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Thursday, June 7, 2012

न्‍याय चाही :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



झुनाएल धान जकाँ पचासी बर्खक शंभु काकाकेँ ओछाइन छौड़ैसँ पहि‍नहि‍ मनमे उठलनि‍ जे आब तँ चल-चलाैए छी से नै तँ जि‍नगीक अपन हि‍साब-कि‍ताब दइये दि‍अनि‍, सएह नीक। नै तँ शासनक कोन बि‍सवास केकरो दोख गारा मढ़ि‍ सजा केकरो भेटै छैक। मुदा सोझामे एते तँ जरूर हएत जे अपन बात अपने रखि‍ सकै छी। तइपर जँ नै मानत तँ हमहूँ नै मानबै। लड़ि‍ मरी कि‍ सड़ि‍, शेषे कि‍ बचल अछि‍। जहि‍ना नमहर काजमे समयो अधि‍क लगैत अछि‍ आ छोट काजमे थोर मुदा काज तँ दुनू कहबैत अछि‍। कि‍यो काहू मगन कि‍यो काहू मगन, मगन तँ सभ अछि‍ये। गंभीर प्रश्नमे ओझराएल शंभु काका, तँए मन-चि‍त्त-देह एकबट्ट भेल रहनि‍।
पत्नी कुमुदनीक मनमे उठलनि‍ जे भरि‍सक सूतले तँ ने रहि‍ जेताह। लगमे पहुँचि‍ छाती डोलबैत बजलीह-
अखन धरि‍ किअए बि‍छान पकड़ने छी?”
पत्नीक स्‍वरलहरीमे लहराइत शंभु काका हलसि‍ बजलाह-
अखन धरि‍ यएह बुझै छलौं जे अपने केलहाक भागी कि‍यो बनैए, मुदा....?”
बजैत शंभु काका ओछाइनपरसँ उठि‍ जहि‍ना उगैत सूर्जक दर्शन लोक दुनू हाथ जोड़ि‍ प्रणाम करैत करैए तहि‍ना दुनू हाथ जोड़ि‍ पत्नी-कुमुदनीक आगूमे ठाढ़ होइत बजलाह-
माफी मंगै छी। गल्‍ती भेल अछि‍ मुदा दोसराक गल्‍ती ऊपर मढ़ल गेल अछि‍।
अकचकाइत कुमुदनी, बि‍नु कि‍छु सोचनहि‍ बाजि‍ उठलीह-
से की, से की, एना कि‍अए भोरे-भोर पाप चढ़बै छी।
पाप नै चढ़बै छी जि‍नगीक जे घटल-घटना अछि‍, तइ नि‍मि‍त्ते मांगि‍ रहल छी।
जखन एते कहबे केलौं तखन कि‍अए ने मनो पाड़ि‍ देब। अहाँ तँ बुझि‍ते छि‍ऐ जे बसि‍या भात खेनि‍हारि‍ बि‍सराह होइए मुदा रतुका उगड़ल अन्न फेकि‍ देब नीक हएत।
पतालसँ अबैत बलुआएल पानि‍ जहि‍ना छन-छनाइत पवि‍त्र भऽ अबैत अछि‍ तहि‍ना कुमुदनीक वि‍चार सुनि‍ प्रोफेसर शंभु काकाकेँ भेलनि‍, बजलाह-
अपना दुनू गोटेक एक जि‍नगी ऐ धरतीपर रहल अछि‍। आकि‍ नै?”
हँ से तँ रहले अछि‍। तँए ने अर्द्धांगि‍नी छी।
हमर देहक अर्द्धांगि‍नी छी आकि‍ जि‍नगीक?”
ई बात अहाँ बुझेलौं कहि‍या जे पुछै छी।
पत्नीक प्रश्न सुनि‍ प्रोफेसर शंभु काका सकदम भऽ गेलाह। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे टटको घटना बसि‍या जाइ छै आ बसि‍यो घटना टटका भऽ जाइ छै। ई ि‍नर्भर करैए कारीगरपर। जेहेन कारीगर रहत तेहेन टटकाकेँ बसि‍या आ बसि‍याकेँ टटका बनबैत रहत। खएर जे होउ। पत्नीकेँ पुछलखि‍न-
अपना दुनू गोटे एकठाम केना भेलि‍ऐ?”
एना अरथा-अरथा कि‍अए पुछै छी। जे कहैक अछि‍ से सोझ डारि‍ये कहूँ। एना जे हरसीकार दीरघीकार लगा-लगा बजै छी से नै बाजू। जेकरा नीक बुझबै तेकरा नीक कहब आ जेकरा अधला बुझबै तेकरा अधला कहब। अहाँ लग जे कनी दबो-उनार भऽ जाएत तँ हारि‍ मानि‍ लेब। सएह ने हएत आकि‍ छाउर-गोबर जकाँ छि‍ट्टामे उठा बाध दऽ आएब।

जहि‍ना पोखरि‍क पवि‍त्र जलमे स्‍नान कऽ पूजाक मूर्ति गढ़ि‍ मंत्र पढ़ैत दान कएल जाइत तहि‍ना शंभु काका बड़बड़ाए लगलाह-
जखन हम चौबीस बर्खक रही तखन अहाँ चौदह बर्खक छलौं। दस बर्खक अन्‍तर। आइ धरि‍ कहाँ कतौ देखि‍ पेलौं जे पुरुष-नारीक बीच उमरोक वि‍भाजन भेल। जँ से नै तँ....? जँ एको औरूदे दुनू गोटे जीब तैयो तँ अहाँ दस बर्ख वि‍धबे बनि‍ रहब। ऐ वि‍धवाक सर्जक के? समाजमे कलंकक मोटरी देनि‍हार के? की ई बात झूठ जे जइ घरमे जते कम वस्‍तु रहै छै आगि‍ लगलापर ओतबे कम जरै छै मुदा जइ घरमे अधि‍क वस्‍तु रहै छै, आगि‍ लगलापर जरबो बेसी करै छै। पचास बर्खक तपल-तपाएल जि‍नगीक अन्‍त केना हएत।
दुनू हाथ जोड़ि‍ पत्नीसँ माफी मंगलनि‍। मुदा जहि‍ना बच्‍चाकेँ नव दाँत रहने अधि‍क-सँ-अधि‍क काज लि‍अए चाहैत, नव औजार हाथमे एने अधि‍क-सँ-अधि‍क काजो आ अधि‍क-सँ-अधि‍क समेओ संग मि‍लि‍ बि‍तबए चाहैत तहि‍ना कुमुदनीक सि‍नेह आरो जगलनि‍। बजलीह-
माॅफी-ताॅफी नइ मानब? पति‍ छी तँए पुछै छी। एहन गल्‍ती भेल कि‍अए, से जाबे‍ नै कहब ताबे‍ कि‍छु ने मानब।
पत्नीक प्रश्न सुनि‍ शंभु काका स्‍तब्‍ध भऽ गेलाह। मन कछमछाए लगलनि‍। सत् बड़ कटु होइत अछि‍। मुदा जँ पत्नि‍यो लग सत्यक उद्घाटन नै कऽ सकब तँ दुनि‍याँमे दोसरठाम कइये कतए सकै छी। शम्‍भुकाका साँप-छुछुनरि‍क स्‍थि‍ति‍मे पड़ि‍ गेलाह। एहेन कोनो वि‍चार मनमे उठबे ने करनि‍ जइसँ मन मानि‍ लइतनि‍ जे ऐसँ पत्नी मानि‍ जेतीह। अल्ल-बल्ल कि‍छु बच्‍चाकेँ कहल जाइ दै, एक तँ सि‍यान कि‍ सि‍यानोक अगि‍ला खाड़ीमे पहुँचल छथि‍ दोसर अर्द्धांगि‍नी सेहो छथि‍। कोनो वि‍चारकेँ बलजोरी थोपि‍ नै सकै छि‍यनि‍, जँ थोपि‍यो देबनि‍ तँ मानि‍ये लेतीह सेहो नै कहल जा सकैए। जेत्ते दबाब दऽ कऽ बजबाक अधि‍कार हमरा अछि‍ तत्ते तँ हुनको छन्‍हि‍ये। जँ कि‍छु नै कहबनि‍ तखन तँ आरो स्‍थि‍ति‍ बि‍गड़ि‍ जाएत। जहि‍ना हुनका मनमे गंेठी जकाँ जन्‍मगाँठ पड़ि‍ जेतनि‍ तहि‍ना तँ अपनो मन नहि‍ये बचत। जँ से नै बचत तँ आँखि‍ उठा देखि‍ केना पेबनि‍। जँ से नै देखि‍ पाएब तँ पति‍ कथीक। ि‍सर्फ रंगे-रभस टा तँ पत्नीक संबंध नै छी। जँ ओतबे मानि‍ बुझबनि‍ तँ पति‍-पत्नीक संबंध बुझब थोड़े हएत। पति‍-पत्नीक संबंध तँ ओ छी, जहि‍ना जनकक एक हाथ हवन-कुंडमे आ दोसर पत्नीक करेजपर रहैत छलनि‍, मुदा जहि‍ना नव जीवनक दि‍शा वि‍पत्ति‍क अंति‍म अवस्‍थामे भेटैत अछि‍ तहि‍ना शंभुओकाकाकेँ भेटलनि‍। थालमे गड़ल मोती जहि‍ना जहुरी हाथमे देखि‍ते नयन कमलनयन बनि‍ जाइत तहि‍ना कक्कोक नजरि‍केँ भेलनि‍। मन मुस्‍कि‍एलनि‍। पति‍क मुस्‍की देखि‍ कुमुदनी मने-मन नमन केलकनि‍। जि‍ज्ञासु छात्र जकाँ पत्नीक जि‍ज्ञासु नजरि‍केँ देखि‍ प्रो. शंभु कहलखि‍न-
देखू, प्रश्न एकेटा नै घनेरो अछि‍, जँ एक-एक प्रश्नक उत्तरो दि‍अए लगब तँ प्रश्ने छूटि‍ जाएत। जँ प्रश्ने छूटि‍ जाएत तखन उत्तरे केना देब। कि‍छु नै, बुढ़ि‍या फूसि‍।
पति‍क वि‍चार सुनि‍ कुमुदनी अधखि‍ल्‍लू कुमुदनी जकाँ जइ अवस्‍थामे भौंरा फरि‍च्‍छ तँ देखैत मुदा अधखि‍ल्‍लू कपाटसँ नि‍कलि‍ नै पबैत तहि‍ना कुमुदि‍नी असमंजसमे पड़ि‍ गेलीह।
पत्नीकेँ असमंजसमे पड़ैत देरी प्रो. शंभुक मनमे उठलनि‍ जे जहि‍ना माटि‍क ढेपा, गोला, चेका जोड़ि‍-जोड़ि‍ पैघसँ पैघ बान्‍ह बान्‍हल जाइए तहि‍ना जँ बान्‍हि‍ दि‍अनि‍ तँ जरूर ठमकि‍ जेतीह। मुदा मन नै मानलकनि‍। पत्नीक बातमे तँ अखन धरि‍ ओझराएल रहलौं। जरूर माए-बापक काज मानल जाएत। मुदा कि‍ हमरे टा परि‍वारमे एना भेल आकि‍ दोसरो-तेसरो परि‍वारमे? जँ एक समाज नै, एक गाम नै अनेक समाज आ अनेक गाममे होइत अछि‍ तँ जरूर दोषक जड़ि‍ कतौ अन्‍तै छै। अन्‍तए कतए छै से कहि‍ देबनि‍, मानती तँ मानती नै आगू कहबनि‍ नेति‍-नेति‍।

जहि‍ना उगैत गुज्‍जर, उगैत कलशकेँ कहैत जे दुनू गोटे संगे-संग रहि‍ दुनि‍याँ देखब। तहि‍ना प्रो. शंभु कहलखि‍न-
सुनू, सभ बात सबहक नजरि‍पर सदि‍खन नै रहै छै, भऽ सकैए जे जे बात दस-बीस बर्ख पहि‍ने कहि‍ देबाक चाहै छल, से नै कहलौं। अपनो धि‍यानमे नै रहल। जहि‍ना असगरे धान तौलि‍नि‍हार गनि‍-गनि‍ तौलबो करत आ उठि‍-उठि‍ लि‍खबो करत तँ गि‍नती-गि‍नतीमे झगड़ा हेबे करैत, जे जोरगर रहैत ओ मन रहैत जे अब्‍बल रहैत ओ हरा जाएत। तहि‍ना ने अपनो दुनू गोटेक बीच अछि‍।
दुनू गोटे सुनि‍ कुमुदनी कछमछेलीह। पाछू उनटि‍-उनटि‍ देखए लगली। प्रो. शंभु बूझि‍ गेलाह जे शि‍कारीक वाण सटीक बैसल। जहि‍ना बाल-बोधक उनटा-पुनटा काज देख सि‍यानकेँ हँसी-लगैत तहि‍ना प्रोफेसर शंभुकेँ हँसी लगलनि‍। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे अपनो पछि‍ला कएल काज मन पड़ने तँ से होइए। एकाएक मुँह बन्न भऽ गेलनि‍। आने-आन पुरुख जकाँ अपन पुरुषत्‍व देखबैत प्रो. शंभु बजलाह-
आइ धरि‍, अखन धरि‍ कहि‍यो हमरा मुँहसँ फुटल जे हम न्‍यायालयसँ दण्‍डि‍त भेल जि‍नगी जीब रहल छी। कि‍यो एको दि‍न पुछाड़ि‍यो करए आएल जे केना जीबै छी। समाजमे जाधरि‍ बूढ़-बुढ़ानुसक पूछ नै हएत, ताधरि‍ समाजक पछि‍ला पीढ़ी नागरि‍ पकड़ि‍ वैतरणी पार केना हएत। हँ ई जरूर जे साँपकेँ डोरी नै कही, मुदा वि‍चार तँ हेबाके चाही।
घरमे चौंकल बर्तनक ढनमनी जकाँ कुमुदनी ढनमनाइत बजलीह-
जखन अहाँ दुनि‍याँक नजरि‍मे दण्‍डि‍त छी तखन....?”
पत्नीक चि‍न्‍तासँ चि‍न्‍ति‍त भऽ प्रो. शंभु कहलखि‍न-
अखन धरि‍ तँ छि‍पेने रहलौं जे अपन दोख अहाँकेँ कि‍अए दी।
पति‍क बेथासँ बेथि‍त भऽ कुमुदनी बजलीह-
कनी फरि‍च्‍छा कऽ कहू?”
प्रो. शंभु- सेवा-ि‍नवृत्त होइसँ छह मास पहि‍ने प्रि‍ंसि‍पल बनाओल गेलौं। कॉलेजक भार बढ़ल। परीक्षा वि‍भाग सेहो छै। सुननहि‍ हेबे जे कते हो-हल्‍ला भेल। मामला न्‍यायालय चलि‍ गेल। गोल-माल जरूर भेल रहए, जानकारीमे नै रहए। मुदा तैयो जबाबदेहक रूपमे फॅसलौं।
कुमुदनी- अहाँक कि‍छु दोष नै रहए?”
प्रो. शंभु- एकदम नै।
कुमुदनी- फैसला केना भेल?”
प्रो. शंभु- सेवा ि‍नवृत्त लग देखि‍ न्‍यायालय दोषी बना छोड़ि‍ देलक।
कुमुदनी- हुनका सभकेँ?”
प्रो. शंभु- कमो दोखबला बेसी सजा पौलक आ बेसि‍यो दोखबला कम सजा पौलक।
कुमुदनी- एना कि‍अए भेल?”
प्रो. शंभु- जँ पहि‍ने बुझि‍तौं तँ ऐ भीर जेबो ने करि‍तौं मुदा से नै भेल। जाधरि‍ लि‍खि‍त-मौखि‍क रूपमे बेवस्‍था चलत ताधरि‍ एहि‍ना हएत।

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