रोध उठलनि‍ बजलीह-
जेना लोक केबाड़ चौकी काटि‍-काटि‍ बॅटबारा करैए तेना होइतै, तखन तँ बुझि‍तहक। आकि‍ मनुखकेँ इशारा होइ छै। मझि‍ला बेटा अपन बेटीक बि‍आहमे चालीस लाख रूपैया खर्च केलकै, मुदा छोटका भाएकेँ पाइ नै देलकै तँ नून-तेल लगा केलक। कि‍ यएह सझि‍या भैयारी छि‍ऐ।
दीदी- तखन तँ कमाइयो ने सबहक सभ रंग हेतै। ओ केना मि‍लाओत।
दादी- सएह ने देखहक। जेकरे बेसी दै सएह पहि‍ने कहलकै जे हमरा एत्ते अछि‍। सभ मि‍ला कऽ परि‍वार चलौ।

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