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Thursday, June 7, 2012

न्‍याय चाही :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



झुनाएल धान जकाँ पचासी बर्खक शंभु काकाकेँ ओछाइन छौड़ैसँ पहि‍नहि‍ मनमे उठलनि‍ जे आब तँ चल-चलाैए छी से नै तँ जि‍नगीक अपन हि‍साब-कि‍ताब दइये दि‍अनि‍, सएह नीक। नै तँ शासनक कोन बि‍सवास केकरो दोख गारा मढ़ि‍ सजा केकरो भेटै छैक। मुदा सोझामे एते तँ जरूर हएत जे अपन बात अपने रखि‍ सकै छी। तइपर जँ नै मानत तँ हमहूँ नै मानबै। लड़ि‍ मरी कि‍ सड़ि‍, शेषे कि‍ बचल अछि‍। जहि‍ना नमहर काजमे समयो अधि‍क लगैत अछि‍ आ छोट काजमे थोर मुदा काज तँ दुनू कहबैत अछि‍। कि‍यो काहू मगन कि‍यो काहू मगन, मगन तँ सभ अछि‍ये। गंभीर प्रश्नमे ओझराएल शंभु काका, तँए मन-चि‍त्त-देह एकबट्ट भेल रहनि‍।
पत्नी कुमुदनीक मनमे उठलनि‍ जे भरि‍सक सूतले तँ ने रहि‍ जेताह। लगमे पहुँचि‍ छाती डोलबैत बजलीह-
अखन धरि‍ किअए बि‍छान पकड़ने छी?”
पत्नीक स्‍वरलहरीमे लहराइत शंभु काका हलसि‍ बजलाह-
अखन धरि‍ यएह बुझै छलौं जे अपने केलहाक भागी कि‍यो बनैए, मुदा....?”
बजैत शंभु काका ओछाइनपरसँ उठि‍ जहि‍ना उगैत सूर्जक दर्शन लोक दुनू हाथ जोड़ि‍ प्रणाम करैत करैए तहि‍ना दुनू हाथ जोड़ि‍ पत्नी-कुमुदनीक आगूमे ठाढ़ होइत बजलाह-
माफी मंगै छी। गल्‍ती भेल अछि‍ मुदा दोसराक गल्‍ती ऊपर मढ़ल गेल अछि‍।
अकचकाइत कुमुदनी, बि‍नु कि‍छु सोचनहि‍ बाजि‍ उठलीह-
से की, से की, एना कि‍अए भोरे-भोर पाप चढ़बै छी।
पाप नै चढ़बै छी जि‍नगीक जे घटल-घटना अछि‍, तइ नि‍मि‍त्ते मांगि‍ रहल छी।
जखन एते कहबे केलौं तखन कि‍अए ने मनो पाड़ि‍ देब। अहाँ तँ बुझि‍ते छि‍ऐ जे बसि‍या भात खेनि‍हारि‍ बि‍सराह होइए मुदा रतुका उगड़ल अन्न फेकि‍ देब नीक हएत।
पतालसँ अबैत बलुआएल पानि‍ जहि‍ना छन-छनाइत पवि‍त्र भऽ अबैत अछि‍ तहि‍ना कुमुदनीक वि‍चार सुनि‍ प्रोफेसर शंभु काकाकेँ भेलनि‍, बजलाह-
अपना दुनू गोटेक एक जि‍नगी ऐ धरतीपर रहल अछि‍। आकि‍ नै?”
हँ से तँ रहले अछि‍। तँए ने अर्द्धांगि‍नी छी।
हमर देहक अर्द्धांगि‍नी छी आकि‍ जि‍नगीक?”
ई बात अहाँ बुझेलौं कहि‍या जे पुछै छी।
पत्नीक प्रश्न सुनि‍ प्रोफेसर शंभु काका सकदम भऽ गेलाह। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे टटको घटना बसि‍या जाइ छै आ बसि‍यो घटना टटका भऽ जाइ छै। ई ि‍नर्भर करैए कारीगरपर। जेहेन कारीगर रहत तेहेन टटकाकेँ बसि‍या आ बसि‍याकेँ टटका बनबैत रहत। खएर जे होउ। पत्नीकेँ पुछलखि‍न-
अपना दुनू गोटे एकठाम केना भेलि‍ऐ?”
एना अरथा-अरथा कि‍अए पुछै छी। जे कहैक अछि‍ से सोझ डारि‍ये कहूँ। एना जे हरसीकार दीरघीकार लगा-लगा बजै छी से नै बाजू। जेकरा नीक बुझबै तेकरा नीक कहब आ जेकरा अधला बुझबै तेकरा अधला कहब। अहाँ लग जे कनी दबो-उनार भऽ जाएत तँ हारि‍ मानि‍ लेब। सएह ने हएत आकि‍ छाउर-गोबर जकाँ छि‍ट्टामे उठा बाध दऽ आएब।

जहि‍ना पोखरि‍क पवि‍त्र जलमे स्‍नान कऽ पूजाक मूर्ति गढ़ि‍ मंत्र पढ़ैत दान कएल जाइत तहि‍ना शंभु काका बड़बड़ाए लगलाह-
जखन हम चौबीस बर्खक रही तखन अहाँ चौदह बर्खक छलौं। दस बर्खक अन्‍तर। आइ धरि‍ कहाँ कतौ देखि‍ पेलौं जे पुरुष-नारीक बीच उमरोक वि‍भाजन भेल। जँ से नै तँ....? जँ एको औरूदे दुनू गोटे जीब तैयो तँ अहाँ दस बर्ख वि‍धबे बनि‍ रहब। ऐ वि‍धवाक सर्जक के? समाजमे कलंकक मोटरी देनि‍हार के? की ई बात झूठ जे जइ घरमे जते कम वस्‍तु रहै छै आगि‍ लगलापर ओतबे कम जरै छै मुदा जइ घरमे अधि‍क वस्‍तु रहै छै, आगि‍ लगलापर जरबो बेसी करै छै। पचास बर्खक तपल-तपाएल जि‍नगीक अन्‍त केना हएत।
दुनू हाथ जोड़ि‍ पत्नीसँ माफी मंगलनि‍। मुदा जहि‍ना बच्‍चाकेँ नव दाँत रहने अधि‍क-सँ-अधि‍क काज लि‍अए चाहैत, नव औजार हाथमे एने अधि‍क-सँ-अधि‍क काजो आ अधि‍क-सँ-अधि‍क समेओ संग मि‍लि‍ बि‍तबए चाहैत तहि‍ना कुमुदनीक सि‍नेह आरो जगलनि‍। बजलीह-
माॅफी-ताॅफी नइ मानब? पति‍ छी तँए पुछै छी। एहन गल्‍ती भेल कि‍अए, से जाबे‍ नै कहब ताबे‍ कि‍छु ने मानब।
पत्नीक प्रश्न सुनि‍ शंभु काका स्‍तब्‍ध भऽ गेलाह। मन कछमछाए लगलनि‍। सत् बड़ कटु होइत अछि‍। मुदा जँ पत्नि‍यो लग सत्यक उद्घाटन नै कऽ सकब तँ दुनि‍याँमे दोसरठाम कइये कतए सकै छी। शम्‍भुकाका साँप-छुछुनरि‍क स्‍थि‍ति‍मे पड़ि‍ गेलाह। एहेन कोनो वि‍चार मनमे उठबे ने करनि‍ जइसँ मन मानि‍ लइतनि‍ जे ऐसँ पत्नी मानि‍ जेतीह। अल्ल-बल्ल कि‍छु बच्‍चाकेँ कहल जाइ दै, एक तँ सि‍यान कि‍ सि‍यानोक अगि‍ला खाड़ीमे पहुँचल छथि‍ दोसर अर्द्धांगि‍नी सेहो छथि‍। कोनो वि‍चारकेँ बलजोरी थोपि‍ नै सकै छि‍यनि‍, जँ थोपि‍यो देबनि‍ तँ मानि‍ये लेतीह सेहो नै कहल जा सकैए। जेत्ते दबाब दऽ कऽ बजबाक अधि‍कार हमरा अछि‍ तत्ते तँ हुनको छन्‍हि‍ये। जँ कि‍छु नै कहबनि‍ तखन तँ आरो स्‍थि‍ति‍ बि‍गड़ि‍ जाएत। जहि‍ना हुनका मनमे गंेठी जकाँ जन्‍मगाँठ पड़ि‍ जेतनि‍ तहि‍ना तँ अपनो मन नहि‍ये बचत। जँ से नै बचत तँ आँखि‍ उठा देखि‍ केना पेबनि‍। जँ से नै देखि‍ पाएब तँ पति‍ कथीक। ि‍सर्फ रंगे-रभस टा तँ पत्नीक संबंध नै छी। जँ ओतबे मानि‍ बुझबनि‍ तँ पति‍-पत्नीक संबंध बुझब थोड़े हएत। पति‍-पत्नीक संबंध तँ ओ छी, जहि‍ना जनकक एक हाथ हवन-कुंडमे आ दोसर पत्नीक करेजपर रहैत छलनि‍, मुदा जहि‍ना नव जीवनक दि‍शा वि‍पत्ति‍क अंति‍म अवस्‍थामे भेटैत अछि‍ तहि‍ना शंभुओकाकाकेँ भेटलनि‍। थालमे गड़ल मोती जहि‍ना जहुरी हाथमे देखि‍ते नयन कमलनयन बनि‍ जाइत तहि‍ना कक्कोक नजरि‍केँ भेलनि‍। मन मुस्‍कि‍एलनि‍। पति‍क मुस्‍की देखि‍ कुमुदनी मने-मन नमन केलकनि‍। जि‍ज्ञासु छात्र जकाँ पत्नीक जि‍ज्ञासु नजरि‍केँ देखि‍ प्रो. शंभु कहलखि‍न-
देखू, प्रश्न एकेटा नै घनेरो अछि‍, जँ एक-एक प्रश्नक उत्तरो दि‍अए लगब तँ प्रश्ने छूटि‍ जाएत। जँ प्रश्ने छूटि‍ जाएत तखन उत्तरे केना देब। कि‍छु नै, बुढ़ि‍या फूसि‍।
पति‍क वि‍चार सुनि‍ कुमुदनी अधखि‍ल्‍लू कुमुदनी जकाँ जइ अवस्‍थामे भौंरा फरि‍च्‍छ तँ देखैत मुदा अधखि‍ल्‍लू कपाटसँ नि‍कलि‍ नै पबैत तहि‍ना कुमुदि‍नी असमंजसमे पड़ि‍ गेलीह।
पत्नीकेँ असमंजसमे पड़ैत देरी प्रो. शंभुक मनमे उठलनि‍ जे जहि‍ना माटि‍क ढेपा, गोला, चेका जोड़ि‍-जोड़ि‍ पैघसँ पैघ बान्‍ह बान्‍हल जाइए तहि‍ना जँ बान्‍हि‍ दि‍अनि‍ तँ जरूर ठमकि‍ जेतीह। मुदा मन नै मानलकनि‍। पत्नीक बातमे तँ अखन धरि‍ ओझराएल रहलौं। जरूर माए-बापक काज मानल जाएत। मुदा कि‍ हमरे टा परि‍वारमे एना भेल आकि‍ दोसरो-तेसरो परि‍वारमे? जँ एक समाज नै, एक गाम नै अनेक समाज आ अनेक गाममे होइत अछि‍ तँ जरूर दोषक जड़ि‍ कतौ अन्‍तै छै। अन्‍तए कतए छै से कहि‍ देबनि‍, मानती तँ मानती नै आगू कहबनि‍ नेति‍-नेति‍।

जहि‍ना उगैत गुज्‍जर, उगैत कलशकेँ कहैत जे दुनू गोटे संगे-संग रहि‍ दुनि‍याँ देखब। तहि‍ना प्रो. शंभु कहलखि‍न-
सुनू, सभ बात सबहक नजरि‍पर सदि‍खन नै रहै छै, भऽ सकैए जे जे बात दस-बीस बर्ख पहि‍ने कहि‍ देबाक चाहै छल, से नै कहलौं। अपनो धि‍यानमे नै रहल। जहि‍ना असगरे धान तौलि‍नि‍हार गनि‍-गनि‍ तौलबो करत आ उठि‍-उठि‍ लि‍खबो करत तँ गि‍नती-गि‍नतीमे झगड़ा हेबे करैत, जे जोरगर रहैत ओ मन रहैत जे अब्‍बल रहैत ओ हरा जाएत। तहि‍ना ने अपनो दुनू गोटेक बीच अछि‍।
दुनू गोटे सुनि‍ कुमुदनी कछमछेलीह। पाछू उनटि‍-उनटि‍ देखए लगली। प्रो. शंभु बूझि‍ गेलाह जे शि‍कारीक वाण सटीक बैसल। जहि‍ना बाल-बोधक उनटा-पुनटा काज देख सि‍यानकेँ हँसी-लगैत तहि‍ना प्रोफेसर शंभुकेँ हँसी लगलनि‍। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे अपनो पछि‍ला कएल काज मन पड़ने तँ से होइए। एकाएक मुँह बन्न भऽ गेलनि‍। आने-आन पुरुख जकाँ अपन पुरुषत्‍व देखबैत प्रो. शंभु बजलाह-
आइ धरि‍, अखन धरि‍ कहि‍यो हमरा मुँहसँ फुटल जे हम न्‍यायालयसँ दण्‍डि‍त भेल जि‍नगी जीब रहल छी। कि‍यो एको दि‍न पुछाड़ि‍यो करए आएल जे केना जीबै छी। समाजमे जाधरि‍ बूढ़-बुढ़ानुसक पूछ नै हएत, ताधरि‍ समाजक पछि‍ला पीढ़ी नागरि‍ पकड़ि‍ वैतरणी पार केना हएत। हँ ई जरूर जे साँपकेँ डोरी नै कही, मुदा वि‍चार तँ हेबाके चाही।
घरमे चौंकल बर्तनक ढनमनी जकाँ कुमुदनी ढनमनाइत बजलीह-
जखन अहाँ दुनि‍याँक नजरि‍मे दण्‍डि‍त छी तखन....?”
पत्नीक चि‍न्‍तासँ चि‍न्‍ति‍त भऽ प्रो. शंभु कहलखि‍न-
अखन धरि‍ तँ छि‍पेने रहलौं जे अपन दोख अहाँकेँ कि‍अए दी।
पति‍क बेथासँ बेथि‍त भऽ कुमुदनी बजलीह-
कनी फरि‍च्‍छा कऽ कहू?”
प्रो. शंभु- सेवा-ि‍नवृत्त होइसँ छह मास पहि‍ने प्रि‍ंसि‍पल बनाओल गेलौं। कॉलेजक भार बढ़ल। परीक्षा वि‍भाग सेहो छै। सुननहि‍ हेबे जे कते हो-हल्‍ला भेल। मामला न्‍यायालय चलि‍ गेल। गोल-माल जरूर भेल रहए, जानकारीमे नै रहए। मुदा तैयो जबाबदेहक रूपमे फॅसलौं।
कुमुदनी- अहाँक कि‍छु दोष नै रहए?”
प्रो. शंभु- एकदम नै।
कुमुदनी- फैसला केना भेल?”
प्रो. शंभु- सेवा ि‍नवृत्त लग देखि‍ न्‍यायालय दोषी बना छोड़ि‍ देलक।
कुमुदनी- हुनका सभकेँ?”
प्रो. शंभु- कमो दोखबला बेसी सजा पौलक आ बेसि‍यो दोखबला कम सजा पौलक।
कुमुदनी- एना कि‍अए भेल?”
प्रो. शंभु- जँ पहि‍ने बुझि‍तौं तँ ऐ भीर जेबो ने करि‍तौं मुदा से नै भेल। जाधरि‍ लि‍खि‍त-मौखि‍क रूपमे बेवस्‍था चलत ताधरि‍ एहि‍ना हएत।

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सतभैंया पोखरि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


सतभैंया पोखरि‍

पोखरि‍ कहि‍या खुनौल गेल, के खुनौलनि‍? मि‍थि‍लांचलक इति‍हासे जकाँ अखन धरि‍ हराएले अछि‍ मुदा एते गामक सभ मानैत अछि‍ जे पोखरि‍क बतारी ने एकोटा गाछ-बि‍रीछ अछि‍ आ ने आन कोनो। ओना पोखरि‍ नमहर रहने रंग-बि‍रंगक कि‍स्‍सा-पहानी अछि‍ये। कि‍यो दैंतक खुनौल कहैत अछि‍ तँ कि‍यो राजा-रजवारक। मुदा जे होउ, हजार बर्खसँ ऊपरक पोखरि‍ जरूर अछि‍ जे सभ मानैत अछि‍। शुरूमे पोखरि‍क महार वा अग्‍नेय जेहेन रहल हुअए मुदा अखन महारो झड़ि‍-झुड़ि‍ गेल अछि‍ आ पोखरि‍क पेटो गदि‍याह भऽ गेल अछि‍। गाममे एकेटा पोखरि‍ मुदा एहेन अछि‍ जे एते सघन गाम रहि‍तो पोखरि‍क अभाव गौआँकेँ नै हुअए दैत अछि‍। चाकर-चौड़गर पेट अखनो अछि‍ये। मुनहर जकाँ दर्जनो ठेक-बखारी सदृश तँ अछि‍ये।
गाममे सभसँ पुरानो आ झमटगरो परि‍वार मात्र सतभैंयाकेँ रहलनि‍। पोखरि‍यो हुनके सबहक छि‍यनि‍। केना भेलनि‍ से तँ नीक जकाँ कि‍नको नै बूझल छन्‍हि‍ मुदा जहि‍यासँ देखै छी तहि‍यासँ हुनके सबहक कब्‍जामे रहलनि‍ अछि‍। ओना पोखरि‍ तँ गामे-गाम अछि‍ मुदा आन गामक पोखरि‍सँ अलग पहि‍चान अखनो अछि‍ये। ने एते नमहर कोनो गामक पोखरि‍ अछि‍ आ ने एना चारू महार घाट अछि‍। एक घाट रहने पारो नै लगैत जेना आन-आन गामक पोखरि‍मे अछि‍। आन गामक पोखरि‍मे बड़ बेसी अछि‍ तँ एकटा दूटा घाट अछि‍। एकटा मरद लेल आ दोसर जनाना हेतु। तहूमे रंग-बि‍रंगक बेवहार बनल अछि‍। जइक चलैत जँ कहि‍यो गाममे आगि‍-छाइ लगैए तँ गामे सुन भऽ जाइए, मुदा एकोटा पोखरि‍ आइ धरि‍क इति‍हासमे कहि‍यो ऐ गाममे नै भेल अछि‍। ओना गामक बनाबटि‍ आन गामसँ भि‍न्न अछि‍। कते गाम पूबे-पछि‍मे सूर्यमंडल गढ़नि‍क बनल अछि‍ जइसँ पूर्बा-पछबाक झोंकमे, आगि‍ लगने धुआ-पोछा जाइए।
बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍ रहने, अनगाैआँ तँ पोखरि‍ मानबे ने करैत मुदा पोखरि‍क सभ काजक पूर्ति होइत, तँए गौआँ लेल धैन-सन। कि‍यो अनगौआँक गपपर धि‍यानो ने दैत। सभ यएह मानि‍ चलैत जे कि‍यो अपन मुँह दुइर‍ करैए। नीककेँ अधला कहने थोड़े अधला भऽ जाएत आ अधलाकेँ नीक कहने थोड़े नीक भऽ जाएत जँ एहेन बजनि‍हार अछि‍ तँ ओ अपन मुँह दुइर करैए। सभकेँ अपन-अपन गुण-धर्म होइ छै से तँ अछि‍ये। चारू महार घाट रहने सबहक काजो चलि‍ते अछि‍। तहूमे आन गाम जकाँ कोनो रोक-राक अछि‍ये नै जे ई घाट पुरुखक छि‍ऐ तँ ई घाट जनानाक। ई फल्‍लांक खुनौल छि‍यनि‍ तँए दोसरकेँ नहा देथि‍न आकि‍ नै, ई हुनकर मन-मरजी छि‍यनि‍। कि‍यो जाठि‍ गाड़ि‍ पोखरि‍क पहि‍चान बनौने छथि‍ तँ छथि‍। पोखरि‍क पहि‍चान भलहिं जाठि‍ होउ मुदा झील, सरोवर आ धारमे जाठि‍ कहाँ रहैए। तँए कि‍ ओकरा कुमार कहि‍ कात कऽ देबै। आम खेनि‍हारकेँ आम चाही आकि‍ गाछ आ गाछी गनत। हँ, ई बात जरूर जे आमक गाछ केना होइ छै, केना लगौल जाइ छै, केना ओकर सेवा कएल जाइ छै एकर जानकारी रहक चाही। जइ जाठि‍ लऽ लऽ अनगौआँ नचै छथि‍ ओ तँ ईहो कहता ने जे जाठि‍क काज की होइ छै? जँ बीच पोखरि‍क पानि‍क नाप मानल जाए तँ जइ पोखरि‍क कि‍नछड़ि‍येमे उपयोग करै जोकर -नहाइ-धोइ-क पानि रहत ओकर बीचक नाप नपैक जरूरते की रहत। ओहन पोखरि‍क मानि‍ये कते हएत जे एकटा घाट, जे भलहिं सि‍मटि‍ये-ईटाक कि‍अए ने होउ, बना बाकी भागमे मोथी रोपि‍ खेत बना लेब। जँ कहीं आगि‍ लागत तँ‍ छूत-अछूत कहि‍ गामे जरा देब, मुदा आगि‍ लगबे ने करै से ने सोचब आ करब। जनि‍येँ कऽ पोखरि‍केँ अघट बना दुइर कऽ लेब, नहाइ-धोइ जोकर नै रहए देब तँ ओइमे दोख केकर? खएर जे होउ मुदा चारू महार घाटो आ बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍ तँ अछि‍ये।
शुरूहेसँ गामक सतभैंया परि‍वार जोतल-चौकि‍औल खेत जकाँ समतल रहल अछि‍। बीच-बीचमे बाढ़ि‍-भुमकममे थोड़-बहुत ऊवर-खावर बनबो कएल तँ ओकरा पुन: सरि‍या समतल बना लेल गेल। मुदा भवि‍ष्‍य दि‍स नै देखि‍, भूते दि‍स देखने तँ भूत लगबे करै छै। मुदा तेकरो भगबैक तँ उपाए होइते अछि‍। बाबेक अमलदारीसँ सतभैंया अपन परि‍वारक पहि‍चान परोपट्टामे बनौने रहल अछि‍। ओना सात भाँइक भैयारीमे तीन भाँइक परि‍वार नावल्‍द भऽ गेलनि‍ जइसँ अगि‍ला पीढ़ी अबैत-अबैत सातसँ चारि‍ भैयारी रहि‍ गेल। सात भाँइसँ सतरह हेबाक चाहै छल से नै भऽ चारि‍पर उतरि‍ गेल तेकर कारण भेल जे एक भाँइ बेटीक बाढ़ि‍मे दहा गेलाह। ढेनुआर नक्षत्र जकाँ बेटीक आगमन जोड़ा-पल्‍ला जे अाबए लगलनि‍ से ठीके सातसँ सतरह तँ नै मुदा  एकसँ एगारह जरूर भऽ गेलनि‍। मुदा एकसँ एगारह होइतो हुनकर मुँह कहि‍यो मलीन नै भेलनि‍। मनक वि‍श्वास अंत धरि‍ बनले रहि‍ गेलनि‍ जे प्रकृति‍केँ अपन गति‍ छै, ओ अपन नि‍अम-नि‍ष्‍ठासँ चलैत अछि‍। से नै तँ एक कम्‍पनीक वस्‍तु एक रंग होइ छै मुदा तइमे ओहन मेल-पाँच केना भऽ जाइ छै जे मेल-पाँच भेलोपर चारि‍-पाँच वा पाँच-छहसँ आगू-पाछू नै होइत अछि‍। भऽ तँ ईहो सकैत छल जे एक रंगाहे होइत वा एकसँ पाँचो होइत वा आरो अन्‍तर भऽ सकैत छल। मुदा से कहाँ होइए। जहि‍ना एकसँ सय धरि‍ गनू आ सएसँ एक दि‍स गनू पचास तँ बीचेमे रहत। तँए बेटा-बेटीक बाढ़ि‍ आबौ कि‍ रौदी होउ, मुदा अपन व्‍यासक अनुकूले रहैत आएल अछि‍ आ रहबो करत।

दोसर भाए जे बच्‍चेमे कुभेला भेलासँ गाम छोड़ि‍ परदेश गेलाह। से पुन: घूमि‍ कऽ नहि‍ये एलाह। बाल-बोधकेँ सेवाक जरूरति‍ होइ छै, होइत एलैए आ सभ दि‍न होइत रहतै। मुदा जखन वएह बाल-बोध चेतन भऽ जाइ छथि‍ तखन हुनक वि‍वेक कि‍ कहै छन्‍हि‍ से तँ आनक-आन नै बूझि‍ सकत। ओ अपने अपन कर्तव्‍यकेँ ि‍नर्धारि‍त कऽ जीवन-पथपर चलताह। खैर जखन धड़ति‍ये भूमि‍ छी तँ जतए बास करब ओकरे मातृभूमि‍ बना लेब। तहूमे ओइ बच्‍चाक तँ अधि‍कार बनि‍ये जाइए जेकर जन्‍म जतए बनि‍ गेल हुअए। मुदा प्रश्‍न तँ अहूसँ आगू अछि‍। जँ धरती स्‍वर्ग वा वैकुण्‍ठ बनए चाहए तखन अपनामे बँटि‍ कऽ बनत आकि‍ सम्‍मलि‍त भऽ कऽ? जँ से नै तँ हम कतए छी, ई तँ देखए पड़त। मुदा मि‍थि‍लांचलोक भूमि‍ तँ वएह भूमि‍ छी जे सभ दि‍न प्रकृति‍ प्रदत्त रहल अछि‍, अखनो अछि‍ आ आगूओ रहबे करत। जँ से नै तँ कहाँ अरब-करोड़पर लटकल वा करोड़ लाखपर। सभ दि‍न जहि‍ना रहल तहि‍ना अखनो अछि‍। भलहि‍ं कतौसँ हमहूँ कहि‍ऐ जे छीहे।

तेसर भाइक परि‍वार ऐ लेल आगू नै बढ़लनि‍ जे शरीरसँ ि‍नरोग रहि‍तो मनसनक बच्‍चेसँ भऽ गेलखि‍न। जइसँ ने बि‍आह केलनि‍ आ ने कोनो भाइक बात-वि‍चारमे कहि‍यो रहलनि‍। तहि‍ना बाँकी भाय मि‍लि घरक मोजरे समाप्‍त कऽ देलकनि‍। मुदा तइले हुनको मनमे कहि‍यो दुखो नहि‍ये जन्‍म लेलकनि‍। जखन भाय सभ लगमे बैसथि‍ तँ गरजि‍-गरजि‍ बजथि‍ जे मने सभ कि‍छु छी। जे मनक मालि‍क ओ सबहक मालि‍क। मुदा भाइयो सभ बि‍ना कि‍छु टोकारा देने चुपे-चाप सुनि‍ लैत जे अनेरे टोकने आरो बरदि‍आएब। से नै तँ एक झोंक बाजि‍ नारद जकाँ वीणा हाथमे लेताह आ जेमहर मन हेतनि‍ तेमहर वि‍दा हेताह। असगरूआ परि‍वारमे एककेँ बौड़ने परि‍वारेक उसरन होइए मुदा गनगुआरि‍ जकाँ एकटा टाँग टुटनहि‍ कि‍ हएत। एक तँ परि‍वार, टोल, समाज गढ़ि‍ लइए। हम सभ तँ कहुना तैयो चारि‍ भाँइ बँचल रहबे करब। बाॅझी लगने डारि‍ फड़ै नै छै मुदा तँए ओ गाछसँ हटल रहैत एहेन तँ नै होएत।
पि‍ताक अमलदारीमे चाकर-चौड़गर, चौघारा घरक आंगन हथि‍सार सन दरबज्‍जा, चन्‍द्रकूप सदृश इनार, सरोवर सदृश बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍क बीच जि‍नगि‍यो संयमि‍त तँए हर-हर खट-खटक प्रश्ने कि‍अए उठत। ओना सातो भाँइक सातो काज सात रंगक। जि‍नगीक लेल सातो उपयोगी मुदा गुण, बेवहार आ उपयोगक हि‍साबसँ छोट-पैघ। हर-हर खट-खट नै होइक कारण एकटा दोसरो छल जे अपन-अपन बुधि‍क उपयोग कऽ स्‍वतंत्र रूपसँ अपन-अपन काज सम्‍हारैत छलाह। एक काजमे ने करैक बखेरा ठाढ़ होइत जे एना-हेतइ, एना नै हेतइ। मुदा एक वि‍चारमे तँ से नै होएत। समटल बि‍छानक सुख जेहेन सुति‍नि‍हारकेँ होएत, तहि‍ना ने समटल परि‍वारोकेँ होएत। छोट ओसार रहत आ बच्‍चा बेसी रहत तँ ओंघरा-ओंघरा खसबे करत। खाइ काल भि‍न्ने छि‍पली-बाटी फुटत जहि‍ना वस्‍तु व्‍यापारक सहायक छी तहि‍ना व्‍यापार उपयोगक। जइ वस्‍तुक जते उपयोग जि‍नगीक लेल होएत ओ व्‍यापार ओते चतड़ैत अछि‍। मुदा प्रश्न अछि‍ जँ सभ फूल फूले छी तँ देवताक बीच बटाएल कि‍अए अछि‍? जँ देवताक परसाद परसादे छी तखन महादेव कि‍अए बॉतर।
अखन धरि‍ सतभैंया परि‍वारमे घराड़ीसँ लऽ कऽ बाध धरि‍क जमीनमे दुइये बेर बटबारा भेल छलनि‍ जे खूटे-खूट भेल छलनि‍ मुदा ऐबेर रूप बदलि‍ गेलनि‍। भीतरि‍या गुमराहटि‍ आबि‍ गेल छलनि‍। मुदा खुलि‍ कऽ आगू भऽ बजैले कि‍यो डेग आगू नै बढ़बए चाहैत। जहि‍ना सूखल जरनाक बीच आगि‍ हवा पबि‍ते धधकि‍‍ उठैए तहि‍ना पोखरि‍क लहरि‍ जकाँ उठए लगलनि‍। कारणो छन्‍हि‍ जे कहि‍या कतए जे कँचका ईटापर खपड़ा घर बनौलनि‍ सएह अखनो धरि‍ चलि‍ अबैत छन्‍हि‍‍। नि‍च्‍चा जहि‍ना मुसहनि‍ माटि‍ भरल तहि‍ना अकासक तरेगन जकाँ फुटल खपड़ा लग इजोत होइत। शुद्ध कि‍सानक घर। चाहे खेतमे रहि‍ बरखा हुअए आकि‍ सुतली राति‍क बरखा हुअए कोनो अन्‍तर नै। जहि‍ना गोनरि‍क दुनू भाग एक्के रंग भेने उनटा-पुनटाक प्रश्ने नै। पहि‍लुका चद्दरि‍क चारू भाग बराबरे होइत छलै आ जे बँचल अछि‍ ओ अखनो अछि‍ये। तहि‍ना धोति‍योक मुदा आजुक जे सि‍ंह-मांगबला चद्दरि‍ वा अन्‍य जे वस्‍त्र अछि‍ ओ एकभग्‍गुए नै, संयुक्‍त परि‍वारक एकांकी रूप जकाँ बनि‍ गेल अछि‍! जहि‍ना जनमौटी बच्‍चा छोटसँ पैघ बढ़ैत ि‍सर्फ मानवे नै महामानवो बनैत अछि‍ मुदा वएह मनुष्‍य मृत्‍युक पश्चात अछि‍यामे जखन जरबए जाए लगैत अछि‍ तँ पैघसँ छोट बनैत-बनैत लोथरा जकाँ बनि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना ने भऽ रहल अछि‍। ओना खूटे-खूट बटनौं छुतकाक केश कटबैकाल सभ बराबरे भऽ जाइत छथि‍। बाधक जमीनमे कनी घटि‍यो-बढ़ी भेलनि‍ मुदा घराड़ी आ पोखरि‍मे कोनो तरहक कमी-बेशी नहि‍ये भेल छलनि‍। अपन-अपन उपयोगक अनुकूल रहैत आएल छथि‍। मुदा सतभैंया परि‍वारकेँ गामक लोक एके परि‍वार बूझि‍ ने कि‍यो कि‍छु बजैत आ ने कि‍छु पुछैत। जइसँ पूर्बा-पछबाक कोनो लसरि‍ नहि‍ये लगल छलनि‍। जखन लसरि‍ये नै तँ असरि‍ कि‍अए। ततबे नै ईहो बुझैत जे जहि‍ना गाछक डारि‍ फुटने -छि‍टकने- फूल-फड़ थोड़े बदलि‍ जाइ छै। अनेरे देह रगड़ने तँ अपनो रगड़ा लगबे करै छै। मुदा से नै भेल, भऽ ई गेल जे सात भैयारीमे तीन भाँइकेँ सुखने गाछक डारि‍ जकाँ चारि‍ये टा रहि‍ गेलनि‍। तहू चारि‍मे दूटा बँझि‍आइये गेलनि‍ तँए फल-फूलक असे नै रहलनि‍। मुदा दुइयो भाँइ रहने चारि‍ भैयारीक परि‍वार पसारै जोकर तँ भइये गेलनि‍। गड़बड़ एतबे भेल जे एक भायकेँ एक आ एक भायकेँ तीन बेटा भेलनि‍। एक रहि‍तो मानवीय वि‍चार आर्थिक वि‍चारमे बदलि‍ते रगड़ा-रगड़ी शुरू भेल। जखने तीन भाँइ एक दि‍स हएत आ दोसर दि‍स कि‍यो असगरे पड़त तँ नि‍श्चि‍ते छह हाथ पएरक जगह दूटा हाथ-पएर झँपेबे करत। मुदा चद्दरि‍ तँ ओइठाम ने झाँपि‍ चारूकात अड़ि‍अबैत जइठाम ओढ़ि‍नि‍हारसँ डेढ़ि‍या-दोबर होइत, से तँ परि‍वारमे भइये गेल छन्‍हि‍।
वि‍चारवान परि‍वार सभ दि‍नसँ रहलनि‍ जँ से नै रहलनि‍ तँ आन-आन गाममे एहेन-एहेन परि‍वार मटि‍यामेट भऽ गेल। मटि‍येमेट नै कते जहल भोगलक तँ कते अस्‍पताल, कते फाँसीपर लटकल तँ कते कपार फोड़ा मरल। मगर वि‍चारेक चलैत ने परि‍वारमे ने कहि‍यो सम्‍प्रादायि‍क आ ने जाति‍क हवा कनि‍यो डोलौलकनि‍। समैक प्रभाव तँ सभ कि‍छुपर पड़ि‍ते अछि‍ से तँ परि‍वारोमे भेलनि‍। ओना जेकरा समए कहै छि‍ऐ -दि‍न-राति‍- ओइमे ओते बदलाव कहाँ आएल, कि‍एक तँ अखनो बारहो मास आ छबो ऋृतु होइते अछि‍। अपन-अपन गुण-धर्म तँ सभ बचौने अछि‍। मुदा एकटा गड़बड़ तँ परि‍वारमे भइये गेलनि‍। ओ ई जे एक भाइक बेटा श्‍याम, भैयारीमे असगरे छथि‍न। असगर भेनाइ तँ बड़ पैघ बात नहि‍ये भेल मुदा पि‍ताक भैयारीमे छोट भाइक बेटा रहने कि‍छु गड़बड़क संभावना तँ जनमि‍ये गेलनि‍।

बाबाक अमलदारीमे सातो भाँइक बीच बटबारा भेलनि‍ मुदा ओ पुन: समटा गेलनि‍। कारण ई जे शुरूमे तँ बटबारा भेलनि‍ मुदा तीन भाँइक परि‍वार घटने फेर समटा गेलनि‍। केना नै समटाइत, तीनूकेँ कियो पानि‍यो देनि‍हार तँ नहि‍ये रहलनि‍।
चारू भाँइक बीच एहेन संबंध बनल रहलनि‍ जे भीन-भीनौजीक परि‍स्‍थि‍ति‍ये पैदा नै लेलकनि‍। तेकर कारण भेल जे चारू भाँइक चारि‍ तरहक कारोबार रहलनि‍। एक काजमे चारि‍ गोटेकेँ रहने वैचारि‍क मतभेद होइक संभावना रहै छै। कि‍एक तँ एक्के काज कते ढंगसँ कएल जा सकैत अछि‍। तहूमे जखन समैक मोड़ अबै छै तखन काजोमे मोड़ अबै छै। सभठाम भलहि‍ं नै आबौ मुदा नहि‍ये अबै छै सेहो नै कहल जा सकैए। चारू भायकेँ परोछ भेने परि‍वारमे भि‍नौजि‍क संभावना बनलनि‍। संभावनाक कारण भेलनि‍ जे एक भायकेँ एकेटा बेटा जखन कि‍ दोसरकेँ तीन भेलनि‍। दू भाँइ तँ मेटाइये गेलखि‍न।
छोट भाइक बेटा रहि‍तो श्‍याम भैयारीमे सभसँ जेठ खाली भैयारि‍येमे जेठ नै पढ़ै-लि‍खै दि‍स वि‍शेष झुकान रहनि‍। एक तँ पढ़ैक लगन दोसर सुभ्‍यस्‍त परि‍वार रहबे करनि‍। मुदा तीनू भाँइ घनश्‍याम खेलौड़ि‍या बेसी। सदि‍खन सि‍नेमे-पत्रि‍का आ खेले-पत्रि‍का उनटा-पुनटा देखैत। पढ़ैपर तँ ओते नजरि‍ नै, मुदा फोटोपर बेसी नजरि‍ पड़ैत। ओना अखन धरि‍ श्‍यामक वि‍चारमे कोनो दूजा-भाव नै आएल छलनि‍ जइसँ कोनो तरहक नीक-अधलाक प्रश्ने नै उठल छल। जे कि‍छु कारोबार छलनि‍ सामूहि‍क छलनि‍। तहूमे एकटा जबर्दस्‍त गुण श्‍याममे छन्‍हि‍ जे घरसँ बाहर धरि‍क जे कोनो काज होइ छन्‍हि‍ ओ तीनू भाँइ -अपना लगा चारू- केँ जरूर जानकारीमे दइये दैत छथनि‍। मुदा भैयारीक संग दि‍यादनि‍यो तँ बराबर भइये जाइत अछि‍। एक बाप-माए वा सहोदर पीती-पि‍ति‍आइनि‍क बीच जे सि‍नेह रहैत ओ तँ चारि‍ गामक चारि‍ दि‍यादि‍नी एने तँ कि‍छु-ने-कि‍छु गड़बड़ भइये जाइत अछि‍। कारणो अछि‍ मि‍थि‍लांचलोमे एक सीमा कातक गाम आ दोसर सीमा कातक गामक बीचक दूरी कि‍छु-ने-कि‍छु खान-पान, रहन-सहन, बोली-वाणीमे कि‍छु-ने-कि‍छु दूरी बनले आबि‍ रहल अछि‍। तहूमे जइ इलाकामे बाढ़ि‍क उपद्रव कम छै आ जइ इलाकामे बेसी छै, दुनूक जीवन शैलीमे बदलाब अबै छै। जखने जीवन-शैली बदलत तखने जीवन पद्धति‍ बदलत। जखने जीवन पद्धति‍ बदलत तखने जीवन लीला बदलए लगैत अछि‍। तहि‍ना गाममे अखड़ाहा रहने कि‍छु-ने-कि‍छु लूरि‍ कुस्‍तीक भइये जाइ छै।
तहि‍ना मध्‍य मि‍थि‍लांचलक भाषामे पश्चि‍म भोजपुरी सीमा क्षेत्रक सुआसि‍न एने भाषामे कि‍छु-ने-कि‍छु रूप बदलले रहै छै। जइसँ भाषा -बोली-वाणी- पर प्रभाव पड़ै छै। तहि‍ना पूवरि‍या इलाका वा दछि‍नवरि‍या इलाकाक प्रभावसँ पड़ि‍ते आबि‍ रहल अछि‍। जहाँ धरि‍ कुटुमैतीक प्रश्न अछि‍ ओ तँ भागलपुरसँ मोति‍हारी आ जनकपुरसँ सि‍मरि‍या धरि‍ होइते आबि‍ रहल अछि‍।
एकाएक श्‍यामक मनमे भाइक प्रति‍ सि‍नेह कि‍छु कमए लगलनि‍। सि‍नेहमे कमी एने काजमे कमी आबए लगलनि‍। जेना शुरूसँ परि‍वारक काजक जानकारी सभकेँ दैत अबैत छेलखि‍न तइमे कि‍छु कमी आबए लगलनि‍। तीनू भाँइ खेलौड़ि‍या स्‍वाभावक रहबे करनि‍, तइ बीच काजक आदेश कम पाबि‍ आरो खेलौड़ि‍या भऽ गेल। अखन धरि‍ घनश्‍यामक नजरि‍मे श्‍याममे कोनो कमी नै देखि‍ पड़नि‍। हि‍साबक जरूरते ने बुझथि‍। श्‍यामक मनमे िसनेह कमैक कारण भेल जे पत्नी सदति‍ काल कानमे घोरि‍-घोरि‍ पि‍अबनि‍ जे सम्‍पत्ति‍ अपन आ सुख-मौज दि‍याद सभ करैए। पहि‍ने तँ श्‍याम पत्नीकेँ सेवक बुझैत आबि‍ रहल छलाह। ई नै बुझैत छलाह जे दि‍आदि‍नीसँ दि‍यादि‍यो ठाढ़ करैत अछि‍। मुदा वि‍चारो तँ कि‍छु छिऐ अड़ि‍ कऽ पत्नी पूजे करैकाल खि‍सि‍या-खि‍सि‍या बाजए लगलखि‍न-
जइ पुरुखकेँ कोनो बात बुझैक ज्ञाने ने छै, ओ पुरुख नै पुरुखक झड़ छी।
पत्नीक बात श्‍यामकेँ छातीमे धक्का देलकनि‍। मन कहए लगलनि‍ जे झड़क अर्थ तँ ओ होइत जे कखन अछि‍ आ कखन अपने झड़ि‍ जाएत तेकर कोनो ठेकान नै। जे पाछू दि‍स ससरत ओ पौरुष केना पाबि‍ सकैए। मुदा अखन मुँह खोलैक तँ समए नै अछि‍ ि‍सर्फ सुनैक समए अछि‍। जहि‍ना बाल्‍टी भरि‍ पानि‍मे नेबो आ चीनी रखि‍ये देने तँ सरबत नै बनैत अछि‍। नेबोकेँ काटि‍ कऽ गाड़ि‍ रस मि‍लौल जाइत अछि‍ तहि‍ना चीनि‍योक अछि‍। जहि‍ना एक शब्‍द वा एक पाँति‍ पढ़लासँ बूझि‍मे नै अबैत तँ या तँ दोहरा-दोहरा पढ़लासँ वा अगि‍ला-पछि‍ला पाँति‍क मि‍लानसँ बूझल जाइत अछि‍ तहि‍ना अगि‍ला बातक प्रतीक्षामे श्‍याम आँखि‍ उठा पत्नीपर देलनि‍। नजरि‍क पानि‍ देखि‍ पत्नी बूझि‍ गेलखि‍न जे अगि‍ला बात सुनैक प्रतीक्षा कऽ रहल छथि‍‍। जहि‍ना मधुमाछीक सभ छत्तामे एक्के रंग मधु नै रहैत छैक, कोनोमे कम तँ कोनोमे बेसि‍यो रहैत आ संग-संग नव-पुरान -पहि‍लुका-पछि‍ला- सेहो रहैत अछि‍। तँए ठि‍कि‍या कऽ ओइ छत्ताकेँ पकड़ब बुद्धि‍यारी छी जइमे डगडगी भरल नवका मधु रहैत अछि‍। पुरना तँ दवाइ-दारूक लेल नीक, खेबा लेल तँ नवके नीक। वकील जकाँ अपन पक्ष रखैत पत्नी बजलीह-
अखन धरि‍ अहाँ एतबो ने बुझै छि‍ऐ जे चारू भाँइक बीच पनरहटा बाल-बच्‍चा आंगनमे अछि‍। पनरहोक खर्च तँ सम्मि‍लि‍तेसँ चलैए। एके रंग लत्ता-कपड़ा, खेनाइ-पीनाइ अछि‍ मुदा ई बुझै छि‍ऐ जे ऐमे अपन कते हएत आ दि‍याद-वादक कते हएत?”
श्‍यामक नजरि‍ धसए लगलनि‍। पत्नीक वि‍चारमे कि‍छु तत्व बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा स्‍पष्‍ट नै भऽ सकलनि‍। प्रतीक्षाक नजरि‍ उठा आगू तकलनि‍। अवसरक लाभ उठबैत पत्नी दोहरौकनि‍-
पनरहटा बाल-बच्‍चामे अपन तीनटा अछि‍। बाकी बारह तँ भैयारि‍येक भेल। तइ संग अपने दू परानी छी आ ओ छह परानी अछि‍। कनी जोड़ि‍ कऽ देखि‍यौ जे अधा हि‍स्‍सामे अपन कते हएत आ कते हुनका सबहक।
श्‍यामक मन सहमलनि‍। मन कहलकनि‍ जे पत्नी अक्षरत: सत्‍य कहलनि‍। सम्‍पत्ति‍क अर्थ होइत छै सुख-भोग आकि‍ परसादी बाँटब।
पूजासँ उठि‍ भोजन कऽ श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
घनश्‍याम, दुनि‍याँक तँ बेवहारे भैयारीमे भीन होएब रहल अछि‍। अपनो सभकेँ कम नै नि‍महल। गाममे देखै छि‍ऐ जे कते छौड़ाकेँ मोछक पम्‍हो ने आएल रहै छै आ बापसँ भि‍न भऽ जाइए अपना सभ तँ सहजहि‍ धीगर-पूतगर भेलौं। भीन भऽ जाह।
जेना धनश्‍यामो प्रतीक्षेमे रहए तहि‍ना धाँइ दऽ बाजल-
भैया, सभ दि‍न अहाँक आदेश मानैत एलौं, आइ नै मानब से उचि‍त हएत। मुदा अहाँ जहि‍ना जेठ भाय छी तहि‍ना तँ रामो-बलराम अछि‍। भलहि‍ं ओ छोट भाए छी, जे कहबै से करत। मुदा तैयो बि‍ना पुछने कि‍छु नै कहब।
बड़ बढ़ि‍या, अखन जा कऽ पूछि‍ लहक। सुति‍ कऽ उठै छी तखन फेर गप करब।
घनश्‍याम उठि‍ कऽ वि‍दा भेल।

भैयो, तीनू दि‍यादनि‍यो आ दुनू भाएओकेँ एकत्रि‍त कऽ घनश्‍याम बाजल-
सबहक बीचमे कहै छी। भैया बजा कऽ कहलनि‍ जे भीन भऽ जाह। से कि‍ वि‍चार?”
बलराम- वि‍चार की भैया, ओ असगर छथि‍ तँ जीवि‍ये लेताह आ हम तँ सहजहि‍ तीन भाँइ छी। हुनका जे मनो खराप हेतनि‍ तँ ने कि‍यो डॉक्‍टरो ऐठाम लऽ जाइबला नै हेतनि‍ आ ने बजारसँ दवाइ कीनि‍ कऽ अनैबला हेतनि‍।
घनश्‍याम- अहाँ सबहक की वि‍चार?”
पहि‍ल दि‍यादि‍नी- अपन परि‍वार बूझि‍ नौरी जकाँ दि‍न-राति‍ खटै छी तइपर जे पाँचो मि‍नट चाहमे देरी हेतनि‍ तँ साँढ़-पाड़ा जकाँ गर्द करए लगताह। भने नीक हएत। जानो हल्‍लुक हएत।

सुति‍ उठि‍ चाह पीब पान खा श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़लखि‍न। अबि‍ते घनश्‍याम लगमे बैसि‍ बाजल-
जे वि‍चार अहाँक अछि‍ भैया, से हमरो अछि‍। अखने बाँटि‍ लि‍अ।
घनश्‍यामक बोली सुनि‍ श्‍याम सहमलाह। मनमे उठलनि‍ जे हम जे बुझै छि‍ऐ तइसँ भि‍न्न ने तँ बुझैए। मुदा बात तँ आगू बढ़ि‍ गेल आब जँ पाछू हटब सेहो नीक नै।
श्‍याम- बटवारामे कोनो बेवधान तँ छहे नै। सभ कि‍छु अधा-अधी भेलह। तखन बाप-पुरुखाक बनौल जेठांश होइए से तँ तोहीं बजबह?”
श्‍यामक वि‍चार सुनि‍ घनश्‍याम बाजल-
अहाँ पि‍तासँ हमर पि‍ता जेठ छलाह। संयोग नीक रहलनि‍ जे भि‍नौजी नै भेलनि‍। जखन पि‍ताक अधि‍कारक हि‍साबसँ आइ बटै छी तँ हुनकर जेठांश कते हेतनि‍ से तँ हमर हएत कि‍ने।
श्‍याम- देखह, तमसा कऽ नै बाजह। सभ दि‍न अपन सतभैंया परि‍वार वि‍चारक परि‍वार मानल जाइत रहल अछि‍, तइठाम कनी-मनी चीज ले झगड़ब नीक नै।
घनश्‍याम- बात तँ बड़ सुन्‍दर आ बड़ सोझगर कहलौं मुदा एक वंशक सभ रहि‍तो अहाँ अइल-फइलसँ रही आ हम सभ बटाइत-बटाइत एते बँटा जाइ जे घसाएल सि‍क्का जकाँ सभ कि‍छु रहि‍तो चलबे ने करी, से केहेन हएत?”
श्‍याम- तोहर की वि‍चार?”
घनश्‍याम- तीनू भाँइक वि‍चार अछि‍ जे घरसँ घराड़ी, खरि‍हानसँ खेत धरि‍ चारू भाँइ एकरंग कऽ लि‍अ। से नै तँ.....।
श्‍याम- तँ की?”
घनश्‍याम- ई तँ माटि‍क चर्च केलौं। पोखरि‍ सेहो तहि‍ना बाँटब। जँ से दइले तैयार नै हएब तँ जमीनक फैसला जमीनपर हएत।
श्‍याम- सएह।
घनश्‍याम- हँ, सोलहन्नी सहए।
 ~

साझी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


गामक पहि‍ल घटना तँए गाममे वि‍चि‍त्र हलचल भोरेसँ उठि‍ गेल। उठबो केना ने करैत, अखन धरि‍ तँ इति‍हासो यएह कहलक आ समाजो सएह। मुदा घटना बदलने इति‍हासक रस्‍तो बदलि‍ जाइ छै आ वहि‍ला समाज सेहो वाह पकड़ै छै। वि‍चि‍त्र हलचलक कारण भेल वि‍चि‍त्र घटना। वि‍चि‍त्रक कारण भेल चि‍त्र-वि‍चि‍त्र बनि‍ गेल। तँए गामक सबहक मनकेँ  कुचि‍त्र-सुचि‍त्र बनबए लगल। जते जेकर रंग-गाढ तेहेन तेकर चि‍त्र गढ़गर। तँए एक रंगाह नै भेने आरो बेसी हलचल। मनक प्रेम तँ तखन ने बढ़ै छै जखन अनुकूल प्रेमी भेटै छै। प्रेमि‍यो कि‍ कोनो एक्के रंगक होइए जे ओहीपर नजरि‍ पड़तै आ नजरि‍ पड़ि‍ते धारक पानि‍ जकाँ मोटाए लगतै। जँ से नै हेतै तँ जेहो छै तइमे सँ कि‍छु रौदमे उड़तै, कि‍छु धरती पीतै आ कि‍छु लोको घटौतै। जहि‍ना बि‍लंबसँ चलैवाली गाड़ी टीशने-टीशन वि‍लमैते चलै छै, भलहिं कुमेल भेने रस्‍ता-बाटमे छोड़ि‍ आन-आन दौड़ैत चलैए। ओना गामक वि‍चि‍त्र घटना देखि‍ सबहक मन उड़ैत मुदा जि‍नगीक काज पकड़ि‍-पकड़ि‍ हटबैत गेल। कतबो हटल तैयो तँ बाकि‍ये रहि‍ गेल। सोलहन्नी नहि‍ये हटल। नहि‍ये हटल तँ कि‍ हेतै? आधासँ बेसी तँ रहि‍ये गेल, तँए बहुमते सँ ने समाज देश सभ चलै छै। तखन गामेमे कोन उनटन भऽ गेलै जे गाम-समाज नै चलतै। लेकि‍न गामो तँ सोलहन्नी नहि‍ये मरि‍ गेल जे कि‍यो नामो लइबला नै रहतै। से तँ अछि‍ये। सेहो तेहेन अछि‍ जे हजार कानकेँ एक्के बेर भरि‍ देत। जहि‍ना पूजा करब काज छी तइसँ कि‍ हल्‍लुक काज फूल तोड़ब छी। जखन नै छी तखन कि‍अए दुनू दू रंग हेतइ।
चौबट्टी परक इनारक चलती सभसँ बेसी भऽ गेल। नवकी पनि‍भरनी सभ थैर-गोबर छोड़ि‍-छोड़ि‍ पहि‍ने पानि‍ये भरए इनारपर पहुँचि‍ गेल। मुदा तँए कि‍ पुनि‍यो दादी आ घुरनि‍यो दीदी ओहने अगुताएल जे पहि‍ने पानि‍ये भरए पहुँचती। एक तँ बेटा-पुतोहुकेँ डाकनि‍ देतीह जे ऐसँ नि‍पुत्रे नीक। ने तँ ऐ चौथापनमे अपने घैल उठाबी। तहूमे नवका आगि‍ गाममे पजड़ल। माघमे अनको धधगड़ घूर भेटए तँ ओकरा छोड़ि‍ देब बेवकुफि‍ये छी, भलहिं अपनो धि‍या-पुता कि‍अए ने घरमे कठुआए। ओना दुनू गोटेक घर इनारसँ बहुत हटल नै मुदा लग-दूर कोन बात भेल? लगोक बाटमे दसटा गप करैबला भेटल तँ बेसि‍ये समए लागत आ नहि‍ये भेटने दूरो लग भऽ जाइ छै। सएह दुनू गोरे, पुनि‍यो दादी आ घुरनि‍यो दीदीकेँ भेलनि‍। जबाबदेहि‍यो तँ कम नहि‍ये छन्‍हि‍ अनकर बातसँ ऊपर उठा अपन बात नै रखती तँ पुनि‍या दादी आ घुरनी दीदी कथीक। तइसँ नीक तँ नवकी जे कमसँ कम अपनो हि‍त-अपेछि‍त रसगर बात बजै छथि‍।
संजोग तँ संजोगे छी। चाहै काज करैक संजोग हुअए आकि‍ भोज खाइक, नीके होइ छै। भलहिं ओ चालि‍ बदलि‍ कुसंजोगे कि‍अए ने भऽ जाए। पूबसँ पुनि‍या दादी आ दछि‍नसँ घुरनी दीदी पहुँचली। पुनि‍या दादी घुरनी दीदीसँ जेठ। तँ जेठक आदर करैत घुरनी दीदी इनारपर चढ़ैसँ पहि‍ने स्‍वागत करैत पुनि‍या दादीकेँ टूसि‍ देलखि‍न-
जहि‍ना पावनि‍ दि‍न परि‍वार हड़बड़ा जाइत तहि‍ना दादीकेँ देखै छि‍अनि‍?”
अपन स्‍वागत देखि‍ पुनि‍या दादीक मन खुशीसँ खुशि‍या गेलनि‍। टुटल दाँतक मुँहसँ मुस्‍की दिअए लगलखि‍न। अखन धरि‍ पुनि‍या दादीकेँ धेनहि‍ जे गामक बात हमरा छोड़ि‍ दोसर बुझबे ने करैए। भलहिं सात पुतोहु हाथे मारि‍-गारि‍ कि‍अए ने खाथि‍ होथि‍। पहि‍ने तँ आँखि‍ उठा इनार दि‍सि‍ तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे जि‍ज्ञासु बेसी अछि‍। घुरनी दीदी दि‍स देखैत बजली-
गै घुरनी, कहुना भेलेँ ते बेटि‍ये भेलेँ, आइ-काल्हि‍क नव-नौतुक हमर-तोहर बात सुनतौ। देह देखि‍ सभ अपने-मोटाएल अछि‍। मुदा तोरा नै कहबो से केहेन हएत?”
जि‍ज्ञासा भरैत घुरनी दीदी मलसारि‍ दैत बाजलि‍-
कोनो तेहेन गप छन्‍हि‍ दादी।
पुनि‍याकेँ सभ दादी कहैत आ घुरनीकेँ दीदी। ओना उमेरो हि‍साबसँ उचि‍ते छलैक। मुदा दुनू गामक पुतोहुए बनि‍ गाम आएल रहथि‍। दीदीक आदरसँ दादी आरो अह्लादि‍त होइत। जहि‍ना संज्ञाक संग सर्वनाम, वि‍शेषण आदि‍ सभ अगुआ-पछुआ बनि‍ रथकेँ खि‍ंचैत तहि‍ना दादीक मनमे सेहो उठलनि‍। सोझे बजैसँ नीक बूझि‍ पड़लनि‍ जे अलंकार-छन्‍द बनबे कि‍अए कएल जखन ओकर बेवहारे नै हेतै। अलंकार शैलीमे गामक चौहद्दी बान्‍हि‍ बाजए लगलीह-
एहेन अतहतह ते एक गामक के कहए जे परोपट्टामे कतौ ने देखै छी, जे.......।
दादीकेँ ि‍वह्वल होइत दीदीक जि‍ज्ञासा तेज भेलनि‍। लपकि‍ कऽ पुछलखि‍न-
से की, से की दादी?”
जहि‍ना, आमक गाछक डारि‍-गाछ पाकल आम देखि‍ झमाड़ि‍-झमाड़ि‍ डोला पाकल आम खसबए चाहैत, मुदा डोलौनि‍हार ई नै बूझि‍ पबैत जे पाकले खसत आ काँच नै खसत। हँ एहनो होइ छै जे बेसी पाकलक डंटीक रस सूखने असानीसँ खसैत मुदा जे डमहा पाकल छै ओ तँ ओहि‍ना छै जहि‍ना डमहा काँच होइ छै। तहि‍ना दादीक मन छगुन्‍तासँ छनकैत जे एहेन तँ कतौ ने भेल से गाममे केना हएत? मुदा भऽ तँ गेल।
भेल ई जे ज्ञानचन काकाकेँ तीन बेटा आ दू बेटी छन्‍हि‍। तीनू बेटा पढ़ि‍-लि‍खि‍ कऽ आने जकाँ नोकरी करए गाम छोड़ि‍ देलनि‍। भीन भऽ गेलखि‍न कि‍ साझि‍येमे से नै कहि‍। मुदा ज्ञानचन काकाकेँ एको पाइ मदति‍ नै केलखि‍न। ओना तीनू भाँइ उपरा-उपरी पढ़लो-लि‍खल आ नीक नोकरि‍योमे। पहि‍ल बेटी डाॅक्‍टर पति‍क संग सेहो बाहरे रहै छथि‍न। छोट बेटी वैधव्‍य भऽ गेलखि‍न। असमए बेटीकेँ वि‍धवा भेने ज्ञानचन काकाकेँ जबरदस धक्का मनमे लगलनि‍। अपनोसँ बेसी काकीकेँ लगलनि‍। एहेन कोन माइक छाती हएत जे अपने सुहागि‍न आ बेटीकेँ वैधव्‍य देखए चाहत। मुदा उपाइये की? दुखक तँ सभसँ पैघ दवाइ नोर छी। जते नोर झड़त तते भारी दुख मेटाएत।
जहि‍ना रहीक संग मक्‍खन, छाहली मोहि‍ आगि‍पर लोहि‍यामे चढ़ा घी बड़कौल जाइत से दादीकेँ बड़कौले ने होन्‍हि‍ तँए क्षुब्‍ध रहथि‍। बजलीह-
आब तँ अपनो उमेर ढेरी भेल तइपर नाना जनम एहेन काज नै देखने छलौं से गाममे देखै छी।

दादीक बात सुनि‍नि‍हारकेँ आरो जिज्ञासा बढ़ा देलकनि‍। एक्के-दुइये सभ पनि‍भरनी एक्के बरे दादीपर जोर देलकनि‍। थकथकाइत दादी बजए लगलीह-
ज्ञानचनक तीनू बेटा रूपचन, गुनचन वि‍चारचनकेँ जखन नोकरी छुटलनि‍ तखन गाम आबि‍ साझी भऽ गेलखि‍न।
दादीक उत्तरसँ संतुष्‍ट नै भऽ दादीक जबाबसँ दीदीकेँ संतोष नै भेलनि‍। पूरब प्रश्न केलखि‍न-
तइसँ पहि‍ने भीन भेल छेलखि‍न?”
दीदीक प्रश्नसँ दादीकेँ क्रोध उठलनि‍ बजलीह-
जेना लोक केबाड़ चौकी काटि‍-काटि‍ बॅटबारा करैए तेना होइतै, तखन तँ बुझि‍तहक। आकि‍ मनुखकेँ इशारा होइ छै। मझि‍ला बेटा अपन बेटीक बि‍आहमे चालीस लाख रूपैया खर्च केलकै, मुदा छोटका भाएकेँ पाइ नै देलकै तँ नून-तेल लगा केलक। कि‍ यएह सझि‍या भैयारी छि‍ऐ।
दीदी- तखन तँ कमाइयो ने सबहक सभ रंग हेतै। ओ केना मि‍लाओत।
दादी- सएह ने देखहक। जेकरे बेसी दै सएह पहि‍ने कहलकै जे हमरा एत्ते अछि‍। सभ मि‍ला कऽ परि‍वार चलौ।

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धोतीक मान :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



जहि‍ना तेहैया बोखार तरे-तर अबि‍तो रहैत आ जेबो करैत रहैत तहि‍ना लाल काकाकेँ तीन दि‍नसँ विचि‍त्र सोग गहि‍ कऽ पकड़ि‍ लेलकनि‍। ओना जखन कोनो काजक अनमेनामे लगि‍ जाइ छथि‍ तखन छोड़ि‍यो दैत छन्‍हि‍। मुदा काज बदलि‍ते पुन: आबि‍ जाइ छन्‍हि‍। मुदा कहबो केकरा करथि‍न, घरेलू सोग छि‍यनि‍। सोगो तेहेन जे जहि‍ना ति‍आरि‍ जालमे माछ फँसि‍ जाइत। ने बंशी जकाँ जे बोरक सुगंधसँ फँसि‍ जान गमबैत आ ने सहतक ठनका जकाँ। मुदा तैयो तँ घाउ लगले छन्‍हि‍।
सोगक दोसरो कारण छन्‍हि‍। ओ ई छन्‍हि‍ जे दुनू परानी -पति‍-पत्नी- क बीच कहि‍यो वैचारि‍क संघर्ष, रक्का-टोकी नै होइत छलन्‍हि‍, जो सद्य: सोझामे देखि‍ पड़ैत छन्‍हि‍।
बात कि‍छु ने बुढ़ि‍या फूसि‍ मुदा सोग तेहेन जे रोगौने टा नै, सोगौने छन्‍हि‍। जइसँ कोनो काज करैमे मने ने लगए दैत छन्‍हि‍।
तीन दि‍न पहि‍ने जखन सढ़ूआरएसँ भरपूरा न्‍योंत एलनि‍ तखनेसँ सोगक आक्रमण भेलनि‍ जे धेनहि‍ छन्‍हि‍। ने छोड़ैत बनै छन्‍हि‍ आ ने पूरैत। साधारण जि‍नगी जीबैक अभ्‍यास तँए पाइ-पाइक हि‍साब जोड़ि‍ समुचि‍त काज करैत चैनसँ चलैत छन्‍हि‍। गति‍ अनुकूल आमद-खर्च रहने भातक उजड़ा आॅकर जकाँ दाँत तर खटखटाइत रहनि‍। ऑकर संग भातो फेकए पड़तनि‍। नजरि‍ उठा कऽ देखथि‍ तँ सोझेमे देखि‍ पड़नि‍ जे भारमे धोतीक खर्च वाह्ययात अछि‍, कि‍एक तँ धोतीक मान तँ ओइ समए सर्व सम्‍मति‍ छल जखन एकाधि‍कार बेपार जकाँ छल, मुदा जइठाम दू सए रूपैयाक धोती लऽ जाएब, तइठाम कि‍यो पहीरि‍नि‍हार नै अछि‍, मांगलि‍क काज छोड़ि‍ धोती म्‍यूजि‍यमक वस्‍तु बनि‍ गेल अछि‍। अपन तँ दू दि‍नक कमाइ दहा जाएत। मुदा पत्नी तँ मानती नै। अपना सीमामे सभ बताह होइए, भलहिं आन सीमामे नाङरि‍ पटपटबए आकि‍ दाँत चि‍आरए। मानबो उचि‍त नहि‍ये। कि‍अए तँ पत्नीक मान तँ परि‍वारमे दादीक छन्‍हि‍। बाबा-दादाक पकि‍या संगी। शुभ काजक शुरूहेमे खट-पट भेने कहीं अंत धरि‍ ने खटपटाइत रहि‍ जाए, तेकर डरो रहनि‍। वि‍चारि‍ लेब जरूरी बूझि‍ लाल काकीकेँ पुछलनि‍-
काल्हि‍ये ने न्‍योंत पूरए जाएब। आइये ने सभ ओरि‍यान-बात कऽ लेब।
लाल काकी- घरक ओरि‍यान ने हम करब, आकि‍ हाटो-बजारक करब।

लाल काकीक चढ़ल तर्क देखि‍ लाल काका दोहरौलखि‍न-
बजारक काज की सभ अछि‍।
आर कि‍छु ने अछि‍। खाली जोड़ भरि‍ धोती आ अंगा आ गमछा कीन लेब।
लाल काकी आढ़ति‍ सुनि‍ लाल काका मने-मन जोड़थि‍ तँ देखि‍ पड़नि‍ जे कि‍यो धोती पहीरि‍नि‍हारे परि‍वारमे नै अछि‍, जखन धोती नै तखन कुर्ता आ गमछा तँ सूखल नून-चूड़ा भेल। कतबो हएत तँ जलखैइये। मुदा बेवस भेल। तैयो पुछलखि‍न-
आब कि‍ कोनो भार-दौर चलै छै जे ई सभ लऽ जाएब?”
लाल काकाकेँ चि‍लहोरि‍ जकाँ झपटैत लाल काकी कहलखि‍न-
चाउर दहीक बदला रूपैया लऽ जाएब मुदा नव वस्‍त्र नै लऽ जाएब से केहेन हएत?”
कहैत नोर ढवढबा गेलनि‍। फटैत छातीक दर्द बाँसक झाँझन जकाँ झनझनाए लगली-
बहि‍न मरमा मरि‍ये गेल, मुदा अंतमे मुँह नै देखि‍ पेलौं। भगवानो तेहेन जे सभटा दुख ओकरे घरमे देलखि‍न। चढ़ल जुआनी दुनू परानी मरल, ढाइ बर्खक मइटुग्‍गर-बपटुग्‍गर बेटाक बि‍आह छि‍ऐ, तेकरा पाँच हाथ वस्‍त्र हम नै देबइ, तँ दुनि‍याँमे के देतइ।

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एकोटा ने :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



पुरमपुर गाममे पुरन कक्काक परि‍वारकेँ गौआेँ आ अनगौआेँ पुनचन परि‍वारसँ जनैत छन्‍हि‍। ओना अस्‍सी बर्खक अवस्‍थामे कहि‍यो पुरन काका कनमा-कनइ नै पढ़लनि‍ मुदा कनमा-कनइ दुनूक कि‍रदानी देखि‍-देखि‍ सदि‍खन क्षुब्‍ध रहै छथि‍। गरे ने बैसै छन्‍हि‍ जे जे वस्‍तु तरजूपर रखि‍ बटि‍खाड़ासँ तौलल जाएत, ओ जँ बँटैत-खोंटैत, पौआ-कनमा होइत रत्ती-माशामे चलि‍ जाएत तँ चलि‍ जाएत, मुदा दुनि‍याँक एते नमहर धरती केना बँटाएत-खोंटाएत कनमा-कनइ-फनै दि‍सि‍ पहुँचि‍ जाइए। बादलक कि‍रदानी की‍ पतालक पानि‍ सोखि‍ लेत? जँ सोखए चाहत तँ राखत कतए? हवा-बि‍हाड़ि‍ केत्तेकाल अँटका कऽ रखि‍ सकैए। खैर जे होउ मुदा पुरन काका करैला लत्तीक मचान जकाँ अपना परि‍वारकेँ बनाैने छथि‍। जहि‍ना सक्कत-कड़गर बीआ धरती धारण करि‍ते, दीयाक तेल-बत्ती जकाँ अपन ति‍ल-ति‍ल अर्पित करए लगैत अछि‍ तहि‍ना ने करैलोक बीआ केने अछि‍। वएह अंकुर ने धरती धारण करैत ऊपर आबि‍ लत्ती बनि‍ लतड़ए लगल। भलहिं पातर-छीतर कड़चीक आलम संग मचानपर कि‍अए ने पहुँचल हुअए। तँए कि‍ ओ अपन शरीरक रच्‍छा करैत मुँह बँचबैत नै पहुँचल? जरूर पहुँचल अछि‍।
पुरन काकाक परि‍वारोक सभ तेहने छन्‍हि‍ जे अपनामे जे घंघौज होन्‍हि‍ मुदा काका लग पहुँचते मन सकदम भऽ जाइत छन्‍हि‍, कि‍अए तँ सभ बुझैत जे अगि‍आएलमे हँसि‍यो ही-ही-आ कऽ धड़ैत छै। तँए जहि‍ना रस्‍तापर ऐँठैत-जुठैत चलैत साँप बोहरि‍मे प्रवेश करि‍ते सोझ भऽ जाइत तहि‍ना काकाक सोझमे परि‍वारक सदस्‍य। ओना, बि‍नु पएरक चलैबला साँप माटि‍पर चलि‍ केना सकैए। मन-चि‍त्त मारि‍ पुरनो काका राति‍-दि‍न परि‍वारेक पाछू लगल रहै छथि‍। अखनो मनमे ओहि‍ना ओ बात तड़गर बनल छन्‍हि‍ जे वीर भोग्‍या बसुंधरा। जे ऐ धरतीसँ प्रेम करत ओकरे प्रेमी बनि‍ धरति‍यो चुम्‍मा लेत। कखनो माए बनि‍, कखनो भाए-बहि‍न बनि‍।

चेतनसँ बालबोध धरि‍क परि‍वार पुरन काकाक छन्‍हि‍। तालो मेल अजीव छन्‍हि‍। चेतन सभ पुरन काकाकेँ गार्जन बूझि‍ अपन छुट्टी नेने रहैए तँ बालो-बोध सभ अपन बाबा बूझि‍ अपने सभ कि‍छु बुझैए। परि‍वारक सभसँ छोट बच्‍चा चारि‍ सालक छन्‍हि‍। तालो-मेल नीक छन्‍हि‍। अंगनाक सभ समाचारक समदि‍या रहि‍तो संवाद-बाहकक काज करि‍ते छन्‍हि‍। एहेन चेला भेटबो मोसकि‍ल। मुदा से तँ छन्‍हि‍ये। नवका दोसि‍ति‍यारे तँए बेसीकाल एकठाम रहने चाहो-बि‍स्‍कुट संगे करै छथि‍। काका खुशी जे अपन बात पहि‍ने उसारि‍, भरि‍ दि‍न गप सुनैले तैयार रहैए। आ पोता दीनमा खुशी जे आँखि‍-कान तँ तखने काजक बनत जखन ओकरासँ काज कराएब। नइ तँ गमे-गमे गेड़ी बनि‍ जाएत। मुदा से कहाँ होइ, एक काने सुनै आ दोसर काने उड़ि‍ जाए। उड़ैत-उड़ैत सुतली राति‍मे सभ उड़ि‍ जाए।
वसन्‍तक आगमन भऽ गेल। कि‍छु दि‍न पूर्ब जे जाड़सँ जड़ि‍आएल छल, पालासँ पलाएल छल ओ फुड़फुड़ा कऽ उठल। सुखाएल-सड़ल लत्ती आ कुमही जकाँ पबि‍ते वसन्‍ती हवामे उड़ए लगल। मुदा तैयो बेदरंग भेल धरती, घर-अांगन जकाँ बाहरै-सोहरै ले इशारा दि‍अए लगल। रसे-रसे रस भरल हवाक रमकी रमकए लगल। जहि‍ना सेवा ि‍नवृत्ति‍क समए कोनो अफसरकेँ स्‍वर्ग सुझैत तँ कोनोक आगूमे नांगट नर्कक नाच होइत अछि‍, तहि‍ना शि‍शि‍र -सि‍रसि‍राइत समए- वसन्‍तक बीच होइत। मुदा से बात पुरन काकाक परि‍वारमे नै छन्‍हि‍। कोल्हुक बड़द जकाँ सभ परि‍वारक अपने-अपने नाचक पाछू लागल रहैत छन्‍हि‍।
दि‍न उगि‍ते दीनमा, बाइस खा जत्ताक -माटि‍क बनाओल- दुनू पट्टा दुनू हाथमे नेने दरबज्‍जाक आगूमे बैसि‍, रस्‍ताक धूरा-गरदाकेँ जत्तामे पीसए लगल। बि‍नु देखनौं आशा बनले रहै जे बाबा दरबज्‍जेमे छथि‍। सुतल छथि‍ कि‍ जागल, तइसँ कोन मतलब दीनमाकेँ। ओ तँ अपन काजमे बेहाल। मनमे रहबे करै जे चाहक बेर भऽ गेल अछि‍ माए चाह आनि‍ देबे करतनि‍, हमहूँ पीबे करब। परि‍वारक बोझसँ दबल थोड़े रहै जे नून नै अछि‍ तँ केसक तारीखपर जाए पड़त। जहि‍ना तत्ववेत्ता तत्‍वचि‍न्‍तनमे रमल रहैत तहि‍ना दीनमा अपन काजमे हराएल। कोन मतलब ओकरा रहै जे बुझैत, काजक हराएल अधखड़ुआ रहि‍ जाइए।
माइक हाथक चाह देखि‍ते दीनमा, जत्ता छोड़ि‍ आगूए आगू दरबज्‍जाक ऊपर चढ़ल। दीनमापर नजरि‍ पड़ि‍ते पुरन काका मुस्‍की दैत कहलखि‍न-
की दीनबाबू, चाहो-ताहक बेर भेलैए आकि‍ नै?”
तहि‍ बीच चाह नेने पुतोहु पहुँच गेलनि‍। दीनमाक नजरि‍ देबालमे टँगल हनुमान जीक छातीक रामपर पहुँचि‍ गेल। देबालमे सटल फोटो देखि‍ दीनमा बाजल-
बाबा, उ फोटो उतारि‍‍ दि‍अ।
दीनमाक बात सुनि‍ पोल्हबैत पुरन काका कहलखि‍न-
बौआ, पहि‍ने चाह पीब लि‍अ, पछाति‍ ई सभ हेतइ?”
जेना बुझले रहै तहि‍ना दीनमा बाजल-
पहि‍ने अहाँ पीब ने लि‍अ, पाछू हम‍ पीब।
बहाना पकड़ाइत देखि‍ पुरन काका कहलखि‍न-
हमरा हाथमे गि‍लास अछि केना उतारल हएत?
चाह पीब, खि‍ड़कीपर राखल खुरपी उतारि‍‍ पुरन काका बाड़ी-झाड़ी दि‍सि‍ वि‍दा होइक वि‍चार केलनि‍। हाथसँ खुरपी छि‍नैत दीनमा आगू-आगू वि‍दा भेल।
दाड़ि‍मक बाड़ी पहुँचि‍ काका हि‍या-हि‍या हि‍यबए लगलाह। गाछक जड़ि‍मे पानि‍क अभाव बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा गाछक डगडगी आ फूलसँ लदल गाछ देखि‍ मन ललि‍या गेलनि‍। लाल-लाल फूलसँ लदल गाछ। सभ डारि‍मे फूल लागल। खुरपी नेने दीनमा खाधि‍ खुनैक जगह हि‍यबैत। हि‍या-हि‍या फूलकेँ देखैत हरि‍आएल-हरि‍आएल फड़ो देखलनि‍। मन भेलनि‍ जे जतबे-ततबे जड़ि‍ सबहक खढ़ उखाड़ि‍ दिएे। मुदा नजरि‍ दाड़ि‍मक काँटपर गेलनि‍। डारि‍ये काँट भऽ जाइए। ऊपर-नि‍च्‍चा सगतरि‍ काँट। जखने अपने खढ़ उखाड़ए लगब तखने इहो -दीनमो- कि‍छु-ने-कि‍छु करए लगत। तहूमे खुरपी हाथेमे छै। तेहेन झाड़ी अछि‍ जे सुगबा साँप जकाँ माथमे गड़तै कि‍ गरदनि‍मे तेकर कोन ठेकान। जखने काँट गड़तै कि‍ कानब शुरू करत। जखने कानत तखने ओकरा चुप करब आकि‍ गाछक जड़ि‍क खढ़ उखाड़ब। समझौता करैत काज मनमे एलनि‍। काज ई जे फड़क गि‍नती कऽ ली। दीनमा हाथक खुरपी आड़ि‍पर रखि‍, कोरामे उठा काका कहलखि‍न-
बौआ, अहाँकेँ नेने हम टहलब आ अहाँ फड़ गनब।
नव फड़क गि‍नतीक काज देखि‍ दीनमाक मन खुशीसँ आरो खुशि‍या गेल। मुदा कट्टा भरि‍ झाड़ीक बगानमे पचासोसँ ऊपर गाछक फड़ केना गनि‍ लेब। तहूमे बीसे तक गनल होइए। गाछक सभ फड़ अपने हि‍या-हि‍या देखथि‍, जे फड़क बीच कीड़ोक असर भेलहेँ आकि‍ नै। अपने तँ एक्केटा गाछक फड़ देखि‍ अन्‍दाजि‍ लेलनि‍ जे कते हएत? जहि‍ना गोल-गोल, कि‍छु नमती नेने लाल-लाल फूल हरि‍अर होइत अपन जि‍नगीक फल पकड़ि‍ रहल अछि‍, तहि‍ना तँ गोटि‍-पङरा कड़ुआएल आमक आकार सेहो पकड़ि‍ रहल अछि‍। एकसँ दोसर गाछक फड़ गनैमे दीनमा बेर-बेर बि‍सरि‍ जाए। कखनो गि‍नति‍ये छूटि‍ जाइ तँ कखनो अंके बि‍सरि‍ जाए। कखनो बीससँ ऊपर नै बढ़ल। अंतमे काका पुछलखि‍न-
बौआ, कते फड़ भेलह?”
बाबाक प्रश्न सुनि‍ दीनमाक मुँहसँ नि‍कलि‍ गेल-
दसटा।
अच्‍छा बड़बढ़ि‍या। आब एतए आबि‍ के खेलि‍हह। ओगरबाहि‍यो भऽ जेतह आ खेलबो करबह।

नीक फसल भेलनि‍। खेबा जोगर फल हुअए लगल। फड़ फल बनि‍ गेल। ओना सजमनि‍ फड़क-फड़े रहि‍ जाइत। मुदा दाड़ि‍म, आम, लताम इत्‍यादि‍ फड़सँ फल बनि‍ जाइत अछि‍। अंति‍म अवस्‍था अबैत-अबैत तूबि-तूबि‍ फल अपने खसए लगल।
गाछक सभ फल समाप्‍त भऽ गेल। जहि‍ना परसौती जनानाकेँ देख-भालक जरूरति‍ पड़ैत तहि‍ना ने बाड़ि‍यो-झाड़ीक अछि‍। ई सोचि‍ पुरन काका दीनमाक संगे दाड़ि‍मक गाछ लग पहुँचलाह। जे कहि‍यो फड़ फूलसँ लदल छल ओ सून-सून भेल, अपन बेथा सुना रहल अछि‍। व्‍यथि‍त मने दीनमाकेँ पुछलखि‍न-
बौआ, कते फड़ अछि?”
वि‍चलि‍त होइत दीनमा बाजल-
एकोटा ने।
ऐ लेल वि‍चलि‍त कि‍अए होइ छी। जहि‍ना समए आएल छलइ तहि‍ना फेनो औतै।
केना औतै?”
समए अनुसार एकर ताक-हेरि‍ करबै तँ एबे करतै।
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ति‍लकोरक तरूआ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


जहि‍ना नमहर दोकानमे प्रवेश करि‍ते जीवनोपयोगी वस्‍तु देखि‍ मन उबि‍आए लगैत जे ईहो कीन लेब, आेहो कीन लेब। मुदा पाइयो आ वि‍चारो तँ ओतै रहैए जतए पहि‍नेसँ वि‍चार भेल अबैए। इच्‍छा रहि‍तो कि‍सुनलाल डेरामे डाइनिंग टेबुल नै लगा ओसारेपर अपनो दुनू परानी आ अति‍थि‍यो-अभ्‍यागतकेँ खुअबैत। कम दरमाहा साधारण जि‍नगी। शहरमे रहि‍तो गामक चालि‍-ढालि‍ बेसी, कारणो स्‍पष्‍ट जे शहरी बनैले शहरी जि‍नगी बनबए पड़ैत। जे ओहि‍ना नै पाइक हाथे बनैत। पाइयक काज मुँहसँ थोड़े होइ छै। भलहिं मुँहक आगू पाइक मोल जेहेन होइ। खास्‍ता कचौड़ी मुँहमे लाड़ैत-चाड़ैत गर लगबैत देवकान्‍त बजलाह-
आह, बुझलह कि‍ने कि‍सुनलाल कि‍छु होउ, दुनि‍याँ सात बेर कि‍अए ने उनटै-पुनटै मुदा अपना ऐठाम गामक जे ति‍लकाेरक तरूआ अछि‍, ओकर तुलना कतए हएत?”
देवकान्‍त भाइक बात सुनि‍ कि‍सुनलालक मनमे कनि‍यो हि‍लकोर नै उठलै। कि‍एक तँ मनमे यएह नाच होइत रहै जे डेरामे गौआँ एलाहेँ तँए ई नै अजस हुअए जे खेनाइयोमे ठकि‍ लेलक। नीक कि‍ दब भरि‍ पेट कहुना खाथि‍। जँ से नै हेतनि‍ तँ दसठाम बजताह जे खाइयो ले भरि‍ पेट नै देलक। तही बीच मनमे उठलै जे पूछि‍-पूछि‍ खुआएब नीक। जे कम-सँ-कम पहि‍लबेर तँ कहता जे हँ इच्‍छापूर्ण खेलौं आब कने अराम करैक ओरि‍यान करह आ तोहूँ सभ खा-पीअह, काज-उदम देखहक। दैन्‍य दृष्‍टि‍ये देखि‍ कि‍सुनलाल बाजल-
भाय सहाएब, खेबा जोकर बनल छै की नै। कहाँ खाइ छि‍ऐ चारि‍टा आरो नेने आबी?”
पहि‍लुक ढकार ढेकड़ैत देवकान्‍त उत्तर देलक-
अँए हौ, तँू हमरा राक्षस बूझै छह जे आगूमे एत्ते वस्‍तु ढेरि‍या देलह हेँ आ तइपर सँ परसन लइले कहै छह?”

जहि‍ना डारि‍मे लागल मचकीक पहि‍ल आस होइत तहि‍ना, कि‍सुनलालक मनमे आस जगि‍ते बाजल-
भाय सहाएब, कनि‍ये-कनि‍ये समान सभ परसै ले घरवालीकेँ कहने छलि‍ऐ। जेना-जेना भोजन करैत जेताह तेना-तेना परसि‍-परसि‍ दैत जेबनि‍।
तहसाना जकाँ तहि‍आएल भोजन पाबि‍ देवकान्‍त भाइक मन गदगदाएल। कि‍सुनलालक बात अंतो ने भेल छलै आकि‍ बि‍च्‍चेमे देवकान्‍त बाजि‍ उठलाह-
अँए हौ कि‍सुनलाल, तँू अनठि‍या बूझै छह। अपन घर छी जे खगत आकि‍ बेसी खाइक मन हएत ओ मांगि‍ कऽ लेब। तइले तोरा मनमे कि‍अए होइ छह जे भुखले उठि‍ जाएब। हम ओहन लोक नै ने छी जे खाइओ लेब आ दुसि‍यो देब।
तखने कि‍सुनलालकेँ पत्नी- सिंहेश्वरी हाथक इशारासँ शोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
ति‍लकोरक तरूआ दऽ भैया की कहलखि‍न?”
कि‍अए?” कि‍सुनलाल पुछलक।
ति‍लकोरक साग आ चटनी तँ खाइ छी, बनबैयोक लूरि‍ अछि‍ मुदा तरूआ नै खेने छी।

ओना सिंहेश्वरी देवकान्‍तसँ अढ़ भऽ कहैत मुदा बोलीमे एहेन टाँस देने जे देवकान्‍तो बुझथि‍न। साग आ चटनी सुनि‍ते मनमे उठलनि‍ जे साग तँ कत्ते दि‍न खेने छी। तहूमे जखन पेशाबक गड़बड़ी रहए तँ पथ्‍यमे यएह चलैए। मुदा चटनी तँ नै खेने छी। लाज-संकोच तँ ओकरा ने होइ छै जेकरा बूझि‍ पड़ै छै जे भारी छी। मुदा हम कोन भारी छी जँ भारी रहि‍तौं तँ बुझले रहैत। नै बूझल अछि‍ तँ बूझि‍ लेब कोन अधला हएत। जँ कहि‍यो खाइयेक मन हएत, बुझलेहे ने काज देत। अचार मुँहमे लैत मुँहक कर समेटि‍ कऽ घोटैत बजलाह-
कि‍सुन, ई की कोनो गाम-घर छी जे कनि‍याँ एत्ते संकोच करै छथि‍। एतै आबह कने एकटा बातो बुझैक अछि‍।
देवकान्‍तक बात सुनि‍ कि‍सुनलाल तँ ससरि‍ कऽ लगमे आबि‍ गेल। मुदा सिंहेश्वरी -पत्नी- कि‍छु आगू बढ़ि‍, कि‍छु पाछू दि‍स आबि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेलीह। जहि‍ना कोनो बच्‍चोसँ कोनो गप बुझए बेरमे रंग-रंगक प्रश्न, पूरक प्रश्न पूछि संतुष्‍ट होइत अछि‍। तहि‍ना देवकान्‍तोक मनमे होन्‍हि‍ जे कोनो बात‍ बूझैले सोझा-सोझी नीक होइ छै लजकोटर तँ बहुत बात छोड़ि‍ये दैत अछि‍ आ बहुत बि‍सरि‍यो जाइत अछि‍। दोखाह तँ दुनू भेल। अपनाकेँ नि‍च्‍चा उतरि‍ सिंहेश्वरीकेँ ऊपर चढ़बैत देवकान्‍त कहलखि‍न-
कनि‍याँ आइ ने कि‍सुनलाल दू-पाइ कमाएल हेँ तँ फुलपेंटो पहि‍रने देखै छि‍ऐ, मुदा जखन गाममे छल तखन तँ वएह एकटा चरि‍हत्थी गामछा छै। डाँड़मे लपेटने रहै छल। गप-सप्‍प करैमे कोनो-लाज-धाक नै हेबाक चाही। हम जे बुझै छि‍ऐ से अहूँ पूछू आ जे नै बुझै छि‍ऐ से हमहूँ कि‍अए ने पूछब। तइले लाज-संकोचक कोन काज छै।
कि‍सुनलाल- भाय सहाएब, कहैले तँ गाममे नै छी मुदा गामे जकाँ एतौ छी। ने ओते कमाइ होइए जे होटल घुमब, ज्‍वेलरी घुमब। बस डेरासँ कारखाना आ कारखानासँ डेरा अबै-जाइ छी। अठबारे -छुट्टी दि‍न- कनी-मनी घूमि‍ लइ छी सेहो पएरे।
पति‍क बात सुनि‍ सिंहेश्वरी पाछूसँ ससरि‍ कनी आगू बढ़ि‍ ति‍रछि‍या कऽ ठाढ़ भऽ बजलीह-
कि‍ कहलखि‍न?”
देवकान्‍त- कहलौं यएह जे ति‍लकोरक चटनी केना बनबै छि‍ऐ?”
देवकान्‍तक प्रश्न सुनि‍ सिंहेश्वरी बजलीह-
भैया, हि‍नका कि‍ कोनो नै बूझल हेतनि‍।
देवकान्‍त- कनि‍याँ, कोनो कि‍ हमरा जँचैक अछि‍, धरमागती कहै छी, नै बूझल अछि‍।
तइ बीच सामंजस्‍य करैत ि‍कसुनलाल बाजल-
भाय सहाएब, ओना हम तरूओ खेने छी, सागो खेने छी आ चटनि‍यो खेने छी। धीया-पुतामे पाकल ति‍लकोरक फड़ सेहो खेने छी। जाबे माए जीबैत रहए ताबे आन दि‍न तँ नहि‍ये मुदा जुरशीतल पाबनि‍मे ति‍लकोरक तरूआ अवस्‍से तड़ए। बड़ खर्चाक चीज छी। ओते खर्च कऽ खाएब असान थोड़े छै।
पति‍क सह पबि‍ते सि‍ंहेश्वरी बजलीह-
भैया, हमर माए-बाप बड़ गरीब छलाह। भरि‍ पेट अन्नो नै भेटैत छलनि‍ तखन जे तरूआ-बगहरूआक सेहन्‍ते करि‍तथि‍ से पार लगि‍तनि‍।
सि‍ंहेश्वरीक बात सुनि‍ मुड़ी डोलबैत देवकान्‍त बजलाह-
हँ, से तँ ठीके। हमहूँ की कोनो बेसी खेने छी। जहि‍या कहि‍यो घरदेखीमे कतौ जाइ छी तखन खाइ छी। सेहो आब उठाबे भेल जाइए। आब तँ सहजहि‍ लोक तेहेन चि‍कनि‍या भऽ गेल जे अल्‍लुऐक पाँचटा पूरा लइए। नवका तूर तँ खाइक कोन गप जे बुझबो ने करैत हेतइ। पात-पुत कहि थोड़े खाएत। अच्‍छा छोड़ू ऐ सभकेँ, असल बात तँ छुटले अछि‍।
वि‍चारक सामंजस्‍य पाबि‍ सि‍ंहेश्वरीक उत्‍साह जगलनि‍, बाजलीह‍-
भैया, साग तँ बुझले हेतनि‍ जहि‍ना कदीमा पात, अड़ि‍कंचन पातकेँ कत्तासँ काटि‍ भुजल जाइ छै तहि‍ना ति‍लकोरो पातक होइ छै।
हूँहकारी भरैत सि‍ंहेश्वरीक बातकेँ मानि‍ देवकान्‍त बजलाह-
हँ-हँ, ति‍लकोरक साग तँ केत्ता दि‍न खेने छी। मुदा चटनी नै।
जहि‍ना नव काज केने, नव जगहपर पहुँचने वा नव लोकसँ दोस्‍ती भेने मनमे खुशी होइत तहि‍ना दस बर्ख पहि‍लुका खेलहाक चरचा करैमे सि‍ंहेश्वरीकेँ सेहो मनमे खुशी उपकलनि‍। मुस्‍कुराइत बजलीह-
भैया, अड़ि‍कंचन पातकेँ कदीमा पात वा आन पातक तरमे दऽ पतौड़ा बना आगि‍मे पकौल जाइ छै, तहि‍ना ति‍लकोरो पातकेँ पकौल जाइ छै। जखन उपरका पात झड़कि‍ जाइ छै तखन बूझि‍ जाइऔ जे ति‍लकोरोक पात सीझ गेल हएत। ओकरा चुल्हि‍सँ नि‍कालि‍ चाहे पानि‍क वर्तनमे दऽ दि‍औ नै तँ कनीकाल सराइले छोड़ि‍ दि‍औ। जखन सरा जाएत तखन ओकरा पतौड़ासँ नि‍कालि‍ सि‍लौटपर थकुचि‍ कऽ पीसि‍ लि‍अ। बहुत मसल्‍लाक काजो नै पड़ै छै। चसगरसँ नून मि‍रचाइ दऽ दि‍औ। बस भऽ गेल। ओना लोक भातोमे खाइए मुदा रोटीक तँ बुझि‍औ जे जहि‍ना भातक दालि‍ तहि‍ना रोटीक ति‍लकोरक चटनी छी।
सि‍ंहेश्वरीक बात सुनि‍ तेसर ढकार ढेकरैत देवकान्‍त लोटा उठा पानि‍ पीबि‍ बजलाह-
कि‍सुनलाल, बहुत खेलि‍अह समानक आगू खेनि‍हार थोड़े ठठत। बड़ ओरि‍यान केने छेलह।
जहि‍ना नीक वि‍द्याथी बोर्ड वा युनि‍वर्सिटीमे टॉप केलोपर झुड़झुड़ाइत जे दुइयो प्रति‍शत नम्‍बर आरो रहैत तँ अस्‍सी प्रति‍शत पूरि‍ जइतए। तहि‍ना कि‍सुनलाल कहलकनि‍-
भाय सहाएब, कनि‍ओ आर खाइऔ।
आग्रह सुनि‍ देवकान्‍त बजलाह-
हम कि‍ कोनो राक्षस छी जे कतबो खाएब तँ पेटे ने भरत। मनुखक जे भोजन छि‍ऐ से तँ खेबे केलौं। तो नै अंदाज केलहक जे लोक कते खाइए। पेटेक कोन बात जे मनो भरि‍ गेल। अच्‍छा एकटा बात कहह जे अपन गौआँ के सभ ऐठाम, बम्‍बइमे रहै छथि‍?”
देकान्‍तक प्रश्न सुनि‍ कि‍सुनलाल मने-मन सोचए लगल बम्‍बइ सनक शहरमे के कतए रहैए ई भाँज तँ मात्र दुइये गोटोकेँ रहै छै। पहि‍ल जे काज नै करैए, दोसर जे कोनो कम्‍पनीक एजेंसी करैए। बाकीकेँ कोन जरूरत छै। अठबारे छुट्टी होइए तइमे कि‍ सभ करब। कपड़ा-लत्ता खींचब आकि‍‍ सप्‍ताह भरि‍क अधखड़ुआ नीन पुराएब, आकि‍ दुनू परानी मि‍लि‍ कोनो नव जगह देखि‍ लेब, आकि‍ भेँट-घाँट करब। तखन तँ ओहुना कि‍यो-ने-कि‍यो दर्शनीय जगहपर भेँट-घाँट भइये जाइ छथि‍। गाम-घरक हालो-चाल बूझि‍ लइ छी आ संग मि‍लि‍ चाहो-पान कऽ लइ छी। अपन मजबूरीकेँ छि‍पबैत कि‍सुनलाल बाजल-
भाय सहाएब, अहूँक जेठजन तँ परि‍वारे लऽ कऽ रहै छथि‍, हुनकासँ सभ भाँज लगि‍ जाएत। तखन हम एत्ते जरूर कहब जे जइ करखानामे काज करै छी‍ तइमे तीन गोटे छी। कहैले तँ उठे काज अछि‍ मुदा सभ दि‍न काजो लगैए आ एकेठाम सात दि‍नक पगारो भेटैए। तइमे रवि‍ दि‍नक सेहो भेटैए।
देवकान्‍त- अझुका तँ छुट्टी लि‍अए पड़ल हेतह?”
कि‍अए छुट्टी लि‍अए पड़त। कोनो कि‍ ओकर दरमाहाबला नोकरी करै छि‍ऐ। अझुका बदला रवि‍ दि‍न काज कऽ देबै। कोनो की स्‍कूल-आँफि‍स छी जे सोलहन्नी बन्न होइए। करखाना छि‍ऐ ने। सभ दि‍न चलि‍ते रहै छै।
परि‍वार कि‍अए गामसँ लऽ अनलहक ऐठामसँ कमे खर्चमे गामक परि‍वार चलैए?”
भाय सहाएब, अहूँ अनठा कऽ बजै छी। गाम-घरक लोकक कि‍रदानी नै देखै छी जे ताड़ी-दारू पीब-पीब कि‍ सभ कि‍रदानी करैए। अपन इज्‍जत अपने सोझामे नीको होइ छै आ लोक बचाइयो सकैए। तखन देखि‍यौ ज मनमे तँ अछि‍ये जे जखने गाममे रहै जोकर, कोनो काज ठाढ़ करै जोकर पूजी भऽ जाएत चलि‍ जाएब।
कते महीना बचै छह?”
एते दि‍न तँ बूझू जे कहुना कऽ गुजल केलौं मुदा आब छह माससँ गोटे महीना हजार रूपैया आ गोटे पनरहो सौ बचि‍ जाइए।
बैंकमे जमा करैत जाइ छह कि‍ने?”
बैक जाएब से छुट्टी होइए। एजेंट-फेजेंट तँ ढेरी अबैए मुदा ओकरा सबहक भाँजमे नै पड़ए-चाहै छी।
कमो पूजीसँ तँ गाममे काज चलै छै। बि‍नु पूजि‍योक चलै छै।
हँ से तँ चलै छै। जेकरा अपन कारोबार नै छै ओ दोसराक काज करैए। मुदा देखते छि‍ऐ जे कते बोनि‍ दइ छै। तहूमे आब कहुना-कहुना दुनू परानीमे आठ हजार महीना उठबै छी, ऐठाम महगी अछि‍ तँए कम बचैए। मुदा गाममे तँ कम-सँ-कम ओते कमाइ हुअए जे जहुना गुजर कटै छी तहुना पूरा सकी।
अपन कि‍ अन्‍दाज छह जे कते दि‍नमे पूरा लेबह?”
जँ भगवान नि‍केना रखलनि‍ तँ डेढ़-दू साल मे जरूर पूरि‍ जाएत। अहाँ भाय-सहाएब सबहक दोसरे दि‍न-दुनि‍याँ छन्‍हि‍।
भाय सहाएबक नाओं सुनि‍ते जहि‍ना भरल पेटक गरमी होइ छै तहि‍ना देवकान्‍तकेँ फूकि‍ देलकनि‍। मुदा अपनाकेँ सम्‍हारैत बजलाह-
सुथनी भाय-सहाएब। मन भेल जे कनी बमै देखी, दरभंगामे टि‍कट कटेलौं चलि‍ एलौं। तोहर नाओं-ठेकान लऽ लेने रहि‍हह। तँए तोरा डेरापर चलि‍ एलौं। भाइये छि‍आह तँ कि‍ ओइसँ सतरह-बर नीक तँू छह। कम-सँ-कम समाज बूझि‍ तँ सुआगत केलह।
अपन प्रशंसाा सुनि‍ कि‍सुनलाल वि‍ह्वल भऽ गेल। बाजल-
भाय सहाएब, ओते तँ कमाइये ने अछि जे‍ अइल-फइलसँ खर्च करब मुदा समाजक जँ कि‍यो डेरापर औताह तँ अनका जकाँ मुँह नै घुमा लेब।
कि‍सुनलालक सह पबैत देवकान्‍त बजलाह-
कि‍सुनलाल परि‍वारे सभ कोकणि‍ गेल तँ समाज केहेन हएत। मुदा तँए सोलहो आना परि‍वार कोकणि‍ये गेल सेहो बात नइए। जाबे धरतीपर धरम नै छै ताबे चलै केना-ए‍।
कि‍सुनलाल- भाय सहाएबक भेँट करबनि‍ की नै?”
मन तँ एको पाइ नै अछि‍ मुदा जखन ऐठाम आबि‍ गेलौं तखन नहि‍यो भेँट करब उचि‍त नहि‍ये हएत। तोरा तँ हुनकर मोबाइल नम्‍बर बूझल हेतह कि‍ने?”
हँ से तँ लि‍खल अछि‍। मुदा मोबाइल अपना कहाँ अछि‍?”
बुथपर सँ तोहीं कहि‍ दहुन जे देवकान्‍त गामसँ ऐला अछि‍। जँ गप करए चाहता तँ अपने कहथुन नै तँ जानकारी तँ भेटि‍ये जेतनि‍।
भायपर बि‍गड़ल देखि‍ सि‍ंहेश्वरी देवकान्‍तकेँ पुछलकनि‍-
भैया, एना खि‍सि‍आएल कि‍अए छथि‍न?”
देवकान्‍त- कनि‍याँ, की कहब कहैले तँ पाइ-कौड़ीबला कहबै छथि‍। तहि‍ना घरक घरोवाली छथि‍न। अपना तँ कनी-मनी कुल-खनदानक लाजो होइ छन्‍हि‍ मुदा घरवाली जे छथि‍न से तँ भगवाने देल छथि‍न।‍
सि‍ंहेश्वरी- जखन अपने नीक छथि‍ तखन हुनका घरवालीसँ कोन मतलब छन्‍हि‍?”
देवकान्‍त- मतलब पुछै छी। की कहब, बजि‍तो लाज होइए जे एके परि‍वारक छी तखन एना कि‍अए बजै छी। मुदा नहि‍यो बाजब सेहो तँ गलति‍ये हएत। अपने जे भाय सहाएब छथि‍ से मरदे-ने-मौगि‍ये, बलि‍गोबना छथि‍। जहाँ कि‍छु बाजए लगताह आ पत्नीक आँखि‍पर नजरि‍ पड़तनि‍ आकि‍ बोलि‍ये बदलि‍ जाइ छन्‍हि‍।

~ + � � � XB� �मे अछि‍। पनरहोक खर्च तँ सम्मि‍लि‍तेसँ चलैए। एके रंग लत्ता-कपड़ा, खेनाइ-पीनाइ अछि‍ मुदा ई बुझै छि‍ऐ जे ऐमे अपन कते हएत आ दि‍याद-वादक कते हएत?”
श्‍यामक नजरि‍ धसए लगलनि‍। पत्नीक वि‍चारमे कि‍छु तत्व बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा स्‍पष्‍ट नै भऽ सकलनि‍। प्रतीक्षाक नजरि‍ उठा आगू तकलनि‍। अवसरक लाभ उठबैत पत्नी दोहरौलनि‍-
पनरहटा बाल-बच्‍चामे अपन तीनटा अछि‍। बाकी बारह तँ भैयारि‍येक भेल। तइ संग अपने दू परानी छी आ ओ छअ परानी अछि‍। कनी जोड़ि‍ कऽ देखि‍यौ जे अधा हि‍स्‍सामे अपन कते हएत आ कते हुनका सबहक।
श्‍यामक मन सहमलनि‍। मन कहलकनि‍ जे पत्नी अक्षरत: सत्‍य कहलनि‍। सम्‍पत्ति‍क अर्थ होइत छै सुख-भोग आकि‍ परसादी बाँटब।

पूजासँ उठि‍ भोजन कऽ श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
घनश्‍याम, दुनि‍याँक तँ बेवहारे भैयारीमे भीन होएब रहल अछि‍। अपनो सभकेँ कम नै नि‍महल। गाममे देखै छि‍ऐ जे कते छौड़ाकेँ मोछक पम्‍हो ने आएल रहै छै आ बापसँ भि‍न भऽ जाइए अपना सभ तँ सहजहि‍ धीगर-पूतगर भेलौं। भीन भऽ जाह।
जेना धनश्‍यामो प्रतीक्षेमे रहए तहि‍ना धाँइ दऽ बाजल-
भैया, सभ दि‍न अहाँक आदेश मानैत एलौं, आइ नै मानब से उचि‍त हएत। मुदा अहाँ जहि‍ना जेठ भाय छी तहि‍ना तँ रामो-बलराम छी। भलहि‍ं ओ छोट भाए छी, जे कहबै से करत। मुदा तैयो बि‍ना पुछने कि‍छु नै कहब।
बड़ बढ़ि‍या, अखन जा कऽ पूछि‍ लहक। सुति‍ कऽ उठै छी तखन फेर गप करब।
घनश्‍याम उठि‍ कऽ वि‍दा भेल।

भाइयो आ तीनू दि‍यादनि‍यो आ दुनू भाइयोक एकत्रि‍त कऽ घनश्‍याम बाजल-
सबहक बीचमे कहै छी। भैया बजा कऽ कहलनि‍ जे भीन भऽ जाह। से कि‍ वि‍चार?”
बलराम- वि‍चार की भैया, ओ असगर छथि‍ तँ जीवि‍ये लेताह आ हम तँ सहजहि‍ तीन भाँइ छी। हुनका जे मनो खराप हेतनि‍ तँ ने कि‍यो डॉक्‍टरो ऐठाम लऽ जाइबला नै हेतनि‍ आ ने बजारसँ दवाइ कीनि‍ कऽ अनैबला हेतनि‍।
घनश्‍याम- अहाँ सबहक की वि‍चार?”
पहि‍ल दि‍यादि‍नी- अपन परि‍वार बूझि‍ नौरी जकाँ दि‍न-राति‍ खटै छी तइपर जे पाँचो मि‍नट चाहमे देरी हेतनि‍ तँ साँढ़-पाड़ा जकाँ गर्द करए लगताह। भने नीक हएत। जानो हल्‍लुक हएत।

सुति‍ उठि‍ चाह पीब पान खा श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़लखि‍न। अबि‍ते घनश्‍याम लगमे बैसि‍ बाजल-
जे वि‍चार अहाँक अछि‍ भैया, से हमरो अछि‍। अखने बाँटि‍ लि‍अ।
घनश्‍यामक बोली सुनि‍ श्‍याम सहमलाह। मनमे उठलनि‍ जे हम जे बुझै छि‍ऐ तइसँ भि‍न्न ने तँ बुझैए। मुदा बात तँ आगू बढ़ि‍ गेल आब जँ पाछू हटब सेहो नीक नै।
श्‍याम- बटवारामे कोनो व्‍यवधान तँ छहै नै। सभ कि‍छु अधा-अधी भेलह। तखन बाप-पुरुखाक बनौल जेठांश होइए से तँ तोंही बजबह।
श्‍यामक वि‍चार सुनि‍ घनश्‍याम बाजल-
अहाँ पि‍तासँ हमर पि‍ता जेठ छलाह। संयोग नीक रहलनि‍ जे भि‍नौजी नै भेलनि‍। जखन पि‍ताक अधि‍कारक हि‍साबसँ आइ बटै छी तँ हुनकर जेठांश कते हेतनि‍ से तँ हमर हएत कि‍ने।
श्‍याम- देखह, तमसा कऽ नै बाजह। सभ दि‍न अपन सतभैंया परि‍वार वि‍चारक परि‍वार मानल जाइत रहल अछि‍, तइठाम कनी-मनी चीज ले झगड़ब नीक नै।
घनश्‍याम- बात तँ बड़ सुन्‍दर आ बड़ सोझगर कहलौं मुदा एक वंशक सभ रहि‍तो अहाँ अइल-फइलसँ रही आ हम सभ बटाइत-बटाइत एते बँटा जाइ जे घसाएल सि‍क्का जकाँ सभ कि‍छु रहि‍तो चलबे ने करी, से केहेन हएत?”
श्‍याम- तोहर की वि‍चार?”
घनश्‍याम- तीनू भाँइक वि‍चार अछि‍ जे घरसँ घराड़ी, खरि‍हानसँ खेत धरि‍ चारू भाँइ एकरंग कऽ लि‍अ। से नै तँ.....।
श्‍याम- तँ की?”
घनश्‍याम- ई तँ माटि‍क चर्च केलौं। पोखरि‍ सेहो तहि‍ना बाँटब। जँ से दइले तैयार नै हएब तँ जमीनक फैसला जमीनपर हएत।
श्‍याम- सएह।
घनश्‍याम- हँ, सोलहन्नी सहए।

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