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Friday, April 27, 2012

फाँसी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



काल्हि‍ बारह बजे बलदेवकेँ फाँसी हएत, रेडि‍यो-अखबार कान-कान जना देलक अछि‍। जहि‍ना बलदेव बुझैत तहि‍ना जहलक उत्तराधि‍कारि‍यो बुझैत अछि‍। जहि‍ना बलदेवक परि‍वार बुझैत अछि‍ तहि‍ना सर-समाज, दोस-महि‍म सेहो बुझैत अछि‍। सबहक मन बारह बजेपर अॅटकल। वएह बारह बजे दि‍न वा राति‍ अपन प्रखर रूपमे दि‍शा दि‍स मैदानक रस्‍ता धड़ैत अछि‍।

जहलक एक नंबर सेल घर। जे घर ओइ अपराधीकेँ ओइ बीच भेटैत अछि‍ जखन न्‍यायालयसँ फाँसीक ति‍थि‍ ि‍नर्धारि‍त होइत अछि‍। सेलक बुनाबटि‍यो, आन सेलो आ वार्डोसँ भि‍न्न बनल अछि‍। ओना सेलक बुनाबटि‍ वि‍चि‍त्र अछि‍ मुदा आनसँ अलग तँ अछि‍ये। कोठरीनुमा घर, कोठरि‍येक आँट-पेट सेहो अछि‍। एक कोठरी ओहन होइत जे नमहर घरमे बनैत आ एक कोठरी ओहन होइत जे घरे कहबैत अछि‍। एक नंबर सेलो तहि‍ना बनल अछि‍। चि‍मनीक एक नम्‍बर ईंट, क्‍यूल-लक्‍खीसरायक बीचक पथराएल बालु, दू-एक सि‍मटीक जोड़सँ देबाल बनल अछि‍। सात एस्‍क्‍वाइर फुटक घर, जे घरक कोठरीओसँ हीने अछि‍। पौने दू फुट आगूक दरबज्‍जा, खि‍ड़की दरबज्‍जा नै, जे भीतर-बाहर अबैत-जाइत अछि‍। लोहाक बनल केबाड़ लगल अछि‍। शेष कोनो देवालमे ने खि‍ड़की-खोलि‍या अछि‍ आ ने पूब-पछि‍म दि‍शा देखबैक कोनो दोसर साधन अछि‍। एक तँ ओहुना जइठाम सभ कि‍छु -दि‍शा-वोधक- रहैत अछि‍ तहूठाम दि‍शान्‍स लगि‍ जाइ छै। आ पूबकेँ पछि‍म, पछि‍मकेँ पूब कहए लगै छै। जि‍नगीक पूर्ण लीला बलदेवकेँ ओइ कोठरीनुमा घरमे पनरह दि‍नसँ होइत अछि‍। ओना तइसँ पूर्वो -१५ दि‍नसँ पहि‍ने- सेहो सात नम्‍बर सेलमे तीन सालसँ रहैत आबि‍ रहल अछि‍।
ओना एक नंबर सेलमे एलापर एतेक सुवि‍धा जरूर भेट गेल छलै जे पहि‍नेसँ नीक भोजन, नीक ओढ़ना-बि‍छौना भेट‍ गेल छलैक। भलहि‍ं घरमे नेहि‍ये बि‍जलीक तार आ ने बाैल लागल मुदा दरबज्‍जा सोझे एहन बाैल लागल छलै जइसँ कोठरि‍योक भीतर इजोत पहुँचैत छल। मुदा कोठरीक बाहर स्‍पेशल सि‍पाहीक बेवस्‍था सेहो भ गेलै।
बारह बजे राति‍क घंटी टावरक मुरेड़ापर बाजल। राति‍-दि‍नक पाशा बदलैक समए भ गेल। जहि‍ना भूत-वर्तमान आ वर्तमान भवि‍ष्‍यमे बदलैत अछि‍ सएह मुहूर्त अछि‍। राति‍-दि‍नक बाट पकड़त मुदा दूत-भूत एतेक प्रबल जे आरो बेसी उग्र बनैत अछि‍। जहि‍ना राति‍क जनमल बच्‍चा दि‍नेक होइत तहि‍ना बलदेवक राति‍ सेहो दि‍ने भ गेलै। राति‍-दि‍न भ गेलैक आकि‍ नि‍नि‍ये देवी वि‍ध्‍नवादि‍नीक संग डरे पड़ा गेलखि‍न, से नै कहि‍। ओछाइनपर पड़ल बलदेव उठि‍ क बैस कोठरीक चारू देवाल दि‍स तकलक। अन्‍हारमे सभ हराएल बूझि‍ पड़ल, कि‍एक तँ बाहरक बि‍जलीक इजोत सेहो अन्‍हार चद्दरि‍ ओढ़ि‍ ओहन भ गेल जे अपनो भरि‍ नै देखि‍ पड़ैत। देह दि‍स तकलक। हाथ-हाथ नै सुझैत‍, बलदेव अजमा क घरक मुँह लग ससरि‍ क पहुँचल। हाथ बढ़ा देखलक तँ बूझि‍ पड़लै जे यएह घरक मुँह छी। घरक मुँह देखि‍ मनमे बि‍सवास जगलै जे ऐठामसँ अन्‍हार-इजोतक सभ कि‍छु देखब। हि‍या क बि‍जली खूॅटामे लटकल बौलपर नजरि‍ देलक। मरि‍याएल इजोत तइपर असंख्‍यो मच्‍छर-माछी जान गमबैले तैयार नाचि‍ रहल अछि‍। खूॅटापर गि‍रगीटक झुंड। मुँह बाबि‍ खाइले तैयार आसन लगौने अछि‍। नि‍च्‍चामे बेंगक जेर कुदैत। तइ बीच मच्‍छरक जेर‍ गीत गबैत फाटक टपि‍ भीतर पहुँचल। मुदा बलदेवक धि‍यान मच्‍छरपर नै गेल। जहि‍ना शरीरमे अनेको रोग रहलापर बड़का रोग छोटकाकेँ चापि‍ रखैत तहि‍ना बलदेव बाहरक मच्‍छरक भोगकेँ दाबि‍ देलक। केना नै दाबैत, जइठाम जि‍नगीक खूनक कोनो महत नै तइठाम मच्‍छर कत्ते पीबे करत। मुदा तहूसँ बेसी बलदेवक मनमे जागि‍ गेल जे जखन बारह बजे अन्‍ते भ रहल छी तइ बीच जँ कनि‍यो उपकार दोसरक भ जाइ छै तँ ओहो धर्मे छी कि‍ ने? बलदेवक मनमे पनपए लगलै।
तखने पएर दाबि‍ सि‍पाहीक झुंड सेलक चारूकात चक्कर कटए लगल। अन्‍हारमे सभ हराएल। पएरक धमकसँ बलदेव बूझि‍ गेल। जहि‍ना गाए-महि‍ंस मनुक्‍खक संग कुत्तो-बि‍लाइक चालि‍ अन्‍हारोमे परेखि‍ लैत तहि‍ना बलदेवो परेखि‍लक। मुदा सभ चुप्प। बलदेवक मनमे उठलै, जब कि‍ बारह बजेमे फाॅसि‍येपर चढ़ब तखन कि‍अए एते ओगरबाहि‍क जरूरति‍ छै। एक तँ ओहि‍ना बड़का छहर-देबालीक बीच जेल बनल छै, तइ बीच वार्ड-सेल बनल छै, तइ बीच एते ओगरबाहि‍क कोन जरूरति‍ छै। मुदा लगले वि‍चार बदलि‍ गेलै। वार्ड सभक कैदी तँ अबैत-जाइत रहैए। सभ दि‍न दू-चारि‍ एबो करैए आ नि‍कलबो करैए। मुदा हम तँ आब नि‍कलि‍ नै पाएब। नि‍कलबे नै करब आ कि‍ जि‍नगि‍ये अंत भ रहल अछि‍। आँखि‍ उठा आगू तकलक तँ बूझि‍ पड़लै जे साल-महि‍नाक कोन गप जे मात्र कि‍छु घंटाक लेल छी। जइ दि‍न फाँसीक आदेश न्‍यायालयसँ भेल ओही दि‍न कि‍अए ने फाँसि‍यो भ गेल। अनेरे कोन सोग-सन्‍ताप देखै-भोगैले पनरह दि‍न जीआ क राखल गेल अछि‍। मन शान्‍त केलक। शान्‍त होइते, जहि‍ना पोखरि‍क अगम पानि‍केँ पूर्बा-पछबा हवा डोलबैत रहैए तहि‍ना मन डोललै। डोलि‍ते उठलै, फाँसी कि‍अए हएत? प्रश्नपर नजरि‍ अॅटकि‍ते उठलै जे फाँसीपर सपूत-कपूत दुनू चढ़ैए। फेर उठलै जे तइ सपूत-कपूतमे हम की छी?

अन्‍हर उठैसँ पहि‍ने जहि‍ना हवा खसि‍ पड़ैत अछि‍, वायुमंडल शान्‍त भ जाइत अछि‍ तहि‍ना बलदेवक मन सेहो शान्‍त भ गेलै। कोनो तरहक तरंग नै। मुदा लगले मनमे उठलै जे जि‍नगीक अंति‍म सीमापर पहुँच‍ गेल छी। जहि‍ना गामक सीमा टपि‍ते दोसर गाम आबि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना जीवनलोकसँ मृत्‍युलोक चलि‍ जाएब। मुदा एते तँ हेबे करत जे अखन ठेकानल जि‍नगी अछि‍ पछाति‍ बेठेकानलमे पहुँचि‍ जाएब। फेर उठलै, जीवनलोक तँ खाली मृत्‍युक लोक नै छी। जीवनो तँ लोक छी। जहि‍ना कोनो जंगलसँ पड़ाएल जानवर दोसर जंगलक सीमापर पहुँचते चारूकात नजरि‍ उठा क देखैत जे रहै जोकर अछि‍ वा नै, तहि‍ना जीवन-मृत्‍युक सीमापर बलदेवक मन अॅटकि‍ गेलै। धरतीपर जहि‍ना एक-दि‍शासँ दोसर दि‍स बहैत धार रास्‍ताकेँ बाधि‍त क दैत तहि‍ना बलदेवकेँ जीवन धार बाधि‍त क देलक। आगू टपैक आशा नै देखि‍ बलदेव बामा-दहि‍ना दि‍शा पकड़ैत वि‍चार केलक। एक दि‍स पहाड़सँ नि‍कलैत धार धरती टपैत समुद्रमे मि‍लैत तँ दोसर धरती टपि‍ समुद्रमे मि‍लैत। आगू तँ कि‍छु घंटा शेष अछि‍ मुदा पाछू तँ सौंसे जि‍नगी पड़ल अछि‍। कि‍ एक बेरक फाँसी फाँसी, छी आकि‍ फाँस चढ़ल जि‍नगीक फँसरी फाँसी छी। मन ठमकि‍ गेलै। मुदा लगले मनमे उठलै जे गुमसुम भ समए काटब नीक नै। कत्तेकाल पहि‍ने बारह बजेक घंटी बजल। जहि‍ना धरतीपर आएल बच्‍चा आस्‍ते-आस्‍ते सकताए लगैत तहि‍ना बलदेवक मन सेहो सकताए लगलै। मन पड़लै पनरह दि‍न पहि‍लुका फाँसीक सजए। मनमे खौंझ उठलै जखन फाँसीक आदेश भेल तखन फेर पनरह दि‍न जहल कि‍अए भेल? कोन अपराधक फल भेटल। जौं ओही दि‍न फाँसी भ जाइत तँ पनरह दि‍न जे सोग-सन्‍ताप भेल से तँ नै होइताए। ततबे नै अपनो ऊपर अनेरे भार कि‍अए बढ़ौलक? फेर मनमे उठलै जे अनेरे ओझराइ छी। मन शान्‍त केलक। शान्‍त होइते मनमे उपकलै, सपूत बनि‍ दुनि‍याँ छोड़ब आ कि‍ कपूत बनि‍। कि‍यो हि‍लसैत, पुलसैत दुनि‍याँ छोड़ैए आ कि‍यो वि‍लखैत, डुमैत दुनि‍याँ छोड़ैए। मुदा जे हि‍लसैत-फुलसैत छोड़ैए ओ छोड़ैत कहाँ अछि‍? ओ तँ जीवात्‍माकेँ एहेन चुहुटि‍ क पकड़ैत अछि‍ जे छोड़ौनौं नै छुटैत अछि‍। मुदा हम तँ से नै छी। फेर मन घुमलै। दुनि‍याँ बड़ीटा अछि..,‍ बड़ छोट अछि‍...।
बड़ीटा ओकरा लेल छै जे बरी पाबए चाहैए। मुदा बरी तँ भोजोक अंति‍म पराव नै, घरक मध्‍य सेहो छी। तखन कि‍अए ओकरा लि‍अ चाहैए। फेर मन ठमकि‍ गेलै। अनेरे अछाहे कुकुड़ भूकब नीक नै। अपनो तँ संसार अछि‍। जइमे अकास-पताल, चान-सूर्ज, नदी-सरोवर सभ कि‍छु अछि‍। तखन अपन छोड़ि‍ दोसराक देखब अपनासँ दूर हएब हएत। अपन कर्म, अपन धर्मक मर्म बुझब उचि‍त हएत। जाबे से बूझि‍ दुनि‍याँक रंगमंचमे नै उतरब ताबे कौआ कान नेने जाइए, तइ पाछू दौगब हएत। अपन रंगमंच आ अपन अभि‍नय लग अबि‍ते मन ठमकि‍ क ठाढ़ भ गेलै। ठाढ़ होइते अनायास मनमे उठलै। अभि‍नाइयो तँ देखि‍नि‍हारोक लेल आ संसारोक लेल रंग-बि‍रंगक, कतेक स्‍तरक होइत अछि‍। मुदा कहल तँ अभि‍नाइये जाइ छै। कि‍यो लीला रचि‍ अभि‍नय करैत, तँ कि‍यो गुण-गुणाइत अभि‍नय करैए। कि‍यो मूक भ करैत अछि‍ तँ कि‍यो प्रेमावेशमे करैत अछि‍। केना एकरा बि‍‍लगाएब? एक दि‍स चि‍त्र-वि‍चि‍त्र बनल अछि‍ तँ दोसर दि‍स कुचि‍त्र सेहो बनल अछि‍। ओझराइत मन झमान भ झमा उठलै। अनेरे ओझड़ेने समए ससरि‍ जाएत। गनल कुटि‍या नापल झोर जकाँ समए बचल अछि‍, तेकरा जौं ओझरौठेमे राखब सेहो नीक नै। बारह बजेक घंटी कतेखान पहि‍ने बाजि‍ चुकल अछि‍। हाथमे जौं घड़ी रहैत तँ ठीक-ठीक समैयोक बोध होइत, सेहो नहि‍ये अछि‍। जइ दि‍न जेलमे प्रवेश केलौं तेही दि‍न जहलक मुँहपर जमा क लेलक। जइ दि‍न नि‍कलब तइ दि‍न देत। मुदा नि‍कलब कहि‍या? आइ तँ फाँसि‍येपर लटकि‍ जि‍नगीक वि‍सर्जन करब तखन घड़ी केना लेब आ पहि‍र क समए बुझब? मुदा तँए कि‍ जइ गाममे मुर्गी नै रहै छै तइ गाममे भोर नै होइ छै? पाँच-दस मि‍नट आगू-पाछू, अनुमान तँ क सकै छी। मुदा काजक संग जे समए चलैए ओकर अनुभव आ बि‍नु काजक अनुभवोमे तँ अन्‍तर होइते अछि‍। काजक दौड़क अनुभव बेसी बढ़ि‍याँ होइत अछि‍। कि‍एक तँ काजक संग समए सटि‍ चलैत अछि‍। मुदा हमरा तँ सेहो ने अछि‍। बस दू बेर खाइ छी, ढेंग जकाँ ओंघराएल पड़ल रहै छी। कखन जागल रहै छी आकि‍ सूतल रहै छी, से आनक कोन बात जे अपनो नै बूझि‍ पबै छी। पछतेनौं तँ कि‍छु ने भेटत। फेर मनमे उठलै- फाँसी कि‍अए?
कि‍छु समए गुम्‍म रहलाक पछाति‍ अनायास मनमे उठलै जौं भक्‍ति‍-भावसँ समए कटने रहि‍तौं तँ हँसी-खुशीसँ चढ़ि‍तौं, से नै केलौं तँ कुहरि‍-कलपि‍ चढ़ब। जहि‍ना शक्‍ति‍क स्रोत ज्ञान छी तहि‍ना ने भक्‍ति‍क स्रोत श्रमो छी। फेर मन ठमकलै। जौं भक्‍ति‍क स्रोत श्रम छी तँ हमहूँ तँ श्रमि‍क छि‍हे। जौं से नै रहि‍तौं तँ एत्ते खेल केना केलौं। अचताइत-पचताइत मुँहसँ नि‍कललै। से तँ जरूर केलौं। एक पसीना पत्‍थर तोड़ैमे चुबैए, दोसर पत्‍थर बनबैमे चुबैए। हँ से तँ दुनूमे चुबैए। मुदा कि‍ दुनूक मि‍ठास एक्के रंग छै? से तँ नै छै। तखन श्रम -सेवा- केकरा कहबै? फेर बलदेवक मन ठमकि‍ नजरि‍ उठा-उठा चौकन्ना होइत चारू दि‍स तकए लगल। मुदा अन्‍हारमे कि‍छु देखबे ने करए। मनमे उठलै, अनेरे श्रमक पाछू बौआइ छी। गेल जमाना फेर नै लौटए। आब तँ जि‍नगीक अंति‍म खाड़ीपर चलि‍ एलौं। ने श्रमि‍क छी आ ने श्रमक सि‍रजन कर्ता। अनेरे अनका पाछू बौआए रहल छी। सभकेँ अपन-अपन जि‍नगी छै। अपन-अपन जगह छै, जे समैयोक आ प्रकृतोक प्रभावसँ प्रभावि‍त होइत रहै छै तँए अपन बात जेना लोक अपने बुझैत अछि‍ तेना आन थोड़े बूझत। चारू दि‍ससँ घुमैत-फि‍ड़ैत मन अपना लग बलदेवकेँ एलै। मनमे खौंझ उठलै। यएह मन छी जेकर कि‍रदानीसँ कि‍यो भगवान बनि‍ जाइए आ कि‍यो हत्‍यारा बनि‍ दुनि‍याँक सोझामे फाँसीपर लटकि‍ जाइए। मुदा कहबै केकरा आ सुनत के? मन ठमकलै। हत्‍यारा के? हत्‍या की? आ के पैदा करैए? जहि‍ना कम माछी-मच्‍छर रहने खेबो काल आ सूतबो काल ओते परेशानी नै होइत जते अधि‍क रहने होइत। बलदेवक मन फेर ओझरा गेलै। ओझरी छुटि‍ते अपनापर ग्‍लानि‍ हुअए लगलै। हमहूँ तँ दुनि‍याँक चुनल अपराधीमे छी। जि‍नगी भरि‍ अपनेमे बेहाल रहलौं मुदा बेहाले केना रहि‍ गेलौं, से कहाँ बूझि‍ पेलौं। जहि‍ना धरतीकेँ बेहाल भेने सृजन शक्‍ति‍ कमि‍ जाइ छै तहि‍ना ने हमरो भेल। मन उफनि‍ गेलै। चि‍चि‍आइत बाजल-
हम अपराधी छी, अपराध केने छी। डकैतीक संग हत्‍या केने छी। अखने हमरा फाँसी हुअए?”
पि‍तोक मास्‍चर्य ओइ बेटासँ ओही दि‍नसँ कमए लगै छै जइ दि‍न सुपात्र कुपात्र दि‍स जाइत देखै छै। तहि‍ना बलदेवक कलपैत आत्‍मा मनसँ हटि‍ रहल छै। अनधुन मुँह पटकि‍ रहल छै। अपराधी छी, अपराध केलौं। एक अपराध नै, अनेको, एक दि‍न नै जि‍नगीयो भरि‍। बहुत वि‍लमि‍ क फाँसी भ रहल अछि‍। बहुत पहि‍नहि‍ भ जाइक चाहै छल। मुदा भेल कि‍अए नै?
एकाएक मुँहमे पर्दा लगल हुमड़ैत मन पाछू दि‍स ससरलै। अंति‍म हत्‍या आ डकैतीक फल फाँसी छी, मुदा आरो जे जि‍नगी भरि‍ केलौं, तेकर की‍ भेल?
मध्‍यमासक स्‍नान जहि‍ना आन मासक स्‍नानसँ अधि‍क सुन्‍दर, अधि‍क शीतल होइत तहि‍ना जि‍नगीक अपराधक बीच बलदेवक मन अॅटकि‍ गेलै। एक दि‍स जि‍नगी दोसर दि‍स अपराध। शीतल भेल शान्‍त मनमे उठलै, कि‍ हमर जन्‍म अपराधि‍ये बनैक लेल भेल छल जे अपराधीक जि‍नगी बि‍‍तेलौं। मुदा बुझि‍यो कहाँ पेलौं जे अपराध करै छी, अपराधी बनै छी। ओझराइत मनकेँ सोझरबैत बलदेव जि‍नगीक एक-एक दि‍न आ एक-एक घटना मोन पाड़ए लगल। मुँहसँ नि‍कललै-
अपन जि‍नगीक बात जत्ते अपना मनमे अछि‍ ओत्ते थोड़े दोसराकेँ हेतइ। ि‍सर्फ हत्‍ये-लूट टा तँ नै केने छी, माए-बहि‍नि‍क संबंध सेहो तोड़ने छी।
मन कलपि‍ क बजलै-
एकबेर नै हजार बेर फाँसी हेबाक चाही।
मन बेकल हुअए लगलै। केकरा ले केलौं? ई बात मनमे उठि‍ते धि‍यान परि‍वार दि‍स बढ़लै। अंति‍म दि‍न पत्नी आ बेटाक दर्शन हएत? ओ सभ बेचैनीसँ भेँट करए जरूर औत। मुदा कि‍ जहि‍ना परि‍वारमे भेँट होइत छल तहि‍ना हएत? से केना हएत? सि‍पाहीक घेरावंदीमे हम रहब आ ओ सभ हटि‍ क कातमे ठाढ़ रहत। मन घुमलै। अनेरे कि‍अए कि‍यो भेँट करए औत? कोन मुँह देखत आ कोन देखौत। तइसँ नीक जे भने हमहूँ हराएल छी आ ओहो सभ हराएले रहए। दुनि‍याँक सभ तँ नै ने चि‍न्‍हतै-जनतै। जौं समाजमे लोक ओंगरी देखौते तँ समाज छोड़ि‍ दोसर समाजमे चलि‍ जाएत। जखने एक समाजसँ दोसर समाजमे जाइए तखने पछि‍ला समाजक बान्‍ह टूटि‍ जाइ छै। बान्‍हक भीतर बनल समाज अपन हि‍तक बात सौचैए। मुदा समाज तँ समुद्र छी, जइमे घोंघा-घोंघीसँ ल गोहि‍-गमार तक छै। बलदेवक मन ठमकि‍ गेल।
जहि‍ना जन्‍म-जन्‍मान्‍तरसँ वा कुरीति‍-कुसमए पाबि‍ बाँसक छाँहमे जनमल लतामक गाछ सेहो समए पाबि‍ कलशि‍ जाइत तहि‍ना बलदेवक मन कलशल। अबोध बच्‍चाक हाथसँ गि‍रल अइना, माए-बापक दुख जकाँ नै मुदा तैयो टुकड़ी बीछि‍-बीछि‍ जोड़ैक कोशि‍श करैत अछि‍ तहि‍ना बलदेवक कलशल मनमे उपकलै। तीन बर्ख जहल एला भ गेल। राता-राती घरसँ पकड़ा बन्‍दूकक हाथे जहल आएल रही। नव-नव लोक, नव-नव जगहसँ भेँट भेल। जहि‍ना देशक मि‍थि‍लांचलोक वासी दुनि‍याँक कोण-कोणक बीच बसि‍ अपन पूर्ब परि‍वारक स्‍मरण करै छथि‍ तहि‍ना बलदेवक मनमे परि‍वार सेहो आएल। मुदा लगले जहलक परि‍वार अगुआ गेलै। एक-फाटक टपि‍ दोसरमे घेराएल रही। तलाशीक संग सभ कि‍छु घेरा गेल। बाहरसँ आओत नै अपने घेराइये गेलौं। मुदा तैयो नव-नव चेहरासँ भेँट भेल। भीतर अबि‍ते -वार्डमे- घूस्‍सा-मुक्काक सलामी भेल। जहि‍ना अखड़ाहापर उतरैत खलीफाकेँ पानि‍ उतरए लगैत तहि‍ना उतरल। जि‍नगीक पहि‍ल बेर जहल देखलौं। स्‍वागतक बाद मेट लग पहुँचाओल गेलौं। अखड़ाहा बदलने खलीफाक पानि‍यो बदलि‍ जाइ छै। मुदा.....। मेटक रजि‍ष्‍टरमे नाओं चढ़ि‍ते ढेर हुकुम एक संग उठल। झाड़ू लगबैक ड्यूटी, पैखानामे पानि‍ पहुँचाबैक ड्यूटी इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍। काजक भारसँ मन दबाइत जा रहल छल आ कि‍ मसलनपर पसरल मेटक हुकुम भेल-
एम्‍हर आ, पहि‍ने जाँत तखन दोसर काज हेतइ।
अवग्रहमे फँसल मन हल्लुक भेल। मनमे खुशी उपकल जे कनि‍यो-कनि‍यो कान ऐंठैत तँ काने उखड़ि‍ जइतए। जान बचल तँ लाख उपाइ। एक करोट घूमैत मेटक मैनजन बाजल-
पहि‍ल दि‍न छि‍औ, आइ तोरा खेनाइ नै भेटतौ।
जहि‍ना मुर्दापर अस्‍सी मनसँ नब्‍बे मन जारनि‍ चढ़ि‍ जाइए तहि‍ना चढ़ि‍ गेल। असबि‍सो नै क सकलौं। मुदा तैयो सबुर भेल जे नै खाइले देत, सुतैक तँ जगह भेट गेल कि‍ ने। तइ बीच मैनजनक हुकुम भेल-
कोन केसमे एलेहेँ?”
केसक नाओं सूनि‍ मन दलदल भ गेल। जहि‍ना सोग-पीड़ामे नोर बहा केकरो सान्‍त्‍वना दैत काल होइत, तहि‍ना। जहलसँ नि‍कलैक आशाक अँकुर बलदेवकेँ जगलै। हलसि‍ क बाजल-
सरकार, डकैती आ खून संगे छै।
डकैतीक संग खून सूनि‍ मेटक मन ठमकल। अधि‍क दि‍नक संगी हएत। तँए दोसति‍ये करब नीक। पड़ले-पड़ल हुकुम चलौलक-
नवका कैदीकेँ खइयो आ सूतैयो ले दि‍हक।

जहि‍ना जि‍नगीक सुख, खाएब-सूतबमे अबै छै तहि‍ना सूतबक आश देखि‍ बलदेवक मनमे खुशी उपकलै। खुशी उपकि‍ते मन बौआए लगलै। तही बीच मेटक मुँहसँ फुटलै-
तेलक शीशी छेबे करौ, काल्हि‍सँ गोदामे सँ लऽ लऽ अनि‍हेँ।
गोदामक नाओं सुनि‍ते वार्डमे गल-गूल शुरू भेल।
नवका कैदीकेँ गोदाम केना जाए देब। ई अन्‍याय छी।
एक कैदी ठीकेदारकेँ पुछलक-
कि‍ बात छि‍ऐ हौ ठीकेदार भैया? एना कि‍अए हड़बि‍र्ड़ो केने छह?”
ठीकेदार बाजल-
तूँ अखन तड़ी-घटी नै बुझबि‍ही।
से कि‍अए हौ भैया, सुनने लोक सुनबो करैए आ नहि‍यो सुनैए। बुझौने लोक बुझबो करैए आ नहि‍यो बुझैए। पहि‍ने बजबहक तब ने?”
रौ बूड़ि‍बक, सभ गप सभठीम बाजब नीक थोड़े होइ छै। नीको अधला भऽ जाइ छै आ अधलो नीक भऽ जाइ छै।
एकबेर अजमा कऽ देखहक। नरकोमे ठेलम-ठेल करै छह। बहरामे लोक कि‍छु करैए तँ भीतर -जहल- अबैए। ऐठामसँ कतए जाएत। बाजह, तोरा कि‍ बूझि‍ पड़ै छह जे हम ओहि‍ना आएल छी। आकि‍ कि‍छु कए कऽ आएल छी।

ठीकेदारक बढ़ैत संगी देखि‍ कठहँसी हँसि‍ मेट बाजल-
कि‍ रे ठीकेदरबा, कथीक बमकी धेने छौ। सुन....।
एक दि‍सि‍ ठीकेदारकेँ अपन घटैत आमदनी मनमे नचैत तँ दोसर दि‍सि‍ मेटक आदेश। घुसुकि‍ कऽ ठीकेदार लगमे आबि‍ फुसफुसा कऽ बाजल-
मेट भैया, अहाँसँ कि‍ कोनो बात छि‍पल रहैए। बुझि‍ते छि‍ऐ जे दू पाइ बचा कऽ गाम पठबै छी।

ठीकेदारक बातसँ मेटक मनक आगि‍ नै ठंढ़ाएल। मुदा हवाक लहकी जकाँ जरूर लागल। मनमे उठलै दस लंठ तखन ने महंथ, जँ से नै तँ असगर वरसपति‍यो फूसि‍। जहि‍ना गुलाबी लाल आल-अड़हुल बनि‍ जाइत, रंग बदलि‍ अपराजि‍त उज्‍जर-कारी बनि‍ जाइत, दि‍न-राति‍क खेलमे पूर्णिमा अमावस्‍या आ अमावस्‍या पूनो बनि‍ जाइए तहि‍ना बलदेवक मनमे जि‍नगीक जुआरि‍ उठए लगलै। मुदा बि‍ना जारनक आगि‍ जहि‍ना, पि‍यासल बि‍नु पानि‍ जहि‍ना, खेति‍हर बि‍नु खेत जहि‍ना शक्‍ति‍ रहि‍तो हीनशक्ति‍का बनि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना जि‍नगीकेँ सुता कऽ राखब छी। मुदा प्रश्नो तँ अजनव अछि‍। नीक भोजन, नीक नीन इन्‍द्रासनक मुख्‍य द्वार छी, तखन जि‍नगी....?
जि‍नगीक आवश्‍यक तत्वमे सूतबो -नीन- तँ अनि‍वार्य छी। तखन अधला केना भेल? मुदा जखन दस कोठरी बहारैक, साफ करैक भार रहत तखन एक्के कोठरी बहारबो तँ उचि‍त नै। मेटक मन ठमकल। ने आगूक बाट देखै आ ने पाछू घूमि‍ ताकब नीक बुझै। मनमे पुन: उठलै, कि‍यो जोग क्रि‍यामे जोगी बनि‍ जोगि‍या जाइत अछि‍, कि‍यो भोगी बनि‍ भोगि‍या जाइत अछि‍ तहि‍ना तँ कि‍यो काजोमे कजि‍या जाइए। मुदा कज्‍जी भेने तँ अबाहो भइये जाइए। जइठाम नि‍रोगक बलि‍ प्रदान होइत तइठाम अबाहक पूछ केतेक?
सामंजस करैत मेट भाव-वि‍ह्वल भऽ बाजल-
बौआ ठीकेदार, ई दुनि‍याँ खेल छी। अपना सभ जहलमे तीत-मीठ करै छी, आ कि‍यो खुलल धरती-अकास बीच खूलि‍ कऽ खेलाइए। तइठाम तोहीं कहह जे कि‍ नीक हेतइ?”

जहि‍ना चोरोक भरमार अछि‍, कि‍सि‍म-कि‍सि‍मक चाेर अछि‍, तहि‍ना ने एकरंगाहो चोरक भरमार अछि‍। अमती काँटमे ओझराएल जकाँ ठीकेदार ओझरा गेल। जँ चोर चोरि‍ कए कऽ आनए आ जरूरतमन्‍द लोककेँ दऽ दइ तखन ओकरा की कहब? चोरि‍ तँ ओ ने होइत जे चुपचाप आनि‍ चुपचाप रही। जइसँ कि‍यो बुझबो ने करत आ तरे-तर मखड़ैत रहब। ठीकेदारकेँ गुम देखि‍ मेट पुछलक-
गुम कि‍अए छह, ठीकेदार? तोरेपर छोड़ि‍ देलि‍यह जे जे तूँ कहबह सएह करब। जाधरि‍ प्रेम-प्रेमसँ नै मि‍लि‍, आत्‍मा-आत्‍मासँ नै मि‍लि‍, मन-मनसँ मि‍लि‍ कऽ नै चलत ताधरि‍ भरि‍ मन सि‍नेह कतए सि‍ंगार करत।
जबाबक तगेदा सुनि‍ ठीकेदारक मनकेँ नै रहल गेलै बाजल-
मेट भाय, जखन किलो-कि‍लो तेल अहाँकेँ पहुँचैबि‍ते छी, तखन नवका कैदीकेँ कि‍अए गोदाम जाइले कहलि‍ऐ?”
बौआ, मालीमे तेल हथुड़ैत देखलि‍ऐ, तँए बजा गेल।
अपन बढ़ैत पक्ष देखि‍ ठीकेदारक मनमे खुशी पनपल। खुशि‍आएल मन बजलै-
जे आदमी आइये जहल आएल अछि‍, ओकरा सोझे गोदाम पठाएब नीक नै। चोर अछि‍ कि‍ छुलाह अछि‍, से अखन लगले केना बूझि‍ जेबै? जखन हमरे हाथमे गोदाम अछि‍ तखन अहाँकेँ अभाव नै हएत सएह ने?”
ठीकेदारक बात सुनि‍ते मेटक मन तीआइर जालमे फँसल माछ जकाँ ओझरा गेल। चोर तँ चोर भेल, मुदा छुलाह कि‍ भेल? मुदा मेट भऽ पूछबो नीक नै। जेकरे हाथ सभ कि‍छु, सएह नै बुझै, मेटक मनकेँ घुरि‍अबए लगल। एते दि‍नसँ जहलमे छी, ठीकेदारक हि‍साबे छुलाहोक संख्‍या कम नै अछि‍, मुदा नै बूझि‍ पेलौं से केहेन भेल?
शब्‍दक मोड़ बदलैत मेट पुछलक-
कते रंगक छुलाह जहलमे हएत ठीकेदार?”
जहि‍ना नारद धरतीक रि‍पोर्ट अकासमे करैत तहि‍ना ठीकेदार अपनाकेँ महसूस करैत बाजल-
भाय सहाएब, तेहन घुरछी लगल सबाल अछि‍ जे धड़फड़मे छूटि‍ जाएत। तँए वि‍हि‍या कऽ देखए पड़त। पान-सात दि‍नमे पूरा-पूरी कहि‍ देब।

बलदेवक मनमे जहलक पहि‍ल दि‍न नाचए लगलै। पुन: मनमे उठलै, मात्र कि‍छु घंटाक लेल दुनि‍याँमे छी, तखन एक्के दि‍नक काजमे घेराएल रहब नीक नै। मुदा कहबो केकरा करबै आ सुनबो के करत। आगू बढ़ि‍ते मनमे उठलै, जि‍नगीमे जे कि‍छु जे करैए ओ आन देखौ, बुझौ आकि‍ नै देखौ-बुझौ मुदा केनि‍हार तँ जरूर देखबो करैए आ बुझबो करैए। मनमे ग्‍लानि‍ उठए लगलै। जहि‍ना बर्खाक बहैत बुन्नक बेग, घेरामे घेरा जमा हुअए लगैए तहि‍ना जि‍नगीक चलैत चक्रक चालि‍ बलदेबक मनमे समटाए लगलै। कते भारी अपराधी छी जे धरतीक भार बनि‍ गेल छी, जँ हमरा सन अपराधीकेँ फाँसी नै होइ, सेहो अनुचि‍त हएत। मन असथि‍र भऽ गेलै। मनुखे ने मानवो आ दानवो बनैए। दुनि‍याँक ऐ रंगमंचपर कि‍यो वीर बनि‍ तँ कि‍यो कायर बनि‍, पार्ट अदा करैए। मन ठमकलै। पुन: उठलै, जइ धरतीक भार उठबए आएल छलौं ओइ धरतीक भार बनि‍ गेलौं, एना कि‍अए भेल? की जि‍नगी भरि‍ हाथ-पएर मारि‍ रहलौं, सेहो तँ नै अछि‍। चलबैत अाएल छी। तखन भार कि‍अए बनि‍ गेलौं। मन अँटकि‍ गेलै। आइ जरूर बूझि‍ पड़ैए जे जि‍नगी भरि‍ वि‍परीत -बे-पीरि‍त- दि‍शा चलि‍ कुमार्ग पकड़ि‍ लेलौं मुदा से ओइ दि‍न कहाँ बुझलि‍ऐ जे कुमार्ग छी आकि‍ सुमार्ग। काजोमे कतौ बाधा कहाँ उपस्‍थि‍त भेल? जहि‍ना धारक धारा सि‍रासँ भठ्ठा दि‍सि‍ धड़धड़ाइत चलैए मुदा भठ्ठाकेँ सि‍रा दि‍सि‍ ससरैमे सामना करए पड़ै छै। केना-पानि‍ये पानि‍केँ रोकैत रहैए। मुदा बीचमे एकटा तँ होइ छै सि‍रोक पानि‍ आ भठ्ठोक पानि‍ एक-दोसरसँ रोकाइत, ठाढ़ हुअए लगैत अछि‍। ताधरि‍ ठाढ़ होइत जाइत जाधरि‍ धारसँ ऊपर उठि‍ धरतीपर नै छि‍ड़ि‍आए लगैत। मुदा धरति‍योपर तँ दि‍शा अवरूद्ध करि‍ते अछि‍। आइ धरि‍ जे नै बूझि‍ सकलौं ओ अपने केना बूझि‍ पाएब। मुदा नै, जि‍नगीक अंति‍म छोरपर भलहिं सब बात नै बूझि‍ सकि‍ऐ, मुदा कि‍छु नव तँ जरूर बूझि‍ पाबि‍ रहल छी। जँ से नै, तँ कहि‍यो नै बूझि‍ पेलौं जे फाँसी हएत? हमहीं नै सभ एहने वृत्ति‍ करैए, मुदा सभकेँ फाँसि‍ये कहाँ होइ छै। जइठाम पुरजा-पुरजी मनुखक अंग बनल अछि, सभ अंगमे गुण-दोष छै, तइठाम केना जोड़ि‍ कऽ चलाओल जा सकैए। समए पाबि‍ कि‍यो दौड़ए लगैए आ कुसमए पाबि‍ थकथका जाइए। तइठाम सौंसे मनुख बनब, धीया-पुताक खेलौना नै छी। समए अनुकूल बनए-बनबए पड़ै छै, से नै तँ रग्‍गड़मे लोक रगड़ाए कि‍अए जाइए।

बि‍सरि‍ गेल बलदेव बारह बजेक फाँसी। मन आगू दि‍सि‍ बढ़लै। जइठाम अधि‍कांश फूल ओहन अछि‍ जे अनेको रंगक होइए। गंध, रूप, अाकार समान रहि‍तो एक-दोसराक अनुकूलो‍ आ प्रति‍कूलो अछि‍। तहि‍ना गुलाबी आ लाल आलो-लाल आ गाढ़ो लाल बनैए तहि‍ना तँ अपराजि‍त करि‍यो बनैए आ उजरो। आ जँ उजरोपर करि‍ये रंग चढ़ि‍ जाए, जेना एक-दोसरपर चढ़ैए। भलहिं थलकमल उज्‍जरसँ लाल भऽ जाए मुदा सभ तँ थलकमले ने छी।
जहि‍ना फुलवाड़ी फलवाड़ी वा वंशबाड़ी टहललाक उपरान्‍त छाहरि‍मे बैसैक मन होइए तहि‍ना बलदेवकेँ सेहो भेल। दुनि‍याँक दृश्‍य देखि‍ मन हहि‍आए लगलै। ऐठाम के देत? केकरासँ मंगबै? जँ मंगबो करबै तँ जरूरी नै अछि‍ जे नीके देत। अधलोकेँ नीक कहि‍ दैत अछि‍।
जुग-जुगसँ रंग-बि‍रंगक फूल-फलक गाछ रहि‍तो अखनो हराएल अछि‍ आ हराइयो रहल अछि‍। भरि‍सक हराइ-जीताइक खेले ने तँ चलैए। बलदेवकेँ अपने-आपपर शंका उठलै। अखन जहलक सेलमे छी, अकलबेड़ामे फाँसीपर चढ़ब, कहीं बुइधे तँ ने भगंठि‍ रहल अछि‍। भंगठले बुधि‍ ने बताह कहबै छै। मुदा बि‍नु भंगठलोकेँ तँ बताह कहै छै। जहि‍ना धान-रब्‍बीक रग्‍गड़सँ हाँसू मुरछि‍ जाइए तहि‍ना बलदेवक मन मुरछि‍ गेलै। कि‍छु समए नि‍कलि‍ते मनमे उठलै, अझुका बाद के हमरा मन राखत। कोनो कि‍ हम असगरे मृत्‍युदंड पेलौं आकि‍ पबै छी। ि‍कयो गाछपरसँ खसि‍ तँ कि‍यो पानि‍मे डूमि‍, कि‍यो बीखहा दबाइ पीब, तँ कि‍यो वि‍षैला साँपकट्टीसँ....?
मुदा हम तँ ओइ सभसँ भि‍न्न छी? दुनि‍याँक बीच अपराधी छी, ओहन अपराधी जेकरा दुनि‍याँ थूक फेक भगबैए। मनमे हुमड़ैत वायुक दरद बूझि‍ पड़लै। केकरा लेल एते अपराध केलौं? कि‍ अपना ले आकि‍ परि‍वार ले। आइ के हमरा संग फाँसीपर चढ़त? जँ अपना ले केलौं तँ कि‍ हाथ-पएर नै अछि‍। मनमे एकाएक समुद्रक शीतल समीरक झटका लगलै। झटका लगि‍ते मुँहसँ नि‍कलए लगलै- ओ फाँसी केहेन होइए, जे हँसैत अपने हाथे गरदनि‍मे लगबैए। ओहि‍ना हँसैत मुँह लोकक सोझामे हँसैत रहैए। आ ओ फाँसी केहेन जेकरा थूक फेक लोक आँखि‍ मूनि‍ लइए। कि‍यो सपूत बनि‍ फाँसीपर चढ़ि‍ अमर ज्‍योति‍ जरबैत अछि‍ आ कि‍यो करि‍आएल इजोतमे अन्‍हराएल रहैत अछि‍। ऐ धरतीपर केकरो संग कि‍यो नै जाइत अछि‍। सभ अपन-अपन स्‍वार्थक पाछाँ रहैत अछि‍। मन ठमकलै। मनमे उठलै, केना नै जाइत अछि‍। आत्‍माक संग आत्‍मा जरूर जाइत अछि‍। नीकक संग नीक आ अधलाक संग अधला तँ जाइते अछि‍।

राति‍क अंति‍म पहर। एक दि‍सि‍ राति‍ उसरैक बेर तँ दोसर दि‍सि‍ दि‍न चढ़ैक समए। अर्द्धचेत बलदेवक भक्क तखन पुन: खुजल जखन अन्‍हारमे हराएल परुकी संगीक बीच अपन उपस्‍थि‍ति‍ दर्ज करबाक लेल घूटकल, अवाज देलक। अपन-अपन आवेशी अवाजमे गामसँ अान गाम, आ एकसँ अनेक कि‍सि‍मक गाछपर एक जुटताक अवाज देलक। यएह समए छी जे गौतमो ऋृषि‍केँ चन्‍द्रमा धोखा देलकनि‍। सराप चाहे गौतम जे देलखि‍न मुदा एते तँ भेबे केलनि‍ जे आत्‍मासँ खसि‍ देहलोकमे उतरि‍ गेलाह। चन्‍द्रमामे जखन गहन लगि‍ जेतै तखन अन्‍हारमे धरतीपर केकरा के चि‍न्‍हत?
परुकी सबहक अवाज सुनि‍ते बलदेवक मनमे जहि‍ना तरेगन रहि‍तो भुरुकबा तरेगन आल-लाल ज्‍योति‍ धरतीपर हँसैत आबि‍ प्रकाशि‍त करैक परि‍यास करैत, तहि‍ना बलदेवक मनमे सेहो पतराएल प्रकाशक आगमन भेलै। ज्‍योति‍क आगमन होइते उठलै, कोनो कि‍ हमरेटा फाँसी हएत आकि‍ अदौसँ होइते एलै आ भवि‍ष्‍योमे होइत रहतै। मुदा हमरा जि‍नगीमे फाँसी चढ़ैक बाट पकड़ाएल कहि‍या?
बलदेव पाछू उनटि‍ ताकए लागल। हम तँ ओइ दि‍न फाँसीक बाट पकड़ि‍ लेलौं जइ दि‍न डगर छोड़ि‍ डगहर पकड़ि‍ लेलौं। डगरक तँ सीमा-सरहद होइ छै, नि‍श्चि‍त जगहसँ नि‍श्चि‍त जगह पहुँचैए, मुदा डगहर तँ से नै होइत। घुरि‍या-फिड़ि‍या बौअबैत रहैए। मनुष्‍यक तँ डगर होइ छै, डगहर तँ पशु लेल होइ छै जे जंगलमे चरैले जाइत छैक। कि‍ हमहूँ पशुए भऽ गेलौं। मुदा पशुओ तँ जीबे छी आ मनुखो जीबे छी। दुनूक बीच आत्‍माक बास होइ छै। मुदा आत्‍माक बास रहि‍तो पशु कहाँ बूझि‍ पबै छै जे हमरा बीच आत्‍माक बास अछि‍। मुदा मनुष्‍यकेँ तँ से नै होइ छै। मनुष्‍ये नै जीव-जन्‍तुओसँ प्रेम करैत अछि‍ आ प्रेम पबैत अछि‍। सहयोगी बनि‍ जि‍नगीमे सहयोगो करैत अछि‍ आ सहयोगक अपेक्षो रखैत अछि‍। जँ से नै तँ ओ अपन रहैक बेवस्‍था कि‍अए ने कऽ पबैत अछि‍। जेकरा रहैक बेवस्‍था नै हेतै तेकरा जि‍नगीक गारंटी कि‍ भऽ सकै छै। भलहिं बौआ-ढहना घास-पात वा अन्‍य भोज्‍य पदार्थ ताकि‍ पेट भरि‍ लि‍अए मुदा मनुष्‍य जकाँ तँ जि‍नगी जीबैक गारंटी नै कऽ सकैए। मनुष्‍य तँ पातालसँ पानि‍ आनि‍ पीब सकैए, धरतीसँ भोज्‍य–पदार्थ उपजा सकैए। फेर मन ठमकलै। सोचती बन्न भेलै! सोचनशक्‍ति‍ रूकलै!
जहि‍ना कटल वा टुटल रास्‍ता देखि‍ राही ठमकि‍ जाइत जे ओइ पार केना जाएब। मुदा कटबो आकि‍ टुटबो तँ रंग-बि‍रंगक होइत अछि‍। एक टुटब ओहन होइत अछि‍ जइमे पानि‍-थाल-कीच होइत अछि‍ आ दोसर ओहन होइत जे सुखले रहैत अछि‍। जइमे सावधानीसँ नि‍च्‍चाँ उतरि‍ पार कएल जाइत अछि‍। तहि‍ना तँ पनि‍आएलो-थलाहमे होइत। कतौ अगम होइत कतौ कम होइत जइठाम कम होइत तइठाम कने कठि‍ने सही मुदा पार तँ कएल जा सकैए। मुदा अगममे तँ डुमबोक आ गड़बोक संभावना बनले रहै छै। फाँसी लगा, गरदनि‍ दाबि‍ हमर प्राण लेत, मुदा फँसरि‍यो लगा तँ लोक मरि‍ते अछि‍। एहेन-एहेन परि‍स्‍थि‍ति‍ पैदा कऽ दैत जे बेवस भऽ लोक अपन गरदनि‍मे फँसरी लगा प्राण गमबैत अछि‍। कि‍ ओ अपराधी छी आकि‍ अपराधीक सजा पबैए। जखन ओ अपराधी नै छी, तखन अपराधीक सजा कि‍अए भेटलै?
वोनक बाघ सि‍ंह कि‍अए दोसराक प्राण लऽ लऽ खून पीबैए? ओकर कि‍ दोख छै? यएह ने जे ओकरा आगू ओ अब्‍बल अछि‍। फेर मन ठमकलै। कि‍यो इनार-पोखरि‍मे डूमि‍ मरैए, कि‍यो आगि‍, पानि‍-पाथर, वि‍र्ड़ोमे मरैए। ततबे नै कि‍यो गाछपर सँ खसि‍ मरैए, तँ कि‍यो गाछपर चढ़ैत-उतरैत काल खसि‍ मरैत अछि‍। प्रकृति‍क तँ अद्भुत लीला अछि‍। क्षण-क्षण पल-पल बाटो पकड़बैत अछि‍ आ धकेल-धकेल नि‍च्‍चाे करैत अछि‍। ऊपर-नि‍च्‍चाक खाढ़ा बना जीवन-मृत्‍युक सीमा बनोनै अछि‍। एक तँ ओहि‍ना आगि‍मे अगि‍आएल अछि‍, पानि‍मे पनि‍आएल अछि‍, हवामे हवि‍‍आएल अछि‍, तखन केना परेखि‍ पाएब। परखैले जेहेन आँखि‍क इजोत चाही तेहेन ने करि‍आएल बादलमे अछि‍ जे बर्खासँ सि‍क्‍त करत आ ने डभि‍आएल धरतीमे अछि, जे धरतीक परतकेँ तेना सि‍र गछाड़ने अछि‍ जे शक्‍ति‍हीन बना देने अछि‍। सूखल माइक छातीमे दूध कहाँ अछि‍ जे चाहि‍यो कऽ बेचारी दऽ सकती। अन्‍हारो राति‍मे, जखन हाथ-हाथ नै सुझैत, जखन अपन देहो हरा जाइत, देहक सभ अंग नि‍ष्‍क्रि‍य भऽ जाइत, तखनो तँ कि‍छु रहि‍ते अछि‍ जे हँथोरि‍यो-हँथोरि‍ कि‍छु दूर धरि‍ लइये जाइत अछि‍। मुदा हम तँ सोलहन्नी आन्‍हरा गेलौं। जखन पीबैयो बला पानि‍ बसि‍या गेने फेका जाइत, तहि‍ना आइ दुनि‍याँसँ फेका रहल छी। अपन फेकाइत जि‍नगीपर नजरि‍ पड़ि‍ते बलदेवक मन सहमि‍ गेलै। ने आगूक बाट देखै आ ने पाछू घुसुकि‍ पाबए। जहि‍ना जि‍नगीक ओहि‍ मोड़पर कि‍यो चारू दि‍ससँ दुश्‍मनसँ घेरा, हारि‍-जीतक तारतम्‍य नै कऽ पबैत तहि‍ना बलदेव सेहो घेरा गेल। हारि‍यो मानने दुश्‍मनक हाथे प्राण गमेबे करब, तखन प्राणक मोह राखि‍ हारि‍यो मानब उचि‍त नै। तइसँ नीक जे सामना करैत सामनेमे जत्तेकाल ठाढ़ रहब ओत्तेकालक जि‍नगीक महत तँ आरो कि‍छु हएत।
मुदा ठाढ़ रहि‍ के सकैए? जेकर शरीर टी.बी., केन्‍सर सन रोगसँ जर्जर भऽ खोखला भऽ गेल रहैए ओ ठाढ़ केना रहि‍ सकैए। पएरमे ओ शक्‍ति‍ कहाँ छै जे ठाढ़ रखतै। बलदेवक मन वि‍चलि‍त भऽ गेलै।
कि‍छु क्षण बाद मनमे उठलै, फाँसी तँ पोखरि‍क जाइठ‍ सदृश जि‍नगीक छी। कि‍यो अगम पानि‍मे डुबकुनि‍याँ काटि‍, माटि‍ नि‍कालि‍ जाइठक मुरेड़ापर लगबैए तँ कि‍यो कि‍नछैरे-कि‍नछैरमे पि‍छड़ि‍ कऽ खसि‍, पि‍छड़ैत-पि‍छड़ैत अगम पानि‍मे डूमि‍, सड़ि‍-सड़ि‍ सड़ैनि‍क गंध पसारैत अछि‍। मुदा जि‍नगीक अंति‍म छोड़पर बुझनहि‍ की हुअए? कमसँ कम जँ अपनो लेल केने रहि‍तौं तँ कनैत कि‍अए, हँसैत कि‍अए ने दुनि‍याँ छोड़ि‍तौं। जि‍नगीक अचूक उपाय कहाँ बूझि‍ पेलौं।
सूर्योदय भऽ गेल। बलदेवक पत्नी कामि‍नी आ बेटा सुशील गुमसुम भेल अपन-अपन काजमे लागल, मुदा मनमे वि‍चि‍त्र स्‍थि‍ति‍ बनल रहैक। ने सुशील माएकेँ कि‍छु कहैत आ ने माए बेटाकेँ। दुनूक मनकेँ बलदेवक फाँसी भीतरे-भीतर खिंचैत रहए। जइसँ मनक पीड़ा बढ़ैत रहैक। मनक पीड़ा ताधरि‍ बढ़ैत जाधरि‍ ओकरा नि‍कालि‍ दोसरकेँ नै कहल जाइत अछि‍। तखने अकासमे एकटा कौआ बाजल। कौआक बोलमे कामि‍नीकेँ अपशगुन बूिझ पड़लनि‍, मुदा सुशीलकेँ सगुन बूझि‍ पड़ल। गुम्‍मी  तोड़ैत कामि‍नी बाजलि‍-
बौआ, कौआक बोल केहेन ओल सन भेल।

ओना बलदेवक फाँसी दुनूकेँ झल, मुदा तैयो मनकेँ फुसलबैत बहलबैत कामि‍नी बजलीह। माइक बेथाकेँ सुशील बूझि‍ गेल, मुदा जि‍नगीमे एहि‍ना सोग-पीड़ा अबै-जाइ छैक। छोटसँ-छोट पीड़ा होय आकि‍ पैघसँ-पैघ होय मुदा समैक संग तँ लोक ससरि‍ये जाइत अछि‍। जइसँ धीरे-धीरे कमैत-कमैत मेटा जाइत अछि‍। जहि‍ना चलैले रास्‍ता चाही, से तँ नीक कि‍ बेजाए अछि‍ये। समाज तँ ओहन समुद्र छी जइमे करोड़ो-अरबो जीव-जन्‍तु स्‍वछंद भऽ जीवन-यापन करैत रहैए, भलहिं एक-दोसराक बाटो घेरैत रहै छै, पकड़ि‍-पकड़ि‍ खेबो करै छै मुदा, तैयो तँ रहबे करैए। नीक कि‍ अधला, मनुख मनुखे बीच रहैत अछि‍। माइक पीड़ाकेँ सुशील भाँपि‍ गेल। मने-मन सोचलक जे एक तँ बेचारीकेँ जि‍नगी भरि‍क संगी छूटि‍ रहल छन्‍हि‍ तइपर जँ हमहूँ ओहने बात कहबनि‍ तँ आरो मनमे धक्का लगतनि‍। चोटपर-चोट लगने आरो अधि‍क वेदनाक अनुभव होइ छै। मुदा जहि‍ना कड़ू लगने लोक पानि‍ पीब कड़ू कम करैए तहि‍ना जे दर्द मेटबैक उपाए करब तँ दर्द आगू नै बढ़ि‍ या तँ ठमकल रहतनि‍ वा कमतनि‍। समगम होइत सुशील माएकेँ उत्तर देलक-
माए, कौआ तँ केहेन सुन्नर बाजल। कबकबाएल कहाँ?”
सुशीलक बात सुनि‍ कामि‍नी बजलीह-
आन दि‍न केहेन सुन्नर भि‍नसुरका बोली नि‍कालै छलै आइ केहेन सबसबाएल बोल नि‍काललक।
माइक हृदैक वेदनाकेँ सुशील भाँपि‍ लेलक। ओना मनुष्‍यक हृदैक थाह नै छैक। एक दि‍स रूइयाक फाहा जकाँ बि‍नु हवोक उड़ैए तँ दोसर दि‍स जुआन पति‍, कमाइबला जुआन बेटाक मृत्‍यु, सेहो तँ सहबे करैए। बाट टुटल वा कटल होउ आकि‍ छोटसँ नमहर खाधि‍ होउ, लोककेँ चलैले तँ बाट चाहबे करी। एकठाम बैसलासँ तँ जि‍नगी नहि‍ये चलै छै। कोनो-ने-कोनो उपाए तँ करै पड़ै छैक। कतौ लोक कूदि‍ कऽ खाधि‍ पार करैत अछि‍ तँ कतौ बगलक माटि‍ काटि‍ वा छीलि‍ कऽ ओकरा पहेटि‍ चलैत अछि‍। कतौ एहनो होइ छै जे नमहर टुटान वा कटान रहै छै तँ ओकरा छोड़ि‍ दोसर बाट बना लइए। माइक पीड़ाकेँ कमैत नै देखि‍ सुशीलक मनमे उठल। एक-एक ढेपासँ सेहो बाटक खाधि‍ भरल जाइत अछि‍ आ खाधि‍क हि‍साबसँ चेकान काटि‍ सेहो भरल जा सकैत अछि‍।
सुशील बाजल-
माए, हमरा तँ कौआक बोलमे सकुन बूझि‍ पड़ल। जहि‍ना केकरो कोनो वस्‍तु  हरेलासँ दुख होइ छै तहि‍ना ने भेटि‍नि‍हारकेँ खुशि‍यो होइ छै। बीचक वस्‍तु तँ एकेटा रहै छै। एक्के बात वा वस्‍तु एकक लेल नीक अछि‍ तँ दोसराक लेल अधलो भऽ जाइत अछि‍। जीवन रक्षक पति‍यो होइत अछि‍ आ बेटो होइत अछि‍। मुदा एक काज रहि‍तो दुनूक करैक वि‍धि‍मे कि‍छु-ने-कि‍छु अन्‍तर तँ भइये जाइत अछि‍। वएह अन्‍तर तँ एक-दोसराक बीच अन्‍तरो पैदा करैत अछि‍।

सुशीलक वि‍चार कामि‍नीक वि‍चारक सोझा-सोझी ठाढ़ भऽ गेल। कामि‍नीक वि‍चार ठमकलनि‍। एकाएक ठाढ़ भेने जहि‍ना शरीरमे झोंक अबैत छैक तहि‍ना कामि‍नीकेँ एलनि‍। मनमे झोंक लगि‍ते डोललनि‍। डोलि‍ते नजरि‍ एक दि‍स पति‍पर तँ दोसर दि‍स पुत्रपर वि‍भाजि‍त हुअए लगलनि‍। जइ छत्रछायामे अखन धरि‍ रहलौं ओ तँ टूटि‍ रहल अछि‍। मन नि‍राश हुअए लगलनि‍, मुदा लगले आगूमे पुत्र देखि‍ आशा जगलनि‍। पुत्रो तँ पति‍ये जकाँ प्रहरी होइत अछि‍। नि‍राशाक मचकीमे आशाक आश लगलनि‍। हृदय सि‍हरलनि‍। सि‍हरि‍ते पुत्रक प्रति‍ प्रेम जगलनि‍। ओ प्रेम नै जे प्रेम माइक आशामे पुत्रकेँ होइत। बल्‍कि‍ ओ प्रेम जइ आशामे पुत्रक आश्रयमे माए जीबैत छथि‍। जहि‍ना जलसँ जलकण आ ओससँ ओसकण बनि‍ पुन: जल वा ओसक सृजन करैत अछि‍, तहि‍ना। नि‍राश मनमे खुशीक संचार भेलनि‍। संचार होइते खि‍लैत कली जकाँ मन खि‍ललनि‍। जहि‍ना खापड़ि‍मे मकै वा धानक लाबा एक्के-दुइये फुटि‍-फुटि‍ रंग बदलैत तहि‍ना मनक रंग बदलए लगलनि‍। केना लोक कहैए जे कोनो बीआक लेल अनुकूले वातावरण भेटलापर अंकुर होइ छै। अंकुरक लेल तँ वएह वातावरण अनुकूल भऽ जाइत अछि‍ जइ मूलक ओ बीआ आ बीआक गाछ होइत अछि‍। जँ से नै तँ एक दि‍स अगम पानि‍बला समुद्रमे बीआ अकुरि पनि‍गाछक जन्‍म दैत अछि‍ तँ दोसर माटि‍-पानि‍ बीच सेहो दैत अछि‍। ततबे कि‍अए? दोखरा बालुओ आ चखान भेल पाथरोमे तँ कोनो-ने-कोनो गाछक बीआ तँ अकुरिते अछि‍। जखन दुनि‍याँक सभठाम शक्‍ति‍ मौजूद अछि‍ तखन मि‍थि‍लाक भूमि‍ कि‍अए शक्‍ति‍हीन भऽ जाएत। जे बीत भरि‍क पेटक रच्‍छा नै कऽ सकैत अछि‍। जे धरती भि‍खारीकेँ भि‍क्‍क्षु बना सकैए, भोगीकेँ जोगी बना सकैए, ओ जोगीकेँ कि‍अए ने भोगी आ भि‍क्‍क्षुकेँ भि‍खारी बना सकैए। एक नव शक्‍ति‍क उदय कामि‍नीक मनमे भ‍ऽ चुकल छलनि‍। साैंसे धानक लाबा जकाँ मन दू फाँक भऽ गेल छलनि‍। जहि‍ना खापड़ि‍मे एक-फाँक, दू-फाँक, तीन-फाँक होइत लाबा खापड़ि‍सँ उड़ए चाहैत अछि‍, उड़बो करैत अछि‍ तहि‍ना कामि‍नीक वि‍चार उड़लनि‍। मुदा मुँहक बोल सुखा गेलनि‍। कंठक तरास बढ़ए लगलनि‍। मुदा पति‍-पुत्रक बीच चलैत धारमे अपनाकेँ पाबि‍ कामि‍नीक हृदय छटपटेलनि‍। सुशीलक आँखि‍मे आँखि गाड़ैत बजलीह-
बाउ सुशील, अहाँक पि‍ता आ अपन पति‍क तँ अंति‍म दि‍नक क्षण क्षणकि‍ रहल हेताह‍। चलि‍ कऽ आइ दुनू माए-बेटा भेँट कऽ लि‍अनु?”
माइक बात सुनि‍ सुशीलक मन ठमकल। केकरो मनमे फुलक वर्षा होइत अछि‍ तँ केकरो पानि‍-पाथर बनल ओला-पाथर बरसैए। मुदा जहि‍ना मरबो दुनू करैए तँ जीबो तँ करि‍ते अछि‍। भेँट करए चालैले माए कहै छथि‍ मुदा कि‍ ई उचि‍त हएत? हम सभ जेबे करब तइसँ कि‍ हुनका भेटतनि? आ हमरे सभकेँ भेटत? अस्‍ताचल गामी सूर्यक लाभ तँ ओकरे भेटैत छै जे उदीयमान अछि‍। जे उदीयमान नै अछि‍ ओकरा लेल तँ जेहने दि‍न तेहने राति‍, तखन अस्‍ताचलक महत्‍वे की? हुनका -पि‍ता- कि‍छु ने भेटतनि‍, भेटतनि‍ वएह जे अपना ले फाँसीपर चढ़ि‍ रहला अछि‍ आ परि‍वारक लेल। जँ परि‍वारक लेल तँ कि‍ अधले काजपर परि‍वार चलि‍ सकैए आ नीक काजपर नै चलि‍ सकैए। जँ चलि‍ सकैए तँ ओ खुद नीक बाट छोड़ि‍ अधला बाटपर चलि‍ अंति‍म दर्शन देखा रहला अछि‍। अंति‍म दर्शन की? यएह ने जे धरतीपर कनैत एलौं हँसैत जाएब आकि‍ जहि‍ना कनैत एलौं तहि‍ना कनैत जाएब, तँ कि‍ एहेन जि‍नगीकेँ सुभर जि‍नगी मानबै? कथमपि‍ नै? जखने घरसँ डेग उठाएब तखनेसँ लोक कहबो करत आ थूकबो करत जे खुनि‍या-अधरमीक बहु-बेटाकेँ देखि‍यौ? नि‍रलज जकाँ केहेन धमौड़ दैत जा रहल अछि‍। माइक प्रश्नक उत्तर दैत सुशील बाजल-
माए, कोन मुँह देखए आ देखबए जाएब। सोझ पड़लापर पि‍ता यएह ने कहता जे अहीं सभले जा रहल छी? मुदा अपना सभ कि‍ पुछबनि?”
सुशीलक वि‍चार कामि‍नीक मनमे अभि‍भावकक रूपमे जगलनि‍। जहि‍ना सइयो हाथक लत्ती बि‍ना सहाराक धरतीसँ नै उठि‍ सकैत अछि‍ तहि‍ना ने नारि‍यो अछि‍। डाॅड़मे चोट मारि‍ ने वि‍धातो वि‍धि‍क रचना केलनि‍। बेटाक सहारा देखि‍ कामि‍नीक मनमे अगि‍ला जि‍नगीक आस जगले रहनि‍। वि‍ह्वल भऽ बजलीह-
बेटा, बेटा बनि‍ जँ धरतीपर आबी तँ बेटा कहबैत चली। आब तँ तोंही ने सभ कि‍छु भेलह। वैधव्‍य भेने एक आकुश मात्र लगत। मुदा आरो जि‍नगी तँ संग मि‍लि‍ चलबे करबह कि‍ने, तोहर जे वि‍चार हेतह सएह ने हमरो वि‍चार हएत। कहुना भेलह तँ तूँ पुरुष-पात भेलह? हम कतबो हएब तँ घरे भरि‍ हएब।
माइक बात सुनि‍ सुशीलक मन पसीज गेल। अपन दायि‍त्वक भान भेलै। मुदा लगले मन मुरुछि‍ गेलै। एक दि‍स धरती सदृश नि‍श्चल माए तँ दोसर दि‍स कुकर्मी अपराधी, धरतीक पापात्मा पि‍ता देखए लगल। पि‍ताक प्रति‍ मनक उष्‍मा तेज भऽ गेलै। बाजल-
माए, परि‍वारक बड़का बोझ उतरैक दि‍न........।
सुशीलक बोल बन्न भऽ गेलै। वि‍स्‍मि‍त अवस्‍थामे सुशीलकेँ देखि‍ कामि‍नी बाजलि‍-
सोग नै करह। जइ दि‍नक जे भवि‍तव्‍य छलै ओ भेलै। जहि‍ना जरल-मरल धरती आद्राक बुन्न पाबि‍ ि‍सर्फ जीवि‍ते नै सृजक सेहो बनि‍ जाइत अछि‍। तों तँ सहजे पुरुख छि‍अह। आन के केकरा कहत आ केकर के सुनत। मुदा जहि‍ना तोहर पि‍ता तहि‍ना तँ हमरो पति‍ छथि‍ये। तँए अन्‍ति‍म घड़ीमे श्रद्धापूर्वक स्‍मरण कऽ वि‍सरि‍ जाह। चलह अंगनेक ओसारपर बैस चाहो बना पीब आ गपो-सप करब। दुनि‍याँ कि‍छु कहह, मुदा तोहर मुँह देखि‍ एहेन खुशी भऽ रहल अछि‍ जे जि‍नगीमे कहि‍यो नै भेल छल।
माइक बात सुनि‍ सुशीलक मन ओहि‍ना फड़फड़ा उठल। बाजल-
असगरे लोक जन्‍म लइए आ अपने आशा सभकेँ करैक चाहि‍ये।

बेटाक आस भरल बात सुनि‍ कामि‍नीक हृदए पसीज गेलनि‍। बजलीह-
बौआ, आब तूँ बौआ नै बेटा भेलह। बापक काज कऽ देखि‍ परेखि‍ दुनि‍याँक संग चलैक एक सि‍पाही भेलह। परि‍वार-समाज कर्मभूमि‍ भेलह। ने अनका पढ़ने आनकेँ ज्ञान होइत आ ने अनकर ज्ञान अनका ले सबतरि‍ उचि‍ते होएत। तँए अपन समए, परि‍स्‍थि‍ति‍केँ अॅकैत परि‍वारकेँ आगू मुँहेँ ससारैक तँ भार माथपर आबि‍ये गेल छह। केहेन मनुख बनि‍ धरतीक धारण केलौं, यएह ने जि‍नगीक परीछा छी।

माए-बेटाक बीच जि‍नगी परि‍वारक गप-सपक बीच कामि‍नीक मन कखनो पति‍सँ हटि‍यो जाइत मुदा लगले पुन: आबि‍ मनकेँ पकड़ि‍ लैत। जखन मनसँ हटैत तखन अपनो हाथ-पएर नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ देखथि‍ आ सुशीलोकेँ नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ देखथि‍। मनमे उठलनि‍ पाँखि‍ तँ टि‍कुलि‍योकेँ होइ छै, अकासमे उड़बो करैए मुदा तँए ओ चि‍ड़ै तँ नै कहाइत। चि‍ड़ै लेल तँ पाँखि‍मे दम चाही। से कहाँ टि‍कुलीमे होइ छै। कनि‍यो कि‍छु होइ छै कि‍ पाँखि‍ टुटि‍ जाइ छै। जइसँ अकास उड़बे बन्न भऽ जाइ छै। तहि‍ना तँ अखन अपनो परि‍वार भऽ गेल अछि‍। हम उमरदार छी तँ घरसँ बहार कि‍छु करबे ने केलौं आ सुशील तँ सहजे कोनो भार बुझबे ने केलक। नै बहराइक कारणो भेल जे अपनाकेँ घरेक सीमामे रखलौं। जे उचि‍तो भेल आ अनुचि‍तो भेल। अर्द्धांगि‍नी होइक नाते जि‍नगीक सभ वृत्ति‍सँ परि‍चि‍त हेबाक चाहै छल से नै भेल। जँ से भेल रहैत तँ जरूर नीक-अधला वृत्ति‍क वि‍चार करि‍तौं। मुदा, अपसोचो केने तँ नहि‍ये कि‍छु हएत। बाजलि‍-
बेटा, जँ ऐ धरतीपर बेटा बनि‍ आबी तँ कि‍छु कऽ देखाबी। जँ से नै तँ बेटाक महत्ते की?”

माइक बात सुनि‍ सुशीलक मन नव कलशल टुस्‍सा जकाँ नव रूपमे पनगल। माइक आँखि‍मे आँखि‍ गाड़ि‍ बाजल-
माए, दुनि‍याँमे सभ अपन-अपन भाग-तकदीर लऽ जि‍नगी बनबैत अछि‍। जेहेन जेकर जि‍नगी जीबैक बाट रहै छै तेहेन से भार उठा चलैत अछि‍।
सुशीलक बात सुनि‍ कामि‍नी वि‍ह्वल होइत बजलीह-
बेटा, जहि‍ना एक बेटा बनल-बनाएल परि‍वार-खनदानकेँ नाश कऽ दैत अछि‍ तहि‍ना एक बेटा बनल-बनाएल परि‍वारकेँ उठा ठाढ़ो कऽ दैत अछि‍।

जहि‍ना कल्‍पवृक्षक नि‍च्‍चा बैसि‍नि‍हार बौड़ाइत रहैए तहि‍ना फाँसीपर चढ़ैत बलदेवक परि‍वारक मन बौड़ा रहल अछि‍। असमसान जाइकाल मुर्दाक पाछू कठि‍यारीबला ‘राम-नाम सत् है, सबको यही गत है।’, कहैत चलैत मुदा घुमति‍यो काल जखन कि‍ मुर्दा नै रहैत, वएह कहैत जे ‘राम नाम सत् है, सबको यही गत है।’ भलहिं मृत्‍युक आंगन आबि‍ लोह-पाथर, आगि‍ छूबि‍ बि‍सरि‍ जाइत वा छोड़ि‍ दैत। जइठाम बच्‍चासँ सि‍यान धरि‍ मंत्र जपैत तइठाम एहेन जि‍नगीक दशा कि‍एक? जहि‍ना रस्‍ता चलैत बताह कखनो रस्‍तासँ हटि‍ तँ कखनो सटि‍ ललकारो भरैत आ कखनो असथि‍र भऽ बौको बनि‍ जाइत तहि‍ना माए-बेटाक अर्थात् सुशील-कामि‍नीक मन पि‍ता-पति‍क फाँसीक कि‍छु समए पूर्व पुरबा-पछबा जकाँ रस्‍सा-कस्‍सी करैत।
कामि‍नी- बेटा, तीन गोरेक परि‍वारमे एकक अंत भऽ रहल अछि‍ तैयो तँ दू गोरे बँचलौं। तोहर बि‍आह होइते फेर तीन गोरे भइये जाएब।
माइक बात सुनि‍ सुशील बाजल-
एहि‍ना परि‍वार कम-बेसी होइत एलैए आ होइत चलतै। तइले कत्ते माथ धूनब। तखन तँ एकटा बात बुझए पड़त जे आनकेँ केकर परि‍वारक भार उठबैए, अपन परि‍वारक भार तँ अपने उठबए पड़त।
कामि‍नी- हँ, ई तँ बेस बजलह।
सुशील- दुखे कि‍ सुखे परि‍वारक बोझ तँ परि‍वारेक लोककेँ उठबए पड़तै।

सुशीलक बात सुनि‍ कामि‍नीक मन सहमि‍ गेलनि‍। बेटा सहजहि‍ अनाड़ि‍ये अछि‍, अपने कहि‍यो भारे ने बुझलौं। तखन.....?
बकार बन्न भऽ गेलनि‍। जहि‍ना भुमकमक समए धरतीक सभ कि‍छु डोलए लगैत तहि‍ना कामि‍नीक भीतर-बाहर डोलए लगलनि‍।
धारक बहैत पानि‍मे जहि‍ना पएर असथि‍रो कऽ टपैमे थरथड़ाइत तहि‍ना कामि‍नीकेँ हुअए लगलनि‍। सुशीलोक मन वि‍चलि‍त होइत मुदा मनकेँ थीर करैत बाजल-
माए, प्रश्न तँ छुटि‍ये गेल अछि‍। उत्तर कहाँ देलँह।
सुशीलक प्रश्न मन पाड़ि‍ कामि‍नी बजलीह-
अर्द्धांगि‍नी बनि‍ जइ पुरुखक संग पकड़लौं हुनका चीन्‍हि‍ नै सकलि‍यनि‍। आइ बुझै छी जे पुरुखक भीतर सेहो, पुरुख होइ छै आ नारीक भीतर सेहो नारी होइ छै। जँ से बुझने रहि‍तौं तँ एतेक दूरी नै बनि‍ पबैत। ओना परि‍वारक भीतर अपन भार नि‍माहैमे कहि‍यो कोताही नै केलौं मुदा....। आब उपाऐ कि‍ अछि‍?”
बजैत-बजैत कामि‍नी ठमकि‍ गेलीह। जहि‍ना नदी-नालाक पानि‍क बेग आगूमे बान्‍ह  पाबि‍ रूकि‍ जाइत तहि‍ना कामि‍नीकेँ भेलनि‍। सहत बेधल माछ जकाँ छटपटाए लगलीह। छटपटाइत मनमे आबए लगलनि‍, एक दि‍स तत्‍ववेत्ता तात्वि‍क चि‍न्‍तन-वि‍वेचनमे लगल रहैत अछि‍ तँ दोसर दि‍स व्‍यक्‍ति‍-व्‍यक्‍ति‍क बीच सेहो होड़ लगल अछि‍। सभ सभसँ आगू बढ़ए चाहैत अछि‍। जइसँ संगे चलब छूटि‍ जाइत अछि‍। समाज वि‍खंडि‍त भऽ जाइत अछि‍। श्रमि‍क अश्रमि‍कक बीच दि‍शा-दि‍शान्‍तरक अंतर बनि‍ जाइत अछि‍।
दुनू माए-बेटा गुमसुम भेल एक-दोसराक मुँह देखैत। गुम्‍मी तोड़ि‍ सुशील बाजल-
माए, तोहर की इच्‍छा छउ?”
बेटाक बात सुनि‍ कामि‍नीक मन शान्‍त भऽ गेलनि‍। पति‍क फाँसी मनसँ हटि‍ गेलनि‍। मन पाड़ि‍ बाजए लगलीह-
बेटा, बहुत दुनि‍याँ देखलौं। नाना-नानी, दादा-दादी, बाप-माए, मामा-मामी, केत्ते कहबह। पाछू उनटि‍ तकै छी तँ सभ कि‍छु देखै छी मुदा आगू तकै छी तँ तोरा छोड़ि‍ कि‍छु ने देखै छी। जहि‍ना नमहर गाछ खसि‍ रस्‍ता रोकि‍ दइए तहि‍ना आगू बूझि‍ पड़ैए।
माइक बात सुनि‍ सुशील बाजल-
माए, तोहर जे इच्‍छा छोउ, ओकरा जहाँधरि‍ भऽ सकत पूरबैक कोशि‍श करब। जे धरती छोड़ि‍ चलि‍ गेल, ओ तँ सहजे चलि‍ गेल। ओकरा संग कि‍छु थोड़बे जेतइ। मुदा जे अछि‍ ओकर तँ आशा अछि‍ये।

आशा भरल सुशीलक वि‍चारमे आस लगबैत माए बजलीह-
दुनि‍याँक खेल छि‍ऐ जे एकपर सए ठाढ़ अछि‍ आ कखनो सए सए दि‍सि‍ छि‍ड़ि‍आएल रहैए। तँए सभ कि‍छु बि‍सरि‍ जाह। बीतलाहा काल्हि‍ मन राखह आ अगि‍ला काल्हि‍ ले हाथ-पएर उठाबह।

नअ बजि‍ते जहलक भीतर ओहने चलमली आबि‍ गेल जेहने नमहर बर्खा भेलापर वा भूमकम भेलापर होइत अछि‍। कि‍छु गोटे -सि‍पाही- नहाइ-खाइले गेला। तँ कि‍छु गोटे दस बजे जहलसँ नि‍कलैक कागज-पत्तर सरि‍यबैमे लगि‍ गेला। ओना अनदि‍नासँ ऑफि‍सोक रंग बदलल। जेना घंटा-घंटा भरि‍ ऑफि‍सरक अभावमे गेटपर ठाढ़ भऽ प्रति‍क्षा करए पड़ैत रहैत तेना नै। ऑफि‍स समैयेपर खुजि‍ गेल। केना नै खुजैत, आइ बलदेवकेँ जहलक सजाए जे समाप्‍त भऽ रहल अछि‍। फाँसी तँ जि‍नगीक छी। ि‍सर्फ दूटा सि‍पाही बलदेवकेँ सेलसँ नि‍कालि‍ अग्‍नेयक गाछक नि‍च्‍चामे सबजि‍येपर बैसि‍ गप-सप्‍प करए लगल। तहूमे एक गोटे चीलमक भॉजमे लगि‍ गेल आ दोसर बलदेवसँ गप-सप्‍प करए लगल। मुदा तीनू गोटे माने दुनू सि‍पाही आ बलदेवक मन तीन दि‍स बौआइत ढहनाइत। चीलमक भॉज-भूॅज केनि‍हार -पहि‍ल सि‍पाही- तमाकुलबलापर बि‍गड़ि‍ गरि‍अबैत जे साला सभ पानि‍ छीटि‍ अधलो पत्ताकेँ तेहेन डगडगी आनि‍ दइए जे लेनि‍हारकेँ बूझि‍ पड़ैत जे टि‍पगर अछि‍। मुदा स्‍नो-पोडर लगौलहा मुँह तँ ओतबे काल ने चमकैत जतेकाल ओकरा चमकैक शक्‍ति‍ छै, मुदा तँए की सभ मुँह ओहने होइए जे लगले चमकत लगले दबि‍ जाएत, बि‍लि‍न भऽ जाएत। तमाकुलक तामस सि‍पाहीकेँ आगू बढ़ा सरकार दि‍स‍ लऽ गेल। सरकारपर नजरि‍ पड़ि‍ते हँसी‍ लगलै। बड़बड़ाए लगल-
अजीब मदारी-नाच सरकारो करैए। एक दि‍स‍ तमाकुल खेती करैक लाइसेंस, गुटका बनबैक लाइसेंस दइए आ दोसर दि‍स कैंसर रोगक कारण कहि‍ मनाही करैए। मुदा लगले मन घूमि‍ कऽ अपनापर चलि‍ एलै। तीस बर्खक नोकरीक कमाइ अही-गाॅजा-भॉगमे चलि‍ गेल। जखन रि‍टायर करब, आ आधा दरमाहा भेटत तखन कि‍ करब। एक तँ देहमे कि‍छु ने रहल जे दोसरो काज करब, खेनाइ-पीनाइक अभाव सेहो हेबे करत। तइपर बुढ़ाड़ि‍यो तँ बीमारीक जड़ि‍ये छी, कहि‍यो दाँत टुटत तँ कहि‍यो आँखि‍क इजोत कमत। कहि‍यो कानक बहीर हएब तँ कहि‍यो बातरस ठेहुनमे पकड़त। मुदा अपना वि‍षयमे अपने सोचलौं कहि‍या जे बूझब। सि‍पाही दोसर जे बलदेवक आगूमे बैसल रहए, ओकर मन ि‍भन्ने बौआइत। जहि‍ना शराबीकेँ शराबक बोतल आगूमे अबि‍ते शरावक खुमारी आबि‍-आबि‍ नाचए लगैत तहि‍ना ने मृत्‍यु वा फाँसीसँ पूर्वक क्षण होइत। फाँसीसँ पूर्व धरि‍ ने बलदेव अपराधी छी आ हम ओकर पहरुदार सि‍पाही मुदा कि‍छु काल बाद अर्थात् बारह बजेक पछाति‍ के कतए रहब तेकर कोन ठेकान अछि‍। से नै तँ अखन ने हम सि‍पाही आ ने बलदेव अपराधी। कि केने बलदेव एत्ते पैघ अपराधी भेल आ हम ओकर सि‍पाही छी। बलदेवक मन बीरान होइत ऐ दुनि‍याँकेँ देखैत जे जहि‍ना फलसँ लुबधल आमक गाछ बि‍हाड़ि‍क झोकमे खसि‍ पानि‍ फेरि‍ दैत तहि‍ना ने अपनो आ परि‍वारोकेँ भऽ रहल अछि‍। मुदा आब तँ ने सोचै-बि‍चारैक समए रहल आ ने ओकरा पुरबैक।

तीनू गोटे अपने-आपमे मस्‍त। मुदा जहि‍ना तीर्थस्‍थानमे अनठि‍या यात्री एक-दोसर लग बैसि‍ अबैक कारणो पुछैत आ रस्‍ताक भीड़-कुभीड़ सेहो पुछैत तहि‍ना दोसर सि‍पाही चुप्‍पी तोड़ैत बलदेवकेँ पुछलक-
भाय, आइ तँ फाँसि‍येपर चढ़ि‍ जि‍नगीक अन्‍त‍ करबह। मुदा एकटा बात कहह जे केना-केना करैत एहेन सजाएक भागी भेलह?”
सि‍पाहीक प्रश्न सुनि‍ बलदेव मर्माहत भऽ जि‍नगीक समुद्रमे डूमि‍ गेल। जहि‍ना पोखरि‍मे पानि‍क ऊपरक आवाज तँ पानि‍क भीतरोमे पहुँचैत मुदा पानि‍क भीतरक आवाज ऊपर नै अबैत तहि‍ना बलदेवकेँ भेलै। बकार बन्न रहै मुदा कलपैत मन कि‍छु बजैत जरूर रहै। जि‍नगीक समुद्रमे डुमैत बलदेवकेँ, जहि‍ना छठि‍आरीक दूध बच्‍चाकेँ मन पड़ि‍ जाइत छैक तहि‍ना जि‍नगीक ओइ धरतीपर पहुँचि‍ गेल जतए अवोधे नै छेहा अवोध रहैए। मन पड़लै ओ दि‍न जइ दि‍न दोसर बच्‍चाक खेलौना छीनि‍ नुका धेलौं आ माइयो झूठ बाजि‍ लाथ कऽ लेलकै। मन पड़ि‍ते सुबहक सूर्ज जकाँ, लालीसँ दप-दपी चेहरामे आबए लगलै। मुसि‍कि‍याइत बलदेव बाजल-
सि‍पाही भाय, बच्‍चाक ओ दि‍न मनसँ नि‍कलैले छटपटाइए तँए पहि‍ने वएह कहै छी।‍
बलदेवक बात सुनि‍ सि‍पाहीक मन सेहो अपन बालपन आ परि‍वारक बच्‍चापर पड़लै। सड़क नपैत दूरबीन जकाँ कतौ-सँ-कतौ दुनू गोटे नापए लगल। सगतरि‍ बच्‍चे-बच्‍चा देखि‍ पड़ैत। आगूओ बच्‍चा पाछूओ बच्‍चा तइ बीच अपनो दुनू बच्‍चा। बच्‍चाक वनमे दुनू गोटे हरा गेल। हराइते दुनू गोटे सहटि‍ कऽ आरो लग आबि‍ गपकेँ आगू बढ़ौलक।
जहि‍ना दुखक नि‍वारण बोल आ नोर दुनूसँ होइत अछि‍ तहि‍ना बलदेव अपन दुखनामा बजैत बाजल-
भैयारी, बच्‍चामे हम दोसर बच्‍चाक खेलौना छीन कऽ चोरा रखलौं। कनैत ओ बच्‍चा आंगन जा माएकेँ कहलक। बच्‍चाक संगे माए आबि‍ पुछलक। नठि‍ गेलौं। मुदा रखैले माएकेँ दऽ देने रहि‍ऐ। माइयो नठि‍ गेल। तेसर दि‍न वएह खेलौना लेने ओकरे आंगन खेलाइले गेलौं। दुनू माए-बेटा चि‍न्‍ह गेल। कहलक तँ कि‍छु नै मुदा चोरबा नाओं राखि‍ देलक।‍
बलदेवक बात सुनि‍ ठहाका मारि‍ सि‍पाही अपन संगी, दोसर सि‍पाही दि‍स इशारा करैत बाजल-
भैयारी, संगी तँ गाजा पीब मस्‍त छथि‍। बचलौं दुइये गोटे, जेकरा सभक राज-पाट छि‍ऐ से सभ अपन सम्‍हारह। तइसँ हमरा की। अच्‍छा तेकर बाद की भेल?
सि‍पाहीक बात सुनि‍ बलदेव गुम्‍म भऽ गेल। कने काल गुम रहि‍ बाजल-
ओइ दि‍नक नीक आइ अधला बूझि‍ पड़ैए।‍
बलदेवक उत्तर सुनि‍ चौंकैत सि‍पाही बाजल-
से केना, से केना भैयारी?
वि‍स्‍मि‍त होइत बलदेव बाजल-
भैयारी, बात ओतबेपर नै अॅटकल। आगू बढ़ि‍ गेल।‍
की आगू बढ़ि‍ गेल?
पानि‍ भरैले माइयो इनारपर गेल आ ओहो दुनू माइपूत आएल। आरो गोटे सभ रहए। तइ बीच ओ माएकेँ कहलक, अहींक बेटा हमरा बेटाक खेलौना चोरा लेलक। एतबे बजैत, अँएले, वँएले, पछि‍यामे पजड़ल पसाही जकाँ लगि‍ गेलै। दुनूक बीच कहा-कही शुरू भेल। कहा-कहीसँ गारा-गारी हुअए लगल। जहि‍ना सात पुरुखाकेँ हमर माए उकटए लगलै तहि‍ना ओहो उकटए लगल। तइ बीच एक्के-दुइये आनो-आन कहा-कहीमे शामि‍ल हुअए लगल। हल्‍ला सुनि‍ लोको सभ आबए लगल। जे अबै से कोनो दि‍स सन्‍हि‍या जाए। दू पाटीमे बँटि‍‍ खूब गारि‍-गरौबलि‍ चलए लगलै।‍
बलदेव बात समाप्‍तो नै केने छल आकि‍ बीचेमे दोसर सि‍पाही टोनि‍ देलक-
ई तँ नाहकमे एत्ते बात बढ़ल?
से कि‍ ओतबेपर अॅटकल। आरो बेसि‍या गेल। दुनू दि‍सक गबाही कमलेसरि‍ये माता हुअए लगलखि‍न। कारण जे सभ तँ कानो ने कोनो दि‍सक पाटी बनि‍ झगड़ा, गारि‍-गरौबलि‍मे शामि‍ल रहए।
जहि‍ना फुलाएल पानकेँ मुँह बन्न कऽ आनन्‍द लेल जाइत अछि‍ तहि‍ना आनन्‍द लैत सि‍पाही बाजल-
स्‍त्रीगणेक बीच झगड़ा भऽ कऽ रहि‍ गेल। आकि‍ आगू बढ़ल?
सि‍पाहीक प्रश्न सुनि‍ बलदेव बाजल-
मरद स्‍त्रीगणमे कोनो भेद अछि‍। ने मरद‍ मरद जकाँ रहैए आ ने स्‍त्रीगण स्‍त्रीगण जकाँ। मरदो मौगि‍आही चालि‍ पकड़ि‍ मौगी बनि‍ गेल अछि‍ आ मौगि‍यो मरदनमा चलि‍ पकड़ि‍ मरद बनि‍ गेल अछि‍। स्‍त्रीगणक गारि‍-गरौबलि‍ पुरुखक मुँहमे चलि‍ आएल। जहि‍ना एक चम्मच दही तौला भरि‍ दूधकेँ दही बना दइए, जइसँ एक तौलाकेँ के कहए जे कतेको तौला दूध दही बनि‍ जाइए तहि‍ना स्‍त्रीगणक मुँहक गारि‍ पुरुखमे चलि‍ आएल।
सि‍पाही- ‍होतसँ होतान भऽ गेल।
बलदेव- अँए एतबे भेल, स्‍त्रीगण ने भोरसँ साँझ धरि‍ गारि‍येक माला जपि‍ सकैए मुदा पुरुखमे तँ से नै होइए। एकसँ दू गारि‍ मुँहसँ नि‍कालि‍ते हाथ उठए लगै छै। जखने हाथ उठल आकि‍ दोसर‍पर खसल। सएह भेल।
रस चुसैत सि‍पाही बाजल-
तखन तँ मारि‍ भऽ गेल हएत?
सि‍पाहीक जि‍ज्ञासु प्रश्न बलदेवकेँ उत्‍साहि‍त करए लगल। उत्‍साहि‍त होइत बलदेव बाजल-
मारि‍ये भेल की गधकि‍च्‍चनि‍ मारि‍ भेल। मुदा दुनू दि‍स‍ एक रंग नै भेल। हमर दि‍यादी नमहर, तहूमे तेहेन छड़े-छाँट समांग सभ अछि‍ जे देखबोमे राक्षसे जकाँ लगबो करैए। ओकर दि‍यादी छोट माने कम संख्‍याक अछि‍ तँए वएह सभ बेसी मारि‍ खेलक।
सामंजस करैत सि‍पाही बाजल-
‍एतए तँ दुइये गोरे छी, तेसर हमर संगी- पहि‍ल सि‍पही अछि‍, ओ तँ भकुआएले अछि‍। नि‍च्‍चा धरती ऊपर अकास अछि‍। तँए दुइये गोरेक बीच पनचैती करू जे नीक भेल कि‍ अधला?”
सि‍पाहीक बात सुनि‍ बलदेव आगू बढ़ैत बाजल-
पनचैती पछाति‍ करब। अखने अगुता गेलौं भैयारी! अखन तँ पेनि‍यो नै छनाएल अछि‍।‍
बलदेवक बात सुनि‍ सि‍पाही घड़ी देखलक। साढ़े नअोए बाजल। एक तँ ओहि‍ना प्रतीक्षाक समए गड़ूगर होइ छै तइपर जहलक बीचक प्रति‍क्षा! समए पाबि‍ सि‍पाही बाजल-
आरो बात अछि‍ भैयारी?
आरो सुनि‍ जहि‍ना आदि‍-इत्‍यादि‍ नेनमुँह बच्‍चाकेँ हरा दैत अछि‍ तहि‍ना बलदेव हरा गेल। बाजल-
आरो कि‍ कनि‍ये अछि‍ जे धक दऽ नजरि‍ चलि‍ जाएत। मारे-अमार लगल अछि‍। तइ बीचमे सँ बीछए पड़त कि‍ने। नै तँ ओही नेनमुँह बच्‍चा जकाँ जि‍नगी भरि‍ आदि‍-इत्‍यादि‍ करैत रहब, मुदा ओकरा बीछि‍ नै पएब।‍
बलदेवक थीर वि‍चार सुनि‍ सि‍पाही अपनाकेँ थीर करैत बाजल-
अच्‍छा होउ। अखन दू घंटासँ बेशि‍ये समए अछि‍।‍
दू घंटासँ बेसी समए सुनि‍ बलदेव बाजल-
‍दू घंटामे तँ वि‍द्यार्थी परीक्षा पास कऽ लइए। तइसँ बेसी समए लगने बोर्ड-युनि‍वसि‍टीसँ डि‍ग्री लऽ अबैए। अखन बहुत समए अछि‍।
समए पाबि‍ सपाही जेबीसँ सलाइ-सि‍गरेट नि‍कालि‍ एकटा अपनो आंगुरसँ दबलक आ दोसर बलदेवोकेँ देलक। सलाइ खरड़ि‍ सि‍गरेट सुनगा दुनू पीबए लगल। दुनू मुँहक घुआँ मुँहसँ नि‍कलि‍ते तेना मि‍लैत जाए जे फुटा कऽ देखब असंभव भऽ गेल। मुँहक सि‍गरेट सठि‍ते बलदेब बाजल-
भैयारी, कि‍छु घंटाक मेहमान छी, अहाँ कतए रहब हम कतए रहब तेकर कोन ठेकान। मुदा मनमे जे अछि‍ ओ केकरा कहि‍ सकबै। तँए जाबे एकठीम छी ताबे सुनू। जतए धरि‍ भऽ सकत ओते तँ मन हल्लुक रहत।‍
बलदेवक बात सुनि‍ सि‍पाही बाजल-
जखन सुनै लगलौं तँ सुनाउ, जत्ते सुनाएब सभ सुनि‍ लेब। तहूमे बाल-बोधक गप छी, हम सभ नै सुनब तँ के सुनतै। आखि‍र गारजनो तँ छि‍यन्‍हि‍हेँ।‍
मुस्‍कुराइत बलदेव बाजए लगल-
ठीकसँ मन नइए। मुदा वएह सात-आठ बर्खक रही।‍
बीचेमे सि‍पाही टोकलक-
ने सात ने आठ, साढ़े सात भेल। तइले एत्ते ततमताइ कि‍अए छी।‍
बलदेव- एते नीक नहाँति‍ मन अछि‍ जे अनका बाड़ीसँ नेबो, दाड़ीम, लताम चोरा-चोरा खूब आनी। पड़ोसि‍येक नेबो बाड़ी हमरा भाँगक चहटि‍ लगौलक।‍
जि‍ज्ञासा करैत सि‍पाही-
से केना, से केना?
बाड़ी-झाड़ी लगबैमे एकटा पड़ोसि‍या बड़ माहि‍र। भरि‍ दि‍न ओही पाछू बेहाल। मुदा गुणो रहनि‍, ने केकरो‍ बाड़ी-झाड़ी जाइसँ रोकथि‍न आ ने सोझामे छुच्‍छे हाथे केकरो घुमऽ देथि‍न। हुनके बाड़ीसँ सभ दि‍न दूटा नेबो तोड़ि‍ ली, आ चौकपर बेचि‍, भांगो आ पानो खा ली। गुजर करै जोकर खेत-पथार तँ नहि‍ये रहए मुदा तैयो सात-आठ मास खेतक उबजासँ गुजर चलि‍ जाए। कट्ठा दसे-बारहेक करीब बटाइयो खेत बाबू करैत रहथि‍। तइ सब मि‍ला साल-माल लगि‍ जाइत छल। ओना साँझू पहर कऽ जे अन्‍ट-सन्‍ट काजो करी आ बजबो करी तइसँ बाबू बूझि‍ गेल रहथि‍ जे छौड़ा बहबाड़ि‍ भेल जाइए। संगति‍ खराब भऽ गेल छै।
सि‍पाही- बाबू कि‍छु कहथि‍ नै?
बलदेव- कहि‍तथि‍ की माइयक ने दुलारू बेटा रही। जँ कहि‍यो कि‍छु बजौ चाहथि‍ तँ तेना कऽ माए झपटि‍ लन्‍हि‍ जे मुँहे बन्न भऽ जानि‍। अोना भैयारीमे असगरे रही तहूसँ कहि‍यो तेना भऽ नै कहए चाहथि‍।‍
सि‍पाही- तब की भेल?
बलदेव- एक दि‍न कनी पहि‍ने पि‍सुआ भांगक गोली खा लेलाैं तइपर सँ पान सौ नम्‍मर जरदा देल पान कनी पुष्‍टसँ चढ़ा देलि‍ऐ। घरपर अबैत-अबैत खूब नि‍शां लगि‍ गेल। बाबू दरबज्‍जेपर रहथि‍। कहलनि‍ जे एकटा बात पूछि‍यौ, कहलि‍यनि‍ जे एकटा कि‍अए एक हजार पूछू। हमहूँ हाथि‍येपर सवार रही।‍
हाथीपर सवार सुनि‍ सि‍पाहीकेँ हँसि‍ लगि‍ गेल। हँसि‍केँ सम्‍हारि‍ बाजल-
आ जे हाथीपर सँ खसि‍ पड़ि‍तौं तखन की होइतए?
मुस्‍कुराइत बलदेव बाजल-
हद करै छी भैयारी। से जँ बुझैत रहि‍ति‍ये तँ एहि‍ना करि‍तौं। यएह ने नै बुझलि‍ऐ जे केना लोक उट्ठी-बैसी खेल खेलाइए। केना खसलाहा अपनाकेँ चढ़ल बुझैए।‍
सि‍पाही- बाबू की पुछलनि‍?
पुछलनि‍ जे अन्न-पानि‍ तँ जेना-तेना बटाइयो-खोटाइ कऽ साल-माल लगि‍ये जाइए मुदा दूध-दहीक नसीब नै होइए। दूध-दहीक नाओं सुनि‍ अपनो मन चमकल। कहलि‍यनि‍ से कि‍ कहै छहक। कहलनि‍, एकटा महींस पोसि‍या लऽ लइतौं। आब तोहूँ चरबै-बझबै जोकर भइये गेलह।‍
बीचेमे ि‍सपाही टोनलक-
‍बड़ सुन्‍दर बात कहलनि‍।
बलदेव- हँ-हँ। से तँ अपनो नीक लागल। मनमे उठल जे जहि‍ना खेतक उबजाक अगो, तीमन-तरकारीक पहि‍ल फड़क हकदार आने होइत तहि‍ना गाए-महींसबला परि‍वारमे डारहीक हकदार तँ धि‍ये-पुते ने होएत। एक तँ डारहीसँ छालही धरि‍, दोसर दूधसँ दही धरि‍क ओरि‍यान हएत। तइपर सवारी बना महींसपर चढ़ि‍ सौंसे गामो घूमब। बि‍नु कि‍छु केनहुँ काजक मोजर सेहो हेबे करत। आ कनी-मनी संगति‍यो मँुहेँ सुनि‍ र्इहो बुझैत‍ रहि‍ऐ जे गजेरी-भंगेरीक पथ्‍य दूधे-दही छी। जँ से नै खाएत तँ उनटे गांजा-भांग खा जेतइ। जानि‍ये कऽ तँ भांग खाइते छी। अहीमे रमल रहै छी। जे काजुल अछि‍ ओ ने काजमे रमैए आकि‍ जे चि‍न्‍तक अछि‍ ओ चि‍न्‍तनमे। मुदा हम तँ तइ सभमे नै छी। जि‍नगी जँ रमता जोगी बहता पानी नै बनल तँ जि‍नगी सराठि‍ये ने भऽ जाइए।‍
चौंकैत सि‍पाही बाजल-
सराठी जि‍नगी केकरा कहै छि‍ऐ?
सि‍पाहीक बात सुनि‍ बलदेवकेँ हँसी लागल। जहि‍ना एको दाना नून आकि‍ चि‍न्नी अपन सुआद जना दइए। तहि‍ना बलदेवकेँ अपन ज्ञानक सुआद लगलै। मुस्‍की दैत बाजल-
जहि‍ना धारक पानि‍ ताधरि‍ चलता रहैए जाधरि‍ संगे-संग चलैत रहैए। मुदा जखने कोनो खत्ता-खुत्तीमे फँसि‍ जाइए आ बहाउ रूकि‍ जाइ छै तखन माटि‍क संग सड़ए लगैए। सड़ैत-सड़ैत एत्ते सड़ि‍ जाइए जे नहाइ-पीबैक कोन गप जे अपन सड़नि‍सँ ओहन-ओहन बि‍मरि‍याह कीड़ी सभकेँ जनमबए लगैए जे हाथि‍यो सन-सन जानवर आेइमे फँसि‍ जान गमबैए। महींस चरबै जोकर भइये गेल रही। कि‍एक तँ देखि‍ये जे हमरोसँ छोट-छोट छौड़ा सभ चरबैए। कहलि‍यनि‍ नीक काजमे एक्को दि‍न देरी नै करबाक चाही बाबू। जे देरी करैए वएह पछताइए। बाबूओकेँ गप नीक लगलनि‍। एकटा पोसि‍या महींस लऽ अनलनि‍।‍
महींसक नाओं सुनि‍ सि‍पाही बाह-बाही भरैत बाजल-
जखने कमाइ-खटाइ लोक करए लगैए तखनेसँ अपन धरतीक भार उतारए लगैए।‍
सि‍पाहीक बात बलदेवकेँ नीक लगलै। जहि‍ना एके अन्न पेट भरैक संग-संग मनमे आनन्‍दो दइ छै तहि‍ना बलदेवोक मनमे भेलै। गद-गदाएल बाजल-
असलाहा बात तँ कहबे ने केलौं।‍ कहि‍ चुप भऽ कि‍छु मन पाड़ए लगल। जहि‍ना खि‍स्‍सकरक संग हूँहकारी भरने ओकर उत्‍साह उठैत रहै छै तहि‍ना बलदेवोक उठल। राज-काजसँ हूसल रागी-भोगी जकाँ दोहरबैत बलदेव बाजल-
ओह, सुखक दि‍न चलि‍ गेल। आब थोड़े देखब आकि‍ भोगब। ओ हो हो।‍
दुनूक मनसँ बारह बजेक फाँसी हराएल। एक फाँसी ओहनो होइत जइमे संकल्‍प रूपी कल्‍याणी माइक गोदमे बैसि‍ हँसैत-चढ़ैत दोसर एहनो होइत जे खण्‍ड-खण्‍ड टुटल-छि‍ड़ि‍आएल मन शरीरकेँ छौड़ैत। हूँहकारी भरैत सि‍पाही बाजल-
से की। से की?
चानि‍ ठोकैत बलदेव बाजल-
महींससँ दूध-दही हेबे करए। पाँच गोटे एहेन छड़े-छाँट महींसवार रही जे महींस चरा साँझू पहर घुमती काल‍ लोकक खेतक जजातो चरा लि‍ऐ आ धानक महीनामे धानो नोचि‍ लि‍ऐ आ नारो बान्‍हि‍ महींसपर लादि‍ लऽ अनि‍यै। तते अन्न घरमे ढेरि‍या जाए जे खाइक दुखे हरा गेल रहए।
सि‍पाही- सभ  दि‍न महींसे चरबैत रहलि‍ऐ?
आँखि‍-भौं चमकबैत बलदेव बाजल-
हद करै छी अहूँ भैयारी। बुधि‍-बलक संग जि‍नगि‍यो ने घटै-बढ़ै छै। ठीकसँ तँ नै मन अछि‍। मुदा एते मन अछि‍ जे दुरागमन भऽ गेल रहए। बाबूओ मरि‍ गेल रहथि‍। जहि‍ना खेत-पथार बेचि‍ लोक नोकरी करए जाइए तहि‍ना महींस बेचि‍ लेलौं। मुदा पाँचो महींसवारक संबंध आरो बढ़ि‍ गेल। खेनाइ-पीनाइ कथा-कुटुमैतीक संग पनचैती सभ करए लगलौं। गामेमे बहरबैया मालि‍कक जमीनो आ कचहरि‍यो रहए। कचहरीक बराहि‍लसँ दोस्‍ती सेहो भऽ गेल। संजोगो नीक रहल, बराहि‍लगि‍रीक नोकरी भऽ गेल। सए बीघा जमीनक मालि‍क भऽ गेलौं।‍
मालि‍कक नाअों सुनि‍ सि‍पाही बाजल-
तखन तँ मानो-दान हुअए लगल हएत?
मानदान सुनि‍ कठ-मुस्‍की दैत बलदेव अपसोच करैत बाजल-
सोझामे जहि‍ना मान-दान बढ़ल परोछमे तहि‍ना गारि‍यो बढ़ि‍ गेल।‍
से कि‍अए?
कि‍छु मन पाड़ैत बलदेव बालज-
करबो तहि‍ना करि‍ऐ। जेना गमैया नेता सभकेँ देखबै जे उपरका नेताक आगूमे जे कि‍छु बाजत आ करत, लोकक बीच उनटि‍ कऽ मुँहो आ चालि‍यो बदलि‍ लेत। तहि‍ना करए लगलौं। मालि‍कक -जमीनदार- आदमीक बीच कि‍छु आ लोकक बीच कि‍छु करए लगलौं।‍
उनटैत-पुनटैत पाशा देखि‍ सि‍पाही बाजल-
से की?
बलदेव- गामक लोककेँ कोनो मोजर दि‍ऐ। अनेरे केकरो गरि‍या देलौं, बलजोरी कोनो चीज लऽ लेलौं। तहि‍ना स्‍त्रीगणो सभकेँ, केकरो कि‍छु कहि‍ दि‍ऐ, केकरो कि‍छु।‍
कि‍यो जबाब नै दि‍अए?
जबाब कि‍ दइत, जहि‍ना पर्ड़ू खुट्टा देखि‍ चुकड़ै छै तहि‍ना ने रहए। एक दि‍स मालि‍कक धाक दोसर अपन बलउमकी।‍
बीचेमे सि‍पाही बाजल-
की अपन उल-उमकी?
जहि‍ना शरीरेक मुख्‍य अंग आँखि‍यो छी आ कानो छी। मुदा दुनूमे कते अन्‍तर छै से देखै छि‍ऐ। कान बेचारा एहेन सज्‍जन अछि‍ जे नीकसँ नीक आ अधलासँ अधला सुनि‍ कि‍छु नै करैत, मुदा आँखि‍ केहेन लुच्‍चा अछि‍ जे देखि‍ते छि‍ऐ, कखनो ललि‍या कऽ अगि‍या जाइत तँ कखनो कनखि‍या जाइत तँ कखनो गैंचि‍या जाइए। तहि‍ना अपनो अलेल खेने-पीने सदि‍काल रमकी चढ़ले रहैत छलए।‍
सि‍पाहीक मनमे तरंग उठलै। तरंगि‍ कऽ बाजल-
गामक पढ़ल-लि‍खल लोक ऐ बातकेँ नै बुझैत?
सि‍पाहीक प्रश्न सुनि‍ बलदेव गुलाबी हँसी हँसि‍ बाजल-
जहि‍ना कृष्‍ण एक दि‍स भदवरि‍या बूझल‍ जाइ छथि‍ तँ दोसर परव्रह्म सेहो छथि‍। मुदा छथि‍न तँ सभ ले। तँए जे जेहेन तेकरा ले तेहन। तहि‍ना वीणा वादि‍नी सेहो ने छथि‍। जेहेन कर्म तेहेन वोध। तही बीचमे ने समाजक पढ़लो-लि‍खल लोक छथि‍। जखन जेहेन तखन तेहेन।
से केना?
ि‍सपाहीक प्रश्न सुनि‍ अपनाकेँ सम्‍हारि‍ बलदेव बाजल-
जहि‍ना काजोमे लोक एहेन रमान रमि‍ जाइए जे खेनाइ-पीनाइसँ लऽ कऽ अपन जि‍नगीक कि‍रि‍या-कलापक संग घरो-परि‍वार बि‍सरि‍ जाइए तहि‍ना दोसर दि‍स बेरागी सेहो ने व्रह्ममे लीन भऽ सभ कि‍छु बि‍सरि‍ जाइए। रमता जोगी तँ दुनू बनि‍ जाइए। मुदा की‍ दुनू एक्के भेल?
बलदेवक बात सि‍पाही नै बूझि‍ सकल। बाजल-
कनी फरि‍या कऽ कहि‍यौ।
जहि‍ना कारखानाक बनल कपड़ाक थानसँ दरजी काटि‍-काटि‍ रंग-रंगक वस्‍त्र बनबैत तहि‍ना बलदेव बनबैत बाजल-
देखि‍यौ, सप्‍ताह मास आ सालेक लि‍अ। आइ तारीख एक महीना एक छी। ई दू सालक बीचक सीमानपर अछि‍। एकक अंत दोसराक आरंभ छी। बाकी जते अछि‍ से सभ कचि‍या अछि‍। जेना मासक भीतर बाइस दि‍नकेँ कि‍ कहबै? तहि‍ना सप्‍ताहक भीतर पाँच दि‍नकेँ की कि‍ कहबै?
बलदेवक बात सुनि‍ सामंजस करैत सि‍पाही बाजल-
खैर, छोड़ू दुनि‍यादारीकेँ। ठनका ठनकै छै तँ कि‍यो अपना माथपर हाथ दइए।‍
सि‍पाहीक बात अन्‍तो नै भेल छल कि‍ बीचेमे बलदेव बाजल-
भैयारी, आइ बूझि‍ पड़ैए जे गलती नै भेल गलति‍क बाटे पकड़ा गेल।‍
चौंक कऽ ि‍सपाही बाजल-
से की! से की?
उदास होइत बलदेव बजए लगल-
भैयारी, कहैले तँ जते मुँह तते बाट अछि‍। जँ से नै रहैत तँ हृदैसँ नि‍कलि‍ दोसर हृदैमे सटैत केना अछि। मुदा ओते कहैक अखन समए नइए। तँए एतबे कहब जे मनुष्‍यक बीच दू रास्‍ता बनल अछि‍। एक रास्‍ताकेँ लोक‍ मनुखक रास्‍ता बूझि‍ केकरो कि‍यो चलैसँ रोकैत नै अछि‍ आ दोसर अछि‍ जे अपना छोड़ि‍ दोसरकेँ मनुख बुझि‍ते ने अछि‍। रास्‍तासँ हटि‍ जहि‍ना जंगल-झाड़मे चलैत-चलैत डगर बनि‍ जाइ छै, तहि‍ना डगर धड़ा देने अछि‍।‍

जहि‍ना लोहाक कोनो औजार जखन भोति‍याए लगैत तखन कारीगर ओकरा आगि‍मे धीपा, पीटि‍ पानि‍मे पनि‍या दैत, जकरा पानि‍ चढ़ब कहल जाइ छै। तहि‍ना या तँ पाथरपर पानि‍ दऽ दऽ रगड़ि‍ सान चढ़बैए तहि‍ना सि‍पाहीक कारीगर सि‍गरेट पीबाक इच्‍छा जगौलकनि‍। जेबीसँ सि‍गरेट नि‍कालि‍ एकटा अपनो संगी -जे गांजा पीब मस्‍त भऽ सुनैत छल- केँ आ एकटा बलदेवो हाथमे दैत सलाइ खरड़लक। एक दम पीब पहि‍ल सि‍पाही धुँआ फेकैत बाजल-
अनेरे अहाँ दुनू गोरे मगजमारी करै छी। एते छि‍लनि‍ करैक कोन बेगरता अछि‍। देखबै जे भोजमे दर्जनो समान रहने खेनि‍हार एक-दूटा पर चोट करैए। परसनि‍हारक काज छि‍ऐ पूछि‍-पूछि‍ देनाइ। खेनि‍हारक मन छि‍ऐ जे खाएब कि‍ नै। आइ जइ गति‍क फल पबए चलब से केना भेल?
सि‍पाहीक प्रश्नसँ बलदेवकेँ दुख नै भेल। संगीक एहसास भेल। जहि‍ना जुआन-जहानकेँ सासुरक रंगोली कथा संगीकेँ सुनबैत आनन्‍द अबैत तहि‍ना बलदेवकेँ भेल। दुखो तँ दोसरकेँ कहने कमैए। जँ से नै तँ नोरक संग कि‍यो कि‍अए अपन पति‍-वि‍योगक खेरहा सुनबैए। बात मन पाड़ैक समए बनबैत बलदेव बाजल-
भाय सहाएब, औझुका खुशी सन जि‍नगीमे कहि‍यो खुशी नै भेल छल।‍
सि‍पाही- से की?
बलदेव- अपन बेथा-कथाकेँ जँ एकोटा सुनि‍नि‍हार भेट जाए‍ तँ आेइसँ नीक की हएत। तहि‍ना हृदैक वेदना जँ अहाँ सुनए चाहलौं तँ जि‍नगीक अंति‍म दि‍नक अंति‍म पहरमे सीढ़ीक अन्‍ति‍म पौदानक बात कहए चाहै छी।
बलदेवक वि‍चार सुनैक खुशीमे सि‍पाही वि‍ह्वल भऽ बाजल-
जहि‍ना भतभोजक अंति‍म वि‍न्‍यास चीनी होइत तहि‍ना जँ अहाँक मधुर वाणी वाणीक -अपन वाणी- संग मि‍लत तखने ने मि‍श्री बनि‍ पाथर सदृश सक्कत हएत। यएह ने जि‍नगीक ओर-छोर छी।‍
सि‍पाहीक बात सुनि‍ दोसर सि‍पाही बाजल-
भैया, अहाँ भकुआएल मने भकुआ लगा देलि‍ऐ आ भकुआ गेलौं।‍ कनी चि‍क्कन जकाँ कहि‍यौ।‍
सि‍पाहीक बात सुनि‍ पहि‍ल सि‍पाही बाजल-
सभ दि‍न तँ दस कि‍लोक बन्‍दूक कन्‍हामे लटकौने रहै छह, तखन फुलसन वि‍चार पाथर सन भारी कोन कान्‍हमे लटकेबह। वहि‍ना तँ कान्‍ह बदलि‍ दुनू कान्‍ह भकभकाइत रहै छह तखन माटि‍ तँ माटि‍ये छी।
सि‍पाही- कनी फरि‍छा कऽ कहि‍यौ।
सि‍पाही- देखहक जहि‍ना ई दुनि‍याँ माटि‍क बनल अछि‍ तहि‍ना ने ई देहो माटि‍येक छी। तँए देह बुझैले माटि‍ बुझए पड़तह। रंग-रंगक माटि‍सँ ई दुनि‍याँ बनल अछि‍। एकर गि‍नती करब साधारण नै। जहि‍ना देखबहक जे साते रंग तते रंग बनि‍ गेल अछि‍ जे डोराक दोकान, जे साइयो रंगक डोरा बेचैए तेकरो दोकानपर दर्जी मि‍ जाइए जे ऐ रंगक डोरा नइए। तहि‍ना माटि‍यो अछि‍। एक माटि‍ थाल बनबैए तँ दोसर चि‍क्कन। ततबे नै एक पाथर सन सक्कत पत्‍थर बनबैए तँ दोसर पानि‍ सनक वस्‍तुकेँ पैदा करैबला लेयर -जल मि‍श्रि‍त माटि‍-। अच्‍छा छोड़ह अपना सभ गप। बेचारा बलदेवक अंति‍म समए गुजरि‍ रहल अछि‍ तँए पहि‍ने ओहि‍ना सूनब होएत जहि‍ना सूर्यास्‍तक समए कोनो दूर जाइत बटोही अनभुआर जगहपर आबि‍ अॅटकैक ओरि‍यान करए चहैत। पहि‍ने अहाँ अपन बात वि‍सर्जन करू बलदेव भाय तखन जे हेतै से हेतै। जे जीबए से खेलए फागु, जे मरए से लेखे जागु।‍
अंति‍म तीर नि‍कलैत जहि‍ना हजारो वाणसँ वेधल ति‍राएलक हृदए सुखसागरक घाटपर पहुँचि‍ हि‍यबैत जे सभसँ सुन्नर जल कोनठाम छै, जइठाम स्‍नान करब। जाधरि‍ पवि‍त्र पानि‍सँ पथ नै पखारब ताधरि‍ पएर पि‍छड़ि‍ते रहत। जाधरि‍ पएर पि‍छड़ैत रहत ताधरि‍ सोझ भऽ चलि‍ नै सकै छी। जाधरि‍ सोझ भऽ ठाढ़ नै भऽ पएब ताधरि‍ कमलासन देखि‍ नै पएब। जाधरि‍ कमलासन देखि‍ नै पएब ताधरि‍ रंग बदलैत कमल कुमुदनीक संग भौराकेँ पराग-जालमे ओझरा लाल-उज्‍जर आॅचरे समेटि‍ राति‍ भरि‍क जीवन-रक्षण ओइ मातृ सदृश करैत जइ सदृश छातीमे सटा मैया यशोदा अपन लाड़लाकेँ जि‍नगीक कथा-बेथा सुना-सुना सुनबैत।‍‍

अंति‍म तीरसँ ति‍राएल वा वाणसँ वेधाएल बलदेवक संकल्‍प-शक्ति‍ जागल। शर्त लगबैत बलदेव बाजल-
भैयारी, दुनि‍याँमे हि‍त-अपेछि‍त, दोस-महि‍म आदि‍ अनेको तरहक होइत अछि‍, मुदा से नै जि‍नगी तँ ओकरे जि‍नगी ने सार्थक होएत जे संकल्‍पि‍त हुअए। भलहिं छोटसँ-छोट संकल्‍प कि‍अए ने होए। मनुष्‍यक पहि‍ल वाण तँ संकल्‍पे वाण ने होइत जँ से नै तँ जि‍नगी की। आइ हमरा ओहनो वि‍चार वोध भऽ रहल अछि‍ जे सपनोमे नै सपनाएल छलौं। ओना सपनो तँ सपने छी। कोनो दवाइ जहाजक सैर करबैत, तँ कोनो मलेरि‍या मच्‍छड़क मेलामे सैर करैत।‍
जहि‍ना कोनो वस्‍तुक जि‍ज्ञासा एते बढ़ि‍ जाइत जे सभ कि‍छु बि‍सरि‍ ओकरा पकड़ैले बाबल बनि‍ जाइत तहि‍ना सि‍पाही बाजल-
समैपर धि‍यान रखए पड़त। कालक गति‍ केकरो बुते ने राेकाइ छै। तँए अपनाकेँ ओइमे समावेश करू।

जहि‍ना भोजक वारीक चंगेरामे खाजा रखि‍ एकटा हाथमे नेने पंचक आगूमे आग्रह करैत, तेहने तगेदा बूझि‍ बलदेव बाजल-
भैयारी, अहाँ तँ भाइक संग, जे माइक संग अबैत ओ यार छी तँए संकल्‍प बूझू जे झूठ नै कहै छी। ई बात आइ बुझै छी अनकर मेहनति‍केँ तागति‍क बलपर लूटैत-चोरबैत एलौं। जेकर चोरोलि‍ऐ ओहो हमरे सन मनुख दूटा हाथ-पएरबला ने छै। हम कि‍अए छुलि‍ऐ। हमरा ओही दि‍न फाँसीपर समाज चढ़ा सकै छल आ अपन नि‍अममे सुधार कऽ सकै छल। मुदा से नै भेल। हम गल्‍ती कहाँ कतौ केलौं गल्‍तीक बाटक जे कर्तव्‍य छै वएह ने केलौं। हम तँ तखन बुझि‍ति‍ऐ जे जखन अपने टा एहेन रहि‍तौं। से तँ नै आगू-पाछू दुनू दि‍स भरल देखलि‍ऐ!
सि‍पाही- भैयारी, एहेन सजाए कि‍अए भेल, से कहाँ कहलि‍ऐ?”
एक टकसँ दुनू सि‍पाहीपर नजरि‍ राखि‍ बलदेव टकटकी लगा देखए लगल। जहि‍ना हजारो मील हटि‍ कोनो वि‍चार जन्‍म लऽ सटि‍ जाइत तहि‍ना सि‍पाही अपराधीक दूरी मेटा गेल। ने सि‍पाही किछु बजैत आ ने बलदेव। मुदा डयूटीक तीर सि‍पाहीकेँ लगल। घड़ी देखि‍ बाजल-
भैयारी, आब सुनैक समए नै पाबि‍ रहल छी।

समैक अभाव देखि‍ बलदेव ओहन कथाकार जकाँ जे जि‍नगीक बेथाकेँ कथा कहैत। घटना-वि‍शेष तँ ओहनो होइत जइसँ गढ़गर घटना सुनि‍नि‍हार भोगने रहैत। मुदा तँए की हुनकर वि‍चारकेँ वि‍चार नै मानबनि‍। तँए समाजक वस्‍तु साहि‍त्‍य छी। वि‍चार-सुझावक लेल पाठक-श्रोताक दरबज्‍जा सदति‍ खुजल रहैक चाहि‍ये। समाधानक अनेको उपाए अछि‍।
तँए जाधरि‍ साहि‍त्‍य समाजक सचि‍त्र नै बनि‍ व्‍यक्‍ति‍-चि‍त्र -वक्रचि‍त्र- बनैत रहत ताधरि‍ दुनूक बीच वि‍षमत नै रहए ओहो अनुचि‍त।
जि‍नगीक अंति‍म मोहक बात अंति‍म मोड़पर आबि‍ बलदेव बाजल-
भैयारी, सरकार वि‍रोधमे हवा उठल। हमहूँ बराहि‍लगि‍री छोड़ि‍ नेता बनि‍ गेलौं। हमरा सबहक जीत भेल। अपनेमे टुटान शुरू भेल सभमे, कि‍सान, बेपारी, वुद्धि‍जीवी, अपराधीमे टुटान भेल। इलाकामे जाल पसरल छल। बुझबे ने केलि‍ऐ जे नेताक टुटानसँ हमहँू टूटि‍ गेलौं। ऊपरे-ऊपर अपेछा रहल, भीतरे-भीतर दुश्‍मनी भऽ गेल। जहि‍ना तीतहा रोगक तीतहो दवाइ होइत आ मीठहो होइत। तेहने टुटानमे फँसि‍ गेलौं। चुनावक समए एलै दोसराकेँ ऐठाम धन लूटैक योजना बनल। मुदा ई नै बुझलि‍ऐ जे ग्रुपमे ओहनो अछि‍ जे खून करए जाइए। भेलै सएह। खून केलक कि‍यो नाओं लागल हमर। अपनो मन कहैए जे खुनी हम नै छी। मुदा सोझामे खून भेल तखन हम केम्‍हर रहि‍ऐ।

तही बीच दर्जनो तैयार सि‍पाहीक प्रवेश भेल। सि‍पाहीकेँ देखि‍ते सि‍पाहि‍यो आ बलदेवाे चौंक गेल। उठि‍-उठि‍ सभ ठाढ़ भेल। जहलसँ नि‍कलि‍ सभ सभकेँ देखए लगल।

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