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Thursday, June 7, 2012

हारि‍-जीत :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


चारिमे दिन दुनू प्राणी सोमन विचारलक जे आब ऐ गाममे जीयब कठिन अछि तेँ गामसँ चलिये जाएब नीक हएत। दुनियाँ बड़ी टा छैक। जतए जीबैक जोगार लागत ततए रहब। सामान सभ बान्हि, करेजपर पाथर राखि गामसँ जेबाक लेल दुनू प्राणी तैयार भऽ गेल। भुखल पेट! सुखाएल मुँह! निराश मन! ओसारपर बैसल दुनू प्राणीक आँखिसँ दहो-बहो नोर टघरैत रहै! दुनियाँ अन्हार देखि, उठैक साहसे नहि होइत छलै। सोमनक मनमे होइत जे की छलौं आइ की भऽ गेलौं? रंग-बिरंगक विचार, पानिक बुलबुला जकाँ दुनूक मनमे उठैत आ विलीन भऽ जाइत! आगूमे मोटरी राखल रहै। जहिना सीमा परहक सिपाही छातीमे गोली लगलासँ घाइल भऽ जमीनपर खसि छटपटाइत, तहिना दुनू प्राणी सोमन दुखक अथाह समुद्रमे डुबैत-उगैत। भिनसरसँ बारह बजि गेलैक।
सहरसा जिलाक गाम मैरचा। पूबसँ कोसी आबि गामक कटनिया करए लागल। गर लगा-लगा गामक लोक जहाँ-तहाँ पड़ाए लगलाह। ओना सरकार पुबरिया बान्हक बाहर पुनर्वासक व्यवस्था सेहो करैत रहए मुदा ओइसँ बोनिहारकेँ की सुख हएत? ओकरा सबहक तँ रोजगारो छिना गेल।
पत्नी, बेटा-पुतोहुक संग फुलचनो पंडित गाम छोड़ि पछिम मुँहे बिदा भेलाह। घराड़ी छोड़ि अपना एक्को बीत जमीन-जाएदाद नहि छलनि। मुदा अपन व्यवसाएक सभ लूरि छलनि तेँ मनमे चिन्तो ओतेक नहि रहनि। चिन्ता मात्र रहनि ठौर भेटबाक। कखनो-कखनो मनमे होन्‍हि‍ जे अपन गाम तँ बुझल- गमल अछि, आन गाम केहन होएत केहन नहि? मुदा उपाइये की? जीबैक लेल तँ मनुष्य सभ किछु करैत अछि। पछबरिया बान्हसँ मील भरि पाछुये रहथि आकि बान्हपर नजरि पड़लनि। बान्ह देखिते आशा जगलनि। किएक तँ ओइ बान्हक पछिम कोनो धार-धुर नहि अछि। मुस्कुराइत फुलचन पत्नीसँ पुछलक- “भगवान रामक खिस्सा बुझल अछि?”
फुलचनक मुँह दिस देखि मुनिया बजलीह- “बहुत दिन पहिने सुनने छेलौं, आब ओते धियान नै अए।
“जहिना अपना सभ गाम छोड़ि कऽ जा रहल छी तहिना ओहो सभ गेल रहथि। अपना सभकेँ तँ बटखरचो अछि, हुनका सभकेँ तँ सेहो नै रहनि।
तइ बीच फुलचनक पुतोहु कपली सासुक बाँहि पकड़ि पाछू मुँहे घुमा कहलक- “ऐँड़ीकेँ डोका काटि देलक। खुन बहैए। कनी कतौ बैसथु जे लत्ता बान्हि देबै।
ऐँड़ी देखि मुनिया कहलखि‍न- “कनियाँ, कतौ गाछो ने देखै छिऐ जे कनी सुस्ताइयो लैतौं। हमरो पियासे कंठ सुखैए।
सासु-पुतोहुक बात सुनि फुलचन बाजल- “कनियाँ, जानिये कऽ तँ दैवक डाँग लागल अछि, तखन तँ कहुना कऽ बान्ह धरि चलू। एक तँ रौदाइल छी तइपर सँ जत्ते काल अँटकब तते रौदो बेसिये लागत।
बान्हपर पहुँचते सभ निसाँस छोड़लनि। बान्हक पछिमसँ एकटा आमक गाछ रहै। छाहरि देखि सभ कि‍यो गाछ तर पहुँचि‍ गेलाह। एकटा बटोही पहिनहिसँ तौनी बिछा पड़ल छल। कने काल सुस्तेलाक बाद बटोहीकेँ फुलचन पुछलखिन- “भाय, तमाकू खाइ छह?”
जेबीसँ चुनौटी निकालि फुलचनक आगूमे फेकैत ओ बटोही बाजल- “कोन गाम जेबह?”
कोन गामक नाओं सुनिते फुलचनक हृदए सिहरि गेलनि। मिरमिरा कऽ कहलखि‍न- “भाय, कोन गाम जाएब तेकर तँ ठेकान नहि अछि। मुदा मैरचासँ एलौंहेँ। धारमे गाम कटि रहल अछि। तेँ गाम छोड़ि जा रहल छी। जइ गाममे कुम्हार नञि हएत तइ गाममे बसि जाएब।
कुम्हारक नाओं सुनिते बटोही उठि कऽ बैसैत कहलखिन- “हमरो गाममे कुम्हार नै अछि। चलह, हमरे गाममे रहि जइहह।
आशा देखि सोमन पुछलकनि- “ऐठामसँ कत्ते दूर अहाँक गाम अछि?”
“अढ़ाइ कोस। हमहूँ बहि‍नि‍ये ऐ ठीनसँ अबै छी। गामे जाएब।
बेर झुकैत पाँचो गोटे बिदा भेलाह। लछमीपुर पहुँचते बटोही रतीलाल फुलचनकेँ कहलक- “भाइ, यएह हमर गाम छी।
गाछी बँसबाड़ि देखि फुलचन पंडित मने-मन खुश! मने मन आकलन कएलनि जे जारनक अभाव कहियो नहि हएत। गाममे प्रवेश करिते बीघा दुइयेक पोखरि देख फुलचन मने-मन तेँइ कएलनि जे नहि कतौं रहैक ठौर भेटत तँ पोखरिक महार तँ अछि। पोखरिक बगलेमे सभ क्यो रुकि जाइ गेलाह। रत्तीलाल आगू बढ़ि गेलाह।
जहिना गाममे नट-किच्चककेँ अबिते धिया-पुता देखए अबैत तहिना फुलचनो सभ तुरकेँ देखए गामक धिया-पुता आबए लागल। गाममे कुम्हार अएबाक समाचार पसरल। थोड़े कालक बाद फुलचन पंडित बेटा सोमनकेँ हाथ पकड़ि कहलखि‍न- “बौआ, तूँ सभ एतै बैसह। हम कने गामक बाबू-भैया सभसँ भेँट केने अबै छी।
कहि फुलचन गाम दिस बिदा भेलाह। इजोरिया पख रहै तेँ सूर्यास्त भेलोपर दिने जकाँ लगै। जाधरि फुलचन घुरि कऽ अएबो नहि कएलाह तहिसँ पहिनहि गामक पनरह-बीस टा नवयुवक पहुँचि‍ गेल। सबहक मनमे नव उत्साह रहै। किएक तँ अखन धरि जे अभाव कुम्हारक गाममे रहल ओ पूर्ति भऽ रहल अछि। जहिना आवश्यकताक वस्तु पूर्ति भेलासँ किनको मनमे खुशी होइ छै, तहिना फुलचनक अएलासँ गामक लोकक मनमे खुशी रहै। पोखरिसँ थोड़े हटि कट्ठा तीनियेक परती छलै। सभ युवक विचारलक जे ओइ परतीपर बसाओल जाए। ताधरि गाम घुि‍र कऽ फुलचनो अएलाह। फुलचन दुनू बापुत परती देखलनि। परती देखि सोमन पिता दिस घुमि बाजल- “कुम्हारक बसै जोकर परती अछि, मात्र पिऐबला पानिक दिक्कत अछि।
तइपर पिता फुलचन पंडित जबाव देलनि- “अखन ने पानिक दिक्कत अछि मुदा जखन अपने इनार खुनैयोक आ पाटो बनबैक लूरि अछि तखन दिक्कत किए रहत?”
घराड़ी पसन्द होइते हो-हा करैत युवक सभ बाँस काटए बिदा भेलाह। जे जेहन बाँसबला, तिनकामे तइ हिसाबसँ बाँस काटि पच्चीसटा बाँस जमा केलनि। इहो दुनू बापुत संग दैत रहथिन। हाथे-पाथे सभ घरक काजमे जुटि गेलाह। रातिक बारह बजैत-बजैत तेरह हाथक घर ठाढ़ भऽ गेलैक।
प्रात भेने दुनू बापूत विचारलनि जे एक तँ नव गाम, तहूमे नव बाँस। काज तँ बहुत अछि। तेँ काजकेँ सोझरा कऽ चलए परत। रहै जोकर घर भलहि‍ं नहि भेल मुदा दिन कटै जोकर तँ भइये गेल। घर-आंगन बनबैसँ लऽ कऽ कारोबार धरिक काजमे हाथ लगबए पड़त। फुलचन सोमनसँ पुछलखिन- “बौआ, मैरचासँ कोन-कोन समान अनने छह?”
सोमन कहलक- “बाबू, सोचलौं जे आन गाममे लगले सभ कुछ थोड़े भऽ जाएत। तेँ चाक बनबैक शिला, तख्ता, फट्ठा, जौर, बेलक कील सभ किछु अनने छी।
खुशीसँ गद-गद होइत फुलचनक मुँहसँ निकलल- “बाह-बाह। चाकक ओरियान तँ भइये गेलह। आरो की सभ अनने छह?”
“चकैठ, हथमैन, पिटना, पीरहुर, मजनी, छन्ना सेहो अनने छी।
मुस्कुराइत फुलचन बाजल- “काजक तँ सभ किछु अछिए। आइए चाको बनबैमे हाथ लगा दहक। एक गोरे पात खरड़ि अनिहह। एक गोरे घरक लेबिया-मुनियामे हाथ लगा दहक। हमरा तँ समचे सभ ओड़िअबैमे समए बीत जेतह।
दस दिनक मेहनतिसँ रहै जोकर एकटा घर बनि गेलै। चाको सुखा गेल। जारनोक ओरियान भऽ गेलैक। चाक गारि, माटि बना सोमन चाक लग बैसल। जहिना उद्योगपतिकेँ नव कारखानाक उद्घघाटन दिन मनमे खुशी रहै छै, आइ तहिना सभ प्राणी फुलचनोकेँ रहनि। हँसैत फुलचन पंडित बेटा दिस देखैत बजलाह- “बौआ, जते सामान बनबैक लूरि अछि, सभ सामान बना, पका कऽ खरिहानमे पसारि, सौंसे गौवाँकेँ हकार दऽ देखा देबनि। जिनगीक परीक्षा छी।
आबा उघारि चारु गोटे खल लगा-लगा सभ वस्तु- कूड़, हाथी, ढकना, कोशिया, दीप, पाण्डव, गणेश, लक्ष्मी, मटकूर, छाँछी, डाबा, घैल, सामा-चकेबा, पुरहर, अहिबात, कोहा, फुच्ची, सरबा, सीरी, भरहर, आहूत, धुपदानी, पातिल, तौला, मलसी, बसनी, उन्नैसमासी, कोही, लाबनि, कलश, कराही, रोटिपक्का, अथरा, कसतारा, लग्जोरी, धिया-पुता खेलैक जाँत, नादि, लोइट, माँट, टारा, टारी, बधना इत्यादि चारि-चारि खल पावनिक, बिआहक, उपनयनक, श्राद्धक, पोखरिक यज्ञ-कीर्तनक आ घरैलू काजक वस्तु सभ अलग-अलग सजा कऽ राखल। फुलचन दुनू बापूत जा गौवाँकेँ देखैक हकार देलनि।
चारु प्राणी फुलचनकेँ अपना लूरिक ठेकान नहि छलन्हि ि‍कऐक तँ सभ काजक लेल एकबेर सभ समान कहियो नहि बनौने छलाह। मुदा आइ सभटा बना सभकेँ ई विश्वास भऽ गेलनि जे जहिना बड़का व्यापारिक दोकानमे अनेको किस्मक सौदा रहै छै तहिना तँ हमरो अछि!
समए बीतैत गेल। अधिक बएस भेने दुनू प्राणी फुलचन शरीरसँ कमजोर हुअए लगलाह। सोमनोकेँ एकटा बेटा, एकटा बेटी भेलै। परिवार बढ़लै। खरचो बढ़लै।
समए आगू मुँहे ससरैत गेल। दुनू प्राणी फुलचन मरि गेलाह। ....बेटीक बियाह सेहो सोमन कऽ लेलक। सोमनक बेटा रामदत दुर्गापूजा देखए मात्रिक गेल। ओतहिसँ बौर गेल। माटिक बरतनक जगह द्रव्यक बर्तन सभ परिवारमे धीरे-धीरे बढ़ए लगलै। जइसँ माटिक बर्तनक मांग कमए लगल। घटैत-घटैत माटिक बरतन परिवार छोड़ि देलक। रहि गेल मात्र पावनि, उपनयन, बि‍आह आ श्राद्ध।
अपन घटैत कारोबार आ टूटैत परिवारसँ दुनू प्राणी सोमन चिन्तित होअए लागल। आगूक जिनगी अन्हार लागए लगलै। कोनो रस्ते नहि देखाइ। सोचैत-बिचारैत सोमनक नजरि एकटा काजपर पड़लै। खपड़ा बनौनाइ। खपड़ापर नजरि पहुँचते मुस्कुराइत सोमन पत्नीकेँ कहलक- “एकटा बड़ सुन्दर काज अछि। कमाइयो नीक आ काजो माटियेक।
अकचकाइत पत्नी कपली पुछलकनि- “कोन काज?”
सोमन- “खपड़ा बनौनाइ।
कने काल गुम रहि कपली बाजलि- “थोपुआ खपड़ा तँ हमहूँ बना सकै छी मुदा नड़िया नै हएत।
जोर दैत सोमन बाजल- “हँ, हएत! चाक परक भलहि‍ं नञि हूअए मगर मुंगरी परक किअए ने हएत।
“हँ, से तँ हएत।
दुनू प्राणी खपड़ा बनबए लगल। लोककेँ बुझल नहि रहै तेँ अगुुरबार क्यो खोज नहि केलक। मुदा जखन एकटा भट्ठा लगौलनि तखन गामक लोक देखलखिन। खपड़ो नीक, पाको बढ़ियाँ। गिनतियेक हिसाबसँ खपड़ा बेचए लगल। बढ़िया आमदनी हुअए लगलनि।
बढ़िया कारोबार चलल। मुदा सिमटिक एस्बेस्टस अबिते खपड़ाक मांग कमए लगल। खपड़ा बनौनिहारकेँ मंदी आबि गेलनि। ओना सोमनक परिवारो छोट रहै। मात्र दुइये गोटे परिवारमे रहै। मुदा तैयो गुजरमे कटमटी हुअए लगलै। फेर जिनगी भारी हुअए लगलै।
हँसी-खुशीसँ जीवन-यापन करैबला परिवार एहेन स्थितिमे पहुँचि गेल जे साँझक-साँझ चुल्हि नहि पजरैत। दोसर कोनो लूरि नहि। अपन खसैत जिनगी देखि कपली पतिक मुँह दिस तकैत बाजलि- “एना कते दिन दुख काटब? जखन हाथ-पएर तना-उताड़ अछि आ काज करए चाहै छी तखन की अही गामकेँ सीमा-नाङरि छैक? चलू ऐ गामसँ।
पत्नीक विचार सुनि सोमनक आँखि नोरा गेलै। किछु बजैक हिम्मते नहि
होइ। मने-मन सोचए लागल जे जइ लूरिक चलते अखन धरि जीलौं ओ लूरि
आब मरि रहल अछि। दोसर लूरि तँ अछि नहि। की करब? असमंजसमे पड़ल पतिकेँ देखि कपली बजलीह- “दुनियाँ बड़की टा छै। जतै पेट भरत ततै रहब। जहिना मैरचासँ आबि लछमीपुरमे एते दिन रहलौं तहिना ऐ गाम छोड़ि दोसर गाममे रहब।
पत्नीक विचारसँ सहमत होइत सोमन बाजल- “अहाँक विचार मानि लेलौं। ऐ गामसँ चारिम दिन चलि जाएब। बीचमे जे दू दिन बाँचल अछि तइमे अहूँ आ हमहूँ गाममे टहलि कऽ सभकेँ जना दिअनु जे जहिना एक दिन हँसी-खुशीसँ छाती लगेलौं तहिना आब जा रहल छी। चुपचाप गामसँ चलि जाएब नीक नै हएत। गामसँ तँ चुपचाप ओ भगैत अछि जे अधलाह काज केने रहैत अछि।
दुआरिए-दुआरिए दूनू प्राणी गाममे घुरि सभकेँ कहि देलकै- “गामसँ चलि जाएब।
प्रात होइते दुनू प्राणी घरक सभ सामानक मोटरी बान्हि ओसारपर रखलक। भुखल पेट! सुखाएल मँुह! निराश मन! तेँ आगू बढ़ैक डेगे नै उठैत।
ओसारापर बैसल एक-दोसराक मँुहो देखैत आ कनबो करैत। दुनूक करेज छहोछीत भऽ गेल।
सबा बारह बजैत। टहटहौआ रौद। हवा शान्त। साफ मेघ। घामसँ तर-बत्तर, माथपर मोटरी, हाथमे वी.आइ.पी. बैग नेने सोमनक बेटा रामदत आंगन पहुँचल। माए-बापक दशा देखि छाती काँपए लगलैक। मेह जकाँ आगूमे ठाढ़। सोगे दुनूक आँॅखि बन्न। बन्न आँखिसँ नोर टघरैत! दुनू अधीर। करेजकेँ थीर करैत रामदत बाजल- “बाबू।
बाबू शब्द कानमे पड़िते दुनू बेकतीक आँखि खुजलै। मुदा नोर टघरिते रहै। किन्तु आब नोरक रूप बदलए लगल। अखन धरि जे नोर सोगसँ खसैत ओ सि‍नेहमे बदलि गेलै। अकचकाइत सोमनक मुँहसँ निकलल- “बौआ।
बिचहिमे झपटि कपली बाजलि- “बे ट-ट-अ-आ।
ओसारापर बैग-मोटरी राखि रामदत पिताकेँ गोड़ लगै लए झुकल की तइ बीच कपली उठि कऽ दुनू हाथे पजिया कऽ पकड़ि चुम्मा लैत पुनः बाजलि- “भाग नीक छेलौ बेटा जे हम सभ भेँट भेलियौ, नञि तँ तोँ कतऽ रहितेँ आ हम सभ कतऽ रहितौं.......!
माएकेँ गोड़ लागि रामदत मोटरी खोलि दू किलो भरिक रसगुल्लाक पोलीथिन, किलो रि कटलेट, किलो भरिक बीकानेरी भुजियाक झोरा निकालि, घुसुका कऽ रखलक। दुनू प्राणीक भुखसँ जरल मन रहै। जहिना गाएक गौजुरा बच्चा माएक थन दिस आँखि गड़ा देखैत रहैत, तहिना रसगुल्ला, भुजिया दिस दुनूक नजरि एकाग्र भऽ गेलै। दुनूक लेल नव वस्त्र निकालि फुटा-फुटा रखलक। चमकैत स्टीलक थारी, लोटा, गिलास, बाटी एक भागमे रखलक। चाह बनबैक केटली, कप, छन्ना, आयरन, नारियल तेलक डिब्बा आरो-आरो सामान निकालि चद्दरिकेँ झाड़लक। जहिना चुल्हिक आगिमे उपरसँ थोड़बो पानि पड़लासँ उपर ठंढ़ापन अबै लगैत, तहिना दुनूक नजरि चीज-वस्तु देखि शीतल हुअए लगलै। एकदम स्नानोपरान्तक शीतलता जकाँ! सोमनक शीतल मनसँ मधुर शब्द निकललै- “बच्चा गरमाएल छह। पहिने नहा लएह। तखन मन चैन हेतह।
माए-बापक मँुह देखि रामदत बाजल- “बाबू हमरो भूख लागल अछि। पहिने कनी-कनी खा लिअ। पछाति नहाएब।
कहि रसगुल्लाक पोलीथिनक गिरह खोलि दू बाकुट सोमनक आगू स्टीलक थारीमे आ दू बाकुट कपलीक थारीमे दऽ कटलेट, भुजियाक गिरह खोलि बाजल- “जते मन हुअए तते खाउ। नहाइक कोनो धड़फड़ी थोड़े अछि?”
अपनो मँुहमे रसगुल्ला दैत, बैग खोलि, मनी बैग निकालि रामदत सोमनक आगूमे देलकनि। रूपैया देखि कपलीक मन टिकुली जकाँ पहाड़पर चढ़ि गेल। धरतीकेँ गोड़ लगलनि।
खाइत-नहाइत बेेर टगि गेलै। पछबरिया घरक छाहरि अधा आंगन पसरि गेल। घरक कोनमे जहिना मोथीक पुरना बिछान बिछौल छल तहिना बिछौले रहै। घरसँ बिछान निकालि कपली पछबरिया ओसार लगा बिछौलक। उपरसँ नवका जाजीम बिछौलक। नवका सिरमा रखलक। तीनू गोटे बैसि गप-सप्‍प करए लगलाह। सोमन- “बौआ, तू बौर केना गेलहक?”
मन पाड़ैत रामदत बाजल- “बाबू हम बौरुलौं कहाँ! मामा गाममे मुजफ्फरपुरक छलगोरिया दुर्गाक मुरती बनबैले आएल रहै। ओहो कुम्हारे रहए। तीन गोरे रहै। ओकर छोटका बेटा हमरे एतेटा रहै। ओकरासँ हमरा दोस्ती भऽ गेल। ओकरे संगे चलि गेलियह।
बिचहिमे कपली टपकलीह- “रौ डकूबा, तोरा चिठियो-पुरजी नञि पठौल भेलौ।
अपनाकेँ स्मरण करैत रामदत बाजल- “माए, काज सिखैमे सभ किछु बिसरि गेल रहियौ। तोरो सबहक हालत तँ बँढ़िये रहौ। तखन चिन्ते कथीक करितौं।
सामंजस्य करैत सोमन- “जहिया जे दुख लिखल छल से भोगलौं। यएह तँ भगवानक लीला छि‍यनि‍। कखनो दुख तँ कखनो सुख।
रामदत- “बाबू एहेन दशा भेलह केना?”
बेटाक बात सुनि सोमनक आँखि भरि गेल, उत्तर देलक- “बौआ, अखन धरिक जते लूरि-बुधि‍ छलए से सभ पुरान भऽ गेल। नवका सिखलौं नै।
पिताक बात सुनि रामदत नमहर साँस छोड़ि मुस्कुराइत कहलक- “बाबू, हमरा तँ छुट्टिये नै दैत रहए। बीस-बीस हजार रूपैया मासमे कमाइ छी। तइपर सँ मूर्ति बनबौनिहारक कतार लागल रहैए।
बिचहिमे कपली टोकलकनि- “बेटा, की सभ लूरि छौ?”
मुस्कुराइत रामदत कहए लगलनि- “माए, माटिसँ लऽ कऽ सिमटी धरिक मुरती, नाच-तमाशाक परदा, घर सभमे चित्र सभ बनबैक लूरि अछि।
बेटाक बात सुनि सोमनक अहं जगलै। बाजल- “बौआ, जहन एते कमाइक लूरि छह, तहन नोकरी किए करै छह?”
मुस्कुराइत रामदत कहलकनि- “एते दिन जे नोकरी केलौं ओ नोकरी नञि भेल। साल भरि तँ माटिये सनैमे लागि गेल। साल भरि खढ़ बन्हैमे आ पहिल माटि लगबैमे चलि गेल। तेसर साल मुरती बनबैमे लागल। चारिम साल मुरतीक आँखि बनबैमे लागल। ऐ साल पाँचम बर्ख, गुरु दैछना चुका अएलौंहेँ। आब अपन कारोबार करब। जखने अपन कारोबार हएत तखने ने दू-चारि गोटे सिखबो करत!
अपन मजबूरी देखबैत सोमन कहल- “बौआ, अपन चिन्ता जते शरीरकेँ नै खेलक तइसँ बेसी तोहर खेलक। किअए तँ हरदम मनमे नचैत रहए जे वंश अंत भऽ गेल। जाबे दुनू परानी छी ताबै धरि....। मुदा आइ सबुर भऽ गेल जे जाबे बीटमे बाँसक चढ़न्त रहै छै, ताबे उन्नैससँ बीस होइत जाइ छै मुदा निच्चाँ मुँहे होइते सरसरा कऽ कोपरो सुखए लगै छै। आशा भऽ गेल जे हमरो वंश एकसँ एक्कैस हएत!

बेटाकेँ आधुनिक मुर्तिकार रूपमे पाबि सोमन गद्-गद् भऽ गेल। हृदए अह्लादसँ भरि गेलै! नजरि सहजहि बेटाक नजरिमे गड़ि गेलै। ध्यान बढ़ंत बाँसक बीटमे बिचरण करए लगलै...! मनमे भेलै जे बेटासँ इहो नव गुण सीखत। एखनो ई दुनू व्यक्ति बहुतो काज कऽ सकैए।

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